tantrik rudrnath aghori - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 3

देवाधिदेव का खेल - 1

उस समय रात के लगभग 9 बज रहे थे I अभय तांत्रिक अपने आश्रम के बाहर खाली स्थान पर बैठकर यज्ञ के आग में घी डाल रहे थे I उनके सामने आकर दयाराम गुप्ता हाथ जोड़कर बैठ गए I यज्ञ समाप्त होने के बाद तांत्रिक ने उस आदमी के तरफ देखते ही , दयाराम ने नमस्कार करके अपने बात को शुरू किया - " बाबा आप ही एकमात्र सहारा हो I वह मेरा सबसे बड़ा शत्रु है I उसका जब तक कुछ बुरा नहीं होगा तब तक मैं चैन से नहीं रह सकता I "
अभय तांत्रिक उसे आश्वस्त करते हुए बोले - " हो जाएगा , हो जाएगा सब कुछ हो जाएगा I उपयुक्त प्रणाम मूल्य मिलने पर सब कुछ हो जाएगा I "
दयाराम ने कहा - " बाबा उसे लेकर आप कोई चिंता मत
कीजिए I आप अपना जितना प्रणाम मूल्य चाहेंगे मैं देने के लिए तैयार हूँ I केवल उस आदमी का बहुत ही अनिष्ट कुछ हो यही देखना चाहता हूँ I "
अमावस्या की रात को निशारात्रि में देहशुद्धि क्रिया समाप्त हुआ I इसके बाद गुग्गुल की धूप जलाकर व कनेर के फूल की आहुति देकर श्मशान भूमि पर अभय तांत्रिक यज्ञ करने बैठे I उनके सामने बिखरा हुआ है काला तिल , देसी शराब , गूलर की लकड़ी , सिंदूर , सूखी लाल मिर्च इत्यादि और भी बहुत सारे सामान I भूत डामर तंत्र का यज्ञ शुरू हुआ I चारों तरफ अंधेरे की शांति , ग्रामीण श्मशान के पास से रामगंगा नदी बहती चली गई है I उसी के किनारे से कभी-कभी सियारों की आवाज सुनाई दे रहा है I ब्रह्ममुहूर्त के बीच यज्ञ को समाप्त करके सभी सामानों को नदी के पानी में डालना होगा I जैसे-जैसे रात बढ़ रहा है वैसे ही बढ़ता जा रहा है तंत्र
क्रिया की गुप्त तांत्रिक शक्तियों की गूढ़ता I
समय है लगभग सुबह के चार , अभय तांत्रिक अपने यज्ञ को समाप्त करके उच्चिष्ठ सामानों को नदी में बहा एक डुबकी लगाकर , अपने आश्रम कुटी में आकर बैठे I आसमान में अंधेरा छठकर सुबह की रोशनी निकलने वाली है और आसपास के चिड़िया भी धीरे धीरे जगने लगे हैं I
किसी के पैरों की आवाज सुनकर अभय तांत्रिक ने सिर उठाकर देखा तो दयाराम उनकी ओर चला आ रहा था I
पास आकर तांत्रिक के पैरों को छूकर बोला - " यज्ञ सफल हुआ गुरुदेव "
तांत्रिक थोड़ा सा हंसते हुए बोले - " तुम्हें क्या मेरे काम के ऊपर संदेह है ? "
दयाराम बोले - " अरे नहीं नहीं I मेरे कहने का मतलब वो नहीं था I असल में मैं थोड़ा बेचैन हो गया था क्योंकि रात को दो बार आपके कुटी में आया था लेकिन आप यहां पर नहीं थे I "
अभय तांत्रिक बोले - " मेरे प्रणाम मूल्य को लाए हो ? "
दयाराम ने अपने पॉकेट से सौ के तीन नोट और एक थैला तांत्रिक के पैरों के पास रखकर फिर से नमस्कार किया I
तांत्रिक खुश हुए और थोड़ा गंभीर आवाज में बोले - " अब तुम जाओ मुझे विश्राम करने दो I आज रात बीतने के बाद ही फल मिलेगा I जिसका बुरा करने के लिए मेरे पास आए थे उसका धीरे धीरे सब कुछ खत्म होते हुए खुद ही अपनी आंखों से देख पाओगे I और हां कभी कोई और भी जरूरत हो तो यज्ञ प्रणाम मूल्य लेकर चले आना I "
दयाराम एक बार और तांत्रिक को नमस्कार करके आश्रम कुटी से निकल गया I

