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सौतेला

सौतेला

बगीचे में बैठा अनुराग विचारों में खोया हुआ था । पास ही बस्ता रखा हुआ था, रखा हुआ क्या था, बेतरतीबी से पड़ा था। किताबें-कॉपी बस्ते के बाहर झाँककर उसे मुँह चिढ़ा रही थीं। इन सबसे ध्यान हटाकर वह आसमान की तरफ ताकने लगा।
आज वह बेहद उदास था। उसकी इच्छा नहीं थी कि वह घर जाए। जबकि कहाँ वह रोज ही बड़े उत्साहपूर्वक स्कूल से घर जाया करता था। यहाँ तक कि उसे दोस्तों से बात करने तक की फुर्सत नहीं रहती थी।

आज केवल एक ही बात उसके मस्तिष्क में गूंज रही थी, जिसने पढ़ने में भी मन नहीं लगने दिया। सुबह ही की तो बात है, वह डबलरोटी में मक्खन लगा कर खा रहा था। जब आखिरी के दो टुकड़ों के लिए मक्खन नहीं बचा तो वह दूध वैसा ही छोड़कर, बिना पिये ही गुस्सा होकर बिस्तर पर लेट गया था। आया ने उसे बहुत समझाया था-बेटे यों नाराज नहीं हुआ करते-तुम्हारे डैडी भी तो बिना मक्खन के डबलरोटी खा गए हैं।
वह बोला-पापा खा गए हैं तो क्या हुआ। मैं नहीं खाऊँगा ।
उसने ये वाक्य कुछ इस तरह से कहा कि आया खीझकर बोली-तुम अकेले हो ना इसलिए जिद्दी हो गए हो। दो-तीन भाई-बहिन होते तब समझ में आता।

वह अपने डैडी की इकलौती सन्तान था। जब वह दो वर्ष का था तब ही उसकी माँ गुजर गई थी। डैडी ने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला था। उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। सारी इच्छाएँ पूरी होने के साथ-साथ वह दिन-प्रतिदिन जिद्दी होता गया और इसलिए आज वह जिद्द में चुपचाप पड़ा रहा।
सुबह समझाते हुए अन्त में जब आया ने उसे मनाया तो पाया कि कुछ असर नहीं पड़ रहा है तो वह गुस्से में बोली-आज और खा लो मक्खन रोटी शाम को आ रही है, तुम्हारी सौतेली मम्मी। फिर कुछ नहीं मिलेगा। न ढंग के कपड़े और न अच्छा खाना, पड़े रहना एक कोने में।

ये शब्द उसके सीने को चीरते चले गए। वह यह सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर दूसरी मम्मी के आगे 'सौतेली' शब्द क्यों लग जाता है? वह क्या इन्सान नहीं हैवान होती है जो खाना और कपड़े नहीं देती।

हम सब किसी भी व्यक्ति या वस्तु को, पूर्णरूपेण जाने-पहचाने या देखे-परखे बिना ही लोगों की बातों में विश्वास करके, उसे खरा-खोटा समझ बैठते हैं। लोगों की बातों से हमारे मन में अच्छी या बुरी धारणायें बन जाती हैं, और यही स्थिति अनुराग की भी हुई। उसके नन्हे मस्तिष्क में अनदेखी दूसरी मम्मी के लिए नफरत के भाव पैदा हो गए। जबकि उसने ही कई बार डैडी से कहा था-डैडी सबकी मम्मी सबको स्कूल छोड़ने जाती हैं उन्हें खूब प्यार करती हैं। मनपसन्द की चीजें बनाती हैं हमें भी प्यारी-सी मम्मी ला दो ना।

यह तो मानव प्रकृति है कि जब वह किसी व्यक्ति की बुराई सुनता है तो उसे उस व्यक्ति के गुण भी बुराई नजर आते हैं। या उन गुणों में कोई स्वार्थ झलकता हुआ दिखता है।

आया की बातों ने उसके मन में डैडी की बुराइयों को प्रकट कर दिया। वह सोचने लगा कि डैडी ने उससे कहा भी नहीं कि-वो उसके लिए मम्मी लेने जा रहे हैं।

अभी वह यह सब सोच रहा था कि किसी ने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ रख दिया। उसके विचारों की श्रृंखला टूट गई।

