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फीनिक्स

फीनिक्स

शेफाली ने शादी डॉट कॉम पर अपनी प्रोफाइल बनाने के लिये नेट खोला । शादी डॉट कॉम को सिलेक्ट करने के बाद रजिस्ट्रेशन के कॉलम पर क्लिक किया। कई सारे प्रतिपूर्ति कॉलम स्क्रीन पर उभरे जिन्हें वह पूरा करती गयी।

मेल / फीमेल........................ फीमेल

नेम..........शेफाली शर्मा

डेट ऑफ बर्थ................. सात जुलाई उन्नीस सौ अठहत्तर

रिलीजन.................... हिन्दु ब्राह्मण

लिविंग इन................... शिवपुरी म प्र

हाइट........................... 5‘2

कलर.....................फेयर

ई मेल आदि लिखा और टपके हुए कोड को बॉक्स में लिखकर ओ के कर दिया।

शारीरिक सुख मानसिक सुख पर ही आधारित होता है । ऐसा हाईफाई तो उसने कुछ सोच नहीं रखा...एनआरआई बगैरा...। बस ऐसा कि -उसके आगे पन्द्रह ना हो ? अठारह उन्नीस तो चल जायेगा। पर कोई अच्छा ऑप्शन पापा या घरवालों ने लाकर ही नहीं दिया। कभी कोई पूछता - ‘‘बेटी की शादी कब कर रहे हो’’ तो उत्तर यही होता - हाँ ! ढूंँढ रहे हैं... अच्छा लड़का मिले तब ...। लड़कियाँ पढ़ लिख जाती हैं तो लड़का भी अच्छा देखना पड़ता है।’’

उनके इस उत्तर से सब यही समझते शेफाली को लड़का पसन्द नहीं आता।

दस दिन बाद शेफाली ने अपने ई मेल की साइट खोली और इनबॉक्स चैक किया। पन्द्रह मेल पड़े थे। मेल को सिलेक्ट करने के लिये माउस को गतिमान किया और पहले मेल पर कर्सर लाकर दाएं हाथ की तर्जनी को बांयी ओर प्रेस किया । धड़धड़ाकर पिटारा स्क्रीन पर खुल गया। लड़कों के फोटो और संबंधित का पूरा विवरण मेल पर पड़े थे। पहला मेल ... फोटो कोई खास नहीं था। दिल्ली में सर्विस थी । आय 15000 रुपये मासिक ।

उसने सभी लड़कों के नाम, आय का ब्यौरा तथा पसन्द नापसन्द के साथ-साथ हाइट और सम्पर्क नम्बर आदि कॉपी में नोट कर लिये। साइबर कैफे मालिक को पेमेन्ट कर वह बाहर आ गयी।

अब यह उसका साप्ताहिक क्रम बन गया। हर शनिवार को वह साइबर कैफे आती और मेल बॉक्स चैक करती... उनमें से जिनका विवरण उसे अच्छा लगता उन लड़कों का ब्यौरा नोट करके घर ले आती। पापा उनमें से तीन-चार लोगों का चयन करते... जिसका वेतन आकर्षक होता ेउसे फोन करते। फोन पर बात करते समय भी उनका पहला प्रश्न होता- ‘‘आपकी डिमांड क्या है ?’’

उसकी शादी सात फेरे के वैवाहिक बंधन में न बँधकर डिमांड के घेरे में जकड़ी थी।

ऐसा नहीं कि पापा के पास पैसा नहीं था ! पर वे लड़की की शादी में उसे लुटाना नहीं चाहते थे।

पिछले सात-आठ वर्षों से वह कॉलेज में टेम्परेरी जॉब कर रही थी... लगभग तीन-साढ़े तीन लाख तो उसने ही जोड़ लिये थे। उसके अन्दर एक साथ कई सवाल पैदा हो जाते...पापा ने फोटो नहीं देखा, लड़का कैसा है ? नेचर कैसा होगा ? घर कैसा होगा ? परिवार वाले कैसे हैं... कुछ भी तलाश नहीं , बस एक प्राथमिकता- ‘‘लड़के की डिमांड न हो’’ । यदि किसी की मांग न हो, पर दिखने एवं व्यवहार में भी अच्छा न हो तब ... तब भी क्या पापा मेरी शादी उससे करने को तैयार हो जायेंगे ? जैसे वह उन सब पर बोझ हो।

