तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 11 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 11

            हिमालय की ओर - 5


" सचमुच आपका तारीफ किए बिना नहीं रह सकता I हरिद्वार से उतना दूर चलकर , न जाने कितने समस्या से घिरकर , इसके अलावा दुर्घटना से चोट के बावजूद आप उतना दूर पहुँच गए I यही बहुत था I "
इतना बोलकर तांत्रिक रुद्रनाथ के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया I
तांत्रिक तुरंत बोल पड़े - " अरे , अरे ये क्या कर रहें हो I प्रत्येक मनुष्य के अंदर भगवान विष्णु का वास होता है इसीलिए मेरा पैर छूकर अपने अंदर के भगवान विष्णु को छोटा क्यों कर रहें हो I मैं तुम्हें ऐसे ही आशीर्वाद दे रहा हूँ पैर छूने की कोई जरूरत नहीं I अभी तो पूरी कहानी सुना ही नहीं I  "......

 

 

अब आगे ...

तांत्रिक बाबा बोलते रहे। ,,

" इसके बाद लगभग साढ़े तीन मील रास्ता चलकर मैं एक ऐसे जगह पर पहुंचा जहाँ खड़ा से एक बड़ा पहाड़ी प्राचीर और उसके पास से रास्ता आगे बढ़ गया है I उस प्राचीर को पार करने में लगभग पंद्रह मिनट लगे I इसके बाद जो दिखाई दिया वह किसी स्वर्गीय दृश्य से कम नहीं था I मेरे आँखों के सामने खड़ा है विशाल नीलकंठ पर्वत , हिमालय I उस समय बर्फ से ढंके पर्वत के ऊपर अस्त होता सूर्य दिख रहा था I और उसके ठीक नीचे एक मंदिर  दिखाई दे रहा है I उस मंदिर के ऊपर जमा हुआ है सफेद बर्फ और यहां से चारों तरफ ही लगभग सफेद दिख रहा है I मैं अपने खुशी को नहीं रोक पाया I शरीर में जितना शक्ति था उसे एकत्रित
करके मंदिर की ओर चल पड़ा I 20 मिनट बाद मैं केदारनाथ मंदिर के बिल्कुल सामने पहुंच गया I मंदिर के सामने खड़ा होकर ऐसा लगा कि यह तो मेरे स्वप्न के दृश्य जैसा ही है I चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़ , कुछ ही दूर से बह रहा है मंदाकिनी नदी और सामने केदारनाथ मंदिर सीना तानकर खड़ा है I इसके अलावा मंदिर की ओर चेहरा करके बैठा है एक पत्थर का सांड और वहां एक पत्थर का त्रिशूल भी है I मैं मंदिर के दरवाजे की ओर बढ़ा I उस समय एक पुरोहित मंदिर में दिया जलाकर दरवाजे को बंद कर रहे थे I मुझे अंदर जाने के लिए उत्सुक देख उन्होंने बताया कि मंदिर आज से 6 महीनों के लिए बंद हो गया है अगर मुझे बाबा केदारनाथ का दर्शन करना हो तो 6 महीने बाद आना होगा I
मैंने हाथ जोड़ बहुत निवेदन किया लेकिन मेरे बात को सुनना तो दूर , कुछ बिना बोले ही मंदिर प्रांगढ़ छोड़ चले गए I मेरे मन में उस समय दुःख की एक लहर दौर पड़ी I आँखों से थोड़ा बहुत आंसू भी निकल आए लेकिन रो नहीं पाया I कुछ भी न सूझ कर मंदिर के दरवाजे के पास ही बैठ गया I हाथ पैरों में कोई दम नहीं है , भूख से सिर चकरा रहा है लेकिन मन में केवल एक ही बात बार - बार सुनाई दे रहा है कि महादेव का दर्शन किए बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगा I केदार घाटी में धीरे - धीरे रात उतर आया I चारों तरफ एक भी मनुष्य नहीं है I केवल हिमालय की ठंडी हवा के झोंके और आसमान से रुई जैसे गिरते बर्फ ही मेरे साथ थे I चांद की रोशनी में चारों तरफ एक मनोरम दृश्य बन गया है I मैं  जान गया कि जिस हिसाब से ठंडी लग रही है शायद आज रात ही मैं बर्फ से जमकर मर जाऊंगा I 6 महीने रुकना तो दूर की बात है I केवल एक ही बात सोच कर मन को शांति मिल रही है कि मृत्यु होगा भी तो महादेव के चरणों में होगा I लेकिन क्या सोचा था और क्या हो गया ? "

