चैट बॉक्स.… - 4 Anju Choudhary Anu द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चैट बॉक्स.… - 4

भाग 4

२७ की उम्र में भी मेरी हर हरकत अब मुझे १७-१८ साल की लकड़ी जैसी लगती थी पर मेरी सब शंकाएँ,नितिन को लेकर मेरा लंबा सा इंतज़ार तब खत्म हुआ जब  शादी के दो महीने के बाद नितिन ने आकार मेरे आगे अपने प्यार का इज़हार किया था |

दी...उस वक्त मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मैं उसे क्या जबाब दूँ | बस मुझे शर्म आ गई और मैंने अपनी नज़रे झुका ली |ये जिंदगी का पहला अवसर था जब किसी ने मुझ से प्यार होने की बात कही थी |''

वंदना ने नज़र घुमा कर स्वाति की ओर देखा तो वो अपनी ठुड़ी पर हाथ टिकाये बहुत ध्यान से उसे ही सुन रही थी ...

स्वाति दी....हम औरतों के लिए प्रेम की भाषा का कोई ओर-छोर नहीं...कभी आँखे न्योता देती हैं ,तो कभी मौन स्वीकृति देता है और मन की दीवार पर गड़ी प्रेम की खूंटी से गिरने लगती है तमाम अनकही बातें और तब भीगने लगती है अपनी ही आँखें |मुझे यूं लगा कि नितिन मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव लेके आए है |

नितिन ड्रिंक्स लेते थे ये बात उन्होंने मुझे शादी की पहली ही रात बता दी थी और इसी लिए उन्होंने जिद्द करके...अपनी कसमें देकर...मुझे थोड़ी-थोड़ी वाइन (एल्कोहल)पिलानी शुरू कर दी ....पहले पहले तो मुझे अच्छा नहीं लगता था बहुत मना करने और झिझक के साथ मैंने उनका साथ देना शुरू कर दिया |

ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था ...मैं आम से किसी एक लिए बहुत ख़ास बन चुकी थी...ये जाने बिना क्या अच्छा है और क्या बुरा, बस ऐसा कुछ भी करना जो मुझे नितिन के करीब रखे,मैंने वो सब किया जो मुझे नितिन कहते थे |

पर मैं यहाँ भी गलत साबित हुई .....कुछ वक़्त के बाद ऐसा लगा जैसे फिर से जिंदगी की रफ्तार रुक सी गई है | नितिन का प्यार मेरे लिए मौखिक तो बहुत था पर वो शारीरिक कभी नहीं हो पाया |जब जब मैंने बहुत कोशिश की तब तब नीतिन  ने अपने कमरे में ही अपना अलग बिस्तर बिछा लेते और सो जाते और मैं पूरी रात करवटें बदलती रहती |और दी बहुत बार तो वो घर भी नहीं आते थे ....मेरे बार बार पूछने पर बस वो अपने काम में व्यस्त होने का बहाना मार दिया करते थे , बहाने तो बहुत थे, तभी तो हर बार मुझ से दूर रहने का एक बहाना नितिन के पास हमेशा रेडी रहता था |ओर कारोबार के साथ साथ,नीतिन अपने खेतों का काम भी खुद देखा करते थे...कम से कम मैं इतना जान और समझ रही थी या मुझ से बचने के लिए हर बार एक नई बात बहाने के रूप में मेरे सामने रख देते है |

आपको पता है दी ...शादी की पहली ही रात नितिन ने कमरे में आते ही मुझ से कहा ''वंदना तुम कपड़े बदल लों ...तुम थक गई होगी ''| तब मैंने इस बात को बहुत ही नॉर्मल तरीके से लिया था ,हिंदी फिल्मों में देखी गई सुहागरात की तरह मैं भी अपने मन में ना जाने क्या-क्या सपने संजोये बैठी थी, पर हम लोगों की वैसी सुहागरात कभी नहीं हुई |नितिन ने मुझे मन का प्यार बहुत दिया पर हम दोनों के तन एक कभी ना हो सके |

दी...शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी अब भी ऐसा लगता...मानो वह कोई अजनबी हो,मैं जितना नितिन को पकड़ने की कोशिश करती थी वो मुझ से उतना ही दूर छिटक जाते थे |कहते है ना, जब तक प्यार में तपिश नहीं होती वो अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता और वो ही तपिश मेरी जिंदगी से गायब थी....अब मौखिक प्यार भी नीम की तरह कड़वा लगने था |

इतनी बात करते ही वंदना स्वाति की गोद में सर रख कर रो पड़ी ....और स्वाति उसके बालों को सहलाती प्यार से उसे अपने ओर करीब करते हुए कहती है कि '' आज रो लो गुड़िया, अपनी दी की गोद में सब आँसू यही निकल जाने दो,ईश्वर से दुआ करती हूँ कि आज के बाद से तुम्हें कोई दुख ना हो|''

