आज मतगणना है.......
आजकल एक हंगामा सा बरपा है । पिछले कुछ दिनों से जिसे देखिए एक ही बात करता है और बात है .... चुनाव की । चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता में प्रशासकीय कसावट जनता में चर्चा का विषय बनी रही । कुछ लोग कहने लगे कि काश.......! आचार संहिता हमेशा के लिए लागू हो जाती ,लेकिन जनता की सुनता ही कौन है ? कुछ लोग तो यह भी कहते पाए गए कि अभी आचार संहिता और बाद में भ्रष्टाचार संहिता के अनुसार सब काम होते है । इसी समय नेताओं और पार्टियों के टिकट वितरण पर भी सभी चटकारे ले कर चर्चा करते रहे । चुनाव के दौरान जीत-हार के दावे मनोरंजन का विषय बने रहे । अब जनता ने नेताओं और पार्टियों के सारे हथकंड़ों के बीच आखिरकार अपना फैसला दे ही दिया है ।
जनता के फैसले के बाद कयास लगाने वाले ज्योतिषियों की तो जैसे बहार ही आ गई है । गली-मोहल्ले,चाय-पान ठेले और घर - आफिस में भी जीत-हार का अनुमान लगाने वाले ज्योतिषी अपनी महारत दिखाते देखे जा सकते है । इसी काम को बड़े रुप में विभिन्न सैफोलाॅजिस्ट चैनलों के लिए करके उनकी टी.आर.पी बढाने का काम कर रहे है । इस समय चुनाव लड़ने वाले नेताओं के दिन बहुत ही मुश्किल से गुजर रहे है । वे रोज ही छोटे-छोटे ग्राम स्तर के कार्यकर्ताओं से अनुमान ले कर अपनी जीत के प्रति आश्वस्त होने का प्रयास करते है । ऐसे नेता रातों को सोते-सोते उठ जाते है और कई घंटों तक बैठ कर किसी जुआंड़ी की तरह हिसाब-किताब करके जीत का आंकड़ा निकालने की कोशिश करते रहते है । कुछ नेता अपने आपको बेफिक्र दिखाने का प्रयास भी करते दिखते है । कुछ तो ऐसे भी है जिन्हें पहले से ही मालूम है कि वे मुकाबले में है ही नहीं इसलिए उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन फिर भी कभी-कभी ही सही, पूरे मन से न सही ;वे अपनी जीत का दावा करने से नहीं चूकते । कार्यकर्ता को जो मिलना था मिल चुका ;अब वे उस मिले हुए का ऋण चुकाने के लिए ही बार-बार अपने नेता की जीत की दुहाई देते है ।
अब आज परीक्षाफल ..............मतगणना का दिन है । रात को सो न पाने के कारण नेताजी की आंखें सूजी हुई है । वे सुबह जल्दी उठ गए (सोए ही कहाॅं थे ) । उनकी तैयारी रिजल्ट लेने के लिए जाने वाले बच्चे की ही तरह है । वे नहा-धोकर पूजा-पाठ के लिए बैठे है । आज की पूजा कुछ अधिक ही लम्बी है । उन्हें लगता है कि भगवान अभी भी कुछ कर सकता है जबकी उनकी किस्मत का फैसला तो जनता रुपी भगवान के द्वारा पहले ही किया जा चुका है । वे साफ धुले कपड़े पहन कर तैयार तो हो गए फिर सोच रहे है कि स्कूल (मतगणना स्थल ) जाए या नहीं ? कुछ ने सोचा प्रारम्भ से ही जाना चाहिए और कुछ ने सोचा कि एक-दो राउण्ड के बाद देखते है जाना भी चाहिए या नहीं ? चमचों की भीड़ के साथ कुछ तो पहुॅचे और कुछ ने अपने चमचों को ही मोबाईल से लैस करके भेज दिया । भारी सुरक्षा के बीच प्रशासन बड़ी ही मुस्तैदी के साथ गणना में जुटा है। काश........कभी आम आदमी के लिए भी प्रशासन इतना ही मुस्तैद होता । बाहर भारी भीड़ के रुप में चमचों और तमाशबीनों ने खोमचों , पान ठेलों और चाय ठेलों पर ड़ेरा जमा रखा है । वे चर्चाओं में लगे है । अब वे पार्टी की मर्यादाओं को तोड़कर भी बात कर रहे है । वे कभी बड्डे को जिताने लगते है , कभी पहलवान को और कभी बाई जी को । वे समय बिताने के लिए चुनाव प्रचार के दौरान किए गए मज़ों और लेन-देन की भी चर्चा करने लगते है । इस भीड़ में जब भी कोई नया व्यक्ति आता है तो पूछता है ‘‘ कौन जीत रहा है ? ’’ ,आजू- बाजू वाले उसे अपने पास उपलब्ध जानकारी किसी चैनल की ब्रेकिंग न्यूज की तरह देते है और वो भी भीड़ का हिस्सा बन जाता है । बहुत से लोग अपने-अपने घरों में ही टी.व्ही. के सामने भजिया खाते और चाय पीते हुए वन डे मैच जैसा आनन्द प्राप्त कर रहे है । एक-दो राउण्ड की गणना के पश्चात् कुछ नेता जो गणना स्थल पर आए थे जाने लगते है तो कुछ जो घरों मे बैठे थे आने की तैयारी करने लगते है । इस समय आगे चल रहे उम्मीदवार के अतिउत्साही चमचे मिठाई, फटाके और बैण्ड आदि की व्यवस्था करने में जुट जाते है । इस पूरे के बीच भी कुछ समझदार चमचे ये सारी व्यवस्थाएॅं वापसी के एग्रीमेन्ट के साथ ही करते है क्योकि यदि अंत में हार ही गए तो ........ पैसे क्यों बरबाद हों । शहर में एक बैण्ड वाले बड़े ही सयाने है,वे बिना बुलाए ही सुबह से ही गणना स्थल पर पहुच गए है और हर राउण्ड में आगे चल रहे उम्मीदवार के चमचों से पैसे ले कर ही बैण्ड बजाते है । उन्होने पहले बड्डे का बैण्ड बजाया ,फिर दादा का और अभी बाई जीे का बैण्ड बजा रहे है । उनके जैसी तठस्थता तो खोज का विषय ही है ।
कयासों की धुंध अब धीरे-धीरे छटने लगीे है । अगले पाॅंच वर्षों तक जनता को किसकी बात सुननी पड़ेगी ,इसका चुनाव जनता ने कर ही लिया है । अब राजा साहब शराब के नशे में नाचते अपने चट्टे-बट्टों के साथ जुलूस की शक्ल में जनता को दर्शन देने निकलेंगे । अब वे लोग भी हार पहनाऐंगे,हाथ मिलाऐगें और मिठाई बाटेंगें जिन्हे भविष्य में उनसे काम पड़ने की आशंका है ।
तो साहब चुनाव का नशा उतर गया हों तो अपने-अपने काम-धंधों में लग जाओ क्योंकि नेताजी तो राजधानी के लिए निकल गए ।
आलोक मिश्रा
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