Taj Mahal ... the end or the beginning (Ekanki) books and stories free download online pdf in Hindi

ताजमहल... अंत या शुरुआत ( एकांकी )

पात्र - परिचय

मनोज - एक तीस वर्षीय पुरूष

सोनाक्षी - एक सत्ताईस वर्षीय महिला ( मनोज की धर्मपत्नी )

बूढ़ी औरत - एक सत्तर वर्षीय वृद्धा ( भिखारिन )

( मंच पर बैकग्राउंड में ताजमहल का एक चित्र लगा हुआ है । मनोज तथा सोनाक्षी एक-दूसरे से एक उचित दूरी बनाकर खड़े हुए हैं । )

मनोज - तबियत ठीक है तुम्हारी ?

सोनाक्षी - क्यों ?

मनोज - नहीं, मेरा मतलब है कि अगर तुम कम्फर्टेबल हो तो हम यहाँ टहलते हुए बात कर सकते हैं और अगर नहीं तो फिर हम कहीं बैठ जाते हैं !

सोनाक्षी - तो क्या तुमनें मुझे इतनी दूर दिल्ली से यहाँ ताजमहल में टहलने के लिए बुलाया है ?

मनोज - अरे तुम नाराज क्यों होती हो ?

सोनाक्षी - प्लीज़ अब तुम मुझसे बेकार की बातें मत करो। जल्दी बताओ तुम्हें मुझसे क्या कहना है ?

मनोज - सोना! क्या तुम्हें नहीं लगता कि हम जल्दबाजी कर रहे हैं ?

सोनाक्षी - सबसे पहले तो ये कि मिस्टर मनोज आप मुझे इस संबोधन से पुकारने का हक बहुत पहले ही खो चुके हैं और रही बात जल्दबाजी की तो मुझे लगता है कि शायद मैंने इस फैसले को लेने में बहुत देर कर दी ।

मनोज - एक बार फिर से सोच लो सोनाक्षी!

सोनाक्षी - मैंने बहुत सोचा मनोज मगर अब मेरा तन,मन और मेरी आत्मा कोई भी मोम की गुड़िया बनने को तैयार नहीं है!!

मनोज(एक गहरी सांस भरते हुए) - तुम्हें पता है कि मैंने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया जबकि मैं चाहता तो तुमसे दिल्ली में भी मिल सकता था ।

सोनाक्षी - न मैं जानती हूँ और न ही जानना चाहती हूँ ।

मनोज - तुम्हें जानना ही होगा सोनाक्षी ।
(मनोज की आवाज़ अब तेज हो चुकी थी और उसकी आवाज़ में अब उसका दर्द और अफसोस साफ-साफ सुनाई पड़ रहा था)

मनोज - शायद तुम्हें याद होगा कि हम शादी के बाद पहली बार एक-साथ इसी जगह पर आये थे और यही वो जगह है जहाँ पर हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ वादे भी किए थे !

सोनाक्षी - तुम्हें जो कुछ भी कहना है फटाफट कहो और मुझे जाने दो । तीन घंटे बाद मेरी ट्रेन है !

मनोज - देखो सोनाक्षी, मैं जानता हूँ कि मेरी माँ थोड़े से तेज स्वभाव की स्त्री हैं और वो ज़रा पुराने विचारों की भी हैं । मैं मानता हूँ सोनाक्षी कि वो तुम्हारे नये तौर-तरीके नहीं समझती और ये भी मानता हूँ कि तुम्हारी इस आधुनिक जीवन-शैली में वो कहीं भी फिट नहीं बैठतीं मगर ये तो तुम्हें भी मानना होगा सोनाक्षी कि वो कभी भी तुम्हारा या मेरा अहित न चाह सकती हैं और न ही कर सकती हैं ! मैं अपनी माँ से बहुत प्यार करता हूँ और उतना ही सम्मान भी! सोनाक्षी मेरी माँ एक बहुत अमीर घराने से संबंध रखती हैं जबकि मेरे पिता जी एक बेहद गरीब खानदान से ताल्लुकात रखते थे मगर मेरे नाना और नानी जी की असमय मृत्यु ने मेरी माँ की किस्मत बदलकर रख दी और फिर मेरे जन्म के साथ ही मेरे पिता जी का देहांत!! मैं चाहकर भी मेरी माँ का संघर्ष नहीं भूल सकता। सोनाक्षी मैं उन्हें उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर अकेला नहीं छोड़ सकता मगर मैं तुमसे भी बहुत प्यार करता हूँ डियर ! प्लीज़ सोना तुम मेरे जीवन की प्रेरणा बनो न कि परेशानी!