अभय तांत्रिक पैसा लेकर तंत्र शक्ति की सहायता से मनुष्यों का बुरा एवं बहुत से अनाचार क्रियाओं को करता है I यह उसके लिए एक प्रकार का धंधा है और इस काम को करके उसे अपने ऊपर गर्व महसूस होता है I उसे ऐसा लगता है कि उसके पास जो शक्ति है वह बहुत ही दुर्लभ है I पूरे 7 दिन भूत डामर तंत्र की साधना करने के कारण यह शक्ति देवाधिदेव ने उसे प्रदान किया I और इसी शक्ति के कारण वह इतना प्रसिद्ध है I जिसके बुलावा को स्वयं महादेव ने सुना है उसके लिए इस पृथ्वी के बहुत सारे काम सहज हो जाते हैं I यही सोचते हुए अभय तांत्रिक निद्रा में मगन हो गए I.........

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उफ्फ ! बोरिंग बोरिंग एकदम बोरिंग , पहली बार तथा दूसरी बार तक किसी तरह खुद को संभाल रहा था लेकिन अब यह उबाऊ दिन और नहीं बीत रहे I पूरे देश में तीसरी बार लॉकडाउन लगा है I कितनी देर दोस्तों के साथ वीडियो कॉल व youtube पर समय बिताया जाए I बिस्तर पर लेट ऊपर घूमते फैन को देखकर यही सोच रहा हूं I
अचानक नजर पड़ी आलमारी के ऊपर पुराने समय वाले एक लोहे के ट्रंक बॉक्स की ओर , इसे अब तक सही से देखा नहीं था I असल में इस अलमारी ने चार-पांच दिन पहले ही मेरे कमरे में रहना शुरू किया है I इससे पहले यह किसी दूसरे कमरे में था I पहले वाले बुकशेल्फ के टूट जाने के कारण , पिताजी इस आलमारी को मेरे कमरे में ले आए किताबों को रखने के लिए I और लोहे का बॉक्स भी उसी के
ऊपर था I मैंने सोचा जब कोई काम है ही नहीं तो क्यों ना उस बॉक्स को खोल कर देखा जाए उसमें क्या रखा हुआ है I
कुर्सी के ऊपर खड़े होकर बॉक्स को उतारा I बॉक्स पर एक परत धूल जमा हुआ है लेकिन अच्छी बात यह है कि इसमें ताला नहीं लगा I क्योंकि पिताजी से चाभी मांगते वक्त बहुत सारे सवालों का उत्तर देना पड़ता I देर न करते हुए उस बॉक्स को खोला I ज्यादा कुछ नहीं है अंदर केवल कुछ पुराने डायरी , एक हैंडवॉच , एक काले फ्रेम वाला चश्मा और कुछ पुराने धोती I हैंडवॉच को इधर - उधर से देखकर मेरा ध्यान गया डायरी की ओर, कुल आठ डायरी को मोटे धागे से
बांधा गया है I धागे को निकाल , पहले डायरी को खोला I उस पर नाम लिखा हुआ था 'जयदत्त मिश्रा ' । यह तो मेरे दादाजी का नाम है I पिताजी ने तो कभी नहीं बताया कि मेरे दादाजी डायरी भी लिखते थे I मन ही मन सोचा लॉकडाउन में समय को बिताने के लिए कुछ तो इंटरेस्टिंग मिला I लेकिन अभी यह नहीं जानता की डायरी के अंदर क्या लिखा हुआ है I अगर पढ़ने के लिए अच्छा कुछ मिला तो मस्त है लेकिन अगर कामों का विवरण लिखा होगा तो सब गुड गोबर I डायरी के पहले पन्ने को खोलते ही वहां तारीख लिखा हुआ था
' 26 मई सुबह 10 बजे '
किसी साल का उल्लेख नहीं था I वहां पर लिखा हुआ है I
" काम के लिए मेरा तबादला हुआ हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर में , आज यहां का पहला दिन है I रेल द्वारा जो कमरा मिला है वो बहुत ही अच्छा नहीं है I लेकिन मेरे जैसे अकेले के लिए यह कमरा ठीक-ठाक ही है I "

बस 26 तारीख वाले पन्ने पर इतना ही लिखा हुआ है I मुझे पता था कि दादाजी रेल डिपार्मेंट में काम करते थे I डायरी में जो लिखा हुआ वही बताता हूं I अब देखता हूं डायरी के अगले पन्ने में क्या लिखा है ?.....

