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शादी का पहला सावन...

अरे ! आज इतनी जल्दी सुबह सुबह कहाँ जा रही है ?

कॉलेज जा रही हूंँ मम्मी। आज थोड़ा जल्दी जाना है ,वो लाइब्रेरी में एक बुक रिटर्न करनी है क्योंकि आज मेरे लेक्चर्स तीन बजे तक हैं और तीन बजे लाइब्रेरी बंद हो जाती है।

अच्छा सुन क्या ऐंसा नहीं हो सकता कि आज तू कॉलेज ना जाए?

नहीं मम्मी आज तो मेरा बहुत जरूरी लेक्चर है।

प्लीज़ बेटा आज मत जा, तेरे उस जरूरी लेक्चर से भी कुछ ज्यादा जरूरी काम तेरे लिए आज घर पर है।

अच्छा घर पर ऐंसा भला मेरे लिए क्या जरूरी काम है आज?
ओह! मैं समझ गई जरूर आज मीना मौसी आ रही हैं, है ना!! और न आपको उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनाने हैं, जिसमें कि आपको मेरी मदद चाहिए। बोलो न मम्मी यही बात है ना?

नहीं!

अच्छा तो फिर पक्का राधा भाभी आ रही होंगी और मुझे उनका मुन्ना संभालना है क्योंकि वह आपको स्वेटर की कोई नई डिज़ाइन सिखाने वाली हैं। सही बताया ना मैंने? क्या मम्मी अब बताओ भी ना क्या बात है और वैसे भी मैं तुम्हारी वजह से पहले से ही बहुत लेट हो चुकी हूँ। बताना है तो जल्दी से बताओ वरना मैं तो चली।

अरे कहाँ चली बिटिया? मम्मी ने उसकी चोटी खींचते हुए कहा।

आ, आ!! आपसे कितनी बार कहा है मम्मी कि मेरी चोटी मत खींचा करो। लो अब हो गए ना बाल खराब।

अच्छा मैडम जी अब क्या आप चुपचाप मेरे साथ किचन में चलकर मेरा हाथ बटाने की महान कृपा करेंगी?

क्या हुआ बिटिया? आज कॉलेज नहीं जाना है क्या?

देखिए न पापा मम्मी मुझे कॉलेज भी नहीं जाने दे रहीं और साफ-साफ बता भी नहीं रहीं कि आखिर बात क्या है?

अच्छा! तो कोई बात नहीं जरा मेरे पास आकर बैठो,मैं बता देता हूं अपनी बिटिया रानी को सारी बात। बिंदिया अपने पापा के पास सोफे पर आकर बैठ गई। बेटा वह बात दरअसल यह है कि आज तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं।

लड़के वाले!

हां बेटा लड़के वाले!

यह क्या बात हुई पापा? ना मुझसे पूछा ना बताया और ऐंसे अचानक ही!!

तभी तो बता रहे हैं बेटा और रही बात पूछने की तो लड़का जब तुम्हें खूब पसंद होगा तभी हम उन लोगों से कोई बात आगे बढ़ाएंगे और बेटा इस बात के लिए तुम निश्चिंत रहो,तुमसे पूछे बिना तो हम वैसे भी कोई फैसला नहीं लेंगे। बेटा बड़े ही भले लोग हैं। मैं खुद उन लोगों से तेरी कानपुर वाली बीनू दीदी की शादी में मिल चुका हूँ। लड़का फौज में है।

फौज में है!

हां बेटा। क्यों क्या हुआ ? कोई परेशानी है क्या?

ना पापा मुझे एक फौजी से तो शादी नहीं करनी। कभी छुट्टी नहीं मिलती तो कभी फोन नहीं मिलता और आए दिन शहीदों की खबरें सुन सुन कर डरते रहो,बस न्यूज़ सुनते रहो। है ना मेरी एक सहेली का पति फौज में! सॉरी पापा मैं तो बिल्कुल भी नहीं करने वाली एक फौजी के साथ शादी!!