सोनाक्षी - ओह्ह! चलो अच्छा हुआ सच तुम्हारी जुबान पर तो आया। मुझे पहले से ही पता था कि मैं तुम्हारी जिंदगी में परेशानी से ज्यादा कुछ भी नहीं! तो मिस्टर मनोज शर्मा आपनें मुझे यहाँ आपकी माँ की खूबियाँ गिनवाने के लिए बुलाया है, हैं न !!

मनोज - तुम अभी भी मेरी बात नहीं समझ रही हो सोनाक्षी और जहाँ तक बात रही खूबियों की तो जाने से पहले मेरी माँ की एक और खूबी भी सुनती जाओ। मुझे यहाँ तुमसे मिलने के लिए मेरी माँ ने ही कहा था और उन्होंने तो ये भी कहा था कि अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ एक अलग घर में भी रह सकता हूँ मगर सोनाक्षी सच तो ये है कि मैं अपनी माँ को कभी भी और किसी भी कीमत पर अकेला नहीं छोड़ सकता।

( तभी वहाँ मंच पर एक बूढ़ी औरत का आगमन होता है ! )

बूढ़ी औरत - बेटा कुछ खाने को दे दो, बड़ी भूख लगी है बेटा।

मनोज - ये लीजिए माँ जी ( उस बूढ़ी औरत को बिस्किट का एक पैकेट देते हुए )

बूढ़ी औरत - जीते रहो बेटा !

मनोज - माँ जी आप इतनी वृद्धावस्था में यहाँ और आपके बच्चे कहाँ हैं ?

बूढ़ी औरत - बेटा मेरे दो-दो बेटे और बहू हैं मगर वो लोग मुझे एक दिन आगरा के अस्पताल में मेरे मोतियाबिंद के ऑपरेशन का बहाना करके छोड़ गए और कभी भी वापिस नहीं आये। बेटा मैं यहाँ पास के ही एक गाँव में रहती थी। बेटा वो तो उस ईश्वर की कृपा है जो कि मुझे वहाँ अस्पताल में एक तुम्हारे जैसा भला डॉक्टर मिल गया जिसनें मेरी दोनों आँखों का ऑपरेशन मुफ्त में कर दिया वरना...कहते-कहते वो बूढ़ी औरत फफककर रो पड़ी !

मनोज - माँ जी अगर आप चाहें तो मैं आपको आपके गाँव वापिस छोड़ सकता हूँ !

बूढ़ी औरत - नहीं बेटा,अब नहीं और अगर मुझे वहाँ वापिस ही जाना होता तो मैं कबका चली गई होती मगर बेटा मैं समझती हूँ कि मेरे बेटे भी मजबूर हैं अगर वो मुझे चुनते हैं तो उन्हें गृह-क्लेश से हर एक दिन जूझना पड़ेगा और फिर बेटा जहाँ मेरी किसी को कोई चाह ही नहीं वहाँ मैं भला जबर्दस्ती की गुंजाइशें क्यों ढ़ूंढ़ती फिरूँ !
( भारी आवाज़, बोझल कदमों और भीगी पलकों के साथ बूढ़ी औरत वहाँ से चली गई )

सोनाक्षी - मनोज मैं तुम्हारे साथ घर चलूंगी ! माँ से मिले हुए बहुत समय हो गया और फिर कल वो एकादशी का व्रत भी है न जो मुझे और माँ को साथ-साथ करना होता है।

( मनोज और सोनाक्षी एक-दूसरे के गले लग चुके थे और दोनों के कंधों पर पश्चाताप और प्रेम नमी बनकर ठहर चुका था )

मंच पर मद्धम होती हुई रौशनी के साथ ही पर्दा गिर जाता है ।

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐


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