इतने बोलकर तांत्रिक हँसते हुए रुके I
मैं उत्तेजित होकर बोला - " क्या हुआ रुक क्यों गए I इसके बाद क्या हुआ बताइए ? आप क्या उस हड्डी जमा देने वाली ठंडी में 6 महीनों तक प्रतीक्षा किया ? "
तांत्रिक रुद्रनाथ हंसकर फिर से बोलने लगे, -
" मंदिर के दरवाजे के पास टेंक लगाकर मैं बैठा हुआ था I शरीर में थोड़ी सी भी ताकत नहीं था I मैं जानता था कि धीरे - धीरे मेरा शरीर मृत्यु की ओर बढ़ रहा है I केवल आँख खोलकर दूर के पहाड़ों को देखता हुआ बैठा हूँ I अचानक से मैंने देखा पहाड़ों की ओर से कोई मेरे तरफ ही आ रहा था I उनका चेहरा मुझे स्पष्ट नहीं दिख रहा था लेकिन हाथ में लम्बा त्रिशूल जैसा कुछ है यह दिख रहा है I और आगे आते ही मैं समझा वो एक सन्यासी या हिमालय के कोई योगी हैं I
अब उन्होंने मेरे सामने आकर कहा - " बेटा , इतनी ठंडी में यहां क्यों बैठे हो ? "
मैं बोला - " महादेव के दर्शन के लिए आया था हरिद्वार से चलकर लेकिन यहां पहुंच कर देखा मंदिर का दरवाजा आज ही बंद हो गया I पर दर्शन किए बिना मैं लौटना नहीं चाहता I इससे अच्छा महादेव के चरणों में मृत्यु मुझे पसंद है I "
मेरे बात को सुनकर योगी बाबा बोले - " तुम थोड़ा प्रतीक्षा करो मैं अभी लौट कर आता हूँ I "
कुछ देर बाद ही वो हाथ में कुछ लकड़ियां लेकर लौट आए I उस बर्फीले जगह से उन्होंने लकड़ियां कहाँ से पाई नहीं जानता I इसके बाद उन्होंने लकड़ी जलाई और जलाए भी बहुत अद्भुत तरीके से  I हाथ में लिए एक पत्थर से अपने त्रिशूल में रगड़ते ही कुछ चिंगारी निकली और आग जल उठा I आग की गर्मी से बहुत आराम महसूस हुआ I इसके बाद उन्होंने मुझे एक लोटा गर्म दूध पीने के लिए दिया I मैं तो यह देख चकित हो गया कि इतनी ठंडी में गर्म दूध उन्हें कहाँ से मिला I मन में प्रश्न उठा लेकिन मेरे पास कोई उपाय नहीं था I एक ही बार में सारा दूध पी गया I जलते आग की रोशनी अब मैं उन्हें देख सकता था I सिर पर बड़ा सा जटा , देखकर ऐसा लगता मानो कई सौ साल पुराना जटा है I एवं जटा थोड़ा भीगा हुआ है , देखकर ऐसा लगता है अभी अभी स्नान करके लौट रहें हैंI पूरे शरीर पर सफेद भस्म लगा हुआ है I
हाथ , कमर और गले में रुद्राक्ष की माला है I आँखों की तरफ देखने से ऐसा लगता है कि ये किसी साधारण मनुष्य के हो ही नहीं सकते I एकमात्र श्रेष्ठ योगी का दृष्टि ही ऐसा हो सकता है I मैं उनसे कहाँ रहता हूँ यह पूछते ही उन्होंने मंदिर के पीछे पहाड़ की ओर इशारा करते हुए बोले कि वो वहीं
पर रहतें हैं I उस पर्वत के एक गुफा में बैठकर वो ध्यान साधना करते हैं I और जल्दी लोगों के बीच नहीं आते I आज बहुत दिन बाद वो गुफा से बाहर निकले और मंदाकिनी नदी से पानी लेकर फिर गुफा में चले जायेंगे I अब तक एक बात पर ध्यान नहीं दिया था लेकिन अचानक से याद आया कि इतनी ठंडी में भी उनके शरीर पर कोई पोशाक नहीं है I सचमुच वो एक सिद्ध योगी थे I योग व ध्यान बल से शरीर गर्म रखा जा सकता है I इसके बाद उन्होंने कोई विशेष बात नहीं किया I
केवल जाने से पहले बोल कर गए ,  -
" आग जलता रहेगा I तुम अब सो जाओ I  बहुत दूर से चलकर आए हो , सो जाओ I और भगवान के ऊपर आस्था रखो I केदारनाथ का दर्शन तुम्हें अवश्य मिलेगा I "
इसके बाद वो धीरे - धीरे मंदिर के पीछे चले गए I मेरे आँखों में भी नींद उतर आया I सभी दुःख भूलकर वही आराम से सो गया I सुबह की रोशनी से आँख खुल गया I आँख खुलते ही देखा भगवा रंग पहने कुछ लोग इधर ही चलकर आ रहे थे I मेरे चकित होने के ज्ञान ने यहां से एक नया मोड़ लिया I चारों तरफ देखा तो कहीं भी बर्फ नहीं दिख रहा था I ठंडी भी कम लग रही थी I मैं जल्दी से उठकर उनके तरफ गया तथा एक आदमी को पहचान पाया I अरे ! ये तो वही पुरोहित हैं जो कल मंदिर को बंद करके चले गए थे और कहा था कि 6 महीने बाद मंदिर खुलेगा I
मैंने उनसे पुछा - " क्या अभी मंदिर खोला जाएगा ? "
वो ' हाँ ' बोलकर आगे बढ़ गए I
मैंने फिर बोला - " लेकिन आपने तो कहा था 6 महीने बाद मंदिर खोला जाएगा I "
इसके बाद उन्होंने एकाएक रुककर मेरी ओर देखा I मुझे ऐसा लगा की वो मुझे पहचान गए हैं I मेरे सामने आकर मुझसे पूछा कि मैं ही वो आदमी हूँ न जो 6 महीने पहले दर्शन करने के लिए आए थे I मैंने उनसे बोला कि 6 महीने कहाँ , मैंने तो उनसे कल शाम को ही पूछा था I मुझसे फिर पूछे कि मैं यहां पर 6 महीने से हूँ या नहीं ? 

