छीटें मारने के बाद भैरवी थोड़े होश में आई। वो डरी सहमी सी बस एक ही चीज बोली जा रही थी "सुनीता आंटी आप मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ।" लेकिन सुनीता के पांच वर्षीय बेटे की तबियत खराब थी तो उसका घर जाना जरूरी था। उसने फैसला लिया की जब भैरवी सो जाएगी तो वो अपने फ्लैट में चली जाएगी। अपने पति को वापस भेज कर वो भैरवी को खाना खिलाकर दिलासा देने लगी की वो चिंता न करे उसे कुछ भी होगा। थोड़ी ही देर में थकी और डरी हुई भैरवी सो गई।
उसके सोने के बाद सुनीता उसके फ्लैट का दरवाजा बंद करके अपने फ्लैट में चली गई। अभी सुनीता को सोए हुए कुछ ही देर हुआ होगा की उसे सपने में घोष अंकल आने लगे उसने देखा कि घोष अंकल एक झोला लिए उसके फ्लैट इधर उधर में घूम रहे हैं थोड़ी देर के बाद वो उसके बिस्तर के नीचे उस झोले में से कुछ निकल कर रख देते हैं। वो क्या रखते हैं ये तो भैरवी नही देख पाती है लेकिन वो जैसे ही घोष अंकल से पूछती है की उन्होंने इस झोले में से क्या निकाल कर उसके बिस्तर के नीचे रखा है घोष अंकल तेज हंसी हंसते हुए गायब हो जाते हैं।
उन्हें गायब होता देख और उनकी विचित्र हंसी सुनकर भैरवी बुरी तरह डर जाती है लेकिन वो किसी तरह हिम्मत करके अपने बिस्तर के नीचे झांकती है और तुरंत ही चीख मरते हुए जग जाती है। उसने देखा की घोष अंकल ने उसके बिस्तर के नीचे किसी इंसान का कटा हुआ उल्टा पैर रख दिया था। उठने के बाद वो चारों तरफ सुनीता को ढूढने लगती है। उसे अपनी तकिया के बगल एक चिट्ठी मिलती है जिसे सुनीता ने जाने से पहले रखा था। उसमें लिखा था "सुनीता मुझे माफ करना की मैं तुम्हारे साथ नही रुक पाई। बिट्टू को बहुत तेज बुखार चढ़ा था इसलिए मुझे उसके पास जाना पड़ा। मुझे उम्मीद है तुम मुझे माफ कर दोगी।
सुनीता"
अब भैरवी को किसी अनहोनी की चिंता होने लगी थी। पहले लिफ्ट में घोष अंकल का दिखना फिर उल्लू का उसपर हमला करना और अब सपने में उल्टा पैर और घोष अंकल का फिर से दिखना उसे कुछ ठीक नही लग रहा था। डर के कारण उसका गला सूख रहा था तो वो पानी पीने के लिए किचन में गई। लौटते समय उसे अपने बिस्तर के बगल एक झोला गिरा दिखा। ये झोला ठीक वैसा ही था जो उसे सपने में घोष अंकल के हाथों में देखा था। उसने खुद को समझाया की यह झोला सुनीता आंटी से छूट गया होगा या तो वो ही लाके भूल गई होगी और हवा के चलते यह आके गिर गया होगा। लेकिन उसका मन नही मान रहा था।
वो धीरे कदमों से झोले की ओर बढ़ रही थी। झोले के पास पहुंच कर उसने झोले को हाथ में लिया और ध्यान से देखने लगी। कुछ देर पश्चात उसने चीख के साथ झोला फेंक दिया। झोले में खून लगा हुआ था। अब उसका शक और बढ़ गया और वो अपने बिस्तर के नीचे झांकने लगी और चीखते हुए कमरे से बाहर भागने लगी और भागते हुए सीधे सुनीता के घर पहुंची और उनका दरवाजा पीटने लगी। थोड़ी देर बाद सुनीता ने दरवाजा खोला और उससे पूछा की क्या हुआ तो वो बस एक ही वाक्य बोल पाई "आंटी वो घोष अंकल, उल्टा पैर"
आगे क्या हुआ पढ़िए अगले भाग में।
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