कई सारे तर्कों-कुतर्कों से घिरी वह चलती जा रही थी ...वहाँ, जो उसका घर होते हुए भी उसका नहीं था । सदियों की परम्परा... वही पुरानी लीक ... परायेपन का भाव, दूसरे के घर जाना है... यही सोच।

पापा कहते ...

क्या देखना घर और वर को ? आर्थिक रूप से सशक्त होना चाहिये, उसकी सेलरी अच्छी होगी तो सारी खुशियाँ घर के द्वार खड़ी नजर आयेंगी। शादी तो समझौता है, लड़की वालों को समझौता करना ही पड़ता हैं... कितना भी पढ़ा लो या नौकरी करा लो... सारे फैसले तो लड़के वालों के हिसाब से ही होने है।

शेफाली के घर में पापा राजबिहारी और मम्मी मधुमालती के अलावा एक छोटा भाई श्रीेेकांत है, जो दिल्ली में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। पापा बैंक से रिटायर हो चुके हैं, मम्मी मिडिल स्कूल में एच.एम. हैं। शेफाली ने अंग्रेजी में एम ए करने के बाद पीएच डी कर लिया था शेक्सपीयर की कविताओं पर। आजकल कॉलेज में टेम्परेरी पढ़ा रही है। जब तक पीएच डी नहीं हुयी थी तब तक लोगों के प्रश्नों का उत्तर उसके घरवालों के पास था, उसकी पढ़ाई पूरी हो जाये फिर शादी करेगी। वह कहती है शादी के बाद पढ़ना नहीं हो पाता...

यह आड़ वर्षों तक घरवालों की ढाल बनी रही। पिछले पाँच वर्षों से न तो उसके पास ही कोई लक्ष्य था न ही कोई ऐसा कारण जो शादी होने के बीच अरावली की तरह खड़ा हो या अटक रहा हो।

शेफाली दो वर्षों से महसूस कर रही थी कि पापा की रुचि उसके विवाह में कतई नहीं रह गयी थी। वह जो पैसा कमाती उसका खर्च अपने हिसाब से नहीं कर पाती। पापा की हिदायत के अनुसार बैंक में जमा कर दिया जाता। धीरे-धीरे उसके द्वारा जमा की राशि में इजाफा हो रहा था जो राशि उसके विवाह के लिये संकल्पित रखी थी वह पापा भूलते जा रहे थे। पापा ऐसे रिश्ते पसन्द करने लगे, जो दहेज न मांगे ! उनके हिसाब से शेफाली की जमापूंजी में ही शादी निबट जाये ।और ऐसे डिमाण्डलैस रिश्ते जो आत,उनमें लड़का न तो शक्ल में और न ही अक्ल में अच्छा होता , न अच्छी नौकरी और न ही अच्छा घर - परिवार। समझौते का कोई आधार तो बने।

अखबार में विज्ञप्ति क्या निकली, जैसे वह सरकारी सम्पत्ति हो गयी। एम. ए. पीएच. डी. लड़की के लिये आठवीं पास लड़के भी पत्र भेजने लगे। कुछ पत्र तो ऐसे उम्मीदवारों के भी आये जिनके दो-दो , तीन - तीन बच्चे थे।

