चैट बॉक्स.… - 6 - अंतिम भाग Anju Choudhary Anu द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चैट बॉक्स.… - 6 - अंतिम भाग

भाग 6

शायद एक दिन मेरे काउन्टर पर किसी पेपर से उसने मेरी बर्थ-डेट देख ली थी तो वही खड़े खड़े उसने बातों में मेरा जन्म का वक़्त भी पूछ लिया और मैंने बता भी दिया तो उसने उन्हीं पांच मिनटों में मुझे मेरे बारे में कुछ बातें बता दी और वो ठीक भी थी |बस ऐसे ही हमारी बातचीत की शुरुआत हुई |

उसके बाद उसके लगातार फोन आने लगे, वो sms पर मुझ से बात करने लगा | मैं भी खाली वक़्त में उस से बातें करने लगी....वो मेरे बारे में जो बताता वो सही ही होता था | ऐसे ही एक दिन अचानक उस ने मुझ से कहा कि 'आपको अभी एक साल पहले ही किसी ने धोखा दिया है |'

मैं नहीं जानती कि उसे ये सब कैसे पता चला पर उस वक़्त मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरी समझ और मुझे लकवा मार गई है | मेरी जुबां मेरे तालू से चिपक गयी...मैं यूँ ही मोबाइल को पकडे हुए खड़ी रही और वो दूसरी तरफ से 'हेल्लो...हेल्लो ' करता रहा |ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने मुझे चोरी करते हुए रंगे  हाथों पकड़ लिया हो |

कुछ दिन ऐसे ही परेशानी में बीत गए, पर एक दिन वो ज्योतिषी अपनी बीबी के बिना मेरे बुटिक पर आ गया |वो मुझ से ऐसे हक से बाते कर रहा था जैसे मेरी पूरी जिंदगी उसने खुद अपने सामने देखी हुई है |उसकी ज्योतिषी में पकड़ थी ये मैं देख चुकी थी क्योंकि उसने मेरे अतीत का एक एक पन्ना मेरे सामने ही खोल के रख दिया था....ये सच था या उसकी खोज....उस वक़्त मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी पर उस वक़्त मैं उस से प्रभावित बहुत थी | उम्र में मुझ से छोटा था इसी वजह से कभी उसकी नियत पर मुझे शक नहीं हुआ |

कोई एक महीने के बाद उसका मेरे बुटिक पर आना लगातार बढ़ता गया...कभी अपनी बीबी के साथ तो कभी अपनी छ: साल की बेटी के साथ वो मेरे बुटिक पर आ ही जाता था और बहुत देर तक वहीं,मेरे आस-पास बना रहता था....कुल मिला कर उसने अपने आप को मेरा हमदर्द साबित कर ही दिया |

एक दिन अपनी माहवारी के चलते पेट में उठे दर्द को लेकर मैं बहुत परेशान  थी...बुटिक बंद होने का वक़्त था और मेरा घर वहाँ से दूर था |पर मेरी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं अकेली घर जा सकूँ |तभी वो एस्ट्रोलजेर आ गया...मेरा उड़ा रंग देख कर वो इतना तो समझ गया कि आज मेरी तबियत ठीक नहीं है...उस ने मेरे से पूछे बिना एक लेडी डॉ को फोन करके वहीँ बुटिक पर बुला लिया और खुद भी तब तक वहाँ रहा जब तक मैंने उसे खुद के ठीक होने की तसल्ली नहीं दे दी |

उस दिन के बाद से वो कभी भी बेरोक-टोक मुझ से मिलने चला आता था...अब बुटिक वाले इम्प्लॉय भी उसे जानने लगे थे |पर उनकी आँखों में एक शक मुझे हमेशा नज़र आ जाता था.फिर भी मैं उस शक को अनदेखा कर देती थी....और ये ही मेरी सबसे बड़ी भूल साबित हुई |

ऐसे ही एक शाम जाती हुई सर्दी की थी ...उस दिन बादलों की वजह से दिन जल्दी ढल गया और मैं बुटिक पर अकेली थी...उस दिन उसका आना और अपने घर चलने के लिए जिद्द करना पहले तो मेरी समझ में नहीं आया पर उसकी जिद्द के आगे मुझे झुकना पड़ा ....वो उसकी जिद्द थी या मेरा बचपना या उसका मेरी आँखों में देख कर हिप्नोटाइज़ करना था,मैं सही तरीके आज भी इसे नहीं समझ पाई हूँ वंदु|