बेटा तुम एक बार उस लड़के से मिल तो लो और अगर उसके बाद भी तुम्हारा फैसला यही रहा तो बेटा हम तुम से जबरदस्ती तो करेंगे नहीं। बेटी के सिर पर प्यारभरा हाथ फ़ेर कर शर्मा जी कमरे से बाहर निकल जाते हैं।

हल्के आसमानी रंग की साड़ी में आज बिंदिया का रूप कई गुना निखर आया था। जब बिंदिया ने लड़के वालों के सामने चाय की तश्तरी रखते हुए मुस्कुराकर उन सब का अभिवादन किया तो लगा मानो आसमानी चादर ओढ़ कर चाँद हौले हौले से मुस्कुरा रहा हो।
आओ बेटा यहां मेरे पास आकर बैठो,लड़के की माँ ने बिंदिया को बैठने का इशारा करते हुए कहा।कुछ औपचारिक बातों के बाद तय हुआ कि अब कुछ देर लड़का और लड़की अकेले में एक दूसरे से बातचीत करेंगे।

आपका नाम बहुत सुंदर है बिंदिया और आपने यह जो अपने माथे पर सितारे की बिंदिया लगा रखी है ना वह भी बहुत सुंदर है।

जी शुक्रिया।

वैसे एक सच और बताऊँ?

जी बताइये!

एक और भी है कोई जो इन दोनों से भी ज्यादा सुंदर है!

कौन?

आप ! आप सच में बहुत सुंदर हैं और आपके होठों के नीचे जो ये काला तिल है न,इतना सुनते ही बिंदिया अपने होठों के नीचे तिल पर हाथ रख कर शर्म से मुस्कुराने लगी और उस लड़के ने अपनी बात को बीच में ही रोक लिया। अच्छा जी अब आपको मेरे बारे में जो कुछ भी पूछना है, आप पूछ सकती हैं। मैं इंटरव्यू के लिए बिल्कुल तैयार हूँ जनाब!!

क्या मैं भी एक सच बताऊँ आपको?

जी जरूर बताइये,वैसे भी झूंठ सुनना जरा कम ही पसंद करता हूँ मैं!!

मुझे ना, एक फौजी से शादी नहीं करनी।

अच्छा जी! कोई बात नहीं मगर क्या मैं इस नाइंसाफ़ी का कारण जान सकता हूँ?

बहुत डर लगता है! आए दिन शहादत के किस्से जो सुनती रहती हूँ।

देखो बिंदिया शादी करना या ना करना यह पूरी तरह से तुम्हारी इच्छा पर ही निर्भर करता है और इसके लिए मैं तुमसे कुछ ज्यादा कहूँगा भी नहीं। मेरी तरफ से यह फैसला लेने के लिए तुम पूरी तरह से स्वतंत्र हो मगर मैं तुम्हारी कही हुई बात का बस थोड़ा सा स्पष्टीकरण जरूर देना चाहता हूँ। अगर तुम बुरा ना मानो तो?

जी बिल्कुल कहिए ना!

बिंदिया जो तुमने कहा कि डर लगता है तो हाँ मैं तुम्हारी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ। तुम्हें क्या लगता है कि एक फौजी को डर नहीं लगता जो सीमा पर अपने देश की सुरक्षा की खातिर खड़ा रहता है और उसे खुद भी पता नहीं होता कि दुश्मन की किस गोली पर उसका नाम लिखा है। डर तो बिंदिया उसे भी लगता है मगर ये जो हमारे देश प्रेम का जज़्बा है ना वो उस डर से कहीं अधिक बड़ा होता है और रही बात मरने की तो मौत तो वैसे भी आनी है अगर हमारी मौत उपरवाले ने आधी उम्र में तय कर दी है तो मरना निश्चित है फिर चाहे वजह बीमारी बने या कोई दुर्घटना लेकिन किसी बीमारी या दुर्घटना में मरने से कोई अमर नहीं होता है बिंदिया!! लेकिन जब एक शहीद की शहादत होती है तो वो जरूर अमर हो जाता है। अपनी मातृभूमि के लिए दिया गया उसका बलिदान उसे हमेशा हमेशा के लिए अमर बना देता है। तुम्हें पता है बिंदिया जितने गौरव की बात है एक फौजी होना उतने ही गौरव की बात एक फौजी का परिवार होना भी है और अपने देश की इस तरह से सेवा करने का मौका हर किसी को नसीब नहीं होता है।
यह सिर्फ कुछ किस्मत वालों के हाथों की लकीरों में ही होता है, ये कहकर उस लड़के के चेहरे पर एक गर्व से भरी मुस्कान बिखर गई।