बढ़ती उम्र देख पापा कहते अब तो दूजा वर ही देखना पड़ेगा।

गोया जानबूझकर उसके सामने ऐसा प्रस्ताव लाया ही नहीं गया जो अच्छा हो और जिसके लिये वह स्वीकृति दे पाए ! किन-किन बातों में वह समझौता करे... पढ़ाई में, नौकरी में , रंग-रूप में या उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति में...। यदि इन सबसे ही उसे समझौता करना है तो फिर कुमारी ही भली। कम से कम अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से तो जी लेगी। घर बैठे तो कोई हाथ मांगने आयेगा नहीं। पापा की बढ़ती उम्र उनकी बीमारी बनती जा रही थी। उनकी अदद सेवा में वही लगी हुयी थी। मन में द्वन्द्व चलने लगता ... कोई अच्छा लड़का मिल जाये तो वह भाग जाये और शादी का किस्सा खत्म कर दे...। साथ की और बाद की भी सभी लड़कियों की शादियाँ कब की हो चुकी...। उनके किस्से, टी व्ही के सीरियल... सब मन पर , शरीर पर दस्तक दे रहे थे। वह सोच रही थी कैफे तो खुद ही जाती हूँ - क्यों न कोई अच्छा लड़का देख खुद ही बात शुरू कर दूँ...।

नितिन की प्रोफाइल उसे ठीक लगी। इस बार उसने कैफे में डरते सहमते नितिन को ई मेल किया। उसने अपना मोबाइल नम्बर लिख दिया था। उस रात ही नितिन का कॉल आया - ‘‘हलो मैं नितिन भारद्वाज गाजियाबाद से बोल रहा हूँ । ’’

‘‘...ज....जी ....’’

‘‘ आप शेफाली जी बोल रही हैं ?’’ चहकता हुआ स्वर

‘‘जी ... हाँ’’

‘‘आपका मेल मिला था’’

बातों का सिलसिला शुरू हो गया ....।

फिक्सड टाईम... नाइट कॉलिंग

घंटों बातें होतीं। और मोबाइल पर एसएमएस होते। यों एक दूसरे की पसन्द-नापसन्द सबसे परिचित हो चुके । जब पन्द्रह-बीस दिन गुजर गये ,वह कैफे नहीं गयी तो राजबिहारी जी ने टोका, ‘‘ शेफाली मेल चेक कर आना।’’

वह मजबूरी में गयी और आठ दस मेल में से चार ऐसे लड़को के विवरण लिख लिये जिनकी सेलरी कम थी। नितिन के कहे मुताबिक शेफाली ने उसे मैसेज भेजा वह कैफे में है। नितिन भी ऑन लाइन हो गया ।

दोनों 45 मिनट चैट करते रहे।...

नितिन ने अपने कई फोटोज मेल कर रखे थे।

रोज की आत्मीय, चुहलभरी बातचीत ने दोनों के हृदय में एक-दूसरे के लिए सुनिश्चित स्थान बना लिया था।

पापा का कहना था कि- लड़का यदि पसन्द करता हो और दिलोजान से चाहता हो तो किसी भी कीमत पर शादी के लिये तैयार हो जायेगा।

दो माह बाद जब उन्हें लगा कि वे जीवनसाथी बन सकते हैं... नितिन ने मिलने की इच्छा प्रकट की।उस दिन ही शेफाली ने मम्मी को बताया था नितिन के बारे में। घर में जैसे ही पता चला सन्नाटा छा गया। मम्मी अधिक परेशान थीं पापा ने ही उन्हें समझाया ...विवाह उसकी मर्जी से हो तो और भी अच्छा है कभी कुछ कहने सुनने को नहीं बचेगा। बस उन लोगों की डिमांड न हो।

अगले रविवार को नितिन आया । नितिन ने शेफाली से कह दिया था मैं तुम्हें देखकर अपने बालों पर हाथ फेरूँ तो समझना तुम मुझे पसन्द हो। हुआ भी यही जब सुबह वह नाश्ता कर रहा था तब एक हाथ में समौसा लेकर दूसरा हाथ सिर पर फेरते हुए वह बोला, ‘‘ मुझे पसन्द है।’’ सब समझे वह समौसे के लिये कह रहा है। शेफाली समझ गयी ,उसके गालों पर लाज की रेख खिंच गयी। नितिन ने तो एकांत पाते ही अपनी मौखिक स्वीकृति भी दे दी। बदले में शेफाली ने मुग्ध भाव से गर्दन हिला दी। पापा की राय जानना जरूरी है कहकर उसने नितिन की खुशियों पर ब्रेक लगा दिया।

सभी लोग छत्री घूमने गये। मौसम देख दोनों के मन में जलतरंग बज उठां। नितिन के आग्रह पर शेफाली ने गाना सुनाया...

चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना कभी अलविदा न कहना....

सेलिंग क्लब, भदैया कुण्ड जैसे दर्शनीय स्थल देखे । चांद पाठा में बोटिंग करते लहरों की तरंगें दिल की ध्वनि तरंगों का साम्य बनने लगीं। साहचर्य और नजदीकी उनके रिश्ते को प्रगाढ़ बना रहे थे। बोटिंग करते-करते शेफाली ने उसे ‘जॉन डन’ की पोयम ‘‘द कैननाइजेशन’’ की पंक्तियाँ सुनायीं -

ज्ीम च्ीवमदपग तपकसम ींजी उवतम ूपज

ठल नेए ूम जूव इमपदह वदमए ंतम पजए

ैवए जव वदम दमनजतंसस जीपदह इवजी ेमगमे पिज

ॅमम कलम ंदक तपेम जीम ेंउमए ंदक चतवअम

डलेजमतपवने इल जीपे सवअम

(फीनिक्स पक्षी की पहेली हमारे प्रेम की समझ को और अधिक सार्थक तथा प्रगाढ़ करती है, हम दो होते हुए भी एक हैं। इसलिये हमारे दो सेक्स इतनी पूर्णता से परस्पर फिट होते हैं और सेक्सरहित एक व्यक्ति बन जाते है। यह प्रेम सेक्स भावना से कहीं ऊपर हैं । मृत्यु के पश्चात् हम पुनः जीवित होकर वही बन जाते हैं जो पहले थे ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार फीनिक्स पक्षी अपनी ही भस्म से पुनः जीवित हो जाता है और यह प्रेम हमें एक रहस्य देता है जो आदर योग्य होता है। )

और प्रश्न करते हुए नितिन की आँखों मे झांका-‘‘क्या हमारा प्रेम भी यही है ?’’

प्रश्न ने नितिन को थोड़ा सोच में डाल दिया। कुछ ठहरकर वह बोला-‘‘हमारा प्रेम, प्रेम है-सच्चा प्रेम ,पर रहस्यमय नहीं है और न ही काम भाव से परे। फिर नितिन ने शेक्सपीयर की ‘‘ज्ीम चीवमदपग ंदक जीम जनतजसमश्की कुछ पंक्तियाँ शेफाली को सुनाईं-

भ्मतम जीम ंदजीमउ कवजी बवउउमदबम

स्वअम ंदक बवदेजंदबल पे कमंक

च्ीवमदपग ंदक जीम ज्नतजसम सिमक

प्द ं उनजननंस सिंउम तिवउ ीमदबम

(यहाँ से एन्थम (गीत) की शुःरुआत होती है। प्रेम और निरंतरता अब मर चुके है। फीनिक्स और टर्टल अब उड़ चुके है यहाँ से, एक ही ज्वाला बन कर।)

शेफाली ने अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए कहा-‘‘फीनिक्स पक्षी एक मिथक है ?’’

‘‘ एक काल्पनिक पक्षी जो अरब के रेगिस्तान में सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहता है , तब स्वयं को जला डालता है फिर अपनी ही भस्म से पुनः युवा के रूप में जीवित होकर वही चक्र दोहराता है।’’

थोड़ा रुककर नितिन ने कहा -‘‘फीनिक्स अपने आप में पूर्ण नहीं है। उसका पूरक टर्टल (सुंदरता की देवी वीनस का फाख़्ता) है। इसमें रहस्य नहीं है । तुम मेरा और मैं तुम्हारा पूरक हूँ।’’

