कन्हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 5
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज कृत
(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)
हस्तलिखित पाण्डुलिपि सन् 1852 ई.
सर्वाधिकार सुरक्षित--
1 परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति
(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्हर दास जी सार्वजनिक
लोकन्यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्द्री, पिछोर।
सम्पादक- रामगोपाल ‘भावुक’
सह सम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ राधेश्याम पटसारिया राजू
परामर्श- राजनारायण बोहरे
संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)
पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com
प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2045
श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2054
सम्पादकीय--
परमहंस मस्तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्द विभोर कर रहा है।
पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्दी साहित्य में स्थान दिलाने, संस्कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज सम्वत् 1831 में ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्मे।
सन्त श्री कन्हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्हर सागर’’ में पर्याप्त स्थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्त संत श्री कन्हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्तुत कर रहे हैं।
कन्हर पदमाल के पदों की संख्या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्या का प्रमाण--
सवा सहस रच दई पदमाला।
कृपा करी दशरथ के लाला।।
के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्त हो पाये हैं। स्व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्द्र उत्सुक के सम्पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्त्रीय संगीत की धरोहर
तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।
गुरू कन्हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्थ।।
विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्तम श्री कृष्ण का जीवन झांकी से साम्य उपस्यित करने में बाबा कन्हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।
डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्त्रीय संगीत की धरोहर कन्हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी रविवार सम्वत् 1939 को पिछोर में हुआ।
नगर निगम संग्रहालय ग्वालियर में श्री कन्हर दास पदमाल की पाण्डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्वालियर द्वारा पाण्डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्त चन्दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।
पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्हर साहित्य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।
इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।
रामगोपाल भावुक
सम्पादक
दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी
राग-आसावरी
राम लला की छवि मन अटकी।।
छवि की छटा अटा चढि़ निरखी तब तैं गति नटवट की।।
रहौ न जात दरस बिन देखे चोट चली चटपट की।।
कन्हर बिना दरस रघुवर के विकल मीन जल तट की।।149।।
राम वंश की रति अधिकाई।।
नारायण वर नाभि कमल तैं ब्रम्हा प्रकट सुहाई।।
सुन्दर आदि मरिची कश्यप सूर जाति भर नसाई।।
वैवश्वत इक्ष्वाकु कुच्छि वान भयै शुभ आई।।
