फाँसी के बाद - 17 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 17

(17)

“रात आप रनधा की कैद में थे । अगर वह आपको मार डालना चाहता रहा होता तो रात ही मार डाले होता – इस प्रकार आपको मारने के लिये बम न फेंकता । इससे साबित होता है कि बम फेंकने वाला आपका कोई दूसरा शत्रु था । मैं उस शत्रु का नाम जानना चाहता हूं ।”

“मेरा कोई शत्रु नहीं है । भला कोई क्यों मेरा शत्रु हो सकता है ?”

“इसलिये हो सकता है कि आपने मादाम ज़ायरे को उसके हवाले नहीं किया – इसलिये अच्छा यही है कि आप उसका नाम बता दें वर्ना आज नहीं तो कल आप ज़रुर उसकी गोली का निशाना बन जायेंगे और अगर आप बता देंगे तो यह ख़तरा दूर हो जायेगा ।”

“अब आप से क्या छिपाना कैप्टन !” – सुहराब जी ने होठों पर ज़बान फेरते हुए कहा – “मादाम ज़ायरे का सबसे बड़ा चाहने वाला मैं ख़ुद हूं । मगर अब मुझे इसका एहसास हुआ कि जितनी दौलत मैं उस पर खर्च कर रहा हूं उस अनुपात से उसका झुकाव मेरी ओर नहीं है तो मैंने उसे ताना दिया । इस पर कहने लगी कि एक आदमी ऐसा भी है जो मुझसे अधिक उस पर खर्च करने के लिये तैयार है । जब मैंने उस आदमी का नाम पूछा तो पहले वह इन्कार करती रही फिर कहा कि परसों रात में डांस के बाद बता देगी, मगर परसों रात ही उस पर डांस के मध्य में ही गोली चलाई गई – अब वह अस्पताल में है और कदाचित एक सप्ताह तक मैं अभी उससे न मिल सकूँगा ।”

“आपको किस पर संदेह है ?”

“हर उस आदमी पर जो मेरे ही समान धनवान है ।”

“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि मादाम ज़ायरे ने अपना मूल्य बढ़ाने के लिये आप से यह बात झूठ कही हो ?”

“पहले मैंने भी यही समझा था मगर बाद में मालूम हुआ कि वह झूठ नहीं बोलती इसलिये कि बाद में मुझे लंदन से यह सूचना मिली थी कि हाल ही में मादाम ज़ायरे ने एक ऐसी कंपनी के एक लाख पौंड के हिस्से ख़रीदे हैं जो मशीनों पर कर्ज़ देती है ।”

“और उसी कंपनी से आप लोग अपने प्रोजेक्ट के लिये कर्ज़ ले रहे हैं ?”

“जी हां ।”

“तो फिर कर्ज़ मत कहिये बल्कि यह कहिये कि इस प्रकार आप लोग अपना काला धन सफ़ेद कर रहे हैं ।” – हमीद ने मुस्कुराकर कहा फिर पूछा – “आप लोग कहां ड्रिंक कर रहे थे ?”

जब सुहराब जी ने उस तहखाने का पता बता दिया तो हमीद ने पूछा ।

“उस गोदाम नुमा इमारत का मालिक कौन है ?”

“मैं और बाटलीवाला ।”

“तहखाने के ऊपर वाले फ्लैट में जो आदमी अपनी बीवी और साली के साथ रहता है उसका क्या नाम है ?”

“वह बूचा का भाई है । उसे एक बार सजा भी हुई थी ।”

“आप सातों में कितने कुंआरे हैं और कितने अपनी बीवियों को खा चुके हैं ?”

“प्रकाश और नागर कुंआरे हैं और बाटलीवाला दो बीवियां खा चुका है – बाकी हम सब की बीवियां हैं ।”

“फिर भी आप लोग इश्क और ऐयाशी करने से बाज़ नहीं आते और आप लोगों में से हर एक आदमी सीमा से शादी करने का इच्छुक है – क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”

“आप ठीक कह रहे हैं ।”

“मगर कठिनाई यह है कि आप में से जिनकी बीवियां जीवित हैं वह सीमा से ब्याह न करके उसे रखैल की सूरत में रखना चाहते हैं जो सीमा को मंजूर नहीं और जिससे सीमा ख़ुद शादी करना चाहती है वह शादी करने पर तैयार नहीं...।”

“आप कहना क्या चाहते हैं ?” – सुहराब जी ने बात काटकर कहा ।

“यही कि वीना का अपहरण इसीलिये किया गया था कि उससे शादी नहीं की जा सकती थी और अब पांच करोड़ वाले प्रोजेक्ट द्वारा सीमा को जाल में फंसाने की कोशिश की जा रही है । मादाम ज़ायरे भी इसी चक्कर का शिकार है – अब देखना यह है कि औरतों के इस चक्कर के पीछे कौन है ।” – हमीद ने कहा और उठ गया ।

