मुग़लकालीन एक छोटी सी गुमटी के बाहरी हिस्से में, लकड़ी का एक गोल कुंदा रखा है जिसपर जगह-जगह कटने के अनगिनत निशान बन गए हैं। ये निशान देखकर हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस रणबाँकुरे ने अपनी नश्वर देह पर चाकू के कितने वार सहे होंगे! गुमटी पर टिन का एक बोर्ड टांगकर उसपर यह लिख दिया गया है-’यहाँ चिकन का मीट मिलता है।’ इस अबूझ वाक्य को हालाँकि यह कथा लिखे जाने तक डिकोड नहीं किया जा सका है। गुमटी का काठ और टिन का लोहा; दोनों समकालीन हैं, और दोनों ही बड़ी बेबसी से सेवानिवृत्ति की भीख माँग रहे हैं। पास में खड़ी लोहे की जाली से मुर्गे नदारद हैं। कुठाराघात की आशंका से हरदम भयभीत रहने वाले विशालकाय बरगद के पेड़, अभी चैन की बंसी बजा रहे हैं। बकरियों का एक झुंड एक गँदले तालाब के पास उगी हुई घास चर रहा है। मेमने उछल कूद कर रहे हैं। अपने बदनसीब बेटों को इतने दिनों तक जीवित पाकर बकरियाँ उनकी बलाएँ ले रहीं हैं। झुंड का चरवाह; एक छोटा बच्चा है जिसकी उम्र बमुश्किल 8-10 साल की होगी। बाल चरवाहा अभी उसी तालाब की ओर मुँह करके खड़ा है और पत्थर की एक पटिया पर जलधार बना रहा है। नज़दीक से देखने पर हम पाते हैं कि पत्थर पर जिस जगह उसकी धार पड़ रही है- वहां पत्थर काफ़ी गहरे तक कट गया है। हिंदी-भाषी राज्यों के अधिकांश प्राइमरी स्कूलों में दीवारों को पीले रंग से रँगकर, मोटे-काले अक्षरों में एक आदर्श-वाक्य लिखा जाता है-'पानी के वेग से पत्थर भी कट जाया करते हैं।' यह जल-प्लावन देखकर ऐसा लगता है कि लड़का किसी ऐसे ही प्राइमरी स्कूल का मेधावी छात्र है। और जिस सलीके से इसने प्रैक्टिकल किया है- हम यह मान सकते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधर रहा है।
मौसम साफ़ और सुहावना है। पवन उन्मुक्त साँसें ले रहा है। बकरियां प्रसन्नचित्त हैं-मेमने भी खूब उछल-उछलकर घास खा रहे हैं। लॉकडाउन में चूंकि सभी दुकानें बंद हैं तो जाहिर है मटन शॉप पर भी ताले पड़े हैं। इनका जीवनकाल बढ़ गया है। कह सकते हैं कि आंशिक प्राणदान है, कसाईखानों के खुलते ही वापस ले लिया जाएगा।
कल-कारख़ाने बंद पड़े हैं। आवश्यक वस्तुओं को छोड़ दें तो छोटे-बड़े हर तरह के वाहनों की आवाजाही लगभग थम गई है। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता अपने सामान्य स्तर पर पहुँच चुकी है। प्रदूषण अपने न्यूनतम स्तर पर है, जीवन अपने उच्चतम स्तर पर। प्राणवायु इतनी ताज़गी भरी, इतनी स्वच्छ है मानो अभी-अभी सृष्टि का सृजन हुआ हो।
ईश्वर ने इंसानों को लॉक करके, नेचर को अनलॉक कर दिया है। आम भाषा में हम इसे कुछ इस ऐसे समझ सकते हैं कि क्लास के सबसे शरारती बच्चे को क्लास से बाहर निकाल देने पर क्लास में हर तरफ़ शांति छा जाती है।
अर्जुन को इन दृश्यों से कुछ ख़ास मतलब नहीं है। चूंकि बाहर देखने के लिये अब कुछ बचा नहीं है, इसलिये उसने अपने अंदर झाँकने की सोची। एक हलकी मुस्कराहट के साथ उसने अपना चाइनीज़ फ़ोन निकाला और फ़िर फ़ोन में डूब गया।
क्रमशः