कुछ देर के बात वंदना फिर से बोली ;

ये जिन्दगी इतना दर्द क्यूँ देती है दी, मेरे तन की भूख मुझे इतना परेशान करेगी.... ये मैं नहीं जानती थी |नितिन को बहुत बार डेरेक्ट-इन्डेरेक्ट बार-बार समझाने की कोशिश की  पर वो समझ कर भी नासमझ बने रहे | मेरे होंठ, मेरे उभार और मेरा अंग अंग उसके चुंबन के लिए तड़पते थे, वो मुझे अपनी बाहों में भरता जरुर था पर मुझे बच्चों की तरह सुलाने के लिए और मैं औरत होने की शर्म में दिनों दिन मर रही थी कि ये कैसा मर्द है, जिसकी बगल में एक औरत रात भर उस से लिपट कर सोती है और वो यूँ ही ठंडा बना सोया रहता है और मैं पूरी रात अकेली पड़ी अपनी ही वेदना में गीली हो कर छूट जाती थी |मैं अपने ही अंदर, अपनी ही आग से जल रही थी |

दिन तो काम और बीमार आंटी की देखभाल में ही निकल जाता था पर रात मेरे लिए इतनी भारी रहती थी कि मैं चाह कर भी रात की उदासी और वीरानी को आने से रोक नहीं पाती थी....कभी तो पूरी रात कोई किताब/उपन्यास पढने में निकल जाती थी या रातभर जाग कर टीवी देखना और फिर नींद की गोली खा कर सोना...बस ये ही जिंदगी जीने को मजबूर हो चुकी थी क्यों कि हर वक़्त एक ही बात मेरे दिमाग में हर वक़्त घूमती थी कि कब ऐसी कोई रात आएगी जब उसके कांपते हाथों की तपिश मुझे मेरे ही भीतर पिघलने को मजबूर कर देगी, मेरी उखड़ी साँसों में,मेरी देह संगीत का वंदन करेगी और कब उसका प्यार मुझे स्पर्श करता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता मेरे अन्दर प्रवेश करेगा और तब मैं उस समर्पण को उम्र भर के लिए अपनी यादों का एक अटूट हिस्सा बना कर जीने को अपना मकसद बनाऊँगी|

मेरी वासना का ज्वार अब सर उठाने लगा था | हल्की सी नींद में भी मुझे प्यार करने और करवाने वाले सपने आने लगे ....सपने में हलके से स्पर्श से भी मैं खुद की आवाजों को अपने ही अन्दर महसूस करती थी और कुछ ही देर में गीली होने के आभास से मेरी नींद खुल  जाया करती थी....अपनी इस स्थिति को लेकर मैं बहुत परेशान और शर्मिंदा रहने लगी थी.....और बहुत बार घंटों अपना कमरा बंद करके रोटी रहती थी दीदी |बार बार मेरी खुद के कोशिश करने पर भी मैं ठुकरा दी गई और उस दिन मैं अपने ही भीतर टूट गई और मुझे खुद के छले जाने का आभास हुआ |

मन में अजीब अजीब से सवाल उठते थे' क्या करूँ....कहाँ जाऊं...किस से अपने मन की बात कहूँ ...कौन समझेगा मुझे ...कौन विश्वास करेगा मेरी बात का??? घर छोड़ दूँ ....तो रहूंगी कहाँ ? भाई भाभी को क्या कहूँगी कि क्यों घर छोड़ा ..कहीं सब मेरे ही अन्दर दोष ना निकालने लग जाएँ? हजारों प्रश्न और उसका उत्तर एक भी नहीं |

माँ थी नहीं, भाभी से कुछ भी कहने का मतलब ही नहीं था और आज तक कोई ऐसी दोस्त भी नहीं थी जिस से अपने दिल की हर बात खुल कर शेयर कर लेती |सवालों का मकड़जाल मुझे अपने ही जाल में लपेटे जा रहा था |किसी भी काम को करने से पहले आँखों में आँसू अपने आप ही आ जाते थे |

और एक दिन नितिन का वो छिपा हुआ सच मेरे सामने मुझे ही चिढ़ा रहा था ...इत्तेफ़ाक से मुझे अपने हमसफर का जिस्म देखने का अवसर मिला जो मेरे लिए किसी बम ब्लास्ट से कम नहीं था| सब ठीक था पर उसका अपनी पत्नी को संतुष्ट कर पाने वाला अंग, मुझे प्रत्यक्ष रूप में नितिन के ना-मर्द होने की सच्चाई बयान कर रहा था कि वो जिस्मानी रूप से अपनी पत्नी को संतुष्ट करने लायक स्थिति मे नहीं था| आज नितिन का सच देख कर मैं सन्न रह गई और वो शर्मिंदगी के मारे मेरे से नज़रे नहीं मिला पाए | जिस्म की एक-एक मूर्छित संवेदना धधक उठी कि मेरे साथ शुरू से धोखा हुआ है,प्यार सम्मान, इज्ज़त,पैसा  और आपसी रिश्तों को बांधने की ताकत सब की सब धरी रह गई |

