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रंगरसिया

"विशाल, आज तो जल्दी घर आ जाना!"

"क्यों , आज क्या है!"

" तुम्हें इतना भी याद नहीं!" मधु उसके गले लगते हुए शिकायती लहजे में बोली।
"क्या बात है ! हमारे छूते ही दूर भागने वाली हमारी पत्नी साहिबा, आज सुबह सुबह इतना प्यार क्यों दिखा रही है!"

"क्योंकि मेरे बुद्धू पतिदेव को इतना भी याद नहीं कि आज हमारी शादी की पहली सालगिरह है!"

"ओह!सॉरी सॉरी यार ! मैं तो बिल्कुल भूल गया। तुमने मुझे पहले क्यों नहीं याद दिलाया। आज तो मेरी इंपॉर्टेंट मीटिंग है और डिनर भी उन लोगों के साथ ही है! आई एम वेरी सॉरी स्वीटहार्ट!
वैसे , तुम टेंशन मत लो। जिस दिन मुझे समय मिलेगा, हम एक शानदार दावत करेंगे और हां तुम अपनी फ्रेंड्स के साथ इस दिन को इंजॉय कर सकती हो। कहो तो मैं किसी अच्छे से होटल में बुकिंग कर देता हूं और हां यह बताओ क्या चाहिए तुम्हें गिफ्ट में!"

"विशाल, मुझे सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए! प्लीज छुट्टी कर लो!!!!"
"क्या बेवकूफों वाली बात कर रही हो। तुम्हें पता नहीं है। आज की मीटिंग को कैंसिल करने का मतलब एक बहुत ही बड़ा कांट्रेक्ट हाथ से निकलना लेकिन तुम क्या समझो! पढ़ी लिखी होती तो!!!!!!!"
बोलो विशाल, चुप क्यों हो गए और यह क्या तुम मुझे हर बार कम पढ़े लिखे होने का ताना देते हो। मै या मेरे मम्मी पापा नहीं गये थे, तुम्हारे घर इस रिश्ते के लिए। तुमने खुद मुझे पसंद किया है। मम्मी पापा ने तो मना कर दिया था लेकिन तुम्हारी व तुम्हारे परिवार वालों की जिद के कारण ही उन्होंने हां कही। फिर अब !!!!!!"
"हां, तो मैंने कब मना किया कि मुझे तुम पसंद नहीं तुम हो ही इतनी खूबसूरत । वैसे तुम्हारी खूबसूरती के तो हम क्या सभी कायल हैं। आधे कॉन्ट्रैक्ट तो मुझे तुम्हारी यह बला की खूबसूरती दिलाती है।"

"छी !! विशाल कैसी बातें कर रहे हो!"
"अरे, इसमें बुरा मानने की क्या बात है और बुराई भी क्या है इसमें। वैसे भी मैं बिजनेसमैन हूं । वही काम करता हूं, जिसमें मुझे फायदा हो! अच्छा छोड़ो इन सब बातों को। सही ग़लत के फेर में पड़ा तो मैं लेट हो जाऊंगा!!" कह विशाल ऑफिस के लिए निकल गया।

उसके जाने के बाद मधु धम्म से वही बैठ गई।
जिस रूप रंग पर कभी उसे बहुत अभिमान था। आज उसी से नफरत हो रही थी उसे!
बचपन से परिवार, रिश्तेदारी, स्कूल कॉलेज में पढ़ाई से ज्यादा उसकी सुंदरता के चर्चे रहते थे। दादी तो हमेशा कहती थी .. क्यों किताबों में आंखें गड़ाए रहती है । देखना तुझे तो कोई राजकुमार आकर ले जाएगा। उसका भी कभी पढाई में मन न लगा। b.a. की पढ़ाई भी किसी तरह से पूरी की।
एक शादी समारोह में विशाल ने उसे देखते ही पसंद कर लिया। मधु के मम्मी पापा को रिश्ता सही नहीं लग रहा था क्योंकि वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे और विशाल एक हाई सोसाइटी से ताल्लुक रखने वाला बिजनेसमैन लेकिन दादी और विशाल की जिद के कारण उन्हें हां करनी पड़ेगी।
कुछ महीने बाद विशाल और मधु की शादी बड़े धूमधाम से हुई। शादी कर मधु ने विशाल के आलीशान बंगले में कदम रखा तो वहां का वैभव देख उसे अपनी किस्मत पर रश्क होने लगा था।
इस ऐशो आराम की तो उसने सपने में भी कल्पना नहीं की थी लेकिन कुछ दिनों बाद ही मधु का इस ऐशो आराम से मन भर गया।
क्योंकि यहां सुख सुविधाएं तो थी लेकिन एक पति का प्यार ना था। विशाल तो एक काम करने की मशीन था। जो सुबह निकलता है और देर रात घर आता। शादी के 1 साल में कभी विशाल ने उसके साथ बैठ दो घड़ी प्यार से बात ना की थी। वह तो उसे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करने का साधन मात्र समझता था।
और आज !!!!!! मधु समझ गई थी कि विशाल रूप का पुजारी है । प्रेम का नहीं ! वो रंगरसिया है और ऐसे रसिक कभी स्त्री के मन के भावों को नहीं समझ सकते ।
सरोज ✍️


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