शेफाली ने गहरी साँस लेकर कहा-‘‘लेकिन शेक्सपीयर ने ये भी तो कहा है-

ैव जीमल सवअष्क ंे सवअम पद जूंपद

भ्ंक जीम मेेमदबमे इनज पद वदमरू

‘‘हाँ बिल्कुल,’’ कहकर नितिन ने स्टैंजा को पूरा करने के लिये आगे की पंक्तियाँ सुनायीं-

ज्ूव कपेजपदबजेए कपअपेपवद दवदमरू

छनउइमत जीमतम पद सवअम ूंे ेसंपदण्

(प्रेम अपने आप में इतना व्यापक है कि वहाँ संख्या का कोई अस्तित्व नहीं है। दो अलग -अलग जीवों की तरह उन्होंने (फीनिक्स और टर्टल ने ) प्रेम किया लेकिन उनका(उनके प्रेम का) सार एक होने में ही है। दो अलग-अलग शरीर होते हुए भी कोई विभाजन नहीं है क्योंकि संख्या का प्रेम में कोई अस्तित्व नहीं हो सकता।)

अब शेफाली ने कुछ हल्कापन महसूस किया और नितिन का हाथ पकड़कर बोली-‘‘हाँ बाबा ये सब तो ठीक है, आइ एग्री बट टैल मी(मै सहमत हूँ लेकिन ये बताओ) कि हमारा प्यार फीनिक्स और टर्टल, प्रकृति और पुरुष के प्रेम की ही तरह है ना...अमर...निरंतर...प्रगाढ़....?’’

नितिन ने शेफाली का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसके कान के पास मँुह ले जाकर धीरे से फुसफुसाया-‘‘हूँ’’।

जाते समय उसने शेफाली से कहा था मेरे पापा से बात कर लें तुम्हारे पापा। अन्तिम निर्णय उनका ही रहेगा। सुनकर शेफाली चौंक गयी थी।

नितिन को देखकर पापा-मम्मी को एक ठोस बहाना मिल गया था , लड़का बहुत सांवला हैं।

शेफाली किसी भी बहाने के कारण उसे ठुकराना नहीं चाहती थी। उसे भी अपनी कमियाँ मालूम थीं। पापा के सामने नितिन का रंग मूल कारण न था वल्कि उनकी देखभाल कौन करेगा ये सबसे ठोस कारण था।

‘‘वह दिल का बहुत अच्छा है माँ’’ उसने तर्क देते हंुए कहा था।

’’लेकिन जोड़ी तो ठीक होना चाहिये ’’ माँ ने प्रतिवाद किया

‘‘मम्मी जब विवाह एक समझौता है तो ये समझौता मुझे पसन्द है’’

नितिन को उन लोगों के फैसले का इन्तजार था। उसने शेफाली के सेल पर मैसेज छोड़ रखे थे। दो दिन बाद शेेफाली की कॉल देखते ही उसने धड़कते दिल से रिसीव किया। वह भी अपनी कमी से अनभिज्ञ न था। एक पढ़ी-लिखी ,सुसंस्कृत लड़की जीवनसाथी के रूप में पाने की उसकी भी लालसा थी। अब तो वे एक दूसरे को दिलोजान से चाहते भी हैं।

बमुश्किल उसने पापा को मनाया और तय हुआ कि अगले सण्डे को गाजियाबाद जाकर नितिन के घरवालों से बात कर शादी को अरेंज किया जायेगा। शादी की तारीख भी निकलवा ली राजबिहारीजी न,े बस नितिन के मम्मी-पापा से मिलना शेष था। राजबिहारी जी ने नितिन के पापा से मिलने के लिये समय मांगा तो उनका पहला प्रश्न था, ‘‘ कितने की शादी करोगे ?’’