***

जिस समय हमीद अपने डी. आई. जी. साहब के बंगले पर पहुँचा उस समय लगभग सभी बड़े आफिसर उसे लाउन्ज में मिले । वह सब डी. आई. जी. के बंगले से निकले थे और सबके मुंह लटके हुये थे । शायद डी. आई. जी. ने उन्हें फटकारा था । हमीद को देखकर उन्हें और जलन सी हो गई । एक ने दुसरे से कहा ।

“मुगले आज़म तो लंदन में तीर मारने गये है – और अब देखना है कि शहजादे सलीम साहब यहाँ कौन सा तीर मारते है ।”

“चचा आसिफ़ नहीं दिखाई दे रहे है ?” – हमीद ने एक से पूछा ।

“वह बेचारे तो जब से रनधा की कैद से छूटे है तब से अकेले बाथ रूम भी नहीं जाते फिर यहाँ तक कैसे आ सकते थे ।” – उसने उत्तर दिया ।

हमीद ने फिर कुछ नहीं पूछा और मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया । फिर जैसे ही डी. आई. जी. के कमरे में पहुँचा उन्होंने पूछा ।

“क्या रहा ?”

हमीद ने पूरी रिपोर्ट देने के बाद कहा ।

“मुझे सुहराब जी – नौ शेर – प्रकाश – मेहता – लाल जी और मादाम जायरे का वारन्ट गिरफ्तारी चाहिये ।”

“रनधा को क्यों भूल गये ?”

“रनधा को फाँसी हो चुकी है सर और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि कल से आज तक जितनी घटनायें हुई है उनमें इन्हीं छः आदमियों में से किसी का हाथ था ।”

डी. आई. जी. कुछ कहने ही वाला था कि फोन की घंटी बजी और उन्होंने लपक कर रिसीवर उठाया और बोला ।

“हलो ।”

“लाइन पर रहिये श्रीमान जी.......हेलो.......लंदन.....योर पार्टी हियर प्लीज......हेलो...हाँ...डी. आई. जी. फ्राम सेन्ट्रल इंटेलिजेंस.....हेलो....कर्नल विनोद प्लीज.....हाँ बात कीजिये ।”

“हलो...मैं डी. आई. जी. बोल रहा हूँ....हाँ कैप्टन हमीद यहां है....उसे दे रहा हूँ ।”

उन्होंने रिसीवर हमीद को दे दिया और उसे विनोद की आवाज़ सुनाई देने लगी ।

“मुझे परिस्थिति का पता है । मैं कल संध्या तक पहुँच रहा हूँ । तुम बहुत अछे जा रहे हो । अपना पूरा ध्यान सीमा पर लगा दो । उसी द्वारा तुम वास्तविक अपराधी तक पहुंच सकते हो । थोड़ी देर बाद तुम से ब्लैकी मिलेगा उसकी मंत्रणा का विचार रखना ।”

फिर जब हमीद ने उन छः आदमियों को गिरफ़्तार करने वाली बात कही तो विनोद की आवाज आई ।

“नहीं – इसकी आवश्यकता नहीं । जल्द बाजी काम खराब कर देगी । बस तुम सीमा का ध्यान रखो और अब रिसीवर डी. आई. जी. साहब को दे दो ।”

हमीद ने रिसीवर डी. आई. जी. की ओर बढ़ा दिया । वह केवल सिर हिलाते रहे और विनोद की आवाज़े सुनते रहे फिर रिसीवर रख कर हमीद से पूछा ।

“हा – तो तुम सीमा के यहाँ जा रहे हो ?”

“जी हां । कर्नल साहब ने यही आदेश दिया है ।” – हमीद ने कहा और स्लूट करके बाहर निकल आया ।

मगर सीमा के घर जाने के बजाय मादाम जायरे की कोठी की ओर चल पड़ा । यद्यपि सुहराब जी ने उससे कहा था कि मादाम जायरे अस्पताल में है मगर न जाने क्यों उसे विश्वास था कि आज की रात वह घर पर ही होगी ।

