दो आशिक़ अन्जाने - 1 Satyadeep Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो आशिक़ अन्जाने - 1

राके ढाई बज रहे हैं। पूरनमासी का चाँद सूरज को न्यौता देकर छिपने की तैयारी में है। ट्रक का स्पीडोमीटर अस्सी से सौ के बीच डोल रहा है। हवा में सिहरन है जिसकी अनुभूति से ट्रक का खलासी, अपनी सीट पर बैठा ऊँघ रहा है। ट्रक के ड्राइवर ने बड़ी मुस्तैदी से स्टियरिंग सँभाल रखी है, और एकसमान रफ़्तार से ट्रक भगाये जा रहा है। बैकग्राउंड में धीमी आवाज़ में नाईन्टीज़ का कोई गीत सुनाई पड़ता है। ड्राइवर ताल से ताल मिला रहा है। नींद भगाने के लिए उसने मुँह में सवा किलो पान मसाला भर लिया है, जिसे वो ट्रक के सामने पड़ने वाले कुत्ते-सियारों की मां-बहनों को याद करने से पहले; साफ़-सुथरी रोड को अर्पित कर देता है। खलासी के हल्के खर्राटे, नाईन्टीज के संगीत और ड्राइवर की इस भुनभुनाहट को जानें दें, तो केबिन का माहौल काफ़ी हद तक शांत है।


इस ट्रक के पिछले भाग में एक समूचा संसार बसा हुआ है। दुनिया में जितने तरह के लोग होते हैं, वे सारे आपको यहाँ मिल जाएंगे। काले-गोरे, मोटे-पतले, लंबे-छोटे, शरीफ़-बदमाश हर तरह के लोग। केवल एक ही शब्द इन सब में कॉमन है- मजदूर। ये कुल चालीस-पचास जो अभी इस पिंजरेनुमा जगह में भेड़-बकरियों की तरह एक-दूसरे पर लदे हुए हैं, ये सभी भारत के मज़दूर वर्ग के लोग हैं। मज़दूरों के इसी झुंड में, 22-23 साल का एक लड़का भी बैठा है। नाम आप कुछ भी रख लीजिए,क्या फ़र्क़ पड़ता है। आपको और हमें क्या, खुद इन मजदूरों को भी नहीं पड़ता। क्योंकि मज़दूरों के नाम नहीं होते, सिर्फ़ क्लास होती है - लेबर क्लास। यही इनकी पहचान होती है। ये लोग व्यक्तिगत नहीं, बल्कि जातिगत आधार पर पहचाने जाते हैं।

मध्यम कद-काठी और गेंहुए रंग का वो लड़का अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच दुबक कर बैठा हुआ है। लड़के ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से कहीं टकटकी लगा रखी है, और अभी पूरे इत्मीनान से अपनी इसी खोज में खोया हुआ है। रात के इस पहर में जितनी लगन से वो अपने लक्ष्य को देख रहा है, उसे अर्जुन कहना गलत न होगा। अर्जुन ने मछली जैसी आँखों वाली एक लड़की पर निशाना लगाया है। ट्रक की बॉडी से पीठ लगाकर वो मीनाक्षी, ठीक उसकी आंखों के सामने ही बैठी है। रात अपने शबाब पर है और चाँदनी में नहाकर मीनाक्षी का यौवन खिल उठा है। शरीर से अनुमान लगाएँ तो किशोरी उम्र के उस पड़ाव पर है,जहाँ पहुँचते-पहुँचते गाँव की लड़कियों के हाथ पीले हो जाते हैं, यानि कि मुश्किल से सोलह या सत्रह साल की उम्र होगी। उसका भोला-भाला मुखड़ा, चाँद-सा दमक रहा है। लड़की औसत लंबाई की है, मगर गाँव का भरा-पूरा बदन है। देह पर कोई खास गहने-जेवरात तो नहीं हैं- हाँ नाक में सोने की एक छोटी सी कील ज़रूर है। लेकिन उचित देखभाल के अभाव में कील की चमक फ़ीकी पड़ गयी है।

अभी थोड़ी देर पहले ही उसे यह आभास हुआ कि बड़े गौर से कोई उसकी तरफ़ देखे जा रहा है। कहते हैं कि स्त्रियों की सिक्स्थ सेंस यानि छठी इन्द्रिय गजब की होती है। उन्हें यह एहसास हो जाता है कि सामने वाला किस नीयत से उन्हें देख रहा है।

मीनाक्षी को इस अजनबी में कोई ऐब नज़र नहीं आता, इसलिये वो भी मिनट-दो-मिनट में अर्जुन को चोर-नज़रों से देख लेती है।

क्रमशः