नृप अनस्य पृथु अधिक वंश कूं धुंधू भार मन भाई।।
वर जुब नाश्व भये माधाता आतप दियो जराई।।
सुसंधि अरू उरघ संधि वर ध्रुव संधि सुखदाई।।
भरत असित अरू सगर मनोहर असमंजस हर्षाई।।
अंशुमान जस उदित दलीप भागीरथ जस छाई।।
काकुश्छ रघु नृप की करनी महिमा दृशत न पाई।।
विजि दृक पुरखादि आदि सब सूर तिमिर नसाई।।
शुभ कलमाख पाद वर शोभित स्वकि सुदर्शन जाई।।
अग्नि वरन सी धृग मुनि सुन्दर तेज प्रशुस्त मुनि सुन्दर कठाई।।
अंबरीख बर नहु खज जाति बहुना भाग बढ़ाई।।
अज दसरथ सुत रामलखन वर भरत सत्रहन गाई।।
कन्हर हरि कौं नाम निरन्तर मुनि महीषि उर ल्याई।।150।।
राग- झंझौटी
श्री राम नृपति सुखदाई अवध मन भाई।।
वन वाटिका तरून पल्लव चहुं दिस लसत सुहाई।।
सरजू नीर गम्हीर बहत है विविध ब्यारि बह आई।।
उमडि़ घुमडि़ घन गरजि-गरजि बहु मोर कूक रव ल्याई।।
बोलत दादुर रटत पपीहा पावस जनु गुन गाई।।
रूंमि झूंमि रिमझिमि जन बरसत दामिनि जोर जनाई।।
विकसे कमल सरोवर सोभित भंवर गुंज रव छाई।।
कन्हर मति लघु क्यों कहि करनै सेस पार नहिं पाई।।151।।
झूलत रघुकुल तिलक मनी।।
कनि कर चितमय बनौ हिडोला सोहत जटित मनी।।
सियाराम कौं सखी झुलावति सामन शुभ रजनी।।
कन्हर बहुत मनोहर सोभित भई आजु अवनी।।152।।
राग-देस
सिया संग सोभा राम बनी।।
घन निंदत तन स्याम मनोहर सिया तडि़त दमनी।।
अंग ललित वर भूषन राजत उपमा बहुत घनी।।
कन्हर राम हिडोरा झूलत रटत सारदा सहस फनी।।153।।
राग-देस मल्हार
हिडोरा झूलत रघुकुल कमल पतंग।।
सिया सहित सोभित अति सुंदर लखि दुति लजित अनंग।।
क्रीट मुकुट मकराकृत कुंडल पहिरै वसन सुरंग।।
कन्हर लखि कर ध्यान मनोहर सहित अनुज सिय संग।।154।।
राग- अलय्या
हिडोरे झूलत दसरथ लाल।।
क्रीट मुकुट कटि पट कसि बांधै उर मुक्तनि की माल।।
बीन मृदंग सरस रव सरजू गावत दै सब ताल।।
कन्हर निरखि अवधपुर वासी उरझि रहे मनु जाल।।155।।
राग-गौंड़, ताल-चौताल
झूलत सीता राम हिंडोरै।।
रत्न खंभ विचित्र बिरचे जटित मनिन मन चोरै।।
रेसम डोरि अलौकिक पटली षट मुक्तनि की कोरै।।
सुन्दर सखी मधुर सुर गावति सरजू लेत हिलोरै।।
बोलत दादुर रटत पपीहा मुरिला करि रहे सोरै।।
कन्हर जुगल रूप अवलोकत उपमा वरनत गायोरे।।156।।
राग-ध्रुपद गौंड़, ताल-इकतारौ
झूलत राम हिडोरै घन गरजत चहुं ओरै।।
बदन चन्द्र छवि लागति है री उपमा बरनत थोरै।।
बोलत दादुर चकोर सोभा सरवर सरोज सरजू,
करत मधुर घोर करत मोर सोरै।।
बरसै मेघ झूंमि-झूंमि हरी-हरी रचित भूमि,
दामिनी की दमक जोर लता रूमि कोरै।।
कन्हर लखि राम रूप मगन भये देख जूथ,
हरषि-हरषि बरषि पुष्प इक टक छवि चोरै।।157।।
राग-गौंड़, ताल- त्रिताल
घन गाजि-गाजि साजि-साजि अवध निकट रहे आई,
सोभा छवि छाई-छाई सबही मन भाये।।
पावस झकझोर जोर बोलत चहुं ओर मोर,
सरजू करि मधुर सोर उपमा वर ल्याये।।
सोभित वर लता कोर बोलत चातक चकोर,
भ्रमत-भ्रमर करत सोर मानहु गुन गाये।।
कन्हर रघुनाथ गात बार-बार निरखि तात,
आनंद रहौ छाइ गात मुनि जन सुख पाये।।158।।
राग – भैरवी
आली घन उमडि़ घुमडि़ बरसै।।
स्याम बिना चपला चमकावै मन उर पै दरसै।।
मोर सोर पपीहा पिक बोलत निसि वासर अरसै।।
कन्हर कल न परति पल हरि बिन चंचल दृग तरसै।।159।।
झूलत राम किसोर किसोरी।।
नृपति महल में घालौ हिडोला डारी रेसम डोरी।।
विमला कमला चौंर डुलावैं गावैं आनंद बोरी।।
कन्हर अवलोकत पुरवासी सुन्दर चरननि ओरी।।160।।
राग-सोरठ
झूलत राम कुमर प्यारे सुंदर राज दुलारे।।
कनक रचितमय बनौ हिडोरा पटुली मनिनि सम्हारे।।
जगमगात सोभा बहु ल्याये मानौं विधि रूचि रचौ विचारे।।
सजि कै नारि चली गजगामिनि सोहत कुसम चीर धारे।।
प्रविसी नृपति भवन मैं जाई कोकिल वचन उचारे।।