उसने पीछे मुड़कर देखा तो चौंक गया कि डैडी किसी अजनबी औरत के साथ खड़े थे।
डैडी ने बस्ता उठाते हुए कहा-अनु, क्या तुम अभी तक घर नहीं गए? हम तो यहाँ से गुजर रहे थे तभी हमारी नजर तुम पर पड़ गई।
उसने सुना अनसुना कर दिया और गुमसुम बना रहा।
तब डैडी ने उसे जबर्दस्ती उठाते हुए कहा-उठो बेटा, ये देखो कौन हैं? इन्हें नमस्ते करो ये तुम्हारी....
अभी वे इतना ही कह पाये थे कि अनुराग ने एकदम चीख कर कहा-होगा कोई भी मुझे क्या लेना ।
उसके तेवर को देखकर डैडी सकपका गए उन्होंने समझाकर कहा-बेटे ऐसे बदतमीजी से नहीं करते ये-ये तुम्हारी मम्मी हैं।

अनुराग ने फिर भी कुछ नहीं कहा-और चुपचाप उस ओर बढ़ गया जिधर कार खड़ी थी।
रास्ते में उसने एक बार भी न तो डैडी की तरफ देखा और न ही 'नई मम्मी' की तरफ।
घर आकर डैडी ने खाना खाने के लिए बुलाया तो उसने आया से कहलवा दिया कि उसे खाना होगा तो कमरे में ही खा लेगा।
कुछ समय बाद डैडी कमरे में आए और बोले-चलो बेटे खाना खाएँगे तुम्हारी मम्मी तुम्हें बुला रही हैं।
लेकिन वह नहीं गया।

नई मम्मी और डैडी दूसरे कमरे में जोर-जोर से बातें करते हुए खाना खा रहे थे। बीच-बीच में कहकहे भी लग रहे थे। उनकी हँसी उसके जेहन में घाव करती चली गई। वह फूट-फूटकर रो उठा। कहाँ डैडी उसके बिना खाना नहीं खाते थे। आज उन्होंने खाना भी खा लिया। हाँ, आया ठीक ही कहती थी नई मम्मी डैडी को अपने वश में कर लेगी। फिर वह तुम्हारा ख्याल भी नहीं रखेंगे।
आया ने सुबह यह भी ठीक कहा था कि नई मम्मी के आने से अच्छा खाना और ढंग के कपड़े भी नहीं मिलेंगे क्योंकि वो सौतेली है। उसे सब बातें सच प्रतीत होने लगीं। लेकिन क्रोध के आगे भूख अधिक समय तक नहीं रुक पाई। उसने अपने सिर को एक झटका दिया और आया को बुलाया।खाना मंगवाया फिर खाना खाकर सो गया।

केवल सुबह होते ही वह स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा। आज तो सिर्फ दूध ही पीने को मिला। डबलरोटी और मक्खन नदारद थे।
आया से पता चला कि पूरा पैकेट मम्मी उठा ले गयी है। वह फिर खून का घूंट पीकर रह गया।
उसने गुस्से में डैडी से भी नहीं कहा कि उसे स्कूल छोड़ आएँ और पैदल ही चल दिया।

जब खाना खाने की घण्टी बजी तब वह आया की प्रतीक्षा करने लगा कि आया खाना लेकर आती होगी।
उसे बहुत तेज भूख लगी थी। रात को भी ढंग से खाना नहीं खाया था । सुबह नाश्ता भी नहीं किया।
तभी उसका सहपाठी दीपू खाने का डिब्बा लेकर उसके पास आकर बोला-क्यों अनुराग आज तुम्हारा खाना नहीं आया? अरे तुम तो रो रहे हो। क्या बात है?
अनुराग ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा-दीपू मेरे घर में भी सौतेली मम्मी आ गई हैं। उन्होंने डैडी को वश में कर लिया। वे मुझसे प्यार नहीं करेंगे।
दीपू ने कहा - हाँ अनुराग ये सौतेली मम्मी बहुत बुरी होती हैं। हमारे बगलवाला रामू है ना उसकी भी मम्मी सौतेली हैं, वो उसे खूब मारती है। समय पर खाना खाने को भी नहीं देतीं। वो उससे खूब काम करवाती हैं। जब वो बीमार होता है उसे डॉक्टर को दिखाने भी नहीं ले जातीं। वह कुछ चीज माँगता है तो झिड़क देती हैं। उसे अच्छे कपड़े भी पहनने को नहीं देतीं।

उसी समय पीछे से आवाज आई-अनु खाना लो। अनुराग ने पीछे मुड़कर देखा पास ही नई मम्मी हाथ में डिब्बा लिए खड़ी थीं।
पास बैठ कर उसके आँस पोंछते हुए बोली-तुम्हें मटर के चावल बहुत पसन्द हैं न आज वही लाई हूँ। और हाँ तुम सुबह बिना नाश्ते के ही चले आए। मैं अपने कमरे में ब्रेड में मक्खन लगा रही थी। जब बाहर तुम्हें देने आई तो पता चला तुम स्कूल के लिए निकल लिए।
अनुराग के पेट में चूहे कूद रहे थे उसने लपककर हाथ बढ़ाया लेकिन पलभर में ही रुक गया उसे लगा कि इनके हाथ से क्यों लूँ इनका एहसान लेना पड़ेगा लेकिन खाना देखकर पेट की भूख और भी अधिक तेज हो गई थी।
उसने सोचा कि खाना तो मेरे डैडी का ही है ये लाई है तो कौन-सा एहसान कर दिया। उसने शीघ्रता से डिब्बा ले लिया और जल्दी-जल्दी खाना शुरू कर दिया।

