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देह अगन की लपट

देह की अगन
लेखक शिव शम्भू बाबू ने अपनी चालीस साल पुरानी डायरी में से जो कथा मुझे पढ़ाई है वह मैं सीधा ही पाठकों को पढ़ाता हूँ।
होली पर सब रंग में सराबोर थे लेकिन मैंने देखा कि सुखराम काका जानबूझकर अपने आप को नशे में प्रदर्शित कर रहे थे औऱ कभी इन चाची के मुंह पर तो कभी उन चाची के मुंह पर रंग लगा देते थे । कोई कुछ बोलता तो सिर झटके से हिलाते हुए बोलते -होली है बुरा ना मानो...!
दो दिन पहले होली थी और दूज के दिन आई थी सांवली ।
हां मुझे उसे देख कर पुराना घटनाक्रम याद आया । उसका सावला रंग था- गोल मटोल चेहरा , बड़ी-बड़ी आंखें ,पतली सी कमर लेकिन भरा पूरा वक्ष और वैसी ही समृद्धि कमर के इर्द गिर्द। सचमुच ही उसका चेहरा आकर्षक था और बदन बदन का तो कहना ही क्या जैसे किसी ने सांवले संगमरमर पर एक प्रतिमाओं कर दी हो। जो जैसी बनी थी वैसी ही अब तक बनी हुई थी, उसके सौन्दर्य को तो पुरुष दृष्टि सचमुच ही बयां कर सकती थी। उम्र अभी उसकी केवल 14 साल थी लेकिन भरा पूरा शरीर ऐसा लगता है जैसे 20 वर्ष की पूर्ण परिपूर्ण युवती हो । नाम भी उसका उचित था सांवली ! अजीब सी मस्ती भरी चाल से जब वह गलियों से गुजरती लोगों की नजरें अनायास ही उधर उठ जाती , क्या युवक? क्या वृद्ध और क्या स्त्री या पुरुष ?सभी के हृदय में उसको देखते ही हाय सी निकलती। मोहल्ले के सारे युवक उसके दीवाने थे। पूर्व कोने में इसका मकान था और उनका सब घरों में खूब आना जाना था। आठ बीघा का एक खेत था। घर मे सिर्फ 3 यानी पिता सुखराम,भाई दीनानाथ सहित तीन लोग। उस का रहन सहन मोहल्ले के दूसरे परिवारों की हमउम्र लड़कियों से भी ज्यादा सुधरा हुआ था। मोहल्ले के अनेक नवयुवक उसके घर के चक्कर काटते रहते हैं , वाद-विवाद बहाने पर बहाने उनमें से अनेक उससे बात करने में सफल हो जाते थे । वैसे वह काफी खेली खाई थी , किसी की क्या मजाल के कोई जरा भी ऐसी वैसी बात कर ले । उसमें एक अजोब सी अल्हड़ता भी थी जो मुहल्ले के सारे युवक चाहते थे।
मुहल्ले में एक व्यक्ति था वचन !इसकी पूरे मोहल्ले में तूती बोलती थी । सभी जानते थे वह नेताओं से भी परिचित था ,लिखा पढ़ी भी कर लेता था और आमने-सामने झगड़े मभी। एक दिन आधी रात को बचन बाजार से घर लौट रहा था कि साँवली के घर के पास एकाएक एक कोने में अंधेरे में कुछ हरकत हुई । जल्दी में बच्चन को शायद कुछ शक हुआ और वह गुजरने के बजाय तत्काल ही वहीं रुक गया। यह वह अंधेरा कोना था जो सुखराम के घर से जुड़ा हुआ था ।
कौन है ?बचन गरजा त
त्काल ही बात स्पष्ट हो गई सांवली अपने किसी प्रेमी के साथ अंधेरे में खड़ी थी आवाज को सुनते ही दोनों काम करें और प्रकाश में निकल आए ।
उस दिन के बाद तो जब भी वचन के सामने सांवली पड़ती, भीगी बिल्ली बन जाती बेचारी । लोग कहते हैं कि इसका बचन ने अनुचित लाभ उठाया और कुछ ही दिनों में मोहल्ले में सांवली और बचन की जोड़ी प्रसिद्ध हो गई थी ।
बचन के बाद तो सांवली के प्रेमियों की संख्या बढ़ती ही गई और दूसरे मोहल्लों में भी से भी उसके प्रेमी हो गए। दिन में एक बार तैयार होकर वह निकलती तो आसपास के चार पाँच मोहल्लों में यूं ही टहलते मस्ताती एक चककर लगा आती थी, कभी नमक लेने के बहाने ,कभी पांच पैसे की मिर्ची और कभी गटागट। हां , 14 वर्ष की उम्र में भी यह सब बच्चों की तरह ही खाती थी ।