रात को जब मम्मी पापा ने इस रिश्ते के बारे में बिंदिया से उसकी राय पूछी तो बिंदिया का जवाब 'हाँ' था।

पूरा घर मंगल गीतों से गूंज रहा था। बिंदिया की सास ने बड़े ही प्यार से अपनी नई नवेली बहू बिंदिया और अपने बेटे सुबोध का गृह प्रवेश करवाया। पूजा पाठ में पूरे दो दिन बीत गए। आज दोपहर ही सुबोध और बिंदिया परिवार सहित अपनी कुलदेवी को पूजकर घर लौटे थे। जैसे-जैसे रात नजदीक आ रही थी सुबोध की खुशी और बिंदिया की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी और फिर वो समय भी आ गया जिसका इंतज़ार हर नवविवाहित जोड़े को बड़ी ही बेसब्री से रहता है।

आज तो तुम और भी सुंदर लग रही हो, जब तुम्हें पहली बार देखा था उस दिन से भी ज्यादा सुंदर! सच में तुम पर आसमानी रंग बहुत खिलता है इसलिए मैं देखो तुम्हारे लिए ये आसमानी रंग की चूड़ियाँ लाया हूँ।

ये तो बहुत सुंदर हैं!

तुम्हें पसंद आईं?

हूं ,कहकर बिंदिया ने हाँ में अपना सर हिला दिया।

अच्छा तो जरा मेरे पास तो आओ! इतनी दूर क्यों बैठी हो?

दूर कहाँ? पास ही तो हूँ।

कहाँ पास हो भला?इसे भी कोई पास बैठना कहते हैं?

अच्छा जी तो फिर किसे कहते हैं पास बैठना?

रुको अभी बताता हूँ इतना कहकर सुबोध ने कमरे की लाइट ऑफ कर दी और बिंदिया को अपनी बाहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा। इसे कहते हैं, इसे कहते हैं, इसे और इसे कहते हैं पास बैठना!! सारी रात नवजीवन के नवीन सपनों में विचरण करते हुए समय कब बीत गया दोनों में से किसी को भी पता नहीं चला।

बिंदिया ने बहुत ही कम समय में अपने सास-ससुर का दिल जीत लिया था और बिंदिया की सास भी उसे बिल्कुल अपनी बेटी की तरह ही लाड़ करती थी।

बिंदिया!

जी कहिए !

कल मेरी छुट्टी खत्म हो रही है अब मुझे जाना पड़ेगा।
अरे तुम तो रोने लगी! अरे पगली मैं कौन सा हमेशा के लिए जा रहा हूँ? होली में बस दो महीने ही तो बचे हैं।मैं होली पर फिर आ जाऊँगा न छुट्टी लेकर!!

बेटा सब समान ठीक से रख लिया ना?

हाँ माँ, सब रख लिया है।

अब कब आयेगा तू बेटा?तेरे जाने से बहू भी अकेली हो जाएगी।

माँ होली पर कोशिश करूँगा! अच्छा चलता हूँ!!

