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रामलाल का सन्यास



रामलाल का सन्यास

अभी -अभी प्राप्त समाचार के अनुसार रामलाल जी ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी है । रामलाल जी को तो आप जानते ही है । ये वे ही रामलाल है जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में सभी राजनैतिक पार्टियों के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त किया है । ये वही रामलाल जी है, जिन्होंने आदर्शों की राजनीति कभी भी नहीं की , वे अवसर के अनुसार ही स्वयम् को परिर्वतित करते रहे है। इन सबके चलते उन्हें देश की राजनीति में बहुत ही वरिष्ठ स्थान प्राप्त है । देखा जाए तो वे एक खास पीढ़ी के नेताओं के लिए आदर्श और चलती-फिरती पाठशाला ही है । उन्होंने अचानक ही घोषणा कर दी कि ‘‘ अब वे राजनीति से संन्यास ले कर केवल पार्टी के लिए ही कार्य करेंगे ।’’ हालाकी उन्होंने यह नहीं बताया कि कौन सी पार्टी के लिए कार्य करेंगे । कुछ विशेषज्ञ पार्टी वाले मुद्दे पर शोध करने का मन भी बना चुके है । हमारा मीडिया कहाॅं चूकता है ? ...... सो उनसे पूछ ही लिया कि ‘‘ अचानक सन्यास का कारण क्या है ? ’’ वे तो आदर्शों की दुहाई देने लगे और बोले ‘‘ देखिए राजनीति की दशा और दिशा बदल रही है जिसके कारण हम जैसे आदर्शवादी लोगों का काम करना मुश्किल होता जा रहा है । बस हम अपने आदर्शों के लिए ही सन्यास ले रहे है । ’’ जोड़-तोड़ के महारथी के मुॅह से आदर्श शब्द सुन कर ही लोगों को हंसी आ गई । अधिकांश लोगों को समझ में भी आ गया कि यह तो जनता को सुनाने के लिए सार्वजनिक विचार ही है ।

आजकल जमाना खुफियागिरी का है । इस खुफियागिरी के लिए छोटे-छोटे बटन जैसे कैमरे बहुत ही काम आते है । कुछ मीड़िया के लोगों ने इन बटन जैसे कैमरों के माध्यम से ही रामलाल जी का सच सबके सामने लाने की ठान ली । अब ठान ली तो ...... बस ठान ही ली । बस प्रयासों में सफलता मिली और उन्हाेंने रामलाल जी को उनके ही आलीशान घर पर शाम के समय , जब वे मूड़ में होते है अनौपचारिक रूप से घेर ही लिया । काजू , मुर्गे और पेग के साथ ही बातचीत का सिलसिला चल निकला । पत्रकार ने धीरे से पूछा ‘‘ मुझे आपके अचानक संन्यास का कारण समझ में नहीं आया ?’’ रामलाल जी गिलास को टेबल पर रख कर काजू चबाते हुए पूछ बैठे ‘‘ राजनीति में कोई क्यों आता है ?’’ पत्रकार प्रश्न पर प्रश्न से चौक गया और बोला ‘‘ जनता की सेवा करने के लिए ........।’’ रामलाल जी का जैसे मूड ही खराब हो गया वे बीच में ही बोल पड़े ‘‘ हुॅुह.... जनता की सेवा ....जनता की तो .......। कैसी बातें करते है आप ? अरे भाई ..... कमाने के लिए , एशोआराम और रूतबे के लिए .....है कि नहीं ।’’ पत्रकार ने हाॅ में हाॅ मिलाई रामलाल बोले जा रहे थे ‘‘ हमें ही देखिए हम यहाॅ आने के पहले क्या थे और आज क्या है ? कितनी सरकारें बनाई और कितनी गिरा दी लेकिन अपनी लालबत्ती कभी छोड़ी ?....... नहीं न .......। बस राजनीति का मतलब होता है सत्ता में बने रहना । ’’ पत्रकार तो सत्य की खोज में लगा था बोला ‘‘ तो आपको क्या लगता है इस बार आप की पार्टी सत्ता से बाहर हो रही है ?’’ रामलाल जी ने जाम भरा और बोले ‘‘ होती है तो हो जाए हमारी बला से ...हमारे पास कोई पार्टियों की कमी है क्या ? हम तो हमेशा ही जीतने वाले घोड़े पर ही दाव लगाते है ।’’ पत्रकार को लगा ये पार्टी छोड़ कर दूसरी में जाने का प्रयास भी हो सकता है लेकिन मूल बात पर लाने के लिए उसने फिर पूछा ‘‘ वो तो हम भी जानते है लेकिन आपके संन्यास का क्या कारण है ?’’ रामलाल पूरे मूड़ में आ गए थे बोलने लगे ‘‘वही तो बता रहे है । देखो भाई जनता तो पाॅंच साल में एक ही बार काम आती है ; अब पार्टी कहती है कि उनके बीच रोज ही जाओ । रोज उन की समस्या सुनों और सुलझाओं । ... ये कहाॅं की बात हुई ... ? ..हमारा सर नहीं पक जाएगा ? ’’ पहले गिलास में बचे हुए तरल को एक ही बार में पी कर, बुरा सा मुँह बना कर और उससे भी बुरी गाली के साथ बोले ‘‘ इस पर भी आजकल एक नया ही ढकोसला शुरू हो गया है हम जैसे लोगों को लालबत्ती, बंगले और निधी लेने से भी रोका जा रहा है । अब आप ही बताओ कि जनता तो हमसे इतनी नाराज है कि हम बिना गार्ड के उनके बीच गए तो बिना पिटे कैसे रह पाएंगेे ? ........तो फिर हम लालबत्ती और गार्ड के बगैर कैसे रह सकते है ?बंगला तो जरूरी ही है हमने अपने सारे मकान किराए से जो दे दिए है और रही बात निधी की तो .... उसके बगैर तो काम ही नहीं चल सकता । वहीं से तो कुछ आय भी हो जाती है । ’’ पत्रकार को लगा उसने कारण खोज ही लिया वो बोला ‘‘ तो ये कारण है ।’’ रामलाल तो भावुकता और नशे में बोले ही जा रहे थे ‘‘ अब वे कहते है हम जनता के सेवक है । लो जी ....... सेवक कोई लालबत्ती में चलता है ? अब राजनीति गलत दिशा में जा रही है । हम कोई सेवक- वेवक नहीं बनना चाहते । हम तो पैदा ही राज करने के लिए हुए थे । हमने अब तक राज ही किया है । खैर ...... जितने दिन करना था कर लिया अब ...... संन्यास ..........।’’ वे नशे में लुढक ही गए । पत्रकार का काम हो चुका था सो वो भी दो-चार काजू जेब में ड़ाल कर वहां से खिसक लिया ।

आपको क्या लगता है ये केवल एक ही रामलाल की कथा है ? हमारे आस-पास तो रामलाल ही रामलाल है ।

आलोक मिश्रा



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