मैं एक गुलाम की भांति उसके पीछे उसके घर चली गयी....कुछ देर की बातचीत के बाद उसने मुझे छूना और चूमना शुरू कर दिया...पर मैं उसका विरोद्ध नहीं कर सकी....हिम्मत नहीं थी या मुझे एक साल पहले अपनी मर्ज़ी और प्यार में किया गया सम्भोग याद आ गया, मैं सच में नहीं जानती हूँ वंदु ....पर उस रात भी हम दोनों में सम्बन्ध बने थे...पर मैं दिल से खुश नहीं थी |मैंने विरोध की कोशिश की,पर मेरी आवाज़ घुट गई...मैंने उसे अपने ऊपर से धकेलना चाहती थी पर मेरे हाथों की ताकत को जैसे लकवा मार गया था....पता नहीं क्यों उसके साथ होते ही मुझे ऐसा लग रहा था जैसे आज मेरा रेप हो रहा था...मैं उसके खिलाफ एक भी विरोध की एक आवाज़ नहीं निकल पाई और मुझे खुद के छले जाने का आभास हुआ |

वंदु कब क्या हो जाये कुछ पता नहीं रहता ...जिसे आप अपना दोस्त मानते है कब वो आपको लूटने की सोच लेता है ये हम जैसी बेवकूफ औरतें समझ ही नहीं पाती हैं, अपनी मर्ज़ी से आता है और अपनी मर्ज़ी से ही इस जिंदगी को तमाशा बना कर चलता बनता है, पता ही नहीं चलता ...ये दुनिया बड़ी क्रूर है बच्चे  |

हर कोई कुछ ना कुछ ढूंढ़ रहा है हर किसी को यहाँ तलाश है किसी की जो उसके जैसा हो,उसके जैसा सोचता हो,उसकी भावनाओं की कद्र करे....बिन बोले सब कुछ समझ जाए  कि उसके दिल में क्या चल रहा है |ज़िन्दगी भर हम किसी के साथ रहते है पर तब भी ये प्रयास कभी सफ़ल होता नज़र नहीं आता, फिर  भी हम ऐसा क्यों मान लेते हैं कि बाहर की दुनिया का कोई भी शख्स आकर आपसे जुड़ेगा और एक ऐसा जादू हो जाएगा कि चंद मुलाकातों में वो आपको इतना समझ जाएगा जिस से हम खुद को उसके हवाले कर देंगे या यूँ कहूँ ....हवाले कर देती हैं.....परोस देती है खुद को उसके सामने और वो शख्स हमें झूठा करके...अपनी राह चलता बनता है |

ऐसा क्या जादू होता है इस आकर्षण में कि हम खुद को रोक नहीं सकती हैं और सबसे बड़ी बात जिस इंसान की फितरत ही जगह जगह मुहँ मारने की हो वो किसी एक का कैसे हो कर रह सकता है....और हम उसी इंसान पर सबसे ज्यादा विश्वास करने लगती हैं जो हम से मीठी-मीठी दो-चार बातें कर लेते हैं ये भूल कर कि ये उसका बिछाया हुआ जाल भी हो सकता है |

हर इंसान अपनी अपनी चाहत का अनुभव करता है, यह उसका निजी खजाना होता है,क्योंकि इस बार के अनचाहे सेक्स ने मेरे मन में हर मर्द के लिए नफरत भर दी और दोस्त और दोस्ती के नाम से भी मुझे नफरत हो गई | उस दिन के बाद से मैंने अपने पांच साल सिर्फ अपने बुटिक हो दिए | और मेरा बुटिक इस शहर का सबसे बड़ा और फेमस बुटिक बना गया और एक दिन अचानक ही तुमने मेरी जिंदगी में एंट्री ली, मेरी गुडिया बन के |बाकि तो अपने घर और बच्चों के बारे में में पहले ही तुम्हें बता ही चुकी हूँ....जिस स्वाति को तुम नहीं जानती थी वो आज तुमने जान ही लिया है...बस ये ही मेरी जिंदगी का सच और राज़ था जो अब राज़ नहीं रहा |

कमरे में एक बार फिर से एक लम्बा मौन पसर चुका था |सर्दियों के दिन थे...पंखे,ए.सी..टीवी कुछ भी नहीं चल रहा था इसी वजह से ठंडी आहें लेने की आवाज़े दोनों ही सुन और समझ सकती थी |इस बार वंदना ने बढ़ कर स्वाति को गले लगाया और कहा '' दी, हम औरतों की जिंदगी एक सी ही क्यों होती है | एक दर्दनाक अंत या घुट-घुट कर सारी  उम्र निकल जाती है |''

इस अनोखे माँ-बेटी के रिश्ते में अब दोनों ही रो रही थी...