राजबिहारी चौंकते हुए बोले, ‘‘ पर... नितिन ने तो बताया था हमारी कोई डिमांड नहीं है तभी हम आगे बढ़े थे।’’

एक सख्त स्वर उभरा था फोन पर,‘‘उसके कहने से क्या होता है... लड़की पसन्द करना उसका काम है बाकी काम हमारा हैं ’’

राजबिहारी को नितिन वैसे भी पसन्द नहीं था उन्हें बहाना मिल गया।

शादी डॉट कॉम फेल होने की कगार पर आ गया। इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि लड़का संस्कारी था जो माता-पिता को अलग कर नन्हे पाव चलते प्यार को आगे नहीं बढ़ा सका। वह अपने निर्णय पर अडिग नहीं रह पाया या निर्णय इतना कमजोर था कि अधिक समय तक खड़ा नहीं रह सका। सपनों का महल धड़धड़ाकर गिर गया। तीन माह का सम्पर्क तीन जन्मों का लगने लगा था। मनमुटाव, बातों में खटास आना शुरू हो गयी थी और नेट के सम्बन्ध बिखर रहे थे। पापा-मम्मी की अनुमति के बिना वह कुछ नहीं कर सकता था।

शेफाली के मन में द्वंद्व चलने लगता ...हमारा प्यार प्रथम दृष्टया प्यार तो था नहीं जो एक बार देख लेने भर से प्यार हो गया हो। ये तो सोचने समझने के बाद लिया गया फैसला था । क्या उसमें इतना पौरुष नहीं था ? जब माँ - बाप की मर्जी से ही विवाह करना था तो प्यार भी उनसे पूछकर , उनकी अनुमति से करना था। प्यार करते समय तो ऐसे दिखा रहा था कि पता नहीं कितना जज्बा है उसके अन्दर, पर मौका पड़ने पर मुँह छिपा लिया।

उसकी सोच निरंतर जारी थी... प्यार एक अहसास है, प्यार उमंग और उत्साह भर देता है जिन्दगी में, प्यार खुशी है... प्यार जिन्दगी है... तो क्या प्यार न रहे तो जिन्दगी भी न रहे ...ऐसा तो न होगा। वह प्यार के वियोग में आत्महन्ता नहीं बनेगी। वह जिएगी...प्यार के न रहने के अहसास के साथ ...वह उसे दिखा देगी कि वह उसके बिना भी जी सकती है... वह आत्मविश्वास से भर गयी। प्यार खुशी दे तो जिन्दगी है ...प्यार दुःख दे तो एक बीमारी। उस बीमारी को जड़ से उखाड़ने की आवश्यकता है। प्यार के वजूद को बनाये रखने के लिये ऐसे अनिश्चित, असफल प्रेम को जो अस्वास्थ्यकर बन चुका है ; मन से , दिलो-दिमाग से उखाड़ फेंकना ही होगा। ...

उस दिन वह जी भरकर रोयी थी, शायद ! विरेचन के लिये यह आवश्यक था। अरस्तु ने ‘‘ ब्ंजींतेपे ’’ (विरेचन) शब्द का प्रयोग किया था। चिकित्सा शास्त्र मे इसका अर्थ है- रेचक औषधियों द्वारा शरीर के मल या अनावश्यक एवं अस्वास्थ्यप्रद पदार्थ को निकालना।

उसे याद आ रहा था अरस्तु का मत: ‘‘ त्रासदी करुणा तथा त्रास के कृत्रिम उद्रेक द्वारा मानव के वास्तविक जीवन की करुणा और त्रास-संबंधी भावनाओं का निष्कासन करती है, त्रासदी के पठन और प्रेक्षण से संयत रूप में करुणा और भय का जो संचार होता है, उससे व्यावहारिक जीवन में करुणा और भय के प्रचण्ड आवेगों को झेलने की शक्ति आ जाती है। ’’

लगभग तीन माह बाद शेफाली कैफे आयी थी। कई दिनों से उसने मेल चैक नहीं किया। उसने इनबॉक्स खोला , एक ही व्यक्ति के दस मेल चार पाँच दिन के अन्तराल से पड़े थे। श्रेयांश भार्गव कौन है यह जानने की जिज्ञासा उसे हुयी। दिल्ली में उसका ऑफिस , बनारस का रहने वाला... बी ई एम.बी.ए. सारी जानकारी के साथ फोटो भी था। अन्तिम मेल में उसने कॉन्टेक्ट नम्बर मांगा था। उसने अनमने भाव से कम्पोज मेल पर जाकर उसे अपना मोबाइल नम्बर सेन्ड कर दिया। उसने कैफे के काउन्टर पर पेमेन्ट किया और घर की ओर चल दी।

