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तिकड़मबाज बहु

संडे का दिन था। लंच करते ही प्रिया ने फटाफट डाइनिंग टेबल समेटा और अंदर से लूडो उठा लाई।"अरे, यह क्या बहु , लूडो ! कौन खेलेगा इसे !"
"हम सब खेलेंगे मम्मी जी!!"
"हम सब !!!" प्रिया की सास हैरानी से उसकी ओर देखते हुए बोली।
" मम्मी जी, आप ज्यादा बनो मत! मुझे पता है । जब दीदी और आपके लाडले छोटे थे। तब आप सब लूडो के कितने दीवाने थे। घंटों लूडो की पारियां चलती थी आप सबकी!! इन्होंने मुझे सब बता दिया है।"
प्रिया की सास कुछ और कहती, उससे पहले ही उन्होंने देखा कि उसके पति यानी कि प्रिया के ससुर उठकर जाने लगे।
"क्या पापा जी, आप हमारे साथ लूडो नहीं खेलोगे ! आपके सुपुत्र ने मुझे यह भी बताया है कि ताश के बाद दूसरे नंबर पर लूडो ही आपका सबसे पसंदीदा खेल है।"
प्रिया की बात सुन उसकी सास व पति अनिल सारा माजरा समझ गये। वह भी उन्हें रोकते हुए बोले "हां सुनो ना!! कितने साल हो गए लूडो खेले । चलो ना आज लूडो खेलते हैं ।"
" हां पापा जी, चलो ना!" अनिल भी जोर देते हुए बोला।
"नहीं, तुम सब खेलो । मेरा मन नहीं है ।" कह वह उदास से अंदर चले गए।
उनके जाने के बाद सब के चेहरे पर भी उदासी छा गई।
प्रिया ने अपनी सास व पति को समझाते हुए कहा "आप दोनों फ़िक्र ना करें ।देखना जल्द ही पापा जी अपने दोस्त के जाने का गम भूल जाएंगे। हां, समय तो लगेगा ही मम्मी जी! बचपन के दोस्त थे आखिर वो पापाजी के ।"
"हां बहू, मुझसे तो उनकी उदासी देखी नहीं जाती। देखो ना कैसे हमेशा हंसते मुस्कुराते रहते थे लेकिन रमेश भाई साहब के जाने के बाद तो बिल्कुल हंसना ही भूल गए हैं।" प्रिया की सास अपनी आंखों में आए आंसू पोंछते हुए बोली।
"मम्मी, अभी तो हम पापा का ही दुख दूर कम करने की कोशिश कर रहे हैं और आप खुद ही गंगा जमुना बहाने लगे।" अनिल उनके गले में बाहें डालते हुए बोला। "चलो, सब छोड़ो। एक पारी खेलते हैं " प्रिया उत्साहित होते हुए बोली।
" बहू, मेरा मन नहीं कर रहा उनके बगैर। अरे मम्मी , आप देखना पापा जी दो-चार दिन से ज्यादा हम लोगों से दूर नहीं रह पाएंगे। देखना, मैं कैसी तिकड़म लगाती हूं।" प्रिया हंसते हुए बोली।
"हां मम्मी, यह बात तो मैं मानता हूं। आपकी बहू , है तो पूरी तिकड़मबाज ।" "अच्छा जी।"
कहकर वह सब लूडो खेलने लगे और खेलते हुए अपनी गोटी कटने पर या जीतने पर इतने जोर से बोलते कि अनिल के पापा को सब सुनाई दे।
उसके बाद तो उन सब ने नियम बना लिया , रात को डिनर के बाद लूडो खेलने का। 1-2 दिन तो अनिल के पापा उठकर अंदर चले जाते लेकिन धीरे-धीरे वह भी उनके पास ही बैठने लगे। हां, खेलते नहीं थे।
एक दिन लूडो खेलते हुए, लगातार प्रिया की गोटियां कट रही थी। अपनी गोटी कटने पर प्रिया नाराज होते हुए बोली " मुझे पता है ! यह तुम दोनों मां बेटों की मिलीभगत है । मुझे अकेली देखकर हराने पर तुले हो। देख रहे हो पापा जी!" कैसे इन दोनों ने मुझे घेर लिया है।
हे भगवान! लगातार पांचवीं बार मुझे हारना पड़ेगा!!! आखिर मैं अकेली जो हूं । मेरा कौन सहारा है ! यहां तो बेटे को मां मिल गई । मुझे कौन सा!!!!"
"अच्छा ठीक है, ठीक है नाटकबाज! तेरे पापा जी तेरे साथ खेलेंगे। फिर देखता हूं इन दोनों की क्या मजाल, जो मेरी बहू को हरा दे।"
यह सुनते ही सबके चेहरे खिल उठे। उसके बाद तो हर दिन लूडो का खेल और बच्चों जैसी तू तू!!!! मैं मैं !!!
अनिल के पापा धीरे धीरे अपने दोस्त के दुख से बाहर आने लगे थे और उनके चेहरे पर खोई हुई मुस्कान लौटने लगी थी। उनके साथ साथ अब सारा घर फिर से खुशी और ठहाकों से गूंजने लगा था।।
सरोज✍️


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