लालटेन की रोशनी में , फर्श पर बैठकर , रात्रि भोजन लगभग खत्म होने वाला है I मैं और मुकेश आसपास बैठे हैं और हमसे कुछ दूरी पर तांत्रिक बाबा I हम दाल , चावल , रोटी और सोयाबीन की सब्जी खा रहे थे I खाना बहुत ही स्वादिष्ट है I और तांत्रिक बाबा केवल एक कटोरी दूध पी रहे थे I मैं खाने के बीच - बीच में तिरछी नजरों से तांत्रिक बाबा
को देख रहा था I दूसरी तरफ देख कर खाने के कारण सब्जी में पड़ा हुआ मिर्चा मुँह में जाते ही जीभ ने उछलना
शुरू कर दिया I पूरा एक ग्लास पानी पीया लेकिन तीखापन खत्म नही हुआ I ग्लास को रखकर , तांत्रिक बाबा की तरफ देखा तो वो धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे I
बाबा के आखों को देखकर लगा कि वह फिर मेरे मन की बात को जान गए I बाबा अपने आसन को छोड़ मेरे पास आकर थाली में एक सोन पापड़ी रख दिया I तीखा लगने के कारण मैं कुछ मीठा खाना चाहता हूं यह बात बाबा को कैसे पता चला ? और उनके पास सोन पापड़ी आया कहां से ?
यह सबकुछ देखकर मुकेश और रामाधार दोनों ही आश्चर्य की नजरों से बाबा को देखने लगे I तांत्रिक बाबा उठकर नल की तरफ चले गए I कुछ और ना सोचते हुए मैंने सोन पापड़ी को मुंह में डाला I आप विश्वास नहीं करेंगे इतना स्वादिष्ट सोन पापड़ी मैंने अपने पूरे जीवन में आज तक नहीं खाया I
इस समय के हल्दीराम प्रभुजी सोन पापड़ी जैसा स्वाद उस समय के सोन पापड़ी में होता था लेकिन यह टुकड़ा उससे भी स्वादिष्ट था I
तीखापन न जाने कहां उड़ गया पता ही नहीं चला I खाना समाप्त कर हाथ मुंह धोकर जब गमछे से पोंछ रहा था , तभी तांत्रिक बाबा बोले - " शाम को दूर से चुपके चुपके श्मशान की ओर क्या देख रहे थे ? "
यह प्रश्न हम दोनों से ही किया गया है , साफ समझ गया क्योंकि उस समय रामाधार वहां पर नहीं थे I खाने को झूठे बर्तन को वह नल के पास रखने गए थे I
मैंने उत्तर दिया - " बाबा जी आपको कैसे पता चला ? "
तांत्रिक बाबा बोले - " इधर आकर बैठो मेरे सामने "
हम दोनों बाबा के सामने जाकर बैठ गए I
तांत्रिक बाबा बोले -" मुझे और भी बहुत कुछ पता है I चिंता मत करो कॉलेज की परीक्षा में तुम दोनों उत्तीर्ण हो जाओगे I "
यह सुन मैं और मुकेश फिर से अचंभित हो गए I हम दोनों ने अभी फर्स्ट ईयर की परीक्षा को दिया है यह बात यहां पर किसी को भी नहीं पता लेकिन साधु बाबा को इस बारे में कैसे पता I साधु बाबा के मुंह से ऐसे बातों को सुनकर मुकेश प्रणाम करने की मुद्रा में हाथ जोड़कर बैठ गया I
तांत्रिक बाबा ने मुकेश से कहा - " ठीक से बैठ जाओ , हाथ जोड़ने की कोई जरूरत नहीं I "
बाबाजी अब मेरी तरफ देखा बोले - " देख रहा हूं तुम्हें तंत्र -मंत्र के विषयों में बहुत ही रूचि है I "
मैं और चुप नहीं रह पाया और कहा - " हां , थोड़ा बहुत है I असल में ऐसी कहानियां सुनना मुझे बहुत ही पसंद है I आप बताइए ऐसी कुछ बातें , आपको तो इस बारे में बहुत सारी जानकारियां हैं I "