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रामगंगा नदी से स्नान करके , शमशान के रास्ते से
आते वक्त अभय तांत्रिक को नजर आया कि जमीन
पर एक कौवे का घोंसला गिरा हुआ है I उसमें दो
अंडे भी दिखाई दिए I उनको लगा कि हवा के कारण
घोंसला खिसक कर गिर गया होगा I अभय तांत्रिक
ने पेड़ की ओर देखा एक बार , इस बड़े से बरगद के
पेड़ पर यह घोंसला कहां था यह समझना मुश्किल है I
लेकिन घोंसले में अंडे को देखकर लग रहा है कि यह
आज या फिर कुछ देर पहले ही पेड़ से गिरा है I
क्योंकि स्नान करने के लिए इसी रास्ते से गए थे उस
समय तो उनकी नजर में यह नहीं पड़ा I अभय तांत्रिक
ने उस घोंसले को उठा लिया I
कौवा का घोंसला तंत्र मंत्र के विभिन्न कामों में प्रयोग
होता है I मारण , उच्चाटन इन क्रियाओं में यह विशेष
फलदायी है I भीगे गमछे से घोंसले को ढककर तांत्रिक
अपने आश्रम कुटी की ओर चले गए I
……..
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डायरी के अगले पन्ने पर लिखा हुआ है,