मजबूर होकर उसके पिता ने शहर से दूर जंगल में बसे एक गांव आलमपुर में उसकी सगाई कर दी थी। सांवली के प्रेमियों पर जैसे बिजली सी गिर गई । एक वर्ष होते हुए होते सांवली ससुराल चली गई । यह वह जमाना नहीं था कि लड़कियां विद्रोह करें और सुखराम का घर आर्थिक रूप से कमजोर भी था और चारों ओर से दबा हुआ भी ,फिर मोहल्ले के उच्च वर्ग के बुजुर्गों लोगों का दबाव था सावली की जल्दी से शादी करो।
साँवली का एक भाई था दीनानाथ! दुबले पतले शरीर, पिचके गाल , सूखे से चेहरे का मालिक। साँवली के पिता सुखराम ने शहर में ही एक लड़की ढूंढी और दीनानाथ की शादी कर दी। कुछ दिन बाद दीनानाथ की नई नवेली दुल्हन आई- मुन्नी! सांवली जैसी देहयष्टि व नाक नक्श की मालकिन ।ऐसा लगा जैसे सांवली गई और उसके विकल्प में उससे भी ज्यादा खूबसूरत और चुलबुली मुन्नी इस घर में आ गई। सौभाग्य की बात की दीनानाथ की नौकरी भी लग गई थी कि मुहल्ले व विरादरी के सब लोगों ने कहा भाई सुखराम तुम्हारे तो घर में लक्ष्मी आ गई, देखो इसके आते ही नौकरी लग गई। सांवली तो फिर भी पुराने विचारों और पुराने रहन-सहन की थी, लेकिन मुन्नी तो इसी बाजार की रहने वाली थी और काफी मॉडर्न । करेला और नीम चढ़ा वाली बात हो गई ।दांपत्य जीवन तभी सफल होता है जब पुरुष का पलड़ा हर तरह से भारी हो, लेकिन यहां स्थिति विपरीत थी, स्त्री के मुकाबले दीनानाथ कमजोर साबित होता था ।वह शुद्ध देहाती बोली बोलता था और पहनने उड़ने में भी वह निपट देहाती था वह। एक मुश्त कुर्ता पजामा या पैंट शर्ट मोहल्ले मोहल्ले के अयोध्या दरजी से सिलवाता तो बरसों बरस भी चलते रहते थे। जबकि मुन्नी तो नए-नए डिजाइन के ब्लाउज पेटीकोट और साड़ियों की आदी थी , इनके असंतुलन का प्रणाम वही हुआ मुन्नी भी जल्दी उसी राह पर चलने के लिए इस पर साँवली चली थी । उसके भी अनेक प्रेमी हो गए । वचन भी कहां मौका छोड़ने वाला था उसने भी मुन्नी पर अपना रुतबा काट लिया और बस वही अपना पुराना राग छोड़ दिया । उसका एक भाई था चमन ।वचन बेरोजगार था जबकि चमन एक छोटी सी नौकरी करता था, असल गुजारा चमन की तनख्वाह से होता था, लेकिन उन दोनों की किस्मत में विधाता ने जैसे स्त्रियों की रेखाएं ही नहीं बनाई थी। दोनों ही हष्ट पुष्ट और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले थे । चमचमाते हुए स्त्री किए इत्र की बूंदों से महकती कपड़े पहने जब गुजरते तो ऐसा लगता कोई बड़ा अफसर या सेठ जा रहा हो। दोनों की उम्र क्रमश 35 और 40 साल के करीब हो गई थी लेकिन दोनों ही स्त्री सुख से वंचित। धीरे धीरे बचन की तरह चमन भी मुन्नी से परिचित हुआ । ऑफिस आते जाते गाहे-बगाहे उसका आना मुन्नी के घर में होने लगा। दोनों भाई कभी सुबह कभी श्याम अदल बदल कर मुन्नी के घर आने लगे। इतना सब हो जाने पर भी दीनानाथ और सुखराम को तो कुछ हवा ही नहीं लग पाई ,सुबह होते ही सुखराम खेत पर समझ आता चला जाता और दीनानाथ ड्यूटी पर। बस फिर क्या था दिन भर मुन्नी थी और उसकी मर्जी ।
कुछ ही दिनों में मुन्नी के ठाठ बाट बदल गए ,प्रतिदिन खाना खाने के बाद मसालेदार पान खाती ,बालों में खुशबूदार महकौआ तेल और खुशबूदार साबुन से नहाती। एक से एक लकदक कपड़ों में सजी-धजी रहती । एक दो बार दीनानाथ ने पूछा कि श्रृंगार का सामान कहां से आता है ?जबकि घर की आमदनी सीमित है ! वह आमदनी पिता पुत्र के हाथों में रहती है । मुन्नी ने ऊपर से धौंस जमाई- इस घर में तो मुझे कुछ मिलता ही नहीं है अपने बाप के घर से पानी मंगा सकती क्या?