नितिन के ऑफिस चले जाने के बाद मैं घंटों रोती रही....अलमारी में रखा अपना हर कीमती सामान उठा कर पागलों की तरह बाहर फेंकना शुरू कर दिया...इसी पागलपन के चलते खुद को मारने की कोशिश भी की पर मार ना सकी ....पता नहीं कौन सा मोह था जिसने मुझे ऐसा करने से रोक लिया|जैसे जैसे दिन सरकता गया वैसे वैसे मैंने पाया की मेरे अन्दर एक अलग ही आग है....एक भूकंप उठ चुका था मेरे जीवन में |उत्तेचना  ने पहले ही मेरा बुरा हाल किया हुआ था पर आज कुछ अलग ही महसूस कर रही थी |पर अब मेरे पास सोचने को कुछ था ही नहीं ...और सोचती भी तो किसको और किस के लिए ?

और दी ...उसी रात नितिन शराब के नशे में जब घर आया तो उसके साथ उसका सबसे अच्छा दोस्त गोविन्द था,गोविन्द पहले भी बहुत बार नितिन के साथ घर आ चुका था, हम तीनों ने मिल कर बहुत बार एक साथ डिनर भी किया था.......पर वो रात मेरे लिए क़यामत की रात थी |नितिन ने कसमें देकर मुझे गोविन्द के साथ सोने को मजबूर किया , पर मेरे मना करने के बाद मुझे मारा-पीटा गया और मुझे पलग से बाँध कर,  मुझे ज़बरदस्ती अपने ही सामने गोविन्द के साथ वो सब करने को मजबूर किया जो एक औरत कभी नहीं चाहती |

निवस्त्र, हाथ-पैर बंधने के बाद, नितिन और गोविंद की क्रूरता के आगे मैं हार गई थी दी | नितिन ने मेरा रेप करवाया और गोविंद ने रेप किया ताकि नितिन का मानसिक भ्रम उसके खुद के प्रति बना रहे | पूरी रात नितिन के सामने ही गोविन्द, जंगली जानवर सा मेरे शरीर को रौंदता रहा और मैं नितिन-प्लीज़-नितिन करती रही पर वो मेरे ही सामने बैठा सब चुप-चाप देखता रहा, शराब पर शराब पीता रहा, जैसे उस कमरे में कुछ हो ही नहीं रहा था |

रो रो कर और चीखों से मेरी आवाज़ दब चुकी थी, मेरी आँखों में आँसू थे और शरीर पर गोविंद के जानवरों की तरह काटने के काले और नीले निशान, और साथ साथ नितिन की सिगरेट के निशान उनकी क्रूरता से मेरा पूरा बदन दर्द की छाया में था....निशान मेरे बदन के साथ साथ मेरी आत्मा पर भी थे....जिसे अब उम्र भर नहीं भरा जा सकता था| एक ऐसा दर्द जो जिंदगी भर के लिए मेरा बन गया था |

नितिन के लिए मेरा प्रेम मेरे लिए जीवन भर के लिए बोझ बन गया.....एक ऐसा जख्म जो कभी भी भरने वाला नहीं था पर जिंदगी बढ्ने के साथ साथ वो नासूर बन जाएगा.....मैं ये नहीं जानती थी |

इतना दर्द, इतनी तड़पन के बाद मैं कब बेहोश हो गई मुझे नहीं पता चला, और जब सुबह मेरी आँख खुली तब पूरा कमरा मेरे वजूद की तरह बिखरा हुआ था...शराब और सिगरेट के धुँए के साथ साथ मेरे साथ हुए अन्याय की कहानी खुद ही सुना रहा था |’

वंदना ने नज़र उठा कर देखा तो स्वाति की आँखों के कोने से पानी की एक लकीर बनी हुई अब भी नज़र आ रही थी तभी उसने देखा कि स्वाति ने बढ़ कर उसके माथे को चुमा और अपने गले लगा लिया और भरे गले से सिर्फ इतना ही कहा ‘’ ओह! मेरी गुडिया...कितना दर्द समेटे हुए हो अपने अन्दर....सब खाली कर दो आज अपनी दी के आगे....माँ समझकर सब कुछ कह दो...जो आज तक किसी से नहीं कह पाई हो’’|

क्रमशः .....