मेरे बातों को सुनकर साधु बाबा जोर से हंसने लगे और फिर बोले - " मनुष्य जिन बातों को अपने इंद्रियों द्वारा महसूस नहीं कर पाता I उसे कहानी के रूप में भुला देता है I "
मैं चुप हो गया I न जाने क्यों लालटेन की इस धीमी रोशनी में साधु बाबा से नजरें नही हटा पा रहा था I
साधु बाबा फिर से बोले - " अब बताओ बेटा किस बारे में कहानियां सुनना चाहते हो ? "
मैं बोला - " उस घर के आदमी को क्या हुआ है ? ऐसा
भयानक दृश्य तो मैंने कभी देखा ही नहीं I कोई अपने ही
शरीर के मांस को चबाकर कैसे खा सकता है ? क्या यह भी संभव है I "
तांत्रिक बाबा बोले - " संभव व असंभव के बारे में तुम्हें कुछ भी नहीं पता I जैसे मुझे तुम्हारे चेहरे को देखकर पता चल रहा है कि कुछ सालों पहले ही तुम्हारी मां की मृत्यु हृदय रोग से हुई है I क्या हुआ सही कहा न मैंने ? "
मैं तो और कुछ भी कहने लायक ना रहा I ऐसा भी हो सकता है I मैंने केवल हां में सिर हिलाया I
बाबाजी फिर बोले - " तुम्हें पहली बार देखते ही तुम्हारे बारे में इतनी बातें तुमको बता रहा हूं यह भी संभव है I
मैं चुप रहा साधु बाबा बोलते रहे - " इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है जिसे आंखो द्वारा नहीं देखा जा सकता I ऐसा बहुत कुछ है जिसकी उपस्थिति महसूस नहीं होती I इसका मतलब ऐसा नहीं है कि उनका कोई अस्तित्व नहीं है Iमनुष्यों का एक भूल धारणा है कि वह जिस बारे में नहीं जानते उसे गलत व अस्तित्वहीन बताते हैं लेकिन वह सभी ये कभी स्वीकार नहीं करते कि उनके ज्ञान का भंडार बहुत ही कम है I इस पृथ्वी पर बहुत कुछ है जो मनुष्य के सोच से परे है I "
इस बात को सुनकर मुझे याद आया कि विलियम शेक्सपियर ने भी ऐसा ही कुछ कहा था I
साधु बाबा अब मुकेश की तरफ देखकर बोले - " डरो मत बेटा , जब तक तुम्हारे सामने तांत्रिक रूद्रनाथ अघोरी बैठा है तब तक निडर रहो I नकारात्मक बुरी शक्तियों तुम्हारा कुछ भी नहीं कर सकती I तुम्हारे मन अभी तक पवित्र हैं I मन में भक्ति , श्रद्धा व प्रेम सब कुछ विराजमान है I मन में दूसरों के लिए प्रेम हमेशा बचाकर रखना I मेरे गुरुदेव की एक बात आज भी मेरे मन में लकीर की तरह खींचा हुआ है I उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखते हुए कहा था कि रूद्रनाथ , प्रेम से बड़ा कोई तंत्र नही I प्रतिशोध व हिंसा एक दुष्ट आत्मा भी कर सकता है लेकिन जो मनुष्य को माफ करना जानता है , मनुष्य से प्रेम करना जानता है उससे पवित्र आत्मा और कोई भी नहीं I "
मैंने साधु बाबा से पूछा - " क्या अब आपके गुरुदेव जिंदा नहीं हैं I "
साधु बाबा बोले - " मेरे गुरुदेव सभी जगह पर हैं I बहुत सारे पवित्र आत्माओं में वह आज भी विराजमान हैं I उनका मृत्यु असंभव है I "
मैंने फिर पूछा - " आपके गुरुदेव का नाम क्या है ? "
