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अपना आदमी



कहानी

अपना आदमी

नीलिमा आज बहुत थक गई थी। रविवार का दिन,ऊपर से कामवाली की छुट्टी और टीवी पर क्रिकेट मैच यानि एक तो करेला वो भी नीम चढ़ा। बच्चे ,पति सब मस्ती से टीवी के आगे चिपके हुए थे। आज सुबह लंच के समय नीलिमा ने कहा- "देखो आज शीला नहीं आई है वैसे भी संडे है, हम डिनर कहीं बाहर कर लेंगे"। तुरंत बङ़े बेटे ने कहा- "नहीं मम्मी, आज बाहर नहीं चलेंगे, आप हल्का फुल्का कुछ भी बना देना,आज इंडिया-पाकिस्तान का मैच है ।हम घर पर ही लुत्फ उठाएंगे उसका"। नीलिमा कुछ कहती उससे पहले ही पति और छोटे बेटे ने हां में हां मिला दी।न चाहते हुए भी नीलिमा चुप हो गई। उसके मन में आया काश! एक बेटी होती उसके काम में हाथ बंटाने वाली,उसका साथ देने वाली, उसका दर्द समझने वाली.... उसके सपनों की साझीदार....पर बेटियां चाहने से तो नहीं मिलती। बेटियां तो वरदान है ईश्वर का,मिले तो मिले,न मिले तो आंगन की किस्मत....।

खैर जब एकमत से यह डिसाइड हो ही गया कि डिनर घर पर ही लेंगे तो नीलिमा चुप हो गई। उसे शीला पर गुस्सा आया....इस महीने पहले ही चार छुट्टियां कर चुकी है महारानी....आज फिर छुट्टी कर गई । चाहे जितनी छुट्टियां करें पर महिने के पूरे पैसे चाहिए इन्हें....। ज्यों ज्यों पूरानी हो जाती है सर चढ़ जाती हैं देवियां...पर करता करे ?इनके बिना गुज़ारा भी तो नहीं होता....।जिस दिन छुट्टी करती है अच्छी तरह बैंड बज जाता है उसका....।

किचन सफाई कर नीलिमा ने चाय का पानी चढ़ा दिया। बच्चों के लिए मिल्कशेक और पति के साथ अपनी चाय लेकर हॉल में आई तो देखा,मैच अपनी चरम बुलंदियों पर था।एक -एक बॉल पर सांस अटकी हुई थी सबकी। कौन जितेगा , कौन हारेगा कहना मुश्किल था ‌। भारत को पाकिस्तान से जीतने के लिए पच्चीस बॉल पर पैंतिस रन की जरूरत थी,सात विकेट आउट हो चुके थे।

मिल्कशेक देखते ही बच्चे उछलने लगे।अरे वाह, क्या बात है मम्मी....आप पता नहीं कैसे हमारे दिल की बात जान लेती हो ,कहकर अपने ग्लास उठा लिए। हम आपको फरमाइश करने ही वाले थे पर नहीं कर पाये सोचा शीला ताई भी नहीं है आप अकेले सुबह से लगी हुई हो, आप तक गई होगी।अब बैठ जाओ,देखो ... कितना मजेदार मैच चल रहा है। तभी किसी खिलाड़ी ने चौंका लगाया और दोनों बच्चों ने जोर से सीटी बजाई...अब जरूर जीतेगा इंडिया ...कहते हुए तालियां ठोकी...।

हां भाई हां....ये मैच जीत जाए तो पूरी सीरीज हम अपने नाम कर लेंगे कहते हुए विनय ने चाय का कप उठा लिया। नीलिमा चाय की चुस्कियां लेते हुए सोच रही थी भारत- पाकिस्तान एक ही मां की दो संतानें...पर जानी दुश्मन...।खेल में हार जीत तो लगी ही रहती है।एक का जीतना , दूसरे का हारना तय है फिर भी ऐसा लगता है जैसे जान हथेली पर हो....पता नहीं ये घृणा के बीज कब किसने बोये पर फसलें हम आज तक बिना सोचे समझे काटते चले जा रहे हैं।

नीलिमा कि ध्यान टीवी स्क्रीन पर गया तो देखा चार बॉल पर सात रन बनाने शेष थे । सभी सांसें रोककर नजर गङ़ाये बैठे थे।

