सुनीता भैरवी को इस हालत में देखकर बहुत घबरा गई थी। उसने भैरवी को अंदर बिठाया और उसे शांत कराने लगी। लेकिन भैरवी चुप ही नहीं हो रही थी। वो बार बार घोष अंकल और उल्टा पैर बोले जा रही थी। उसे शांत कराने में बहुत समय निकल गया था। सुबह होने वाली थी।अब तक भैरवी सो गई थी। सुनीता को उसका चेहरा देखकर उसपर दया आ रही थी। उसे लग रहा था की भैरवी को घोष अंकल को खोने से सदमा पहुंचा है। अब तक सुनीता को भी नींद आ रही थी। उसने सोचा की वो भी थोड़ी देर आराम कर ले।
जैसे ही वह भैरवी को छोड़कर उठने लगी भैरवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो भैरवी को अपनी बेटी की तरह मानती थी। उसने सोने का विचार त्याग कर भैरवी के साथ रहने का फैसला किया। बैठे बैठे सुनीता भी सो गई। सुबह सात बजे उसकी आंख खुली तो उसने देखा की भैरवी अभी भी सो रही है। उसने सोचा की थोड़ी चाय पी ली जाए। वह जैसे ही चाय बनाने के लिए उठी भैरवी ने फिर उसका हाथ पकड़ लिया। लेकिन सुनीता इस बार हाथ छुड़ाते हुए किचन में जाकर चाय बनाई लगी। चाय बनाकर लौटने पर सुनीता ने देखा की भैरवी जग चुकी है लेकिन एकदम सहमी सी बैठी हुई है।
उसके पास जाते हुए सुनीता ने कहा "अरे! भैरवी उठ गई। थोड़ा और सो जाओ। बहुत थक गई होगी और आज तो संडे भी है ऑफिस में छुट्टी भी होगी। भैरवी अब तक थोड़ा ठीक महसूस कर रही थी। उसने कहा "नहीं आंटी मुझे जल्दी उठने की आदत है। आज पता नहीं कैसे सात बजे तक सो गई हमेशा पांच बजे तक उठ जाती हूं।" सुनीता उसके बगल में बैठे हुए पूछी "चाय लोगी?" भैरवी ने कहा "हां थोड़ी सी दे दीजिए।"
एक गिलास में थोड़ी सी चाय देते हुए उससे पूछा "कल रात में क्या हुआ था? तुम बहुत घबराई हुई थी।"
भैरवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा "कल आपके जाने के बाद मुझे एक सपना आया की घोष अंकल मेरे बिस्तर के नीचे एक उल्टा पैर रख रहे हैं। इस सपने को देखकर दर के मारे मेरी नींद टूट गई। पानी पीकर लौटते हुए मुझे बिल्कुल अपने सपने की तरह ही एक उल्टा पैर मेरे बिस्तर के नीचे मिला। उसके बाद मैं सीधे आपके घर आ गई।"
सुनीता उसे वही छोड़कर नाश्ता बनाने चली गई। सुनीता के पीछे पीछे भैरवी भी किचन में चली आई। उसे देखकर सुनीता ने कहा "अरे! बेटा अभी तुम्हे आराम की जरूरत है कुछ चाहिए होता तो मुझे बता देती मैं लेती आती।"
भैरवी ने कहा "नहीं आंटी मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं तो बस आपकी मदद करने आई थी।" सुनीता ने सोचा की काम करने से शायद भैरवी का मन बहल जाएगा इसलिए उसने हां कर दी। भैरवी घर का काम करने में बहुत माहिर थी उसने तुरंत ही सारा काम कर लिया।
भैरवी ने खाना बहुत ही अच्छा बनाया था। सुनीता के पति प्रदीप ने नाश्ता बहुत तारीफ के साथ किया। नाश्ता करने के बाद सब लोग भैरवी के घर गए लेकिन अब वहां पर कोई भी पैर नहीं दिख रहा था। सबको लगा की थकान और घोष अंकल को खोने के कारण भैरवी को भ्रम हुआ होगा। लेकिन भैरवी का मन इस बात को मानने पर तैयार नहीं हो रहा था। सुनीता और उसके पति के जाने के बाद भैरवी सोफे पर बैठकर कुछ सोचने लगी। कुछ समय बाद वो फिर बिस्तर के पास जाकर आसपास देखने लगी।
तभी उसे बिस्तर के बगल एक किताब दिखाई दी। उसे यह बात बहुत अजीब लगी क्योंकि पहले तो वहां कुछ भी नही था फिर ये किताब कहां से आ गई।
वो किताब को उठा कर दूसरे कमरे में चली गई। सोफे पर बैठकर भैरवी किताब की जांच करने लगी। किताब बहुत पुरानी लग रही थी लेकिन फिर भी वो बहुत साफ सुथरी थी। कहीं से भी फटी नहीं थी। भैरवी किताब का हर एक पन्ना पलट कर देखने लगी की कहीं कुछ लिखा तो नहीं है। कहीं कुछ भी नही लिखा था सिवाय पहले पन्ने पर लिखा था – "ये डायरी अभिजीत की है।"
"अच्छा तो ये एक डायरी है। लेकिन इसमें कुछ लिखा क्यों नहीं है। और ये अभिजीत कौन है?" तभी उसके हाथ से किताब छूट गई और नीचे गिर गई। भैरवी किताब उठने झुकी तो इसकी नजर किताब के पीछे लिखे शब्दों पर गई। उसमें लाल स्याही से लिखा था –"शापित किताब"
