व्हीप......व्हीप......व्हीप.... (व्यंग्य) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

व्हीप......व्हीप......व्हीप.... (व्यंग्य)

व्हीप......व्हीप......व्हीप....


‘‘आज के समाचार यह है कि राम प्रसाद जो कि गधा पार्टी के नेता हैं, से सुअर पार्टी पर प्रहार करते हुये व्हीप.......व्हीप.......व्हीप कहा। इसके जवाब में सुअर पार्टी के प्रवक्ता ने पत्रकार वार्ता में राम प्रसाद के बयान की निन्दा करते हुये व्हीप.......व्हीप........व्हीप कहा।’’

आप तो समझ ही गए होंगे कि हमने व्हीप के पीछे वो सब छुपाया है जो शोभनीय नहीं है। ये वो भाषा हैं जो बाजारू लोग एक दूसरे पर सरेआम प्रयोग करते हैं। अब हमारी मजबूरी है कि हमें उन बाजारू लोगों द्वारा बोले गये बजारू टाइप के शब्दों को अपने परिवार के साथ बैठ कर सुनना पड़ता है। कभी-कभी लगता है ये गलती उनकी नहीं हमारी है हमने ही तो ऐसी ओछी मानसिकता के लोगों को अपना नेतृत्व प्रदान किया है।

वैसे देखा जाय तो किसी भी व्यक्ति की जुबान उसके मन का आईना होती है। कोई व्यक्ति क्या सोचता है, किन विषयों पर सोचता है, और कितनी गहराई तक सोचता है। यह उसकी वाणी में स्पष्ट दिखाई देता है। बहुत कम लोग होते हैं जो अपने वाकचातुर्य से अपनी मनःस्थिति को छुपा लेते हैं। आप सोच कर देखिये आपके सबसे बड़े दुश्मन के विषय में, फिर किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में आपसे कोई उसके संबंध में कुछ कहने को कहे तो आप क्या और कैसे बोलेंगे ? आप एक समझदार व्यक्ति हैं इसलिए आपक वक्तव्य को व्हीप......व्हीप.....व्हीप से छुपाना नहीं पडे़गा। लेकिन इन असभ्यों का हम क्या करें ?

बहुत सोचा तो समझ में आया शायद कहीं चुनाव होने वाला है। अब छोटे-बड़े नेता बरसाती मेढ़कों की तरह निकलकर टर्राने लगे हैं। उनको लगता है जनता तो भेड़-बकरी है हुर्र....हुर्र बोलो और जिधर चाहें हांक लो। बस वे अपनी-अपनी भेड़ों-बकरियों के समुह को अलग-अलग करने में लगे हैं। अब इसके लिए गालियाँ देनी हो, मोर्चे करने हो या दंगे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इन्हीं भेड़-बकरियों के समूह को वे वोट बैंक कहते हैं। एक ने गाली देकर अपने वोट बैंक को जमा करने का प्रयास किया, तो दूसरा प्रतिउत्तर में गालियाँ देकर अपने समुह को सजाने लगा।

अब डर लगने लगा है कि जो गालियाँ जुबान पर बचपन से आज तक आ न सकी। कहीं उन्ही को रोज शाम को विभिन्न चैनलों पर होने वाले वाद-विवाद में सुनना जरूरी न हो जाए या ये भी हो सकता है कि अब नेताओं को भी सेंसर बोर्ड प्रमाण-पत्र देने लगे। हो सकता है राम प्रसाद को सेंसर बोर्ड व्यस्कों के लिए वाला प्रमाण पत्र प्रदान कर दे। बस उन्हें गालियाँ देने की पूरी छूट होगी, लेकिन केवल व्यस्कों के सामने। शैल कुमारी जी के यू.ए. प्रमाण पत्र प्रदान दिया जा सकता है, याने इनके भाषण बच्चे भी सुन सकेंगे अपने माता-पिता के साथ। बस जब ये आपे से बाहर हो जाए तो माता-पिता को बच्चे के कान बंद करने होंगे। इन परिस्थितियों में हर पार्टी में अपने कुछ नेताओं को ‘‘ए’’ प्रमाण पत्र दिलाने की होड़ लगी रहेगी।

एक विचार आता है कि गालियों का एक शोध संस्थान होता। इसमें पुराने किस्म की गालियों के स्थान पर नई-नई गालियों की खोज की जाती। गालियाँ ऐसी जिनका प्रयोग घर से लेकर संसद तक किया जा सकें। ऐसे गालियों के बमों को व्हीप.....व्हीप.....व्हीप के पीछे छुपाने की आवश्यकता न पडे़। तब खोज करने वालों को गाली वीर, गाली रत्न जैसे पुरस्कार प्राप्त होना आम हो सकता है।

अब मैं भी सोच रहा हूँ कि अध्ययन-अध्यापन तो हमें आता ही है। भविष्य में गालियों की कोचिंग देने वाली संस्थाओं का बोल-बाला हो सकता है क्योंकि जो जितना बड़ा गालीबाज वो उतना बड़ा नेता। बस अब गालियों की कोचिंग खोली जाए। इससे अच्छा खासा धन तो कमाया ही जा सकता है। साथ ही देश के बड़े-बड़े गाली बाजों के गुरू होने का रूतबा भी हासिल हो जाएगा।

अब आप क्या सोच रहे हैं वो गालियाँ दे रहे हैं सुनिये...........सुनिये। ‘‘व्हीप..........व्हीप.........व्हीप.........।’’ बस आप उन्हीं को चुनिये। यही तो आपके नेता हैं।



आलोक मिश्रा