वीर प्रताप खड़ा हुवा, उसने पीछे मुडकर देखा। जूही दूर से उसे देख रही थी। वीर प्रताप के इशारा करते ही वो उसके पास आ गई।
" मैने तुम्हे होटल में ही रूकने के लिए कहा था ना ? यहां क्या कर रही हो ?" वीर प्रताप ने पूछा।
" वहा बोर हो गई, तो सोचा तुम्हे ढूंढ लू। तुम यहां बरसी मना ने आए थे ? " पास मे लगी कब्रों की ओर देख जूही ने कहा।
" हा । आज वही दिन है, जब हर बार मैने पहचान बदली है।" वीर प्रताप।
" हम्मम।" जूही उन कब्रों के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी रही। " हेलो ऑल। में वो हू जो अगले 200 साल आपकी दुल्हन बनी रहेगी। मुझे आशीर्वाद दीजिए।" जूही ने आंखे बंद कर प्रार्थना की, वीर प्रताप बस उसे देखे जा रहा था।
उसके दिमाग मे कई सवाल थे, एक लड़की जो इतने हजार सालो बाद उसकी जिंदगी में आई है। वो जो खुद को उसकी दुल्हन बता ती है, पर ये तक नहीं जानती की उसकी दुल्हन बनने का मतलब क्या है ? क्यों ? आखिर ये सब क्यों ?
वो दोनो कनाडा की सड़को पर साथ चले जा रहे थे।
" तुम कितने सालो से यहां आते हो ?" जूही ।
" में हर ३५ सालो बाद यहां आता हु। अपना वजूद और नाम बदल लेता हु।" वीर प्रताप।
" काफी बोरिंग जिदंगी रही होगी ना? इतने साल अकेला रहना। में समझती हू।" जूही ने उस का कंधा सहलाते हुए कहा।
" क्या समझती हो? मुझे भी समझा दो ?" वीर प्रताप।
" क्यों तुम इतने चिड़चिड़े हो। मेरा भी इस दुनिया मे कोई नही है, बस मासी है। जो मेरे पैसे के लिए मुझे अब तक संभाले हुए है। भले ही वो लोग मेरे साथ कैसा भी बर्ताव करे पर में हमेशा उन्हे अपने परिवार मे गिनती हू।" जूही ने उदास होते हुए कहा।
" यकीन मानो, अकेला रहना इतना भी बुरा नही होता।" वीर प्रताप " जब तक कोई तुम्हारी आदत ना बन जाए।" उसने अपने दिल मे कहा
" कुछ कहा तुमने ? " जूही।
" अब ये मत कहना की तुम मेरी बिन बोली बाते भी समझती हो। ये मुझे परेशानी मे डाल देगा।" वीर प्रताप ने सोचा।
" क्या हुवा ऐसे क्यो देख रहे हो ?" जूही।
" कुछ सुना तुमने?" वीर प्रताप।
" मुझे ऐसा लगा की शायद तुमने कुछ कहा ? " जूही।
" ज्यादा सोचो मत चलो अब।" वीर प्रताप।
" ये होटल कितने सालो से यहां ? ये भी हजार सालो से ही लगता है।" जूही।
" नही ये कुछ ७५ ईयर्स से होगा। पहले यहां होटल के नाम पर छोटी छोटी झोपड़िया थी। उन्ही झोपड़ियो को इमारतों मे बदलते देखा है मैंने।" वीर प्रताप।
" कितना बुरा है ना। अगर तुम वो खरीद लेते तो इस शानदार होटल के मालिक होते।" जूही ने उसे देखते हुए कहा, वीर प्रताप ने सिर्फ अपनी आंखे घुमाई इस सलाह पर। " व्हाट ? अब ये मत कहना के ये होटल भी तुम्हारा है ?"