साधु बाबा हाथ जोड़कर आंख बंद करके बोले - " ' आगमवागीश ' श्री कृष्णानंद आगमवागीश , जिनके नाम से तंत्र में दसों महाविद्या का एक बहुत बड़ा अध्याय ' आगम तंत्र ' नाम से प्रसिद्ध है I श्री गुरु आगमवागीश का किताब ' वृहत तंत्रसार ' तंत्र के क्षेत्र का सबसे बड़ा किताब है I जिनके नाम से तंत्र की प्रमुख देवी काली , आगमेश्वरी काली रूप में पूजित होती हैं क्योंकि आज हम देवी काली के जिस रूप को चित्र व मूर्ति में देखते हैं उसका आधार वर्णन श्री कृष्णानंद आगमवागीश ने ही किया था I "
इतना बोलकर तांत्रिक बाबा शांत हुए I कुछ देर सब कुछ शांत केवल झींगुर की आवाज सुनाई दे रहा है I इस शांति ने मानो वातावरण को और भी रहस्यमय कर दिया है I
मैंने थोड़ा डरते हुए बोला - " अच्छा बाबा जी उस घर के आदमी को क्या हुआ है I इस बारे में तो आपने नहीं बताया I "
साधु बाबा एक गहरी सांस लेते हुए बोले - " उसके ऊपर एक भयानक प्रेत आत्मा का साया है I तंत्र की भाषा में हम इसे पिशाच योनि की आत्मा कहते हैं I ऐसा मान लो कि यह एक भयानक पिशाच है और यह जिसके भी आत्मा को अपने कब्जे में कर लेता है उसके शरीर के पूरे खून को चूसकर , कंकाल रूपी शरीर बना कर छोड़ देता है I मृत्यु के बाद उसकी आत्मा भी पिशाच प्रेत में बदल जाता है I ऐसे आत्मा कभी भी जन्म नहीं लेते केवल दुष्ट प्रेत रूप में विचरण करते रहते हैं I पूरे पृथ्वी पर इससे छुटकारा पाना बहुत ही कठिन है I जिसके ऊपर इसका साया होता है उसकी मृत्यु न होने तक यह पिशाच उसे नहीं छोड़ता I ज्यादा से ज्यादा 5 या 6 दिन के अंदर मृत्यु निश्चित होता है I उसके बाद कंकाल रूपी प्राणहीन शरीर के अलावा और कुछ भी नहीं रहता I "
यह सब कुछ सुनते हुए मैंने अनुभव किया कि मेरे शरीर के रोए खड़े हो गए थे I
साधु बाबा से मैंने फिर प्रश्न किया - " आप उनके घर को छोड़कर किसी दूसरे के घर में क्यों रहने के बारे में कह रहे थे ? "
तांत्रिक बाबा ने कहा - " जिस घर में ऐसे पिशाच रहते हैं I उस घर में अगर कोई तांत्रिक ठहरे तो वह पिशाच तांत्रिक को जान से मारने की चेष्टा करता है I और अगर वहां पर यज्ञ की क्रिया किया जाए तो वह पिशाच बाधा डालने की कोशिश करेगा इसीलिए उस पिशाच रूपी आत्मा को उस घर में बंद कर दिया है और घर के सभी लोगों को एक दिव्य मिट्टी दिया है जिससे उनके प्राण को कोई हानि न पहुंचे I वहां पर न रहने का एक और कारण है कि जिस भूमि पर अपवित्र आत्मा व प्रेत रहतें हैं वहां पर यह पवित्र यज्ञ नहीं किया जा सकता I बहुत सारे नियम हैं तुम्हें वह सब समझ में नहीं आएगा I "
मैं बोला - " फिर भी थोड़ा सरल भाषा में बताइए I जिससे हम भी समझ सके I "
मेरे बात को सुनकर तांत्रिक बाबा कुछ देर मुझे देखते रहे I शायद चार - पांच सेकंड लेकिन मुझे ऐसा लगा मानो चार पांच मिनट I