मैंने कहा - " बिल्कुल भी नहीं , मैं कल रात को यहां पर था I इसके बाद एक साधुबाबा आए और उन्होंने बताया कि पर्वत के गुफा में रहते हैं I "
इसके बाद कल रात को जो कुछ भी हुआ था मैंने उन्हें सब कुछ बताया I मेरे बातों को सुनकर पुरोहित और उनके साथ जो भी थे सभी चकित हो गए I इसके बाद वो बोले कि कल रात मैंने जिस योगी बाबा से मिला वो कोई साधारण योगी नहीं स्वयं देवादिदेव महादेव थे I वो मेरे भक्ति से प्रसन्न होकर मेरे दुख - दर्द को दूर करने लिए 6 महीने को एक रात में ही परिवर्तन कर दिया I बाकी पृथ्वी के सभी मनुष्यों के लिए ये 6महीने लेकिन मेरे लिए केवल रात के कुछ घंटे समान ही था I इतना बोलकर वो मंदिर के सामने दौड़कर गए और उसके सामने पड़े लकड़ियों के राख को अपने माथे पर लगाने लगे I बाकी दुसरे लोग भी वही करने लगे I
इसके बाद पुरोहित मेरे पास आए और बोले - " तुम एक साधारण मनुष्य होकर ईश्वर के दर्शन पाए लेकिन मैं इतने सालों से केदारनाथ का पुजारी होकर भी यह सौभाग्य नहीं पा सका I "
इसके बाद वो मुझे अपने साथ मंदिर के अंदर ले जाकर देवादिदेव केदारनाथ के दर्शन करवाए I मैंने मन भरकर दर्शन किया I मैंने देखा यहां पर कोई भी मूर्ति नहीं है I केवल एक टुकड़े पत्थर का  दर्शन होता है I जो थोड़ा सा जमीन से बाहर निकला हुआ है बाकी अंदर है I उस पत्थर को देखने में सांड के पीठ जैसा लगता है I इस घटना का भी एक दूसरी कहानी है उसे किसी और दिन बताऊंगा I इसके बाद लगभग 3 साल मैं केदरनाथ में रहा I केदारनाथ के पीछे चोराबाड़ी ताल नामक एक जगह है I वहीं एक योगी से मिला I उनके साथ रहकर ही मैंने 3 साल तक योग साधना व कुंडलिनी साधना को किया I उन्हीं गुरुदेव के पास से कदालिभा काक्न्त्र कल्प विद्या को सीखा था I लेकिन जब लौटने का समय हुआ तब गुरुदेव ने मुझसे कहा था कि मुझे फिर हिमालय लौट कर आना होगा I ज्ञानगंज का बुलावा मुझे निर्दिष्ट समय पर मिलेगा और तब मुझे कोई भी बंधन नहीं रोक पायेगा I ज्ञानगंज का नाम सुन मुझे अचानक अपने भाई अनिल की बात याद आ गई I मैंने गुरुदेव से पूछा वह मठ कहाँ पर है I उन्होंने हँसते हुए केवल एक ही बात बताया था कि ज्ञानगंज तक केवल वही पहुंच सकता है जिसको
वहां का बुलावा सुनाई देता है I  "

इतना बताकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए I इसके कुछ देर बाद मैं घर लौट आया I उनके कहानी को सुनते हुए दोपहर बीत गया था I .....

                 

 

तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी क्रमशः ....