जब खाते-खाते अचानक कौर लग गया तब उसे होश आया कि वह खाना बहुत जल्दी खा रहा था।
उसकी आँखें छलछला आईं और हिचकी आने लगी।
उसकी नई मम्मी पास ही खड़ी उसे गौर से देख रही थीं। उसकी ऐसी हालत देखकर उसे जल्दी से उठाया और पानी की टंकी के पास ले जाकर पानी पिलाया ।
तब तक रेस्ट खत्म हो चुकी थी।
वह कक्षा में चला गया और मम्मी घर को चल दीं।
उन्होंने दीपू और अनुराग की सारी बातें सुन ली थीं। उन्होंने अब सोच भी लिया था कि किस तरह अनुराग के दिल में जमे नफरत के भाव हटाने हैं।

शाम को जब अनुराग आया, मम्मी ने चाय तैयार कर रखी थी चाय पीने के लिए उसने ना-नुकुर की तो उन्होंने उसे मनाया और उसकी मनपसन्द टॉफियाँ उसे गिफ्ट में दीं।
चाय पीकर उन्होंने कहा-एक घण्टे आराम करो उसके बाद मैं तुम्हें पढ़ाऊँगी।
उन्होंने बहुत अच्छी तरह से उसे पढ़ाया और कई गलतियाँ सुधारने के लिए कहा । उसके बाद
दो घण्टे तक उसके साथ-साँप सीढ़ी, लुका-छिपी आदि खेलती रहीं।
रात में जब उसे फिर से खाने के लिए बुलाया गया तो अनुराग आनाकानी करने लगा, तब मम्मी ने प्यार से धमकी देते हुए कहा - यदि तुम नहीं खाओगे तो हम भी नहीं खाएँगे। लो हमारी तुम्हारी आज से कुट्टी ।
अनुराग जल्दी ही आग्रह को स्वीकार करके खाना खाने के लिए तैयार हो गया। फिर मम्मी ने एक कहानी सुनाई और एक प्यारा-सा गाना सुनाकर उसे सुला दिया।

सुबह जब अनुराग की आँख खुली तो तब दिन ज्यादा नहीं चढ़ा था। डैडी व मम्मी गहरी नींद में सो रहे थे। घर में कोई नौकर भी नहीं था।
वह पिछले दिन की बातों को सोचने लगा और दीपू की बातों को तौलने लगा। उसने पाया कि मम्मी उसे बेहद चाहती हैं।
उसे लगा कि आया और दीपू झूठे हैं। फिर उसने सोचा हो सकता है वे लोग भी सच कहते हों पर मुझे क्या? सभी की मम्मी एक जैसी थोड़ी ही होती हैं। पाँचों उंगली बराबर थोड़े ही होती हैं। मेरी मम्मी तो खूब अच्छी है।
उसने सोचा कि रात को मम्मी ने उसका काम किया था, अब मैं उनका काम करता हूँ। उसने उठकर चाय बनाई और दरवाजा खटखटाया।

मम्मी ने दरवाजा खोला तो उसने झिझकते हुए गुडमार्निंग की।
मम्मी ने जब उसके हाथ में चाय की ट्रे देखी तो कहा-अरे! ये तुमने क्या किया? चाय पीनी ही थी तो मुझसे कहा होता। तुम क्यों परेशान हुए।
अनुराग गद्गद् हो उठा। वह बोला-आज की बैड टी मेरी तरफ से। कहकर ट्रे मेज पर रख दी। तब तक डैडी की भी आँख खुल चुकी थी।
जब उन्होंने उसके इस बदलते रुख को देखा तो मम्मी से बोले-अरे भई अभी तो तुमने मुझे ही अपने वश में किया था आज अनु को भी वश में कर लिया। आगे बोले-अरे तुम तो बड़ी जादूगरनी हो। हम तुम्हें यहाँ नहीं रहने देंगे। फिर अनु से बोले-क्यों अनु इन्हें वापस भेज दें। ये गन्दी हैं न?
अनुराग की आँखें डबडबा आई। उसने काँपते होंठों से कहा-नहीं डैडी मुझे माफ कर दो मैंने गलत सोचा था । मम्मी अब यहाँ से कहीं नहीं जाएँगी।

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