" तुम्हे क्या लगता है, में एक १७ साल की अंजान लड़की को यूंही कही पर छोड़ के चला जाऊंगा।" वीर प्रताप।
" ओ माय गॉड। ये लो मेरी तरफ से तुम्हारे लिए।" जूही ने उसे एक चॉकलेट देते हुए कहा।
" तुम्हारे पास तो पैसे नही थे। ये कहा से खरीदी ?" वीर प्रताप।
" इसीलिए तो जल्दी खालो। ये चुराई हुई है, में बस सबूत मिटा रही हु।" जूही।
" क्या ?" वीर प्रताप ।
" हा हा हा । शक्ल देखो अपनी, तुम तो मेरी किसी भी बात पर यकीन करने लगे हो। खाओ आराम से, रास्ते पर एक औरत ये सब को बाट रही थी। उसी ने मुझे दी।" जूही।
घूम फिर के होटल पोहोचने मे दोनो को रात हो गई। वीर प्रताप ने उसे उसके शानदार होटल का खाना खिलाया।
" नॉन वेज काफी पसंद है तुम्हे।" वीर प्रताप।
" हा बोहोत ज्यादा।" जूही।
" तुम्हे नही लगता तुम्हे स्कूल के लिए देर हो रही है।" वीर प्रताप।
" यहां रात है, तो इंडिया मे अभी क्या वक्त हुवा होगा ? " जूही।
" इंडिया मे अभी सुबह के 9 बजे है।" वीर प्रताप।
" ओह शीट। मुझे देर हो रही है। चलो यहां से।" जूही ने उसका हाथ पकड़ खींचा।
वीर प्रताप ने फिर एक दरवाजा खोला और बूम...... वो लोग इंडिया पोहौच चुके थे। उसे बाय कह जूही सीधा स्कूल की तरफ भागी। आज आधा घंटा देर से आने के लिए उसे स्कूल मे डाट पड़ी। वहा से जाते वक्त उसने कैनेडा टूरिज्म का एक पैंपलेट साथ ले लिया था, जिसमे उसने वो पता छिपाया था, जो वीर प्रताप ने उसे दिया था। वो फिर से नए जोश के साथ नौकरी ढूंढने निकली। और इस बार उसकी मुलाकात हुई, ऑलिव चिकन की मालकिन सनी से। सनी एक तीस साल की खूबसूरत औरत जो की अभी भी कुंवारी है, या फिर किसी खास के इंतेजार में है।
" तुम मुझे बताओ में एक बच्ची को अपने यहां काम पर क्यो रखू ?" सनी।
" प्लीज मैम। में अभी कॉलेज के पहले साल मे हू। अगले साल मुझे युनिवर्सिटी की तैयारिया करनी है। मेरे मां बाप नही है। में अपने आंटी की फैमिली के साथ रहती हू। मुझे अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जमा करने है। इस लिए में ये जॉब करना चाहूंगी।" जूही।
" दिलचस्प। तुम आज से ही काम शुरू कर सकती हो।" सनी।
" मतलब मुझे ये जॉब मिल गई।" जूही।
" हा लगता तो कुछ ऐसा ही है। देख सकती हो यहां कोई आता जाता तो है नही। तुम्हे सारा सफाई का और सर्विंग का काम करना होगा।" सनी।
" ओके मैम। थैंक यू। पर क्या में कल से काम शुरू करु आज मुझे कुछ काम है।" जूही।
" ठीक है। जैसा तुम चाहो।" सनी।
जूही वहा से निकल सीधा लाइब्रेरी मे गई। वहा लिंडा नाम की एक लड़की की आत्मा बोहोत वर्षों से रहती है। जूही उसे अपना दोस्त मानती है।
" एक बात बताओ में आत्मा हू। फिर भी क्यो अपने पैसे बर्बाद कर मेरे लिए ये कॉफी लेनी। जिसे में पी नही सकती।" लिंडा ने पूछा।
" क्यों की ये तुम्हे पसंद है। में नही दूंगी तो कौन देगा। आज मुझे नौकरी मिली है। ये उसका जश्र समझो।" जूही।
" कौन आज कल इस तरह एक पत्ते को लैमिनेट करता है। वो भी अपने हाथो से।" लिंडा।
" ये मुझे मेरी मां ने सिखाया था। और ये पत्ता किसी खास के लिए तोहफा है।" जूही।
" वो।।।। तुम्हे बॉयफ्रेंड मिल गया क्या ?" लिंडा।
" धत। बस किसी दोस्त के लिए।" जूही।
" तुम्हारा तो कोई दोस्त नहीं है। सच बताओ।" लिंडा ने उसे गुदगुदी करते हुए कहा।
" हे हे । रुक जाओ। अभी सिर्फ दोस्त है। भविष्य मे होने वाला पति।" जूही।
अपना काम खत्म कर जूही लाइब्रेरी से घर के लिए निकली।
तो वही दूसरी तरफ, जब जूही को स्कूल छोड़ वीर प्रताप घर पोहोचा। यमदूत वहा बैठ अपना पसंदीदा सीरियल देख रहा था । वीर प्रताप टीवी के समाने आकर खड़ा रह गया।
" तुम्हे मरना है क्या पागल पिशाच। हटो सामने से।" यमदूत।
" मेरे पीछे आओ। ये बोहोत जरूरी है।" वीर प्रताप।
" जरूरी हो तो ही अच्छा है। वरना तुम..." यमदूत।
" अब चलो भी ये मेरे जीवन मृत्यु का सवाल है।" वीर प्रताप " मेरे पीछे आओ पर ज्यादा पास रह कर पीछा मत करना थोड़ा दूर से ही।" वीर प्रताप ने अपने घर का दरवाजा खोला जब वो उस पार गया, तो गुलाब के खेतो के बीच खड़ी एक झोपड़ी के बाहर था। यमदूत ने भी उसके पीछे उसी दरवाजे से बाहर कदम रखा। वो घर के बाहर वीर प्रताप को ढूंढ रहा था। वीर प्रताप ने फिर से उस झोपडी का दरवाजा बंद किया इस बार वो अपने घर के बाहर यमदूत के पास पोहोचा।
" कमाल है। वो वो कर सकती है, जो एक यमदूत भी नही कर सकता।" वीर प्रताप।
" कौन है वो? " यमदूत।