गान सुनत गंधर्व सब लाजैं करत प्रसंसा ही हारे।।
सखी झुलावत उड़त पीति पट छवि पर तडि़त तेज वारे।।
कन्हर देखि चरित रघुवर कौ सुमन वृष्टि दुंदुभि न्यारे।।161।।
हिंडोरा माई झूलत नृप प्यारे।।
गौर स्याम शुभ अंग संग सिय बरनत कवि हारे।।
बाजत बीन मृदंग सरंगी सुनि मुनि ध्यान बिसारे।।
करत गान आनंद रव छाये पूरि रहौ सुख भारे।।
नारदादि संकर सनकादिक जय-जय शब्द उचारे।।
कन्हर प्रभु कौ रूप मनोहर लखि कर उर धारे।।162।।
सिया संग राजत राम कुमार रतिपति की छवि वार।।
सिंहासन सुंदर वर राजत सोभा अमित प्रकार।।
भरथ सत्रहन चमर छत्र लियै लखन विजन शुभ ढार।।
समय सुहावन भूषन राजत उपमा बहुत अपार।।
हरी-हरी भूमि हरित सोहत पट हरित मनिनि के हार।।
कन्हर हरित वाटिका चहुं दिसि केकी कूक उचार।।163।।
झूलैं दसरथ राजकुमार।।
हरी-हरी भूमि सुहावनि लागति उपमा बहुत प्रकार।।
उमड़ घुमड़ घन छाई रहे हैं मुरिला करत पुकार।।
दामिनि दमकि रही चारौं दिसि सीतल पवन सुढार।।
बोलत दादुर रटत पपीहा सुंदर करत उचार।।
कन्हर रूप अनूप भूप सुत लखि सखियां बलिहार।।164।।
राग- गौंड़, ताल- त्रिताल
झूलत राम लला प्यारे।।
क्रीट मुकुट मकराकृत कुंडल केसर तिलकन पन सुख मारे।।
अलकैं कुटिल भृकुटी वर बांकी मुक्तनि माल बहुत छवि वारे।।
कन्हर लसत पीत पट सुन्दर निरखि चन्द्र मुख होतु सुखारे।।165।।
झूलत राम सिया की जोरी लखि गरजत घन घोरी।।
अंग विभूषन भूषित सुन्दर जुगल रूप चित चोरी।।
बोलत दादुर रटत पपीहा बरसत जल झकझोरी।।
कन्हर देखि मगन पुरवासी सब उर हर्ष भयो री।।166।।
झूलत नृपति महल रघुवीर बोलत चातक कीर।।
रूमि झुमि घन छाई रहे हैं रिमि झिमि बरसत नीर।।
चपला चमकत पवन झकोरति सरजू बहति गंभीर।।
कन्हर गावति सखी मनोहर सखन समाति न भीर।।167।।
राग- पीलू कौजिल्लौ
देखौ छवि राम सिया कमनी घन दामिनि दमनी।।
स्याम गौर शुभ लसत मनोहर उपमा बहु रमनी।।
कलित ललित भूषन मनि राजत कहि सारद ठमनी।।
कन्हर देव वधू मिलि गावति नृपति महल गमनी।।168।।
राग-देस मल्हार
अवध में झूलत राम सिया।।
विवुध विमान थकित भये देखत सब मिलि मोद लिया।।
हरषि सुमन सुर हरसन लागे दृग भरि दरस किया।।
कन्हर उड़त दुकूल मनोहर देखत हर्ष हिया।।169।।
बरसन लागे मेहा नभ घन छाइ रहे।।
घन गरजत अरू बिजुरी चमकति सुन्दर सब मन भाय रहे।।
चातक मोर पपीहा बोलत कोकिल बचन सुनाय रहे।।
कन्हर भूमि मनोहर लागति सरजू वर छवि ल्याय रहे।।170।।
राग-गौंड़ मल्हार
सुन्दर राजकुमार झूलत अपनी-अपनी बार।।
गौर स्याम वर अंग मनोहर नृप के प्रान अधार।।
अंग सुरंग वसन तन सुन्दर लखि छवि जन बलिहार।।
सरजू तीर हिडोरा घालौ रेसम डोरि कदम की डार।।
रतिपति लाज मनहु चंचल दृग पुरजन मन उरझार।।
कन्हर के प्रभु कसै पीति पट सोभा अमित अपार।।171।।
राग- पूरिया मल्हार
हिंडोरे झूलैं चारौं वीर।।
रघुवर लछिमन भरथ सत्रहन संग सखनि की भीर।।
उमडि़ घुमडि़ घन बरसन लागे सोभा सरजू तीर।।
कन्हर छवि लखि मगन भये सुर जय-जय-जय रघुवीर।।172।।
राग – भैरवी
सुन्दर मेघा झर ल्याये अवध निकट नियराये।।
वन-उपवन-वाटिका मनोहर बोलत पपीहा मन भाये।।
तन घन स्याम राम छवि राति लखि सरूप हरषाये।।
कन्हर गावति सखी मनोहर मानौं पावस गुन गाये।।173।।
झूलत राम कुमर अरू जनक किसोरी।।
घन दामिनि तन लसत मनोहर चितवनि में चित चोरी।।
उपमा बहुत अभूत लसत वर लखि सारद भई भोरी।।
कन्हर लखि-लखि यान जुगल छवि अवध वधू आनंद बोरी।।174।।
संग अनुज झूलैं रामकुमार।।
राजत भाल तिलक मृग मद कौ सोभित कर धनुसार।।
कुंडल लोल कपोलनि झलकत मुक्तन के उर हार।।
अरून चरन अंगुली मनोहर नख दुति जल जड़ वार।।
नूपुर कलरव चीर जरकसी दीन दयाल उदार।।
कन्हर उर धरि ध्यान जुगल छवि बार-बार बलिहार।।175।।