मादाम जायरे के निवास स्थान के निकट पहुँच कर उसने मोटर सायकिल एक पेड़ की आड़ में खड़ी कर दी । यह सुनसान इलाका था । कुछ बड़ी बड़ी कोठियाँ थीं मगर इस समय सब अंधकार में डूबी हुई थी । वह गृह बाटिका में दाखिल हो गया गया तभी उसके कान के निकट से एक गोली शांय करती हुई निकल गई और वह जल्दी से ज़मीन पर लेट गया फिर पेट के बल रेंगता हुआ इमारत की ओर बढ़ने लगा । तभी तारों की छाँव में उसने एक दूसरे आदमी को देखा जो उसी के समान रेंगता हुआ दूसरी ओर से इमारत की ओर बढ़ रहा था । वह उस आदमी के बारे में कुछ सोचने भी नहीं पाया था कि फायरिंग होने लगी । जान बचनी मुश्किल हो गई इसलिये वह इस प्रकार चीखा जैसे उसे गोली लग गई । फिर उसने दौड़ते हुये क़दमो की आवाज़े सुनीं जो उसी की ओर आ रही थीं । अब वह अपनी बचत का उपाय सोचने लगा कि अचानक उस आदमी ने फायरिंग आरंभ कर दी जो दूसरी ओर से रेंगता हुआ इमारत की ओर बढ़ रहा था । परिणाम यह हुआ कि दौड़कर आने वाले दूसरी ओर मुड़ गये और फिर सन्नाटा छा गया । हमीद वैसे ही चुपचाप लेटा रहा और दुसरे रेंगने वाले को अपनी ओर आता हुआ देखने लगा । वह समझ गया था कि यह अपनी ही जात बिरादरी का आदमी होगा इसलिये मुतमइन था । वह आदमी निकट पहुँच कर हमीद को मुर्दा समझ कर उठाने के लिये झुका ही था कि हमीद ने कहा ।

“मैं ज़िन्दा हूँ – तुम कों हो दोस्त ?”

“ब्लैकी – मेरे बारे में कर्नल साहब ने आपको बताया होगा – वैसे अपने विश्वास के लिये मेरा कार्ड देख लीजिये ।”

हमीद ने पेन्सिल टार्च के प्रकाश में कार्ड देखा । कार्ड पर तस्वीर भी थी और विनोद का हस्ताक्षर भी ! हमीद ने कार्ड उसे वापस करते हुये कहा ।

“तुम्हें तो सीमा के यहाँ होना चाहिये था – फिर यहाँ कैसे ?”

“मैं सीमा ही के यहाँ जा रहा था । आशा थी कि आप वहीँ मिलेंगे मगर जब यहाँ से गुजरने लगा तो एक दम से अंधेरा हो गया और फिर मैंने कुछ लोगों को इसी कम्पाउंड में दाखिल होते हुये देखा इसलिये रुक गया । फिर मैंने कोठी के पिछले भाग से एक औरत को निकलते हुये देखा । वह लोग उसे कवर किये हुये थे । मैं उनके पीछे लग्न ही चाहता था कि आप आ गये और मुझे रुक जाना पड़ा था ।”

“वह लोग उस औरत को लेकर किधर गये ?” – हमीद ने पूछा ।

“काले रंग की स्टेशन वैगन पर बैठकर सीधा जाते हुये देखा था ।”

“सीधा रास्ता तो जार्ज रोड की ओर जाता है जहाँ सीमा रहती है ।” – हमीद बड़बड़ाया फिर उसने पूछा “तुम्हारे साथ कोई सवारी है ?”

“जी नहीं – मैं टैक्सी से आया था और टैक्सी से ही जाता ।”

हमीद ने उसे अपनी मोटर सायकिल की पिछली सीट पर बैठाया फिर मोटर सायकिल स्टार्ट करने के बाद जब उससे पूछा कि कर्नल का आदेख उसे कब मिला था तो उसने कहा ।

“आज ही साढ़े आठ बजे – टेलीफोन से ।”

हमीद ने फिर कुछ नहीं पूछा इसलिये कि यह तो वह समझ ही गया था कि वह विनोद की ब्लैक फ़ोर्स का आदमी है और विनोद का आदेश था कि उसकी ब्लैक फ़ोर्स के किसी भी आदमी से कोई जिरह न की जाये ।

जार्ज रोड पर सीमा की कोठी से कुछ इधर हो एक पेड़ की आड़ में हमीद ने मोटर साइकल रोक दी और उतरने ही जा रहा था कि एक गाड़ी की घडबडाहट सुनकर रुक गया । आने वाली गाड़ी उसी पेड़ से लगभग दस क़दम आगे जाकर रुक गई । उसमें से दो आदमी उतरे और आगे बढ़कर सीमा की कोठी में दाखिल हो गये ।

“हम लोग भी चलें ?” – ब्लैकी ने पूछा ।

“नहीं । हम केवल इनका पीछा करेंगे ।” – हमीद ने कहा ।

वह दोनों फौरन ही वापस आ गये । उनमें से एक ने गाड़ी के निकट पहुंचने पर कहा ।

“चारों ओर अंधेरा देखकर पहले ही मेरा माथा ठनका था और आखिर वही हुआ । वह लोग हम से पहले ही लाल जी तथा उसकी लड़की सीमा को ले उड़े ।”

“आओ चलें ।” – दूसरे ने कहा फिर दोनों गाड़ी में बैठ गये और गाड़ी आगे बढ़ गई । हमीद ने गाड़ी का पीछा आरंभ कर दिया । ब्लैकी ने कहा – “पता नहीं वह कौन लोग थे जो बाप-बेटी को उठा ले गये और यह कौन थे ?”