नीलिमा ने अपनी चाय खत्म कर बर्तन किचन में रख आई। वापस लौटी तो छोटे बेटे ने भारत के जीतने की बधाई दी‌। बच्चे जीत की खुशी हो हल्ला करके सेलीब्रेट कर रहे थे।पति दोस्तों के साथ मोबाइल पर गप्पें लगाने में व्यस्त हो गये थे।अनमनी सी नीलिमा को नींद आने लगी थी। पति की बात खत्म हुई तो नीलिमा बोली- देखो, मुझे भूख नहीं है मैं सोने जा रही हूं।आप लोग खाना खाकर डाइनिंग समेट लेना ,प्लीज...।

आपका हुक्म सर आंखो पर जानेमन ,तुम बेशक सोने जाओ पर खाना तो खा लेती,कहो मैं तुम्हारे लिए प्लेट लगा दूं।बेहद प्यार भरे अंदाज में विनय ने मनुहार करते हुए कहा।

नहीं विनय, सच में सर भारी है, मुझे बिल्कुल भूख नहीं है।

ठीक है डियर , तुम आराम करो...मैं बच्चों को देख लूंगा।

बेडरूम में पहूंच कर नीलिमा ने एसी ऑन कर नाइट गाऊन पहन लिया । बलों का जुङ़ा खोला तो लगा बाल पसीने से तर स्तर थे। वो चुपचाप लेट गई। आंखों को बंद किया तो शीला का चेहरा सामने आ गया। शीला उसके यहां पिछले सात वर्षों से काम कर रही है। निहायत नेक, इमानदार,कर्मठ, लम्बी-चौड़ी काया,काला रंग , धंसी हुई आंखें, चमकदार दंतपंक्ति। बेहद अपनत्व व प्यार से लबरेज उसका व्यक्तित्व मित्र से पूरी तरह दुखी था।

पति पिछले कई वर्षों से काम पर नहीं गया।दो बेटियों की शादी उसने अपने बलबूते पर की किन्तु चार साल बाद बङी बेटी एक नातिन को साथ लिए वापस घर आ गई। बङी मेहनत मशक्कत की उसने, कभी जवानी राजा के पांव पकङ़े, कभी रिश्तेदारों से दबाव डलवाया, कभी पुलिस कीई धमकी दी किन्तु नतीजा ढाक के तीन पात।जवांई कहता- मैं लेने नहीं आऊंगा, तुम्हारी बेटी को आना हो तो आ जाते, बेटी कहती- जब तक वो आकर नाक रगङ़कर नहीं ले जाता , नहीं जाऊंगी।

उसका कहना था -पति क्या है पूरा रावण है रावण...रिक्शा चलाता है, अच्छा कमाता भी है पर पूरी कुछ पूरी कमाई दारू की भेंट चढ़ जाती है। दारू की ऐसी लत है कि जो न करवाएं कम.... कभी आधी रात को नालियों से उठकर लाना पङ़ता है ,तो कभी रंडियों के यहां से, कुछ कहो तो घर में तोड़फोड़.... मारपीट.... इससे तो अच्छा है मैं मेहनत मजदूरी करके अपना और अपनी बेटी का पेट पाल लूंगी।

जब से बेटी घर आई है शीला को लगता है मानो कोढ़ में खाज हो गई है। उसके पास तो पहले से ही दुनिया भर की मुसीबतें है। पियक्कड़ पति को रोज पचास रुपए देने पङ़ते है जिस दिन देश देती है घर में शांति बनी रहती है और जिस दिन नहीं दे पाती, मुहल्ले भर में तमाशा बन जाता है उसका।

शीला के बारे में सोचते सोचते नीलिमा की नींद रफूचक्कर हो गई।उसे पिछली दिवाली की याद आ गई।

वो दिवाली की रात थी , सुबह के लगभग पांच बजे डोरबेल की आवाज से उसकी नींद खुली,इस समय कौन होगा सोचते हुए नीलिमा ने दरवाजा खोला तो सामने शीला अपनी बेटी वो नातिन के साथ खङ़ी थी ‌।

अरे तुम!इस समय... क्या हुआ...।

अन्दर तो आने दो दीदी,... कहते हुए शीला कुछ आंखों से आंसू निकल गये।

नीलिमा दरवाजे से हटीं तो शीला भीतर आकर धम्म से जमीन पर बैठ गई।उसकी बेटी तारा व नातिन चुपचाप वहीं दरवाजे पर खङ़ी थी।

इशारे से उन्हें अन्दर लेकर नीलिमा ने गेट बंद कर लिया। क्या हुआ तारा... कुछ झगङा हुआ क्या घर पर , क्यों रो रही है ये....।