जा अंदर जाकर बहू से तो मिल ले।

यार! तुम फिर से रोने लगी अगर तुम ऐंसे ही रोती रहोगी तो मैं भला कैसे जा पाऊँगा तुम्हें छोड़कर?
नहीं, नहीं मैं कहांँ रो रही हूँ? अपने गालों पर ढुलकते हुए आँसुओं की बूंदों को पोंछते हुए बिंदिया ने कहा।

एक बार गले से तो लग जाओ, हां ये हुई ना बात मेरी बहादुर फौजन बीवी!

आज पूरा एक महीना बीत गया था सुबोध को गये हुए।वैसे तो फोन पर बिंदिया की बात अक्सर हो जाया करती थी उससे मगर श्रीनगर में नेटवर्क की समस्या के चलते कई बार बात आधे में ही कट भी जाया करती थी।

आज सुबह से तेरे ससुर जी को बहुत चक्कर आ रहे हैं। पता नहीं रक्तचाप बढ़ गया है उनका कि कुछ और परेशानी है? ठीक से बताते भी तो नहीं हैं न !

माँ जी मैं अभी पिताजी का बीपी नाप देती हूँ!

अच्छा बेटा नाप दे जरा!!

माँ जी बीपी तो ठीक है पिताजी का,बीपी की मशीन हटाते हुए बिंदिया ने अपनी सास से कहा।

कुछ देर बाद धम्म की आवाज सुनकर बिंदिया आंगन में दौड़ती हुई जाती है और देखती है कि उसके ससुर जी वहाँ जमीन पर गिरे पड़े हैं।बिंदिया अपनी सास को चिल्ला कर बुलाती है,माँ जी!माँ जी!!
दोनों सास बहू सहारा देकर शर्मा जी को उठाते हैं तथा इसके बाद बिंदिया ऑटो बुलाकर अपने ससुर जी को अपनी सास के साथ अस्पताल ले जाती है।

देखिये चिंता की कोई बात नहीं है शायद कमजोरी के चलते ही उन्हें चक्कर आ गया था बाकी मैंने कुछ टेस्ट लिख दिए हैं।आप लोग करा लीजिएगा बाकी में रिपोर्ट देखकर ही कुछ और बता पाऊँगा। ये कुछ दवाएं हैं, आप मेडिकल स्टोर से ले लीजिएगा।

थैंक यू डॉक्टर साहब! बाकी चिंता की तो कोई बात नहीं है ना? बिंदिया ने डॉक्टर साहब के हाथ से दवाई का पर्चा लेते हुए पूछा।

नहीं बेटा और फिर जिसके पास इतनी समझदार और जिम्मेदार बहू हो उसे किस बात की चिंता यह कहकर डॉक्टर साहब मुस्कुराते हुए वहां से चले गए।

बिंदिया की सास ने बिंदिया को बड़ी ही ममता के साथ अपने गले से लगा लिया।

हैलो!हाँ बिंदिया पिताजी की तबीयत अब कैसी है?

पिताजी अब बिल्कुल ठीक हैं और उनकी रिपोर्ट्स भी सब नॉर्मल आई हैं। लीजिए माँ जी से बात करिये।

हैलो! हां बेटा तेरे पिताजी अब बिल्कुल ठीक हैं। तेरा तो तीन-चार दिन से फोन ही नहीं आया और हम मिला रहे थे तो इधर से मिल भी नहीं रहा था।

हाँ माँ वो कुछ इशू था। मैं बस एक ऑपरेशन में बिजी था। बस अभी अभी आया तो देखा कि फोन में बिंदिया का मैसेज पड़ा था।

अच्छा कोई बात नहीं बेटा तू अपना ख्याल रख! ले अपने पिताजी से बात कर ले।

हाँ पिता जी चरण स्पर्श!

खुश रहो बेटा!!

अब कैसी तबीयत है आपकी?

बस बढ़ियाँ!अरे यह तेरी बीवी है ना बहुत ख्याल रखती है हमारा।सच बेटा हम तो धन्य हो गए ऐसी अच्छी और पढ़ी लिखी बहू पाकर इतना कहकर बिंदिया के ससुर जी नें अपना आशीर्वाद भरा हाथ बिंदिया के सिर पर रख दिया।

अरे बहू सुबोध ने आने के बारे में कुछ बताया क्या? उसे छुट्टी मिली या नहीं?अब होली के तो बस दस दिन ही तो बचे हैं।

नहीं माँ जी मेरी तो इस बारे में उनसे कोई बात नहीं हुई।

अच्छा!!

