Radharaman vaidya-datia adhyatm sahity v darshaniyata 19 books and stories free download online pdf in Hindi

राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 19

दतिया अध्यात्म साहित्य और दर्शनीयता के वातायन

अध्यात्म-

दतिया धर्म और अध्यात्म की प्रसिद्ध साधना भूमि रही है। यहां के विभिन्न अंचल सनक सनन्दन की सनातन भूमि सनकुआ, जैन तीर्थ सोनागिर बौद्धों के समय के अवशेषों की बड़ौनी, उनाव का बरम बालाजी का सूर्य मंदिर तथा जगह विखरी अनेक मूर्तियाँ शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन आस्थाओं के प्राचीन प्रमाण हैं। दतिया के अनेक राजाओं और उनकी रानियों ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। यहाँ दसनामी सम्प्रदाय की एक शाखा गिरि के साधु भी निवास करते रहे। दतिया के शिवगिर वैष्णव रामानुजी अपनी साधना से तपोपूत उन्होंने यहाँ बगलामुखी देवी की स्थापना करवायी।

दतिया मंदिरों का नगर है। यहाँ के अनेक भव्य मंदिरों में निम्बार्क, बल्लभ, राधाबल्लभ सम्प्रदायों के मंदिर हैं तथा शिव और हनुमान के अनेक देवालय हैं। समनिवत आस्था का स्थल प्राणनाथ के सम्प्रदाय का धाम की मन्दिर भी है।

साहित्य-

दतिया अपने कवियों और साहित्यकारों से खूब पहचाना जाता है। यहाँ के विभिन्न कवियों ने विभिन्न प्रवृत्तियों के अन्तर्गत काव्य रचना की। इनमेें रासो, लक्षण ग्रंथ, धार्मिक महत्व की पुस्तकें बारहमासा, ऋतु वर्णन उक्ति संचयन, विवरण आदि विषय आधार बनाये गये। अक्षर अनन्य रसनिधि, पदमाकर, ऐन साई, नवलसिंह प्रधान, गदाधर भट्ट आदि कवि यहाँ रचनारत रहे। आधुनिक काल में वासुदेव गोस्वामी, चतुरेश, सुधाकर शुक्ल तथा भैयालाल व्यास के नाम उल्लेखनीय हैं। यहाँ संस्कृत काव्य रचना की भी लम्बी परम्परा रही है तथा फारसी उर्दू के भी अनेक शायर हुए हैं।

’कुतुबखाना’ के नाम ज्ञात दतिया का रियासत के समय का पुस्तकालय अपनी दुर्लभ पुस्तकों और पाण्डुलिपियों के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध रहा है। श्री प्रेमनारायण सिलारपुरिया द्वारा बनाये गये कैटेलाॅग के अनुसार पुस्तकों की कुल संख्या 7842 थी, इनमें हिन्दी की 1651, संस्कृत की 2205, उर्दू की 374, फारसी की 401 तथा अंग्रेजी की 3211 पुस्तकें थी। हस्तलिखित प्रतियों में आकार में सबसे छोटी पुस्तक श्री मद्भावगत (1’’ग1’’ग1/8’’ पृष्ठ सं0 17) और सबसे बड़ी सूरसागर (14’’ग11’’ग6/8’’ पृष्ठ सं0 2056) है। वासुदेवशरण अग्रवाल तथा रामकृष्ण दास ने इस पुस्तकालय की प्रशंसा की है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क से एक शोधार्थी ’’सूरसागर’’ की प्रति को देखने पढ़ने दो बार आये। यह वह अकेली प्रति है। जिसमंे सूर के सर्वाधिक पद एक जगह संकलित हैं।

दर्शनीय स्थल-

1. पीताम्बरा पीठ -

बस स्टेण्ड की ओर जाने वाली मुख्य सड़क से लगा यह विश्व प्रसिद्ध स्थान है। यहां के गोलोकवासी स्वामी जी महाराज संस्कृत-तन्त्र शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान थे। इनकी अनेकों पुस्तकें हैं। माता बगलामुखी, वनखण्डेश्वर, धूमावती माई आदि की यहां स्थापना है। यहां संस्कृत बांझ्मय का दुर्लभ पुस्तकालय है।

2- राजगढ़ महल एवं संग्रहालय-

दतिया के राजा शत्रुजीत बुन्देला का बनवाया राजगढ़ महल बुन्देली वास्तुकला के लिये जाना जाता है। इसमें दतिया की पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व की वस्तुओं का संग्रह है।

3- समाधियां-

दतिया के शुभकरन बुन्देला के बनवाये करन सागर के समीप स्थित शत्रुजीत बुन्देला एवं पारीक्षित बुन्देला की समाधियांे की चित्रकला दर्शनीय है। इस चित्रकला के भित्ति चित्रों का अंकन बुन्देली शैली का है।

4- सतखंडा महल-

ओरछा के राजा वीरसिंहदेव बुन्देला (1605-1627) का बनवाया सतखंड का महल बुन्देली स्थापत्य शैली के उद्गम के रूप में चर्चित है। यह महल स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है। इसे पुराना महल, हवामहल, कीर्ति महल आदि नामों से भी जाना जाता है।

5- प्र्रतापगढ़ दुर्ग-

दतिया का किला, इसमें दरबार हाल, विजय गोविन्द का मंदिर और इसकी चित्रकला दर्शनीय है।