हां आंटी, पापा ने बहुत झगङा किया था कल , दुनिया भर की दारु पीकर आया था।पानी पीने का घङ़ा, अलमारी का कांच सब तोङ डाला, रात को मम्मी ने पूरियां बनाई थी, उसका तेल कङ़ही में पङ़ा था उसे भी उठाकर फेंक दिया, पूरा घर चिकट हो गया। मम्मी को इतना मारा कि पूरे शरीर की हड्डियां टूट गई ।हम लोग रात को दो बजे ही घर से निकल गये थे पर इतनी रात में कहां जाते.... सोसायटी के बाहर ही बैठे रहे ।मन तो कर रहा था सब एक साथ आत्महत्या कर लें पर हिम्मत नहीं हुई। ये जिंदगी भी कोई जिंदगी है...? पशुओं से भी गई गुजरी...., तारा सिसकने लगी थी।

शीला ज़मीन पर बैठी बैठी अब तक सुबक रही थी।
नीलिमा ने तीनों को पानी पिलाया और गैस पर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया।तब तक विनय भी बाहर आ गया। ‌‌शीला को बच्चों के साथ देखकर उन्हें तो बिना कहे ही सारा माजरा समझ में आ गया था।

किचन में आकर बोले- कहीं इसके पीछे पीछे इसका पति आ गया तो.... यहां बिल्डिंग में तमाशा बना देगा।चाय पिलाकर वापस भेज दो इनको...।

नीलिमा को काटो तो खून नहीं।बात विनय की भी सच थी... एक और पति दूसरी ओर दुखीयारी महिला... जिसके साथ पिछले सात सालों से सेवा का संबंध है, ऐसे कैसे आङ़े वक्त में उसे बाहर का रास्ता दिखाऊं....।

शीला और बच्चों को चाय नाश्ता देकर नीलिमा ने विनय को समझाया- देखो विनय, आदमी ही आदमी के काम आता है।ये मुसीबत में हमारे पास आई है जो होगा देखा जायेगा किन्तु इस तरह उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता ‌।आखिर सात साल से हमारे यहां काम कर रही है आपत्ति में इसे अकेला नहीं छोड़ सकते।

कोई लफड़ा हो गया तो मैं बीच में नहीं पङ़ूगा...समझी... विनय ने भुनभुनाते हुए कहा।
हद करते हो विनय, ये हमारे ऊपर आश्रित है, भगवान ने हमें इस लायक बनाया है कि हम किसी के काम आ सकें। मुसीबत में यूं मूंह मोङ़ लेना इंसानियत तो नहीं कही जा सकती ना...।

नीलिमा के समझाने का कितना असर हुआ विनय पर कहा नहीं जा सकता उसका मौन नीलिमा को चिंतित कर रहा था और सच तो ये भी था कि वो स्वंयम् भी मन ही मन डर यही थी। कहीं सच में उसका पति उसे ढूंढने यहां न आ धमके....। दिवाली का दिन , रिश्तेदारों का आना-जाना,जब भी डोरबेल बजती नीलिमा का दिल धड़क उठता।जाने कौन हो....।

पूरा दिन शांति से कट गया तब जाकर सांस में सांस आई। शीला बेटी को तो साथ लाई थी पर अपने पंद्रह साल के बेटे कोचर पर ही छोड़ आई थी उसने अगले दिन फोन करके बताया कि पापा गांव चले गए, कहकर ग्रे हैं कि वो वहीं रहेंगे।

शीला को तो मन की मुराद मिल गई। ऐसा निहायत निखट्टू पति किसी के प्रदेश न पङ़े, उसने भगवान से प्रार्थना कि हे भगवान! सचमुच वो गांव में ही रहे।मैं तो अपने बच्चों के सहारे जिंदगी काट लूंगी।

शीला घर लौट गई। रोज काम पर आती बिल्कुल चुप.... कुछ नहीं कहती पर उसका उदास चेहरा उसकी चिंता की चुगली करता था ये मुझसे बेहतर कौन समझ सकता था।उसे दुखी देखकर पूछा क्या बात है शीला बङी गुमसुम और अनमनी लग रही है , तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी।
दीदी तबीयत को क्या होना है... ठीक ही है पर घरवाले का कोई समाचार नहीं। गांव भी देवर से बात हुई थी गांव भी नहीं पहूंचा है।

क्या गांव नहीं गया...तो फिर कहां गया...।

मैं क्या जानूं दीदी, कोई छोटा बच्चा थोङ़े ही है। कहां कहां उसके पीछे दौङ़ू, उसे तो न कोई चिंता.....न कोई फिकर.... आज अठवाङ़िया हो गया गये हुए पर कोई खबर नहीं....।