स्वाति ने एक बार फिर से वंदना के माथे को चुमा | और उस से कहा

''तुम्हे क्या लगा था एक बार रेप होने के बाद तुम्हारे साथ ये क्रम टूट गया या यही विराम लग जायेगा इस जिंदगी को'' |

''पता नहीं दी मैंने उस वक़्त ऐसा कुछ सोचा नहीं था ....बस मैं ये जानती थी कि जो हुआ वो सब मेरी मर्ज़ी के बिना हो रहा था ''

वंदना ने अपनी बात को ज़ारी  रखते हुए कहा ...दी...सोए हुए को तो कोई भी जगा सकता है,पर अगर कोई सोए होने का नाटक करे तो उसे कोई कैसे जगाए ?पिछले महीने ही नितिन को गए हुए पूरे ३साल हो चुके हैं,उसने एक बार भी पलट कर ये नहीं पूछा कि''तुम कैसी हो वंदना ? कैसी जी रही हो,कैसे कटते है तुम्हारे दिन और तुम्हारी रातें....रातें इस लिए कहा स्वाति दी 'क्यों कि वही तो काटनी सबसे ज्यादा मुश्किल हैं और नितिन के जाने के बाद उसके दोस्त ने अपनी दोस्ती का पूरा हक अदा किया ...उसने मुझे एक रात भी अकेला सोने नहीं दिया |

पहली ही बार के ज़बरदस्ती के सेक्स को वो विडियो, जो गोविंद ने बनाया था, उसकी ही धमकी दे दे कर, मुझे हर रात उसकी बात मनाने के लिए मुझे इतना मजबूर कर दिया जाता था कि उसके चंगुल से निकलने के लिए मेरे पास कोई रस्ता ही नहीं बचता था |

गोविंद की बदौलत एक के बाद एक आदमी मेरी जिंदगी में आता गया और मैं आदमियों के हाथ का खिलौना बन के रह गयी, काली रात के साये में वो मुझे से सारे कुकर्म करवाता रहा |बहुत देसी सी भाषा में वो नितिन के जाने के बाद मेरे जिस्म का दला(दलाल) बन गया है और बिना दारु के किसी के साथ भी अपनी मर्ज़ी के बिना सोना,मरने से भी बदतर होता है दी इसी लिए   इन ३ सालों में मुझे दारु और ना जाने किस किस नशे की ऐसी लत लग गई कि अब छोड़े नहीं छूटती |

आपने मुझ से पूछा था ना कि '' गुड़िया शादी को इतने साल हो गए ...तुमने बच्चे के बारे में क्यों नहीं सोचा ? तो दी ...अब आप ही बताओ कि ऐसे कैसे मैं बच्चे को जन्म दे दूँ ?कौन है जो उसके संभालेगा ? नितिन तो उसे अपना नाम देने से रहा और जिस इंसान ने मुझे इस गंदे रस्ते पर धकेला है उसे मैं अपनी संतान के पिता होने का हक कभी नहीं दे सकती......इसी धंधे के चलते मेरा पूरा परिवार मुझ से दूर हो गया...मैं किसी के आगे सर उठाने के काबिल नहीं रही.....वो इंसान अब क्या किसी को अपना नाम देगा और मैं भी इस गंदे रास्ते पर बहुत आगे निकल चुकी हूँ |

दी...हर रात बदन को नोचने का दर्द और जिंदगी जीने के लिए पैसे की किल्लत सहन नहीं होता दी ...वो भी एक इंसान नहीं ...३..३ लोग मुझे सारी रात नोंचते हैं |दी.. अब ये दर्द मुझ से सहन नहीं होता |सेक्स की लत और नशे की आदि आपकी 'गुड़िया' अपने आप को नहीं बचा सकी |

मेरे विरोध करने के बाद भी मेरी  आवाज़ को मेरे ही अंदर मार दिया गया था | शोर मचाने  पर मुँह,हाथ पैर बाँध कर पलंग से बाँध दिया जाता था और मेरी ऐसी हालत में भी हर रात मेरा रेप होता रहा...मैं विरोध कर-कर के हार चुकी थी...रोज़ मिल रहे दर्द की वजह से मैंने अपने आप को गोविन्द की मर्ज़ी के हवाले कर दिया|

कम से कम शरीर पर हो रहे अत्याचार तो बंद हो गए थे पर आत्मा के ज़ख्म वैसे ही रहे जैसे पहले दिन थे, शरीर की भूख ने मेरा क्या हाल कर दिया दी.....