बेचारा दीनानाथ चुप हो गया ।इस मोहल्ले में दो युवक और रहते थे चिंतामणि और गणेश जी ।दोनों ही साँवली के बड़े आशिक़ थे मुन्नी के आ जाने से उसके पास भी भी बहाने वेबहाने आने लगे ।अभी कुछ दिनों से जब से वचन और चमन दोनों मोटे आसामी मुन्नी के चक्कर में आए ,तब से चिंतामन गणेश जैसे टुटपुँजियों नियों की कहां गिनती थी? मुन्नी उनसे सीधे बात ना करती ,उल्टे फटकार देती ।एक दो बार दबे स्वरों में उसने दीनानाथ और सुखराम से चिंतामन गणेश की बुराई की थी। दीनानाथ ने चिंतामन गणेश से बात की तो उन्होंने दीनानाथ को संतुष्ट कर दिया। लेकिन उनके हृदय बदले की आग से भड़क उठे थे वैसी फिराक में रहने लगे थे कि जब मौका मिलेगा बचन और चमन के साथ मुन्नी का भंडाफोड़ किया जाएगा। संयोग से जल्दी अवसर मिल गया ।एक दिन मुन्नी कि शायद तबीयत खराब थी चमन ने डॉक्टर से पूछ कर एक शीशी खरीदी और कुछ गोलियां दवाई लेकर पर भर दोपहरी में मुन्नी के घर पहुंचा। उसने दवा की शीशी रख दी और बरामदे में खड़े-खड़े उसके हाल पूछने लगा । मुन्नी बुखार में थी , वह बरामदे में निकल के आ गई थी ,उसका पल्लू कहीं लटक रहा था आंचल कहीं और सामने ही ब्लाउज के भी कई बटन खुले हुए थे।
चिंतामन गणेश तो इसी ताक में थे। उन्होंने मोहल्ले के एक दो जनों को चुपचाप साथि लिया और सुख राम के घी पर आ धमके।
कितने लोगों को देखते ही चमन की हालत खराब हो गई । घबराते हुए बोला-"क्यों क्यों ?क्या बात है काका ?यह क्या है ?"
मोहल्ले के लोगों को भी अर्धनग्न खड़ी मुन्नी के सांमने लार टपकाते खड़े चमन को देख बड़ा अचरज हुआ। वे सब
बोले -तुम चमन यहां क्या कर रहे हो सुखराम और दीनानाथ घर पर होते तो ठीक था पर उनके बिना घर पर तो तुम यहां क्यों हो ?यहां तो अकेली घर में अकेली बहु है ?तूने क्या मतलब ?
"बात यह है दीनानाथ की बहू की तबीयत खराब है ,उसने मुझे रुपए दे दिए थे कि दवा ले आना !बस वही दवा लेकर देने चला आया" इतना कहने के साथ ही चमन वहां से खिसक लिया था ।
चिंतामन और गणेश मुंह पर अचरज के भाव लिए मन ही मन खुश थे। जबकि मुन्नी की निगाहें उन पर ऐसे पढ़ रही थी कि वे उसे नजर की चिंगारी से जला डालेगी जैसे चोट खाई नागिन हो ।
मोहल्ले में चमन बचन और मुन्नी की बदनामी फैल गई ।
चिंतामन गणेश आने भी कसर नहीं रखी। उन्होंने वचन और चमन के मुन्नी से संबंधों को खूब बड़ा बड़ा कर प्रचार किया। बात सुखराम के कानों में पहुंची तो फिर क्या था ,वह एकदम आगबबूला हो उठे।
दीनानाथ ने भी सुन लिया था तो उसने भी आव देखा ना ताव मुन्नी की पिटाई शुरू कर दी और मार मार कर अधमरी कर दी।
हालांकि पिटते पिटते मुन्नी चिल्ला रही थी -मुझ पर क्यों आरोप लगाते हो ?तुमने कुछ देखा ग
क्या?