जाने दे, होगा अपने किसी रिश्तेदार के यहां, आ जाएगा अपने आप। अच्छा है ,कम से कम कलह से तो मुक्ति मिली तुझे.... नीलिमा ने सांत्वना देते हुए उसे समझाया।

दीदी, चाहे जैसा भी हो अपना आदमी तो अपना ही होता है। चिंता तो बहुत हो रही है पर क्या करूं समझ में नहीं आ रहा शीला ने अपनी गीली पलकों को पौंछते हुए बोली।
नीलिमा को समझ में नहीं आया क्या कहें वो,जो काम का नाम का सिर्फ रोटियां तोङ़ता था, जो आए दिन मारता- पीटता था, शराब पीकर आता था तोङ़-फोङ़ करता था, बेहुदे इल्जाम लगाने से भी बाज नहीं आता था उस आदमी को अपना आदमी कहकर जिस दुःख की अभिव्यक्ति शीला कर रही थी वो स्त्री का कौनसा रूप था। पति को परमेश्वर मानकर पूजा करने वाली शीला जिसने हर परिस्थिति को अपना भाग्य कहकर स्वीकार कर लिया उस तमाम आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व कर रही थी जो आज भी बेचारी है,अबला है....।

गली मोहल्ले से लेकर कोरपोरेट घरानों की बहू, बेटियों की बात करें या फिर उच्च पदों पर आसीन महिलाओं की... बहुत ज्यादा गुणात्मक अंतर नहीं है । कुछ प्रतिशत को छोङ़ दें तो भी घरेलू हिंसा और पति या परिवार द्वारा प्रताङ़ित महिलाओं का आंकङ़ा इतना बड़ा है कि गिनती करते हुए डर लगता है।वो स्त्री से जुड़े कुछ ओर तथ्यों पर चिंतन करती पर तभी आज सुबह लाल जोड़े में लिपटी शीला का चेहरा सामने आ गया।

आज सुबह शीला लाल साड़ी, ललाट पर लाल बङ़ी सी बिंदी, लाल हरी चूड़ियों से सजे हुए हाथ , माथे पर दमकता हुआ सिन्दूर लगाते हाजिर हुई तो नीलिमा उसे आंखें गङ़ाये देखती ही रह गई।पूरा परिधान पति आगमन की सूचना की चुगली कर रहा था।

ऐसे क्या देख रही हो दीदी, शीला ने कहा तो झेंप गई नीलिमा....।

नहीं ..., कुछ नहीं ....ये बता ये सज-धज कर कहां कि तैयारी है।

दीदी, कल रात ही आ गया था वो , पूरे बीस दिन धक्के खाकर....कह रहा है अब समझ गया हूं , अब तेरे साथ ठीक से रहूंगा।ये साङ़ी भी वही लाया है शीला ने साङ़ी दिखाते हुए कहा।

अरे वाह...., चलो देर आये दुरुस्त आये , अक्ल ठिकाने तो आई तेरे साहब की।

पर दीदी , आज मैं काम नहीं करूंगी बल्कि मुझे थोङ़े पैसे भी चाहिए, धीरे- धीरे एक-एक शब्द पर जोर देते हुए शीला ने कहा।

पैसे..., नीलिमा की त्योंरियां चढ़ गई। पहले से कितना एडवांस ले राखा है तुमने। यहां क्या किसी पेङ़ पर लगते हैं....?और आज काम न करने की क्या कहानी है....?

क्या करूं दीदी, अकेली कमाती हूं और पांच जन खाते हैं। आपसे बार बार मांगना मुझे भी कहां अच्छा लगता है पर मजबूरी है....।
पांच सौ रुपए ‌दे दीजिए मेरा काम निकल जायेगा, शीला ने पल्लू उंगलियों पर लपेटते हुए कहा।

काम क्या है वो तो बताइए देवी जी, नीलिमा ने गुस्से से कहा।

वो आज...आज हमारी सिल्वर जुगाली है दीदी, थोङ़ा सा शरमाते हुए शीला ने कहा।
वो कह रहा था आज छुट्टी ले ,चल तुझे फिल्म दिखाकर लाता हूं।

ओहो...तो ये बात ‌है। सिल्वर जुगाली नहीं, सिल्वर जुबली कहते हैं, पागल कहीं की.... कहते हुए नीलिमा भीतर चली गई लौटी ‌तो पांच सौ की पत्ती के साथ एक सङ़ी भी थी।