6- गुजर्रा-

दतिया जिले की गौरवपूर्ण पहचान सम्राट अशोक का तीसरी सदी ईसवीं पूर्व का यह शिला लेख है। इसमें अशोक का नाम ’अशोक राजा’ दिया है। यह प्राकृत भाषा में हैं। गुजर्रा दतिया से उनाव मार्ग पर परासरी के आगे दांयी ओर को सत्रह किलोमीटर के लगभग है।

7- सोनागिर-

मान्यता है कि तीसरी सदी ईसवी पूर्व इसका नाम ’’स्वर्णगिरी’’ था। और यहां से होकर पाटली पुत्र तक का मुख्य राज्य मार्ग निकला था। वर्तमान में यह जैनियों का विश्व प्र्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहां एक सौ दस के लगभग भव्य और नैसर्गिक छटा के बीच स्थित मंदिर हैं। यह दतिया से ग्वालियर जाने वाले मार्ग पर दस किलोमीटर के लगभग है।

8- बडौनी-

यह स्थान छोटी बड़ौनी नाम से प्रसिद्ध है। और शहर से दस किलोमीटर के लगभग है। यहां बौद्ध धर्म, जैन धर्म के अवशेष एवं गुप्तकाल की मूर्तियां तथा बुन्देली स्थापत्य के किले हबेलियां देखी जा सकती हैं।

9- उनाव-

लोक आस्था का चर्चित केन्द्र। देशभर से चर्म रोगी यहां सूर्य भगवान से प्रार्थना करने एवं मनौती मांगने आते हैं। इसे बालाजी धाम नाम से पहचाना जाता है। यहां का सूर्य मंदिर इसके प्रागंण की गुप्तकालीन एवं चंदेलकालीन मूर्तियां और यहां की चित्रकला दर्शनीय है। यहां से तीन-चार किलोमीटर दूर प्याउल गांव में पुराना जैनियों का मंदिर है। उनाव दतिया से सत्रह किलोमीटर दूर है।

10- सेवढ़ा-

दतिया जिले से सत्तर किलोमीटर दूर स्थित यह तहसील सिन्ध के प्रसिद्ध जल प्रपात, कन्हरगढ़ के किले और नन्दनन्दन के मंदिर के लिये जानी जाती है। सेंवढ़ा से ही पचास किलोमीटर के लगभग बीहड़ों में लोक आस्था एवं श्रद्धा का प्रसिद्ध रतनगढ़ की माता का मंदिर है।

11- भाण्डेर-

दतिया से तीस किलोमीटर के लगभग भाण्डेर तहसील का भाग अभी कुछ समय पूर्व ही दतिया में शामिल हुआ है। भाण्डर का महाभारतकालीन नाम ’’भादकपुर’’ था। यहां सौन तलैया, लक्ष्मण मंदिर किले के अवशेष दर्शनीय हैं।

12- बाॅटनीकल गार्डन-

दतिया शहर से भाण्डेर जाने वाले मार्ग पर पांच किलोमीटर के लगभग मोहना के नाले के भागों को अपने अंदर समेटे वन विभाग द्वारा तैयार एक प्राकृतिक स्थान।

13- असनई रामलला-

शहर के ग्वालियर रोड़ पर पांच किलोमीटर के लगभग। जामुन के बगीचे के बीच स्थित पानी से लबालव प्राकृतिक स्थान। यहां का गोविन्द निवास महल, पीली कोठी, रामलला का मंदिर दर्शनीय है।

14- अबध बिहारी का मंदिर-

शहर में स्थित है और छ़त्तों में चित्रकारी के लिये दर्शनीय है।

15- शिवगिर का मंदिर-

शहर के अन्दर गली में स्थित है। महंतों की समाधियों की चित्रकला के लिये प्रसिद्ध।

16- विजयराघव का मंदिर-

राजाशाही दरबार की तरह का यह मंदिर शहर में स्थापत्य के लिये प्रसिद्ध है।

17- गोविन्द का मन्दिर-

शहर में स्थित। और अपने कलात्मक दरबाजे के लिये चर्चित है।

18- पंचम कवि की टोरिया-

शहर से चार किलोमीटर के लगभग प्राकृतिक के गोद में स्थित भैरवजी का मंदिर।

19- उड़नू की टौरिया-

शहर से आठ किलोमीटर के लगभग। साढ़े तीन सौ सीढ़ियां चढ़ने के बाद पहाड़ी के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में पहुंचा जाता है। इस पहाड़ी के पीछे असगर अली का प्राकृतिक स्थान है।

20- चंदेवा की बावड़ी-

दतिया से भाण्डेर मार्ग पर दस किलोमीटर के लगभग वीरसिंहदेव बुन्देला द्वारा बनवाई यह वाउरी किलेनुमा है। स्थापत्य की दृष्टि से यह दर्शनीय है।

गरे कौ हार दतिया

जाके पग पायलें परीं है रत्नाकर की

बंग गुजरात कल कंकन करतिया।

बिंध्याचल जासु करधौनी अतिनौंनी लसै

वासुदेव मुकुट हिमालय धरतिया।।

सारी जरतारी बनी बनक बनारस की

गंगासी किनारी धारी छोर सरबतिया।

दिल्ली दिपै बैंदी जाके, काश्मीन शीशफूल

वृन्दावन बेसर गरे कौ हार दतिया।

वासुदेव गोस्वामी

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