जबकि अपने बाप से नहीं कहते वह कभी इस चाची को कभी उस चाची को कभी उस मामी को बिना बात के यहां क्यों ले आता है और दो-तीन दिन में क्यों पड़ी रहती हैं और मुझसे क्यों कहता है कि जा मायके हो आ ।अपने बाप के कर्म नहीं देखते हो मुझे पीट रहे हो ।
"कुत्तिया रंडी की औलाद हमारा घर बिगाड़ने को आई है "गाली तो दीनानाथ के मुंह से बेशुमार निकल रही थी ।
2 दिन बाद ही लोगों ने देखा कि सुखराम के बोरिया बिस्तर बंद गए।
लोगों ने पूछा तो पता चला कर दे कि तंग आकर अब वे लोग खेत पर ही रहेंगे। सुखराम ने वही झोपड़ी बना ली है वहीं तीनों का रहने का इरादा है। इस मकान में ताला लग गया पिता-पुत्र पतोहू तीनों खेत पर पहुंचकर चयन से दिन काटने लगे ।
मोहल्ले वाले समझ रहे थे बेचैनी तो वहां ही बढ़ गई थी सबके मन में दीनानाथ के मन में भी, मुन्नी के भी और सच कहें तो सुखराम के भी।
किसी ने कहा है कि वासना की आग अच्छा-अच्छा को जलाकर खाक कर देती है ,इससे तो बड़े-बड़े ताकि तपस्वी भी नहीं बच सके।
सुखराम उसी आग में जल रहा है। हां सुखराम जो मुन्नी का ससुर और दीनानाथ का पिता था, उसकी पत्नी 40 साल की उम्र में चली गई थी, तब से वह इस थी सुख से वंचित था, किसी भी जवान कटीली स्त्री को देखकर लालच में आने लगता था ।
पुराने मकान में वह शौकीन मिजाज की अपनी सलहज, कभी दूर के रिश्ते की शौकीन मिजाज भौजाई को लिवा लाता था, और बहु से कहता था जा मायके घूमा शहर में ही मायका होने से बहु जाती थी और चार पांच घंटे बाद लौटती थी तो देखती थी कि अभी भी घर के किवाड़ बंद हैं और बंद के बाढ़ के भीतर उसके ससुर और मेहमान कि कोई आवाज नहीं आ रही है।
वह कुछ देर बाहर बेठी रहती । जब दरवाजा खुलते द्वार पर बहू को बैठा देखकर सुखराम के चेहरे पर कोई भाव नहीं आते थे ।
सुखराम की उम्र 50 के आसपास थी।
पर जबरदस्त मेहनत करने के कारण उसका शरीर अभी भी काफी हृष्ट पुष्ट था, कामना के तीर उसके हृदय को भेजते रहते थे , इधर मुन्नी अपने इतने सारे प्रेमियों को छोड़कर अकेली रह रही थी। अच्छे वातावरण में रहने के कारण और मन मनचाहा खाने पीने से दिन प्रति दिन उसमें बहार आती जा रही थी ,वह अच्छे कपड़े पहनती, अच्छे फैशन से रहती लेकिन बस्ती से दूर खेतों में अकेली रहने के कारण और उसका चित्र दौड़ने लगा था। किससे बात करें, फिर वह वाद विवाद अपने ससुर से ही कुछ कहती कभी कहती कि -देखो देखो दादा वो उधर गाय रम्भया आ रही है!