" 27 मई रात साढ़े ग्यारह ,

मेरे जीवन में आज के जैसी घटना बहुत कम ही हुआ है I कल शायद अमावस्या था इसीलिए आसमान बेरंग और चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था I आज की रात कल की तुलना में साफ है इसीलिए मुझे ऐसा लगा I कल बहुत ही थक गया था इसीलिए और ज्यादा लिखने का मन नहीं किया I कल से कमरे में खाना बनाने के लिए एक स्थानीय आदमी को काम पर रखा I आदमी का नाम है केशव जायसवाल , बहुत ही अच्छा आदमी है और खाना भी बहुत ही स्वादिष्ट बनाता है I
कल शाम को एक और आदमी आया था खाना बनाने के काम के लिए , नाम बताया दयाराम गुप्ता , वह भी यहीं का आदमी है I मैंने उसे बताया कि मुझे खाना बनाने वाला मिल गया है I केशव का नाम भी बताया I और मैंने यह भी बोला कि अगर केशव ने खाना अच्छा नहीं बनाया तो तुम्हारे बारे
में विचार करूंगा I यह कहते ही दयाराम के चेहरे का रंग बदल सा गया I मानो केशव के नाम को सुनकर उसे थोड़ा गुस्सा आ गया I इसके बाद बिना कुछ बोले ही वह आदमी बाहर निकल गया I उसके जाने के कुछ देर बाद आसपास
घूमकर देखने के लिए बाहर निकला था I गढ़मुक्तेश्वर में बहती गंगा के घाट के ऊपर पहुंचते ही देखा , दो संत आदमी रास्ते के किनारे एक लकड़ी के तख्ते पर बैठकर इकतारा बजाते हुए राम - कृष्ण भजन कर रहे थे I
कुछ देर खड़े होकर उनके गाना भजन को सुना I उसके
बाद सोचा थोड़ा नदी की तरफ जाता हूं I घाट पर बैठा था उसी समय एक जटाधारी साधु की ओर नजर गई I
साधुबाबा गंगा स्नान करके पानी से ऊपर आ रहे थे I मेरे सामने आते ही मैंने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार किया I मैंने देखा साधु बाबा एकटक मेरे चेहरे की ओर देख रहे थे I
इसके बाद मुझसे बोले - " तुम यहां पर और कितनी देर रुकोगे ? "
मैं बोला - " इतना सोचकर नहीं आया बाबा लेकिन क्यों , क्या कोई काम है ? "
साधु बाबा ने कहा - " कुछ देर यही इंतजार करो मैं अपने गीले कपड़े को बदल कर आता हूं I कहीं पर जाना मत , तुम्हारे साथ कुछ बात करनी है I "
यही कहकर साधु बाबा गंगा घाट से चले गए I साधु बाबा को देखने पर उनके लिए मन में एक श्रद्धा उत्पन्न हुआ I ज्यादा कुछ चमक धमक न रहने पर भी उस आदमी की ओर से नजर नहीं हटा पा रहा था I
लगभग 20 मिनट बाद साधु बाबा घाट पर आए और मेरे सामने बैठकर बोले - " अपने काम के तबादले से खुश क्यों नहीं हो ? "
यह सुन मैं तो आश्चर्यचकित हो गया आखिर उन्हें कैसे पता कि मेरा तबादला हुआ है I
साधु बाबा फिर बोले - " रेल के काम में ऐसा होता ही है I और दो बार तुम्हारा तबादला होगा I साथ ही तुम्हारा पदोन्नति भी होगा I चिंता की कोई बात नहीं तुम्हारे जीवन में और भी अच्छे दिन आएंगे I "
इतना बोलकर साधु बाबा शांत हुए I
मैंने सोचा कि अघोरी व तांत्रिक साधु बाबाओं में बहुत ही अलौकिक शक्तियां होती है लेकिन कभी अपने आंखों से नहीं देखा था I आज सचमुच ऐसा लग रहा है कि यह बातें सच है I
मैं बोला - " आप कुछ बताना चाह रहे थे I "
साधु बाबा बोले - " तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास होगा या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन इस बात को तुम्हें बताना ही होगा I
तुमको देखते ही मुझे ऐसा अनुभव हुआ I तुम्हारे संपर्क में कोई ऐसा आया है जिसके साथ आने वाले दिनों में बहुत ही बुरा कुछ होने वाला है I और उसके साथ संपर्क में रहने के कारण तुम्हारे साथ भी कुछ बुरा हो सकता है I क्योंकि मुझे दिखाई दे रहा है तुम्हारे पीछे काले धुएं की तरह एक आवरण है I "
मैं उनके बात को सुनकर जल्दी से अपने पीछे देखा I
साधु बाबा हंसते हुए बोले - " उसे तुम नहीं देख पाओगे बेटा , इसे साधारण मनुष्य अपने आंखों से नहीं देख पाता I "
कुछ देर पहले साधु बाबा के जिन शक्तियों का प्रकाश मिला है उससे ऐसा नही लगा कि यह बाबा कोई पाखंडी है I और उनको देखते ही मन में एक भक्ति भी उत्पन्न होता है I किसी साधारण मनुष्य को अपने दृष्टि द्वारा आकर्षण करने का भाव उनकी आंखों में साफ नजर आता है I
मैं बोला - " तो बाबा जी क्या उपाय किया जाए जिससे इस विपत्ति से छुटकारा मिले I "
उन्होंने कहा - " शाम हो गया है और मेरे संध्या पूजा का समय हो रहा है I कुछ दूरी पर ही मेरा घर है मेरे साथ वहां पर चलो , देवी मां की पूजा को समाप्त करके उसके बाद तुम्हारे साथ इस बारे में चर्चा करेंगे I "

( सावधान नीचे लिखे सभी मंत्र देवी काली से जुड़ा है
इसीलिए इसका सही उच्चारण करें अथवा नही पढ़ें I )
' शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे,
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोस्तुते।'

' ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते । '

'ॐ काली - काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।। '

' हुंहुंकारे शवारूढे नीलनीरजलोचने ।
त्रैलोक्यैकमुखे दिव्ये कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ १॥'
' प्रत्यालीढपदे घोरे मुण्डमालाप्रलम्बिते ।
खर्वे लम्बोदरे भीमे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ २ ' ...
.................

