Do Ashiq Anjane - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

दो आशिक़ अन्जाने - 6

मीनाक्षी अब से पहले किसी हमउम्र लड़के के इतने नज़दीक नहीं आयी थी। ये सब जो भी हो रहा है,ये सब उसके लिए बिल्कुल नया है। लेकिन न जाने क्यों, इस नयेपन में उसे एक विचित्र सुख की अनुभूति हो रही है। अर्जुन की दिलेरी-उसकी सूझबूझ ने उसे बहुत प्रभावित किया है। उसे मालूम नहीं है कि आगे क्या होगा-और वो जानना भी नहीं चाहती। वो तो बस इस जलधार में बहती चली जाना चाहती है।

अभी कुछ घंटों पहले तक तो ये दोनों एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे। जानते तो ख़ैर अब भी नहीं हैं, अब तक दोनों के बीच-एक भी शब्द का आदान-प्रदान नहीं हुआ है। दोनों अभी तक एक-दूसरे का नाम भी नहीं जानते हैं। लेकिन दोनों के बीच अब एक रिश्ता बन चुका है-एक डोर खिंच गई है। सांकेतिक भाषा का आविष्कार शायद ऐसी ही किसी भली परिस्थिति में हुआ होगा। प्यार जात-पात पूछकर नहीं होता, ये कहने वाले आज ये भी जान लें कि प्यार नाम पूछकर भी नहीं होता।


चाँद ढल रहा है। रात बीतती जा रही है। अभी कुछ देर में पौ फ़ट जाएगी। ट्रक के इस हिस्से में सोते हुए ये लोग उठ जाएंगे। घंटे-दो घंटे में यूपी की सीमा पर पहुँचकर, ट्रक के पहिए भी थम जायेंगे। सात -आठ बजते-बजते ये सफ़र पूरा हो जाएगा। अर्जुन जानता है कि आपदा को अवसर में बदलने का यह सही समय है। उसने धीरे से अपना बायाँ पैर बढ़ाया और मीनाक्षी की बगल में रख दिया। थोड़ी सरसराहट हुई मीनाक्षी चौंकी मगर कुछ बोल न सकी, या फ़िर शायद बोलना न चाहती हो। चाँद की ज़र्द रोशनी में वो पूरी तसल्ली से अर्जुन के निर्विकार चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही है। अर्जुन यों अपने हावभाव से जाहिर नहीं कर रहा, पर मारे उत्तेजना के उसकी टाँगें काँप रही है। मीनाक्षी ने उसकी इस पहल पर कोई हलचल नहीं की। पहले से भयभीत अपने प्रेमी को वो और तंग नहीं करना चाहती। उसने मुँह फ़ेर लिया और ट्रक से बाहर की ओर देखने लगी। अर्जुन ने पता नहीं जान-बूझकर या अनजाने में- अपने पैर को थोड़ा ऐडजस्ट किया, और ऐसा करते हुए उसकी टाँग, मीनाक्षी की जाँघ से रगड़ खा गई।

'हा!'

मीनाक्षी ने चौंककर अर्जुन की तरफ़ देखा तो अर्जुन ने हड़बड़ाकर अपना पैर पीछे खींच लिया। मीनाक्षी की तो हँसी छूट गई। उसे लड़के की बेचारगी पर तरस आ गया। दोनों ने एक-दूसरे को कामसिक्त आँखों से देखा, फ़िर मीनाक्षी मुस्कुराकर बाहर देखने लगी। उसके मन में कई तरह के ख़याल मँडरा रहे हैं, नई-नई तरंगे उठ रही हैं। अभी तक का सारा घटनाक्रम, उसके सामने प्रोजेक्टर की तरह चल रहा है। अचानक उसे फ़िर एक स्पर्श का अनुभव हुआ। अर्जुन ने इसबार उसकी जाँघों से सटाकर अपना पैर रख दिया है। जाहिर है, मूक सहमति मिलने के बाद लड़कों के पर खुलने लगते हैं। मीनाक्षी लेकिन इस बार इसे डराना नहीं चाहती, सो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हौसला पाकर अर्जुन अब थोड़ा आगे को खिसक आया है। दो जवां दिल अब अपनी पूरी रफ़्तार से धड़क रहे हैं। अर्जुन ने अपना काँपता हुआ दाहिना हाथ, मीनाक्षी की दाहिनी टाँग पर धर दिया। मीनाक्षी के समूचे बदन में करंट दौड़ गया। उसे लगा जैसे किसी ने उसकी जाँघ पर दहकता हुआ लोहा रख दिया है। उसका गला अब सूखने लगा है, पेट में तितलियाँ उड़ रहीं हैं। दिमाग की नसें फ़ट पड़ने को हैं। वो ये मान चुकी है कि अब उसकी जान निकल जाएगी। अभी तक तो मीनाक्षी पालथी मारकर बैठी हुई थी, लेकिन अर्जुन का हाथ पड़ते ही उसने अपनी दोनों टाँगें धड़कते हुए सीने से चिपका लीं।

क्रमशः




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