दो आशिक़ अन्जाने - 7 Satyadeep Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो आशिक़ अन्जाने - 7

र्जुन का बुरा हाल है। 21 डिग्री सेल्सियस में उसके पसीने छूट रहे हैं। उसका जो दिल अभी तक आटा-चक्की की स्पीड पर धड़क रहा था, अब जेट इंजन बना हुआ है। कान गर्म हो गए हैं, शरीर काँप रहा है, बेतरह ऐंठ रहा है और उसकी जान, निकल जाने पर आमादा है। लेकिन इन सब के बाद भी, अपनी मजदुराना- खुरदुरी हथेली से वो मीनाक्षी के देह से निकलती तपिश को महसूस करने लग गया। सूती सलवार की फ़िसलन के नीचे उसे मांसल जांघ का आभास हुआ। दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ चुके हैं, मगर नज़रें मिला सकने की हिम्मत दोनों में से किसी में नहीं है। वैसे नज़रों का अब कोई काम बचा भी नहीं है। अर्जुन मीनाक्षी के सुडौल देह की नापजोख में तल्लीन है और मीनाक्षी…. बाहर के शांत-स्थिर वातावरण में। मीनाक्षी की कसमसाहट प्रतिक्षण बढ़ती जा रही है। उसकी बेचैनी शांत करने की नीयत से, अर्जुन ने अपना दाहिना हाथ उसकी कोमल-चिकनी बाँह पर रख दिया। लेकिन पानी के चंद छींटें भला दहकते तवे को क्या ठंडा करेंगे? ज्वाला बुझने की बजाय और भड़क उठी।

अर्जुन अब थोड़ा और पास आ गया है। इस समय वे दोनों एक-दूसरे की धड़कन बिल्कुल साफ़-साफ़ सुन सकते हैं। मीनाक्षी अब भी बाहर ही देख रही है। अर्जुन ने बायाँ हाथ उसकी सुराहीनुमा गर्दन पर रखा और उसका चेहरा आहिस्ता-आहिस्ता, बड़े इत्मीनान से अपनी तरफ़ घुमा लिया। अब दोनों के चेहरे बिल्कुल आमने-सामने हैं। मीनाक्षी की पलकें गिरी हुई हैं। अर्जुन ने चाँद की रौशनी में एकबार अपने चाँद को जी भर कर देखा, और फ़िर एक झटके में अपने होंठ, उसके होंठों पर रख दिए।

मीनाक्षी ने अचकचाकर आँखें बंद कर लीं। उसकी रही-सही साँसें भी उखड़ने लगीं हैं। प्रेम के इस आयाम में पहुंचकर वो बिल्कुल भाव शून्य हो चुकी है। भय-शर्म और लोकलाज जैसी चीज़ें उसका शरीर छोड़ चुकीं हैं। ये जो कुछ अभी-अभी घटा है, वो शायद उसके स्त्रीत्व के लिये अकस्मात होगा, लेकिन उसका शरीर इसके लिए बिल्कुल तैयार है। यह एक क्षणिक सुख है, और मीनाक्षी इस बात को समझती है। इसीलिए तो वो समय को अपनी नाज़ुक हथेलियों में थाम लेना चाहती है। उसने भी अर्जुन के अधरों को कसकर भींच लिया। दो जवाँ बदन आपस में गुँथ चुके हैं, दो समंदर एक-दूजे में डूबते चले जा रहे हैं। इन्हें कोई देख ले तो उसे प्रेमालाप करते हुए नाग-नागिन के जोड़े का भ्रम हो सकता है। काश कि ये कोई रोमांटिक मूवी होती तो इस सीन पर लाकर कैमरा फ्रीज़ कर दिया जाना था। लेकिन ये तो हक़ीक़त है- और ज़िंदगी रीटेक का मौका नहीं देती। अभी शायद यह किसिंग-सीन और लंबा चलता अगर-


'क्यां-क्यांअ-क्यां,,कें'

ट्रक के किसी कोने में कोई बच्चा रोने लगा। आवाज़ पूरे ट्रक में गूँज रही है। दोनों के हलक़ सूख गए। अर्जुन की तन्द्रा टूटी और वो एक झटके में अलग हो गया। मीनाक्षी ने भी हड़बड़ी में अपना दुपट्टा संभाला और फ़ुर्ती से उठकर अपने परिवार की तरफ़ चल पड़ी। इसी बात का तो डर था। इस दुधमुँहे के विलाप ने वातावरण की सारी रुमानियत का सत्यानाश कर डाला। पौ फ़टने लगी है। कहते हैं बच्चों को अनहोनी की आहट मिल जाती है, शायद इसीलिए बच्चे ने रोकर दोनों को अलर्ट कर दिया होगा। बच्चा और जाने कितनी देर तक रोता रहता लेकिन गनीमत है कि माँ की नींद खुल गई। अर्जुन ने कनखियों से देखा- बच्चे की माँ ने ब्लाउज़ उघाड़कर अपना बायां स्तन, बच्चे के मुँह में दे दिया है। नींद के झोंके में मगर वो बच्चे को आँचल से ढँकना भूल गई है और ब्लाउज़ का वो हिस्सा उसने खुला ही छोड़ रखा है। अर्जुन के मन में कई तरह के अच्छे-बुरे ख़याल आने लगे। उसने झट से मुँह फ़ेर लिया और बाहर देखने लग गया।



क्रमशः