एक जानवर का सच (व्यंग्य) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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एक जानवर का सच (व्यंग्य)

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एक सर्वे के अनुसार इन्टरनेट और मोबाइल के कारण अपराध और परिवारों का टूटना बढ़ा है इसके पीछे क्या कारण हो सकते है ? इसे जानने के लिए कृपा करके आप एक प्रश्न का जवाब ईमानदारी से स्वयं को दे। प्रश्न यह है कि यदि आप गायब (अदृश्य) होकर मनुष्य की तरह कर्म कर सके तो सबसे पहले क्या करोगे ? ........... सोचे ........... सोचे ........... सोच लें उसके बाद ही आगे पढ़े .............। ईमानदारी से सोच कर ही पढ़ें ।
वास्तव में मनुष्य एक जानवर ही है एक ऐसा जानवर जिसने अपनी आदिम प्रवृत्तियों को सामाजिक नियमों के कारण अंदर छुपा लिया है। हर व्यक्ति समाज के भय से अच्छा दिखने का ढोंग करता दिखता है। जब उसे यह आभास हो जाता है कि उसे अब कोई देख नहीं पाएगा तो उसके अंदर का जानवर कपड़े फाड़कर नग्न अवस्था में आ जाता है। इंटरनेेेट और मोबाइल पर उपयोगकर्ता को यह लगता है कि वो आसपास के वातावरण से अलग हो गया है इसलिए इंटरनेट और मोबाइल पर झूठ, फरेब, मक्कारी और अपराध भी अधिक है। साथ ही ये दोनों माध्यम बिना किसी की निगाह में आए मनमानी करने की छूट भी देते है इसलिए पूरा परिवार अपने को तुष्ट करने हेतु अलग-अलग इन्हीं का उपयोग कर रहे है। जिससे साथ बैठे व्यक्ति से अधिक दूर के किसी व्यक्ति से लगाव बढ़ रहा है। ऐसे में सामाजिक नियमों में बँधे परिवार का टूटना तो स्वभाविक ही है।
देखा जाए तो मनुष्य अदृश्य होकर अपनी आदिम और गैर सामाजिक इच्छाओं की तुष्टी ही चाहता है क्योंकि ऐसे में न उसे समाज के कानूनों का खतरा होता है और न ही सजा और अपमान का भय। कोई अदृश्य तो शायद ही हो पाए परन्तु जब भी उसे लगता है कि उसे कोई भी देखने वाला नहीं है तो अपनी दमित इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है क्योंकि उसके अंदर का जानवर 6 करोड़ सालों में भी मरा नही है अभी भी वो पूरा मानव नहीं बन पाया है। ये गाायब होने जैसी परिस्थितियों में घर, दफ्तर, जंगल का एकांत तो है ही साथ ही महानगर, मेलें, उत्सव के भीड़ भरे वातावरण में गायब होना भी शामिल है जहाँ नवसीखिये प्रथम स्थिति में स्वयं को गायब मानते है तो शातिर अपराधी अपने आप को भीड़ में अदृश्य कर लेते है। महानगरों में इसी तरह के अपराध बहुत होते है।
अब आपने प्रारम्भ में स्वयं को ईमानदारी से यदि जवाब दिया था तो उसके विषय में भी सोचिए। लेख लिखने के पूर्व उक्त प्रश्न लेखक द्वारा अनेकों व्यक्तियों से पूछा गया उनके जवाब समाज की इस आदिम प्रवृत्ति की ओर इशारा करते है । जिस दिन हम अदृश्य होकर भी सामाजिक नियमों को मानने लगेंगे उस दिन हम पूर्णतः पशुत्व से छुटकारा पा कर मनुष्यत्व को प्राप्त कर लेंगे।
विश्व में अपराध समाप्त हो जाएँगे शायद किसी कानून की भी आवश्यकता न हो लेकिन शायद हम निकट भविष्य में पूर्ण मानव नहीं बनने वाले है !

अतः तब तक डर से ही सही हमें मानव दिखते रहना होगा।


आलोक मिश्रा "मनमौजी"