फिर तांत्रिक बाबा बोले - " ठीक है फिर सुनो I तुमको सबकुछ समझाकर बताता हूं I दस महाविद्या नामक एक विद्या है जिसमें मातृशक्ति के दस रूपों को दस प्रकार की पद्धति से आराधना की जाती है I यह बहुत ही कठिन क्रिया है I किसी - किसी क्रिया में सिद्धि पाने के लिए शव साधना भी करना पड़ता है अर्थात मृत देह के ऊपर बैठकर पवित्र श्मशान भूमि में पूरी रात साधना करना I इन्हीं दस महाविद्या की छठी महाविद्या है देेवी त्रिपुर भैरवी की साधना I यहां त्रिपुर शब्द का अर्थ है तीनो लोक , देवी त्रिपुर भैरवी की साधना बहुत ही उग्र होता है I जीवन पथ की समस्त बाधा चाहे वह भूत , पिशाच , ग्रहबाधा अथवा कार्यसिद्ध संबंधित बाधा I यह सभी बाधाएं खत्म हो जाती है देवी त्रिपुर भैरवी की साधना करने पर I किसी भी वस्तु की आविष्कार व निर्माण तथा लक्ष्य प्राप्ति में भैरवी साधना संघर्ष तत्वों के साथ जुड़ा हुआ है I किसी भी लक्ष्य या लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुछ अवस्थाएं होती है I प्रथम अवस्था है शून्यता , द्वितीय है एक नया विचार अथवा कल्पना, तृतीय है
उस कल्पना को वास्तविक करने का आकर्षण , चतुर्थ है उस कल्पना को पूर्ण करने का निश्चय और पांचवा है समस्त विधि द्वारा लक्ष्य को निर्माण या उसे पूर्ण करना I निर्माण व पूर्ण के लिए जो संघर्ष करना पड़ता है वही है भैरवी, प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमेशा व्यस्त रहते हैं I इस पृथ्वी पर कहीं न कहीं पर संघर्ष चलता रहता है I
संघर्ष जीवन के प्रत्येक परिस्थिति में होता है I हमें जीवन में कुछ भी पाने के लिए अपने पूरे शक्ति को इकट्ठा करके संघर्ष करना पड़ता है I प्रत्येक विघ्न , बाधा व मुश्किल को पार करने के लिए जिस संघर्ष को हमें करना पड़ता है वही भैरवी महाविद्या का स्वरूप है I भैरवी महाविद्या ऐसा ही एक स्तम्भ
है जो पृथ्वी के सभी संघर्ष में समान रूप विराजमान हैं I पृथ्वी पर जितने भी निर्माण व विध्वंश होता है उसमें भी सकारात्मक और नकारात्मक रूप में संघर्ष रहता है I देवी त्रिपुर भैरवी महाविद्या को समझने वाले साधक , संघर्ष के महत्व व शक्ति को जानता है I लेकिन देवी कि साधना बहुत ही कठिन है I यही महाविद्या देवी त्रिपुरा भैरवी के यज्ञ को मुझे करना होगा I जो इस पिशाच रुपी नकारात्मक शक्ति को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा द्वारा उसका प्राण बचा लेगी I "
इतना सब कुछ बता कर तांत्रिक बाबा शांत हुए I हम उनके बातों को सुनते हुए लकड़ी के गुड्डे के जैसा हो गए थे I स्कूल कॉलेज में किए गए साइंस के क्लास मानो इसके सामने कुछ भी नहीं I
कुछ देर शांत रहने के बाद मैं बोला - " आप कब शुरू करेंगे त्रिपुर भैरवी यज्ञ I "