तो ससुर कहता -अरे गरम हो रही है, अपने लिए साँड़ ढूंढ रही है ।
कभी पंछियों को कलरव करते हुए देखते तो वह कहता- देखो यह पंछी भी घर बसाने की इच्छा कर रही है ।
कभी-कभी तो वह दोनों साथ बैठे बैठे देखते रहते कि कुत्ते वहीं आकर आपस मे चिपटा चिपटी करने लगते ।
एक दिन दीनानाथ की रात ड्यूटी थी बरसात का मौसम था बादल रह-रहकर करते थे, गरज उठते थे ,बिजली भी चमक रही थी। खेत पर जो अपनी झोंपड़ी में एक ओर सुखराम कुड़मुड़ होकर सो रहा था और दूसरी तरहफ मुन्नी ।
रात ज्यादा भी चुकी थी दोनों को ही काम वेदना सता रही थी, आग और फूंस कब तक सुरक्षित रहे थे ? अचानक तेज बादल गरजा और ऐसा लगाकर बिजली कहीं पास में ही गिरी है कि मुन्नी चीख उठी और सुखराम उठकर पूछ बैठा- से क्या हो गया? क्या हो गया है ?
वह रोये जा रही थी कि सुखराम उसके सिर पर हाथ फेरने लगा और उसका हाथ सिर और चेहरे से होते हुए नीचे उतरता चला गया।
हालांकि मुन्नी की इस प्रकार की कभी भी इच्छा ना थी, लेकिन सुखराम के लहराते हाथों ने उसे भी विश कर दिया था और फिर उसे भी मजा आने लगा । कुछ दिनों से बेचैनी थी मन का डोलना था और शरीर की आग थी, उसने भी उसे रोका नहीं, वे दोनों जल्दी ही एक हो गए। सुखराम चैन से था कि ना अब किसी मेहमान सदस्य को लाना पड़ेगा और ना किसी भौजाई को ?
दूसरे दिन मुन्नी का व्यवहार बदल गया था वह रात के संबंधों से खुश थी या नही ! पता नहीं उसने क्या सोचा था !वह कैसा भविष्य देखा था मुन्नी ने ?
रात को दीनानाथ को उसने रात की बात बता दी , सन्नाटे में बैठा रहा गया दीनानाथ क्या करता ?नखून का घूंट पीकर चुप रह गया !
लकड़ी की आग बुझ जाती है लेकिन दिल की आग सुलगती रहती है।
एक बार छोटी सी बात पर दिनानाथ का सुखराम से झगड़ा हो गया ,वह दिन आनंद भावेश में कुछ बन गया ।
सब कुछ हो गया ।
बात बिरादरी के लोगों ने सुनी,मुन्नी
से भी पूछा अब छुपाने से क्या फायदा था मुन्नी ने सभी नाम सारे भेद खोल दिए थे और यही बात उसके खुद के लिए भी घातक हुई थी ।
समाज के लोगों ने उन्हें बिरादिरी से बाहर कर दिया था ।किसी शादी विवाह या जलसे में उन्हें बुलाना बंद कर दिया गया था उन्हें। बिना जेल के, बिना न्याय के निर्णय के कैद सी हुई थी । हां जाति बिरादरी नाते रिश्तेदारों में कहीं भी नहीं जा सकते थे वे ।
अंत में उन्होंने अपनी गलती मानी और समाज से समझौता कर लिया था, पंचायत बिठाई थी पंचायत में यह तय हुआ था कि समाज जो दंड देवे उठाने तैयार हैं ।आगे से ऐसी गलती नहीं होगी।
ब्राह्मणों के मोहल्ले का मकान बेच दिया गया था ,उसी पैसे से तीनों ने तीर्थ यात्रा की और लौटकर समाज को गंगभोज का भंडारा दिया था ।
उस दिन के बाद उन्हें फिर जाति में शामिल कर लिया गया था ।
आज भी परिवार खेत वाले मकान में रहता है । अलबत्ता सुखराम मदीना की आपस में लड़ाई कभी नहीं होती । कई बार ऐसा मौका देखा गया है कि बिना अपने पिता से दबा सा रहता है। मुनी के एक लड़का हो चुका है, उसका रंग एकदम काला है क्योंकि मुन्नी और दीनानाथ का रंग काफी साफ है, सुखराम अवश्य काफी काले रंग का है ।
उस बच्चे की शक्ल सूरत अवश्य दीनानाथ से मिलती है ।
कोई कहता है यह दीनानाथ का बेटा है, तो कोई कहता है भाई है।
किसको पता आज भी वही पुराना गोरखधंधा चल रहा हो , हां आजकल मुन्नी का मन धर्म कथाओं में लगता है और वह सामाजिक कामों में भाग लेने लगी है ।
पति सेवा और एक पतिव्रत पर काफी व्याख्यान देती है ।
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