पुतला (व्यंग्य ) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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पुतला (व्यंग्य )

‘‘पुतला’’

मैं पुतला हूँ। यदि आप न समझें हो तो मैं वही पुतला हूँ, जो दशहरे में रावण के रूप में और होली में होलिका के रूप में अनेक वर्षों से जलता रहा हूँ। मेरे अंगों के रूप में कुछ बांस, थोड़ी-थोड़ी घास-फूस, कुछ कागज और एक अदद मुखौटा होता है। मेरी नियति अनेक वर्षों से केवल एक हैं- ‘‘जलना’’।

आज के समय में मैं राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता हूँ। जब भी किसी को किसी अन्य पार्टी के नेता से जलन होने लगती है तो वे अपनी जलन को शांत करने के लिए मुझ पर उसका मुखौटा लगाकर जला देते है। मुझे कब, कहाँ और क्यों जलाया जायेगा ? ये तो मैं क्या अब तो भगवान भी शायद ही बता पाये ? मुझे जलाने के लिए दुर्घटना, बम धमाकों, दंगे, नेताओं के बयान जैसे कारण होते है। कारण कुछ भी हो मुझे जलाने वाले पहले मुझे अच्छे से सजाते है, फिर अपने विरोधियों के फोटो या मुखौटे लगाते है। मुझे अपने कंधे में लेकर शहर का चक्कर लगाते है, इस समय तक पुलिस चुपचाप साथ चल रही होती है। फिर कहीं चल कर मुर्दाबाद के नारों के साथ सभा होती है। फिर कोई मुझे जलाता है। इस समय पुलिस अपनी सक्रिय भूमिका में आ जाती है। अब उसे मुखौटे के अनुसार मेरी हैसियत का अनुमान होता है। कभी-कभी वे डण्डे बरसाने लगते है (हमेशा नहीं) और जलाने वाले मुझे जलता हुआ सड़क पर छोड़कर चले जाते है। मैं जलता हुआ सड़क पर पड़ा होता हूॅ। मेरी हैसियत से आतंकित खाकी पहने लोग आग बुझाने के लिए मुझ पर जूते और डण्डों का प्रहार करते है। अब वे यह भूल जाते है कि वे किस हैसियत के पुतले को पैरों से रौंद रहे है। अंत में पुतला जलाने वाले विज्ञप्ति जारी कर अपनी पीठ थपथपाते हुए पुतला दहन को कामयाब बताते है। प्रशासन भी पुतना दहन करने वालों के पद और हैसियत के अनुसार ही सफलता-असफलता का आकलन करता है। मीडिया की नजर तो विज्ञापनों पर होती है, जो खबर के महत्व को निर्धारित करती है।

मुझे लगता है कि देश की समस्यायें यदि मुझे जलाकर हल होती हो तो मैं हजार बार नहीं लाख बार जलने को तैयार हूूँ, परन्तु ऐसा है नहीं। लोग मुझे जलाते है आपको देश की असली समस्याओं से भटकाने के लिए, हल्की लोकप्रियता पाने के लिए और आपसी बैर भुनाने के लिए। वे मुझे जलाते है अपनी भीड़ जुटाने के लिए, दूसरों को नीचा दिखाने के लिए और आपको लुभाने के लिए। मैं जान गया हूँ मेरे ऊपर मुखौटा कोई भी क्यों न हो जलना मेरी नियति है। वे मुझे हमेशा छोटे-मोटे कारण ढूूँढकर जलाते रहेगें। उन्हें अपना पुतला दहन सफल करना है इसी बहाने छुटभैया नेताओं को काम भी देना हैं। पुतलों की इस राजनीति में मैं सभी दलों का साथी हूँ और सभी का शत्रु हूँ। सभी ने अपने गोदामों में विरोधियों के पुतले सम्भालकर रखे है, कब किसे जलाना पड़े।

कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ हांसिये पर आ गये लोग विवादास्पद बयान इसलिये देते होंगे कि उनका मैं (पुतला) जलाया जाऊँ। इससे वे खबरों की सुर्खियों में आ जाते है और अपने आका की निगाहों में भी। उन्हें अपनी राजनीति को फिर से धारदार बनाने का मौका मिल जाता है। ऐसा ही चलता रहा तो एक समय ये लोग अपने ही किराये ही लोगों से खुद के बयान पर खुद ही खुद का पुतला जलवायेगें। मेरी छवि खराब ही सही मगर किसी के काम तो आती है।

मैं सोच रहा था कि शायद इस देश में कोई होगा जो मँहगाई, गरीबी, बेरोजगारी, दहेज और भ्रष्टाचार जैसे मुखौटों में मुझे जलायेगा। कुछ लोगों ने कभी-कभी मुझे इन समस्याओं के नाम पर भी जलाया है, परन्तु उनके इरादे पक्के न थे। वे समस्याओं से अधिक किसी और दिशा में सोच रहे थे। इसीलिए वे मुझे जलाकर अपने घरों में जाकर सो गये। समस्याएँ वहीं की वहीं रही। मैं जानता हूँ जिस दिन इस समस्याओं के नाम पर देश की जनता उठ खड़ी होगी उस दिन वो बहुत कुछ जलायेगी। परन्तु उन जलने वालों में कम से कम मैं न होऊँगा।

अगली बार जब आप मुझे किसी चैराहे पर खड़ा देखें तो मुझमें देश की समस्याओं को देखें और सोचे कि मुझे जलाने वाले उनके प्रति कितने गंभीर है। यह हुड़दंग करने वाले लोग आपका रास्ता रोक कर आपको परेशान कर सकते हैं, परन्तु आपकी समस्याओं के लिए इनके पास समय नहीं हैं। मैं शर्मिंदा हूँ कि मैं इनके बीच हूँ, परन्तु मैं तो बस अब जला कि तब जला। आपको तो इन्ही के बीच रहना है।





आलोक मिश्रा "मनमौजी"