हैलो!

हैलो! कैसी हो फौजन बीवी?

ठीक हूँ। आप बताओ आप कैसे हो?

हम तो बस तड़प तड़प के दिन गिन रहे हैं कि जल्दी से शनिवार आए और हम होली के सुंदर रंग अपनी सुंदर सी बिंदिया के सुंदर से गालों पर मल पायें!

शनिवार,बिंदिया ने चहकते हुए कहा!आपकी छुट्टी मंजूर हो गई?

हाँ वो तो होनी ही थी।अरे भाई! हमने कहा कि हमारी बिंदिया रानी बड़ी बेसब्री से हमारा इंतज़ार कर रही हैं फिर क्या था साहब भी पिघल गए और दे दी छुट्टी कि जाओ और जाकर खुश करो अपनी बिंदिया रानी को!

हट्ट!!

अरे सच में यार!

आप तो बस बातें बनाने में माहिर हैं।

अरे हम और भी बहुत से कामों में माहिर हैं कभी मौका तो दे सेवा का!!

हट्ट!!

अरे ये क्या हट्ट हट्ट की रट् लगा रखी है? अच्छा चलो मैं फोन रखता हूँ, जाना पड़ेगा बाय!बाय!

सुनिए!

कहिए!

कुछ नहीं।

अरे जल्दी बोलो जाना है।

आई लव यू!

हायय!आई लव यू जान बाय बाय!!

बहू कल तुम्हारे पापा का फोन आया था इनके पास, तुम्हें लिवाने आने के लिए पूछ रहे थे। वो बेटा पहली होली तो मायके की ही होती है ना!

जी माँ जी!

तू ऐंसा कर, होली के दो या तीन दिन पहले चली जा और होली वाले दिन ही शाम को सुबोध तुझे लेने आ जाएगा। अब वो इतनी दूर से तेरे साथ ही तो होली मनाने आ रहा है इतना कहकर बिंदिया
की सास मुस्कुरा दी और बिंदिया ने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं।

मम्मी! मम्मी!

आ गई मेरी लाडो, बेटा तेरी बहुत याद आती है और मैं तो फिर भी अपने मन को समझा लेती हूँ पर तेरे पापा बहुत रोते हैं तुझे याद कर करके,बिंदिया की मम्मी ने अपने साड़ी के पल्लू से अपने आंसूं पोंछते हुए कहा।

मम्मी मुझे भी बहुत याद आती है आप दोनों की इतना कहकर बिंदिया सुबकने लगी।

और बता बिटिया कि तेरे सास ससुर कैसे हैं ?सुबोध जी कैसे हैं?

मम्मी सब लोग बहुत बहुत अच्छे हैं!

तेरे मुंह से ये बात सुनकर चैन पड़ा बिटिया!

हैलो!

हैलो! कैसी हो?
बढ़ियां, बस दिन गिन रही हूँ। परसों आप आ रहे हैं न?

यार बिंदिया वह एक प्रॉब्लम हो गई है!

मुझे पहले ही पता था कि आप सिर्फ बातें बना रहे हैं। जाइए मैं अब आपसे बात ही नहीं करूँगी।

अरे पहले मेरी पूरी बात तो सुनो,पहले ही शुरू हो गई।

क्या शुरू हो गई? मुझे पता है!

क्या पता है?

