गधादेश का मंत्रीमण्‍ड़ल Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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गधादेश का मंत्रीमण्‍ड़ल

गधादेश का मंत्रीमण्‍ड़ल
गधादेश में अभी-अभी चुनाव हुआ है । जैसा की आप तो जाते ही है, आज कल अल्‍पमत सरकारों का जमाना है । इसी से पता चलता है कि जनता को किसी पर भी भरोसा नहीं है, परन्‍तु उन्‍हें तो राजा बनना है, सो वे साम् ,दाम, दण्‍ड़ और भेद का प्रयोग आंतरिक और बाहय सर्मथन के नाम पर सरकारें बनाते है । गधादेश में भी बाहरी और आंतरिक सर्मथन के साथ सरकार बनाने की कवायद प्रारम्‍भ हो गई । लेकिन इस बार गधों का वास्‍ता सुआरों से था । सुआर पार्टी भी पूरा जोर लगा रही थी उन्‍होंने भालूओं,तेंदूओं और हाथीयों को पहले ही अपनी ओर कर लिया था अब अल्‍पमत को बहुमत बनाने के लिए मेमने महत्‍वपूर्ण हो गए । वे बेचारे कब तक बचते जिस दिन सदन में बहुमत साबित करना था उस सुबह दो मेमनों को शेर उठा ले गया । शेर अकेला ही था और उसे भी तो सरकार में शामिल होना था अब उसने अपना संख्‍याबल बढा लिया था । गधापार्टी के लिए शेर का समर्थन जरूरी हो गया । दोनों में समझौता हुआ कुछ लेन-देन और मंत्री पद की बात अंदर ही अंदर और जाहिर में सुआरवाद के विरोध में प्रतिद्धता दर्शाई गई । खैर सहाब गधों ने अपना बहुमत साबित कर ही दिया । स्‍वभाविक ही था कि गर्धबराज ही राष्‍ट्रमंत्री बनेंगे । वे तो अनेक आपराधिक मामलों में पहले से ही जेल में थे और उन्‍होंने जेल से ही चुनाव लड़ा था। यहॉं सब ने मिल कर उन्‍हे राष्‍ट्रमंत्री प्रस्‍तावित किया वहॉं जज को सदबुद्धी आ गई और उन्‍हे जेल से रिहा कर दिया गया। वे सीधे जेल से जलूस की शक्‍ल में राष्‍ट्रमंत्री की सपथ लेने पहुँचे । अब समय था मंत्री मण्‍ड़ल के गठन का , सब को खुश करने का और चुनाव के पहले और बाद किए गए वादों को निभाने का । यह भी दिखने का कि योग्‍यता के अनुरूप मंत्री बनाए गए है
सरकार के बहुमत में शेर की महत्‍वपूर्ण भूमिका के साथ ही साथ अपने आप को कानून ,पुलिस और अदालत से उपर समझने वाले इस बाहुबली को सुरक्षा मंत्रालय ही चाहिए था सरकार की भी मजबूरी थी तो शेर खान का मन चाहा मंत्रालय उन्‍हे दे दिया गया । चींटी रानी को संख्‍या और चुनाव पूर्व समझौते के आधार पर खाद्य मंत्रालय देना पूर्व से ही सुनिश्‍चित था। उनके सहायक के रूप में मूशक को उनके कालाबाजारी के अनुभव के आधार पर रखा गया । चींटी रानी ने अपने पहले वक्‍तव्‍य में कहा कि अब देश का खाद्यान्‍न बढ जाएगा क्‍योंकि जनता को उतना ही मिलेगा जितना खाद्य मंत्री को जरूरत है। जब बिजली मंत्री की बात चली तो यह भी बात उठी कि गधादेश में तो पिछले कई सालों से बिजली है ही नहीं । इस पर राष्‍ट्रमंत्री ने समझाया कि अब आप लोग विपक्ष नहीं है आप अब सत्‍ता में है आप को सकारात्‍मक ही बोलना चाहिए । हमारी जनता को उजाले में रहने की आदत ही नहीं है और हम अपनी जनता का पूरा ध्‍यान रखते है उन्‍हे बिजली दे कर उनकी आदतें खराब नहीं करना है । उल्‍लू को इस विभाग के लिए उपयुक्‍त माना गया । कृषि मंत्री के लिए बैल का नाम उनके सीधे और सरल स्‍वभाव के कारण आया लेकिन ऐसा मंत्री जो अपनी जनता के दबाव में काम करता हों और कुछ भी न खाता हो सरकार के हित में नहीं होता । बकरी दिनदहाड़े किसी की फिकर किए बिना खेतों को खाने की योग्‍यता रखती थी ,इसलिए उसे ही यह विभाग दिया गया । लोमड़ी धूर्तता और मक्‍कारी के साथ हमेशा ही सत्‍ता में बनी रहते हुए पिछली अनेक सरकारों में कानून मंत्री रह चुकी थी , उसे यह विभाग न दिया जाता यह तो सम्भव न था । सार्वजनिक वितरण और सहकारिता की बंदरबांट के लिए बंदर का का नाम आते ही वो नाचने और कुलाटें खाने लगा । उसकी नजर तो विदेश मंत्रालय पर थी वो बोला ‘ मैने तो बाहर की दुनिया देखी ही नहीं, इसी बहाने कुछ सैर हो जाएगी । जहॉं कुछ समझ में आया तो ठीक नहीं तो टररा कर तो आ ही सकता हुँ ।’ उनसे उपयुक्‍त और कोई था भी नहीं वे ही विदेश मंत्री बने । शेष विभागों में जेल और शिक्षा दस दिन की स्‍कूल शिक्षा प्राप्‍त और जेल में रहने के अनुभवी गर्धब राज ने अपने ही पास रखे और अन्‍य विभाग गधों में बांट कर चरने की खुली छूट दी गई ।
आप के लिए यह सब नया नहीं है क्‍योंकि आप तो अनेकों बार गधादेश में यह सब देख चुके है । अब मंत्रीयों के जलूस उनके क्षेत्र जाति और पार्टी के अनुसार निकल रहे है। जनता को इनसे कोई वास्‍ता नहीं क्‍योंकि वो तो चुनाव रूपी हवन में अपने जला ही चुकी है ।
आलोक मिश्रा