तांत्रिक बाबा ने बताया - " आज रात बारह बजे के बाद मंगलवार शुरू होगा I रात 2 बजे से शुरू होगा मेरा यज्ञ और रात 3 बजे से सुबह 5 बजे के ब्रह्ममुहूर्त के बीच मुझे यह यज्ञ संपन्न करना होगा I और हां तुम दोनों अब जाकर सो जाओ I मुझे यज्ञ के लिए सामान जुगाड़ करना होगा I इसके बाद स्नान करके पवित्र होकर और देहशुद्धि करके यज्ञ में बैठना होगा I अभी बहुत काम बाकी है तुम दोनों जाकर सो
जाओ I "
अंत के बातों को उन्होंने ऊँगली से ऐसे निर्देश देकर बोला जिसके कारण हम अपने आप वहां से उठने के लिए बाध्य हो गए I मन ही मन तांत्रिक रूद्रनाथ अघोरी का तारीफ किए
बिना नहीं रह सका I हम दोनों कमरे में जाकर लालटेन
बुझाकर लेट गए I
मैंने मुकेश से पूछा - " क्या हुआ भाई डर तो नहीं लग रह ? "
मुकेश बोला - " कोई डर नहीं है भाई , घर के अंदर एक ऐसे व्यक्ति के रहने से साहस की अनुभूति हो रहा है I "
" मुझे भी "
यही अंतिम शब्द , उसके बाद कब नींद आ गई मुझे पता ही नहीं चला I
नींद जब खुला उस समय सुबह के साढ़े सात बज रहे थे I पास ही देखा तो मुकेश अब भी सो रहा था I उसे बिना बुलाए ही आंगन में गया और वहां पहुंचते ही साधु बाबा की बातें याद आई I और उसी समय दिखाई पड़ा घर के आंगन में यज्ञ का स्थान , वहां पर अब भी जली लकड़ियां पड़ी हुई है I घर से बाहर निकल उस भूतिया घर की ओर देखा तो वहां पर कुछ लोगों का भीड़ था I मुझे भी कौतुहल हुआ कि जिस आदमी पर प्रेत का साया था वह अब कैसा है I जल्दी से जाकर उस घर के सामने उपस्थित हुआ I वहां खड़े सभी लोगों के चेहरे पर डर का माहौल था I कोई बोल रहा है I
" कल रात भयानक चिल्लाने की आवाज को सुन मुझे तो नींद ही नहीं आया I डर के मारे नींद आंखों से गायब था I "
कई उसके बात को सहमति दे रहे थे I घर के अंदर नजर जाते ही मैंने देखा वहां पर रामाधार खड़ें थे और उनके ही पास ही तांत्रिक रूद्रनाथ अघोरी भी खड़े थे I फिर देखा नीचे , सुबह उठने के बाद ऐसा विभत्स दृश्य देखने को मिलेगा यह मैंने सोचा भी नहीं था I ऐसा भयानक दृश्य मैंने अपने सपने में भी कभी नहीं देखा था I
मैंने देखा कि जिस आदमी पर प्रेत का साया था उसके पूरे शरीर के मांस को जगह - जगह से किसी ने नोंच लिया है I शरीर के सभी जगहों से हड्डियां दिख रही है I पहने हुए धोती को देखकर ऐसा लग रहा है मानो किसी बांस में बंधा हुआ है I पूरे धोती पर जगह-जगह खून के दाग और उस आदमी के मुंह पर भी खून लगा हुआ है I देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह आदमी पूरी रात बैठकर अपने शरीर के मांस को ही फाड़कर चबा रहा था लेकिन अब भी सांस चल रही है I कुछ देर यह दृश्य ध्यान से देखने के कारण , मुझे उल्टी आने लगी इसीलिए वहां से बाहर चला आया I धीरे-धीरे तांत्रिक रुन्द्रनाथ अघोरी के आवाज को सुना I वह कह रहे थे - " अब डरने की कोई बात नहीं , पिशाच आत्मा की जो विपत्ति थी वह अब नहीं है I अब अच्छे से इनकी सेवा कीजिए I शरीर में हड्डी है तो घाव भी भर जाएंगे I "
( समाप्त )
तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी क्रमशः .....