यही कि आप की छुट्टी कैंसिल हो गई है।

नहीं भाई! वैसा कुछ भी नहीं हुआ है पर यार वो मेरे साथ का ही एक बंदा है उसकी माता जी का देहांत हो गया है और वो अपने परिवार का एकलौता बेटा है। छुट्टी हम दोनों में से किसी एक को ही मिल सकती है बस!अब तुम ही बताओ बिंदिया मुझे अपनी छुट्टी कैंसिल करनी चाहिए या कंटीन्यू? बोलो!बोलो तुम जो भी कहोगी मुझे मंजूर होगा।

नहीं आप कैंसिल करवा दीजिए अपनी छुट्टी उसका जाना ज्यादा जरूरी है। अच्छा सुनिए!

हाँ जी कहिए!

सावन में तो पक्का आएंगे ना?

अरे ये भी कोई कहने की बात हुई भला!सावन में हम पक्का आएंगे और अपने हाथों से हरी हरी चूड़ियाँ आपको पहनायेंगे, झूला भी झुलायेंगे हाँ एक और बात!!

वो क्या?

वो ये कि आपके साथ प्रेम की पींगें भी बढ़ाएंगे!!

अच्छा जी, बिंदिया नम आंखों से हंसने लगती है।

चलो इस बहाने तुम हंसी तो सही। हंसती रहा करो बिंदिया! जिंदगी का कोई भरोसा नहीं मेरी जान और वैसे भी तुम हंसती हुई हीअच्छी लगती हो।

अच्छा जी ! हैलो! हैलो!! हेलो ! शायद नेटवर्क इशू है फिर से, ये कहकर बिंदिया ने फोन काट दिया।

आज बिंदिया को अपने मायके से लौट कर आए हुए पूरे चार महीने हो गए,इस बीच बस सुबोध से फोन पर ही बात होती रही। कभी कुछ खट्टी तो कभी कुछ मीठी, कुछ प्रेम भरी तो कुछ गम की, कभी-कभी छोटे-मोटे झगड़े भी हुए मगर इन सब के बीच एक चीज जो निरंतर इन दोनों के ही मन में चलती रही वह थी इंतज़ार!! इंतज़ार सावन का शादी के बाद के पहले सावन का !

अरे भाभी! आओ आपके हाथों में मेहंदी लगा दूं पड़ोस की सरिता ने बिंदिया से कहा।

हाँ बिटिया लगा दे, लगा दे मेंहदी मेरी बहू का यह शादी के बाद का पहला सावन है। खूब भर भर हाथ लगा दे और सुन खूब सुंदर छापा भी उकेरना।

जी बिल्कुल आँटी जी! भाभी के हाथों में तो इतनी सुंदर मेहंदी लगाऊंगी ना कि भइया तो बस भाभी की मेहंदी से अपनी नजर ही ना हटा पाएंगे, ये कहकर खिलखिला कर हंस पड़ी सरिता और बिंदिया शर्म से लाल हो गई।

अरे वाह बहू मेहंदी तो बहुत सुंदर रची है तेरे हाथों में, देख ले मेरा बेटा कितना प्यार करता है तुझे! अच्छा ये ले मैं तेरे लिए बाजार से नई चूड़ियां लायी हूँ। ले पहन ले ये चूड़ियाँ!

चूड़ियाँ देखते ही बिंदिया को सुबोध की कही हुई वो हरी हरी चूड़ियों वाली बात याद आ गई और वो चूड़ियों का डिब्बा लेकर अंदर कमरे में चली गयी। बिंदिया ने फटाफट चूड़ियाँ पहनीं और फिर सुबोध को फोन मिलाया।

दो चार बार घंटी बज कर फोन अपने आप कट गया। शाम को सुबोध का फोन आया।

हैलो!

हाँ हैलो! बेटा कैसे हो?

हाँ माँ चरणस्पर्श! मैं ठीक हूँ।आप कैसे हो?

हाँ बेटा मैं भी ठीक हूँ। बस अब तो तेरा ही इंतजार है। बहुत दिन हो गए बेटा,अब बस जल्दी से आजा बहू भी तेरे आने की राह देख रही है।बेटा ये ले बहू से बात कर ले।

हाँ कैसे हैं आप?

बस बढ़ियां! अपनी बताओ?