उस रात ही श्रेयांश का फोन आया , शेफाली ने ज्यादा रूचि नहीं दिखायीं।

शेफाली उससे कुछ छुपाना नहीं चाहती थी । पन्द्रह दिन के वार्तालाप में उसने अपना सच उसे बता दिया। दोनों एक दूसरे की पसन्द-नापसन्द से परिचित हो गये। श्रेयांश उसकी स्पष्टवादिता से बेहद प्रभावित हुआ।

उसने फोन पर कहा- ‘‘मैं मिलना चाहता हूँ’’

‘‘मिल लेंगे... अभी एक-दूसरे को जान समझ तो लें’’

‘‘मैं जल्दी निर्णय लेना चाहता हूँ’’

‘‘मैं अभी पूरी तरह स्थिर नहीं हो पायी हूँ’’

‘‘इसीलिये तो जल्दी मिलना चाहता हूँ’’

‘‘पर मैं कैसे विश्वास कर लूँ’’ कहते-कहते वह रो पड़ी थी’’ इस बार वह जल्दबाजी करना नहीं चाहती थी।

‘‘सच मानो मेरी शादी में मेरा ही फैसला अंतिम होगा, यदि मम्मी-पापा नहीं मानेंगे तो भी मैं हर हालात में शादी करने को तैयार रहूँगा , बस एक बार मिल तो लो ...’’

............

‘‘और सुनो मेरे हाथ तुम्हारे आँसू पौंछ रहे हैं’’

........

‘‘एक के धोखा देने पर किसी पर विश्वास न करो ये गलत है। मैं खुद अभी तुमसे कोई वादा नहीं कर रहा और न ही तुम्हें मजबूर कर रहा। बस एक बार मिल लो...’’ वह समझा रहा था।

जाने क्या जादू था उसकी आवाज में वह मना नहीं कर पायी

‘‘...ठीक है...’’

‘‘पहले हम दोनों मिलेंगे यदि तुम्हें सब ठीक लगे तो पेरेन्ट्स से मिलवाना ओ के’’

‘‘ओ के’’ वह धीरे से बुदबुदायी ।

शहर के छोटे से होटल में शेफाली अपनी एक सहेली के साथ पहुँची। दोनों ने एक दूसरे को पसन्द कर लिया। दो घन्टे की बातचीत के बाद वह चला गया।

शेफाली को लगता कहीं ये भी नितिन की तरह अपने वादे पर अडिग न रहा तो... कहीं इसने भी अपने पेरेन्ट्स के कहने पर डिमांड पर जोर दिया तो... पापा-मम्मी पता नहीं कितना सुनायेंगे। पहले भी तो कितना कुछ सुनना पड़ा था- ...शादी की जल्दी हो रही है इसलिये बिना सोचे-समझे, जांचे-परखे उसे बुला लिया।... माँ-बाप बच्चों के दुश्मन नहीं होते यही हम देखते तो सब ठोक बजाकर देखते पहले।...

दिल्ली पहुँचकर वह आग्रह करने लगा अब मुझे तुम्हारे पापा-मम्मी से मिलना चाहिये। शेफाली ने थोड़ा और वक्त मांगा ।

‘‘...जब तक तुम खुद आने को नहीं कहोगी तब तक नहीं आऊँगा’’

‘‘आपके परिवार की कोई डिमांड तो नहीं है....’’ शेफाली घबराकर पूछती

‘‘तुम एक ही प्रश्न बार-बार क्यों करती हो ? ’’

‘‘मैं सन्तुष्ट होना चाहती हूँ’’

‘‘ठीक है ,! सिर्फ एक डिमांड है ...’’

इस उत्तर ने उसे फिर चौंका दिया। वह चिन्तित होकर बोली, ‘‘क्या...डिमांड है ?’’