इन सभी मंत्रों का पाठ करते हुए साधु बाबा पूजा
कर रहे थे I
संध्या पूजा समाप्त होने में लगभग साढ़े सात बज गए I
मैं साधु बाबा के मंदिर के बाहर बैठकर उनके पूजा को
देख रहा था I चारों ओर अगरबत्ती और धूपबत्ती के
सुगंध से भरा हुआ है I
साधु के पूजा को देखते हुए कहीं खो सा गया था I
साधु बाबा के पूजा से मानो देवी मूर्ति में प्राण आ गई
हो I देवी मूर्ति के दोनों आँख एकदम जीवंत लग रहे
थे I सचमुच , कितना सुंदर है देवी मां का चेहरा और
उनके सामने साधु बाबा लाल वस्त्र पहनकर अपने
पूजा को संपन्न कर रहे थे I
साधु के इस घर को घर बोलना गलत होगा I झोपड़ी
जैसा छोटा घर और उसके सामने छोटा सा आंगन ,
इस आंगन के कोने में एक खटिया रखा हुआ है जिस
पर मैं बैठा था I और जो पूरा घर है वही मंदिर है I
वहां पर ही देवी मूर्ति स्थापित है और भी कई सारे देवी
देवताओं की मूर्ति व फोटो है वहां पर लेकिन विशेष
देवी काली ही पूजित होती हैं यह देख कर ही समझा
जा सकता है I
पूजा समाप्त करके मेरे माथे पर टीका लगाकर , मेरे सिर पर हाथ रखकर साधु बाबा बोले - " देवी महामाया तुम्हारा मंगल करें I "
फिर साधु बाबा मेरे पास आकर खटिए पर बैठे I साथ में एक टोकरी लाई ,रामदाना व बतासा मेरे सामने रखते हुए बोले - " लो बेटा खाओ , गरीब के घर आए हो इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं खिला सकता I "
मैं बोला - " अरे नहीं नहीं देवी मां का प्रसाद ही मेरे लिए बालूशाही के समान है I "
उसके बाद थोड़ा चुप बैठे रहे और फिर बोले -
" अब यह बताओ कि यहां गढ़मुक्तेश्वर में आने के बाद तुमने किन किन लोगों से मुलाकात किया है I एवं तुम्हारे
रहने के स्थान पर कौन तुमसे मिलने के लिए आया है I "
मैं बोला - " अभी 2 दिन पहले ही मैं यहां पर आया हूं इसके बीच मेरे कमरे में केवल दो लोग आए थे I पहले आया केशव जायसवाल नाम का एक आदमी , खाना बनाने के काम के लिए I कल रात से वही मेरा खाना बनाने का काम रहा है I और उसके बाद दयाराम गुप्ता नाम का एक आदमी आया I वह भी खाना बनाने के काम से ही आया था I मेरे द्वारा केशव का नाम बताते ही वह गुस्से में चला गया I बस केवल इन्हीं दोनों के अलावा और कोई भी मेरे कमरे में नहीं आया था I और तबादले के बाद अभीतक रेल ऑफिस मैं नहीं गया हूँ I अभी तीन-चार दिन बाकी है मुझे काम में जुड़ने के लिए I "
साधु चुपचाप मेरे बातों को सुन रहे थे I इसके बाद बोले - " दयाराम व केशव के साथ मुझे मिलवा सकते हो I एक बार उन्हें आमने सामने देखना होगा I
मैं बोला - " दयाराम को नहीं जानता लेकिन केशव के साथ मिलवा सकता हूँ I "
" कब "
" केशव तो मेरे कमरे में हीअक्सर रहता है आप जब चाहें तब उससे बात करवा दूंगा I "
" अभी उससे मिलवा सकते हो I इसी बीच तुम जहां रहते हो वह भी देखा आता I "
" ठीक है चलिए कुछ देर बाद ही केशव आएगा रात्रि भोजन बनाने के लिए I "
हम दोनों चलने के लिए तैयार हो गए I
साधु बाबा मुझे रोकते हुए बोले - " रुको थोड़ी देर "
बोलकर मंदिर के अंदर से लाल कपड़े के टुकड़े में कुछ
रखकर अपनी पोटली में डाला और कंधे पर टांगते हुए
बोले - " चलो अब I जय देवी महामाया , जय महाकाल I "
हम दोनों निकल पड़े मेरे कमरे के उद्देश्य से I ...........



अगला भाग क्रमशः .....

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