ये ले मेरी ओर से पहन लेना और ये ले पैसे....पर पूरे मत खर्च देना...,।

जी दीदी , कहकर शीला नीलिमा के पांव छूने के लिए झूकी तो नीलिमा थोङ़ा पीछे हट गई।

जा आज ऐश कर ....जी ले अपनी जिंदगी.... मुस्कुराते हुए नीलिमा ने कहा तो शरमाते हुए ‌शीला धीरे से मुस्कुरा कर शीला फुर्ती से तीर की तरह निकल गई।

पूरे दिन नीलिमा शीला के बारे में सोचती रही। आदर्श स्वरुपा भारतीय नारी...। पति चाहे राम हो या रावण पर खुद सीता से कम धहु होती ।कदम कदम पर इनकी अग्नि परीक्षा होती है पर एक सिसकी तक नहीं निकालती। कभी चोट के निशान को छुपाती , कभी आंसुओं को पीकर मुस्कुराती, कभी पति के खातिर, कभी बच्चों के खातिर कभी परिवार के खातिर बलिवेदी पर चढ़ती इन स्त्रियों को जाने किस मिट्टी से बनाया है भगवान ने...। नीलिमा को कभी गुस्सा आता है तो कभी तरह,....। इन्हीं की बदौलत यह समाज आज भी स्त्री को बेचारी...अबला के फोटोफ्रेम में जकङ़कर रखने में कामयाब है। खुद कमाती है पर पैसों पर अधिकार पति का, घर का सारा बोझ खुद ढोएंगी पर सेहरा पति व बच्चों के सर रख देगी....जाने कौन-सा दिल दिमाग व मन पाया है कि परिस्थितियां उसे अहिल्या बना सकती पर तोङ़ नहीं सकती ....। सोचते सोचते कब नीलिमा कुछ आंख लगी, पति विनय कब बगल में आकर सो गया उसे पता ही नहीं चला।

आंख खुली तो सूरज देवता को आये घंटा भर हो गया था।आज देशव्यापी हड़ताल थी तो पति व बच्चों को कोई चिंता नहीं थी सभी घोङ़े बेचकर सो रहे थे।

नीलिमा उठी, बालों का जुङ़ा बांधकर गेट के बाहर रखा दूध ले आई और पैकेट खोलकर गैस पर चढ़ा दिया ‌।एक तरफ चाय का पानी रखा और ब्रश करते हुए बालकनी में आ खङ़ी हुई तो देखा दूर से शीला आ रही है।

इतनी जल्दी... नीलिमा बङ़बङ़ाई। उसने गेट खोला तो शीला सामने ही थी, बिना कुछ कहे भीतर आ गई।

आज इतनी जल्दी.... क्या बात है,शीला के चेहरे को गौर से पढ़ते हुए नीलिमा ने उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा तो शीला फफक-फफक कर रो पड़ी।

कुछ नहीं दीदी, वहीं रोज की कहानी शीला ने सुबकते हुए कहा।

कल का पूरा दिन अच्छा बीता, हमने साथ साथ फिल्म देखी। बच्चों के साथ चौपाटी पर पावभाजी खाई। मैनें जिद करके एक नई शर्ट भी दिलवाई किन्तु शाम होते-होते दारु के पैसे मांगने लगा । मैनें मना किया तो वहीं हाल किया जो हमेशा करता है।क्या अरुं मेरा तो नसीब ही खोटा है।
अभी तक दारु पीकर पङ़ा है।मेरा मन नहीं लग रहा था घर पर इसलिए जल्दी चली आई।

तूं भी शीला कमाल करती है। मार खाती है इसलिए मारता है । एक दिन उसे पटक कर उसकी छाती पर बैठ जा,अक्ल ठिकाने पर आ जाएगी हरामी की...हरमजादे को दे दो एक दिन... कहते-कहते नीलिमा की मुट्ठियां भींच गई ।

क्या करुं दीदी, जो भी करें ,... आखिर है तो अपना आदमी.... उससे लङकर कहां जाऊं... पानी में रहकर मगर से बैर करके मुझे क्या मिलेगा। वैसे भी आधी निकल गई , आधी ओर निकल जाएगी... जैसे तैसे आप लोगों के सहारे कट ही जाएगी।

मैनें अपना माथा ठोक लिया। उसने देखा दूध उफनने को है झटपट शीला ने दौङ़कर गैस बंद कर दी और आंसू छुपाती काम पर लग गई।

डॉ पूनम गुजरानी
सूरत








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