पर दी ...आपके प्यार और आपकी केयर ने मुझे इतनी हिम्मत दी कि मैं अपना सच आपके सामने लाने की हिम्मत कर पाई हूँ |

इतनी देर में शल्लों आंटी चाय की ट्रे लेकर आ गई  ...स्वाति ने वन्दु की आँखों के आँसू पौंछे और चाय का कप उसकी ओर बढ़ा दिया |और वंदना ने चाय को पकड़ लिया |

अब वंदना एक दम चुप थी ..इतनी चुप की उसकी ये खामोशी बहुत तूफान समेटे हुए थी....ऐसा स्वाति को महसूस हो रहा था |

चाय खत्म होते होते ऐसा लगा जैसे इस प्याले के साथ साथ वंदना भी खाली हो चुकी थी...उसके चहरे पर एक तूफ़ान तो था पर अब वो शांत था |

चाय खत्म करते ही ...वंदना ने वो ही फीकी मुस्कान के साथ ...स्वाति से कहा ''दीदी मेरी ट्रेन का वक़्त हो गया है अब मुझे जाना होगा ''

पर स्वाति ने उसे रोकते हुए कहा ''नहीं वंदना एक दिन तो मेरे पास रुक जाओ , मुझे तुम्हें  बहुत प्यार करना है,बहुत लाड लड़ाने ....तुम्हें पता है ना मेरी कोई बेटी नहीं है.....मुझे तुम्हारे साथ वही बेटी वाली फीलिंग आती है, मुझे तुम्हें जी भर कर देख तो लेने दो....जी भर के प्यार तो कर लेने दो |

 

वंदना ने वो ही फीकी मुस्कान दी और अपनी छोटी सी बैग उठाई। स्वाति ने उसे बहुत रोका पर वो रुकने को तैयार ही नहीं हुई तो चलते चलते स्वाति ने उस से कहा ''अच्छा! प्लीज़ मुझे अपना फोन तो नंबर दो ....मैं तुमसे बात करती रहूँगी और मेसज पर भी तुम्हारे टच में रहूँगी तो तुम्हारे पास होने का अहसास बना रहेगा, दिल्ली से राजकोट का रस्ता बहुत लंबा है बच्चे ....प्लीज़ अपना नंबर दे दो''|

पर वंदना ने कोई जवाब नहीं दिया और स्वाति के गले लग कर एक बार फिर से बहुत रोई और कहा ''काश ! आज मैं आपकी गुड़िया बन कर आपसे वो ही दो चोटी करवाती रिब्बन बँधवा सकती'' और हाँ! अगर जिंदगी कभी भी किसी भी मोड़ पर आपको आपका अगर सच्चा प्यार मिल जाए  तो खुद को रोकिएगा नहीं,फ़ौरन थाम लेना क्योंकि आपके बच्चे USA सेटल्ड हो चुके हैं और आज के वक़्त में भी औरत किसी भी उम्र की हो उसे अकेला देख हर कोई झपटा मारता ही है और दी यकीन मानिए आपके बच्चे इस बात का कभी बुरा नहीं मानेंगे बल्कि वो आपकी ओर से चिंतामुक्त हो जाएंगे|’’

दोनों की ही आँखें एक बार फिर से गीली हो गई ....वंदना स्वाति से विदा ले कर चल दी ...उसने पीछे मुड़ कर एक बार भी नहीं देखा जबकि स्वाति की नज़रें ...उसे ही देख रही थी कि शायद उसकी वन्दु एक बार पीछे मुड़  कर देखे तो वो उसे रोक लेगी, पर ऐसा हुआ नहीं और वंदना चली गई........

वंदना ने जाने से पहले स्वाति को अपनी ट्रेन के बारे में कुछ नहीं बताया था | ना कोई मोबाइल नंबर, ना घर का पता, बस वो इतना ही जानती थी कि वो राजकोट (गुजरात) से संबंध रखती थी (ये भी सच है या नहीं ये उसके मन में शंका उत्पन्न हो चुकी थी)...इस के अलावा उसका ओर कुछ पता नहीं था |फिर भी वंदना के लिए उसका मन आज बहुत दुःखी और परेशान था |

दिन, फिर महीने और अब चार साल बीत चुके थे |दिल्ली से जाने के बाद से वंदना का एक भी मेसेज स्वाति को नहीं मिला |वो कहाँ से उड़ती हुई आई और कहाँ चली गयी स्वाति कुछ नहीं जानती | वो आज भी फेसबुक खोल कर सिर्फ इसी आस में बैठती है कि हो सकता है एक दिन कभी उसकी गुडिया को उसकी याद आ जाये और वो उसे चैट बॉक्स में ''हेल्लो दी !जय श्री कृष्ण....कैसी हो आप....घर पर सब मजे में ना.... लिखे और वो मुस्कुराते हुए उसकी चैट का जवाब दे “राम राम गुड़िया ! मैं ठीक हूँ...तू बता’’|

समाप्त !!