ता भैरवी को इस हालत में देखकर बहुत घबरा गई थी। उसने भैरवी को अंदर बिठाया और उसे शांत कराने लगी। लेकिन भैरवी चुप ही नहीं हो रही थी। वो बार बार घोष अंकल और उल्टा पैर बोले जा रही थी। उसे शांत कराने में बहुत समय निकल गया था। सुबह होने वाली थी।अब तक भैरवी सो गई थी। सुनीता को उसका चेहरा देखकर उसपर दया आ रही थी। उसे लग रहा था की भैरवी को घोष अंकल को खोने से सदमा पहुंचा है। अब तक सुनीता को भी नींद आ रही थी। उसने सोचा की वो भी थोड़ी देर आराम कर ले।
जैसे ही वह भैरवी को छोड़कर उठने लगी भैरवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो भैरवी को अपनी बेटी की तरह मानती थी। उसने सोने का विचार त्याग कर भैरवी के साथ रहने का फैसला किया। बैठे बैठे सुनीता भी सो गई। सुबह सात बजे उसकी आंख खुली तो उसने देखा की भैरवी अभी भी सो रही है। उसने सोचा की थोड़ी चाय पी ली जाए। वह जैसे ही चाय बनाने के लिए उठी भैरवी ने फिर उसका हाथ पकड़ लिया। लेकिन सुनीता इस बार हाथ छुड़ाते हुए किचन में जाकर चाय बनाई लगी। चाय बनाकर लौटने पर सुनीता ने देखा की भैरवी जग चुकी है लेकिन एकदम सहमी सी बैठी हुई है।
उसके पास जाते हुए सुनीता ने कहा "अरे! भैरवी उठ गई। थोड़ा और सो जाओ। बहुत थक गई होगी और आज तो संडे भी है ऑफिस में छुट्टी भी होगी। भैरवी अब तक थोड़ा ठीक महसूस कर रही थी। उसने कहा "नहीं आंटी मुझे जल्दी उठने की आदत है। आज पता नहीं कैसे सात बजे तक सो गई हमेशा पांच बजे तक उठ जाती हूं।" सुनीता उसके बगल में बैठे हुए पूछी "चाय लोगी?" भैरवी ने कहा "हां थोड़ी सी दे दीजिए।"
एक गिलास में थोड़ी सी चाय देते हुए उससे पूछा "कल रात में क्या हुआ था? तुम बहुत घबराई हुई थी।"
भैरवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा "कल आपके जाने के बाद मुझे एक सपना आया की घोष अंकल मेरे बिस्तर के नीचे एक उल्टा पैर रख रहे हैं। इस सपने को देखकर दर के मारे मेरी नींद टूट गई। पानी पीकर लौटते हुए मुझे बिल्कुल अपने सपने की तरह ही एक उल्टा पैर मेरे बिस्तर के नीचे मिला। उसके बाद मैं सीधे आपके घर आ गई।"
सुनीता उसे वही छोड़कर नाश्ता बनाने चली गई। सुनीता के पीछे पीछे भैरवी भी किचन में चली आई। उसे देखकर सुनीता ने कहा "अरे! बेटा अभी तुम्हे आराम की जरूरत है कुछ चाहिए होता तो मुझे बता देती मैं लेती आती।"
भैरवी ने कहा "नहीं आंटी मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं तो बस आपकी मदद करने आई थी।" सुनीता ने सोचा की काम करने से शायद भैरवी का मन बहल जाएगा इसलिए उसने हां कर दी। भैरवी घर का काम करने में बहुत माहिर थी उसने तुरंत ही सारा काम कर लिया।
भैरवी ने खाना बहुत ही अच्छा बनाया था। सुनीता के पति प्रदीप ने नाश्ता बहुत तारीफ के साथ किया। नाश्ता करने के बाद सब लोग भैरवी के घर गए लेकिन अब वहां पर कोई भी पैर नहीं दिख रहा था। सबको लगा की थकान और घोष अंकल को खोने के कारण भैरवी को भ्रम हुआ होगा। लेकिन भैरवी का मन इस बात को मानने पर तैयार नहीं हो रहा था। सुनीता और उसके पति के जाने के बाद भैरवी सोफे पर बैठकर कुछ सोचने लगी। कुछ समय बाद वो फिर बिस्तर के पास जाकर आसपास देखने लगी।
तभी उसे बिस्तर के बगल एक किताब दिखाई दी। उसे यह बात बहुत अजीब लगी क्योंकि पहले तो वहां कुछ भी नही था फिर ये किताब कहां से आ गई।
वो किताब को उठा कर दूसरे कमरे में चली गई। सोफे पर बैठकर भैरवी किताब की जांच करने लगी। किताब बहुत पुरानी लग रही थी लेकिन फिर भी वो बहुत साफ सुथरी थी। कहीं से भी फटी नहीं थी। भैरवी किताब का हर एक पन्ना पलट कर देखने लगी की कहीं कुछ लिखा तो नहीं है। कहीं कुछ भी नही लिखा था सिवाय पहले पन्ने पर लिखा था – "ये डायरी अभिजीत की है।"
"अच्छा तो ये एक डायरी है। लेकिन इसमें कुछ लिखा क्यों नहीं है। और ये अभिजीत कौन है?" तभी उसके हाथ से किताब छूट गई और नीचे गिर गई। भैरवी किताब उठने झुकी तो इसकी नजर किताब के पीछे लिखे शब्दों पर गई। उसमें लाल स्याही से लिखा था –"शापित किताब"