वह कहकहा लगाकर बोला, ’’प्यारी-प्यारी शेफाली... और कुछ नहीं , क्या हुआ चिन्ता में तो नहीं पड़ गयीं ’’

..........

‘‘चलो अपना गाल आगे करो , उसे थपथपाकर कहूँगा पगली ....’’

नेट पर फ्री में ूंल2ेउे की सुविधा है

‘‘अच्छा एक काम करना , नेट पर अपने मोबाइल नंबर का ूंल2ेउे पर खाता खोल लेना, फिर तुम्हारे मोबाइल पर उसका पासवर्ड आ जायेगा। उसके जरिये तुम मुझे मोबाइल पर मैसेज कर सकती हो।

श्रेयांश से चैटिंग करते समय दो-तीन बार नितिन का इनविटिशेन उसके स्क्रीन पर उभरा, उसने उससे बात नहीं कीं। थोड़े दिन बाद ही उसने अपना ई मेल आइ डी चेन्ज कर लिया और श्रेयांश को भी कारण बता दिया।

जबसे वह मिलकर गया है , हर बार बात करते समय उसका प्रश्न होता क्या पहना है ? किस कलर का ?

वह आश्चर्य करती तो कहता- ‘‘इससे इमेजिनेशन करने में परेशानी नहीं होती।’’

वह कैफे में होती उस समय यदि वह टूर पर होता तो कहता तुम नेट से ूंल2ेउे (वे टू एस एम एस ) मेरे मोबाइल पर करो। फिर वह ‘‘वे टू एस एम एस’’ करती और वह उसके मोबाइल पर मैसेज रिप्लाय कर देता।

कुछ दिन बाद वह आया ,शादी की डेट भी निकलवा लाया था। शेफाली के पापा-मम्मी भी तैयार हो गये ,वो चाहते थे ज्यादा खर्च न हो।

‘‘ऐसा करिये आप सब दिल्ली आ जाइये। जितने रिश्तेदारों को बुलाना है बुला लीजिये। शादी का अरेंजमेन्ट तो मुझे ही करना है।’’

‘‘आपके घरवाले...’’ पापा का स्वर उभरा

‘‘पापा-मम्मी तो तैयार नहीं हैं’’

सुनकर राजबिहारी जी परेशान हो गये

‘‘उनकी परेशानी समझ उसने आश्वासन दिया, घबराइये नहीं मैं हर स्थिति में शेफाली का साथ देने को तैयार हूँ ’’

कमरे में सामान उठाने आया तो दरवाजे पर शेफाली को खड़ा पाया। उसने शेफाली के सर पर हाथ फेरा आश्वासन भरा, वह उससे लिपटकर रो पड़ी थी। उसने आँसू हथेलियों में समेटते हुए कहा ,‘‘ नहीं अब एक बूँद भी नहीं गिरने दूँगा । मुझे तुम्हारी कद्र है। मुझे पैसों की कोई कमी नहीं है। बस एक अच्छा और सच्चा जीवनसाथी चाहिये ।’’

‘‘.........’’

तर्जनी से उसकी ठोड़ी ऊपर करते हुए कहा, ‘‘...मुझे सफर करना है, उदास छोड़कर जाऊँगा तो मेरा मन नहीं लगेगा।....मुझे हँसती हुयी शेफाली चाहिये ।’’

रोते-रोते मुस्करा दी वह । वह चला गया मन में आत्मीयता और दिल में प्यार के जज़्बे को छोड़ गया।

शेफाली को शेक्सपीयर की कविता ‘फीनिक्स एण्ड टर्टल’’ की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं-

(कोई संतान या पीढ़ी नहीं छोड़कर जाना, यह उनकी कमजोरी नहीं, बंधन की पवित्रता है।)

शेफाली को लग रहा है फीनिक्स जलकर भस्म होता है और अपनी ही राख से पुनः पैदा होता है ,युवा के रूप में जीवित होकर वही चक्र दोहराता है। उसे लग रहा है कि इस बार फीनिक्स और टर्टल मिलकर ही रहेंगे।

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