मैं भी अच्छी हूँ। इधर-उधर की बातों के बाद सुबोध ने फोन रख दिया मगर आने के बारे में कोई भी बात नहीं की।बिंदिया समझ चुकी थी कि इस बार भी जरूर छुट्टी मिलने में कुछ दिक्कत हो गई है।

जैसे-जैसे सावन आने के दिन नजदीक आ रहे थे, बिंदिया की बेसब्री और इंतजार अब उदासी में बदलते जा रहे थे। इस बीच दो चार बार सुबोध से बात भी हुई मगर ना तो सुबोध ने ही आने के बारे में कुछ कहा और ना ही बिंदिया ने ही अपनी तरफ से कुछ पूछा।

नमस्ते भाभी! कैसी हो?

बस मैं ठीक हूँ। आओ सरिता दीदी बैठो।

अरे भाभी मैं वो बाजार जा रही थी और कल से सावन भी शुरू हैं तो सोचा कि भाभी से पूछती चलूं कि आपको बाजार से कोई सामान तो नहीं मंगवाना?

नहीं दीदी, मुझे कुछ नहीं चाहिए!

क्या हुआ भाभी?आप इतनी उदास क्यों हैं? क्या भइया को छुट्टी नहीं मिली?

पता नहीं!!इतना कह कर रोती हुई बिंदिया अंदर कमरे की ओर भाग गयी और अंदर कमरे में पलंग पर धम्म से पड़कर बहुत रोयी। रोते-रोते कब उसकी आंख लग गयी,उसे पता ही नहीं चला।

अचानक किसी के स्नेहभरे स्पर्श को पाकर बिंदिया चौंक कर उठ गयी मगर जब उसनें सामने देखा तो वहां पर कोई भी नहीं था। उसे लगा कि यह शायद उसका वहम था। तभी किसी ने पीछे से उसकी दोनों आँखों को अपने हाथों से ढक लिया।

कौन? कौन है?

इतनी जल्दी अपने फौजी पति को भूल गई मेरी फौजन बीवी?

आप! आप कब आए?अपनी आंखों से सुबोध के हाथों को हटाते हुए बिंदिया ने पीछे मुड़ते हुए पूछा और सुबोध कुछ कह पाता इसके पहले ही बिंदिया सुबोध के सीने से लिपट कर रोने लगी।
अरे!अब तो मैं आ गया, अब क्यों रो रही है पगली? अब रोने का नहीं प्रेम की पींगे बढ़ाने का समय है और यह सुनकर बिंदिया ने शरमाकर सुबोध के चेहरे की तरफ देखा और फिर से कसकर उसके सीने से लिपट गई मगर इस बार उसकी आँखों से आँसू नहीं बल्कि प्रेम की फुहार फूट रही थी।

अगले दिन सुबोध की लायी हुई हरी हरी चूड़ियाँ पहनकर बिंदिया सुबह सुबह ही सजसंवर कर तैयार हो गयी।

बेटा सुबोध देख मौसम खराब हो रहा है, कैसे काले काले बादल आ रहे हैं? जा बेटा जल्दी से जाकर बहू को बाजार से सावन की खरीददारी करा ला और फिर कल तुझे बहू को उसके पीहर भी तो लेकर जाना है।

घर से निकलकर कुछ दूर ही चले थे कि घनघोर घटाओं ने इन दोंनो प्रेम के पंक्षियों को घेर लिया। बादल कुछ ऐंसा झूमकर बरसे कि बिंदिया और सुबोध को तरबतर कर गये। सुबोध का हाथ पकड़कर भागती बिंदिया कभी सुबोध को देखकर शर्माती तो कभी खिलखिलाती और सुबोध तो बस मगन होकर गीत ही गाने लग गया कि आया सावन हो झूमके कि आया सावन झूमके!!

बिंदिया की शादी के बाद का ये पहला बेहद यादगार सावन शायद बिंदिया कभी नहीं भूल पायेगी, कभी भी नहीं।

निशा शर्मा...


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