होली का दिन ( होली स्पेशल) RACHNA ROY द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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होली का दिन ( होली स्पेशल)

दीपू होली के पहले दिन ही पापा के साथ जाकर तरह-तरह के रंग, पिचकारी, गुब्बारे सब कुछ खरीद कर ले आया।
दीपू होली के पहले दिन ही पापा के साथ जाकर तरह-तरह के रंग, पिचकारी, गुब्बारे सब कुछ खरीद कर ले आया।

मम्मी के हजार बार मना करने के बाद भी वह अपनी जिद पुरी कर लिया।

मम्मी ने देखते ही कहा इतना खरीद लिए हो कि एक दुकान खोल सकते हो।
दीपू अभी दस साल का था और उसे दुसरे लोगों पर रंग डालना अच्छा लगता था और अगर गलती से किसी ने उस पर रंग लगा दिया तो उसकी खैर नहीं।

मम्मी ने कहा हे राम।हर साल होली क्यों आता है? होली के आते ही उसकी शैतानी शुरू और पढ़ाई बंद।।
तभी दीपू की मौसी आ गई। दीपू बोल पड़ा अरे मासी रंग लाई हो?
अलका बोली हां इस बार तुझे भूत बना कर छोडुगी। दीपू हंसते हुए भाग गया वहां से।

शाम से दीपू की मां आरती और दीपू की मौसी अलका रसोई में तरह-तरह के पकवान बना रही थी।
गुजिया,आलू चिप्स, पापड़, नमकीन,माल पुए सब बन रहा था।
दीपू के पापा सबके लिए नये नये कपड़े, जूते सब ले कर आएं।
रात में सब लोग मिलकर होलिका दहन किया और दीपू छत पर जाकर सब होली का सामान जैसे रंग, गुब्बारे, पिचकारी, बाल्टी ये रख कर आया।

और फिर वो दादाजी के पास जाकर लेट गया और बोला दादू आप होली खेलेंगे?दादू बोले नहीं बेटा, बचपन में बहुत खेलता था।
दीपू बोला हां,पर क्या कोई आप पर रंग डालता था।
दादू बोले हां मेरे सारे दोस्त मिलकर खेलते थे।
दीपू ने कहा पर मुझे दूसरों पर रंग डालना अच्छा लगता था।
दादू हंस कर बोले ये कैसी होली जिसमें तुम्हें कोई नहीं रगे।। इसमें क्या मज़ा। तुम सबको रंग दो पर कोई तुम्हें ना रंगे। दीपू बोल पड़ा हां दादू
फिर दीपू जाकर सो गया।

सुबह उठते ही जल्दी से छत पर चला गया और सामान देखने लगा और तभी आरती ने बुलाया तो दीपू नीचे आ गया और बोला क्या बात है मम्मी।
आरती ने कहा दूध पी लें।
दीपू बिना ब्रस किये ही दूध पीने लगा और फिर अलका बोली अरे वाह बिना ब्रस किये ही।।।।
फिर दीपू जाकर मुंह धोकर आया।
अलका ने एक तौलिया दिया और दीपू हरबरी में मुंह पोंछने लगा और फिर सब हंसने लगे और बोले बुरा ना मानो होली है।

फिर दीपू ने आईना देखा तो डर गया और बोला मासी ने चिटिंग किया है। अलका ने कहा हां बेटा मैंने जो कहा था वैसा ही किया।

फिर दीपू का दोस्त रमेश आ गया और दोनों छत पर गए। जब रमेश ने देखा दीपू का चहेरा तो हंसने लगा और बोला अरे वाह किसने लगाया रंग? दीपू ने कहा मासी ने।
फिर दोनों दोस्त गुब्बारे में रंग भरने लगें और फिर दीपू ने सड़क पर एक गुब्बारा फेंका तो देखा एक पंडित जी जा रहें थे और गुब्बारा उनके सिर पर फट गया और वो बोले सत्यानाश ! सुबह -सुबह रंग फेंक दिया।
इसी तरह दोनों दोस्त आपस में और इधर उधर रंग खेलने लगे दीपू के कुछ दोस्त और आ गए।

चारों तरफ ही रंग बिरंगे रंग देखने को मिल रहा था।
कुछ देर बाद आरती, अलका और कुछ रिश्तेदार सब छत पर आ गए क्योंकि दीपू का छत काफी बड़ा था।
सब लोग मिलकर होली खेलने लगे। फिर दीपू के पापा हरिश भी अपने दोस्तो के साथ होली खेलने लगे।
बहुत देर तक सब खेलने लगे और फिर सब नीचे आ गए।
सब लोग अपने घरों में चलें गए।
दीपू अपने मुंह में लगे रंग को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर रंग काफी गहरा था।

अलका ने कहा दीपू आओ मै रंग छुड़ाती हुं। दीपू रोने लगा और बोला मासी ये रंग कैसा है? निकल नहीं रहा।

अलका ने फिर धीरे धीरे से सब रंग निकल दिया और फिर दीपू नहा कर आया और खाना खा कर सो गया।

फिर शाम को रसोई घर से देसी घी के खुशबू से दीपू उठ गया।
और फिर नये कपड़े पहन कर तैयार हो गया।
आरती ने कहा बेटा पापा के साथ सबके घर जाकर मिठाईयां देकर आओ।

हर बार दीपू अपने पापा के साथ सब रिश्तेदार के यहां जाता था।
फिर मिठाई और गुलाल लेकर सबसे पहले शर्मा अंकल के घर पहुंच गए।
दीपू ने चाचा चाची के पैरों में गुलाल लगा कर होली मुबारक बोला और फिर चाची ने ठंडाई और मिठाई , नमकीन खाने को दिया।

दीपू तो झट से ठंडाई पिया और पुछा कि इसमें भांग तो नहीं है? चाची ने कहा नहीं नहीं।

फिर वहां से बड़े ताऊजी के घर पहुंच गए और वहां भी काफी लोग आएं थे।
दीपू ने ताऊजी और ताईं जी के पैरों में गुलाल लगा कर होली मुबारक बोला। और फिर मीता दीदी और सोहन भाईया ने भी रंग लगाया और फिर ताई ने दीपू को एक पैकेट दिया और कहा ये लो तेरा होली का गिफ्ट।
दीपू बहुत खुश हुआ। दीपू के पापा बोले कि क्या भाभी हर साल देती है आप।।
फिर मीता दीदी हमारे लिए खीर, रसगुल्ले और वेजिटेबल सूप लेकर आ गई।

दीपू बोला अरे इतना नहीं खा सकता हूं।
मीता ने कहा चल बदमाश तू तो छोटा-सा है खा लेगा।
दीपू भी क्या करता खाना ही पड़ा।

फिर दीपू वहां से अपने दोस्त रमेश के घर चला गया जहां पर उसे अमल,करीम,हरीश, दिनेश सब मिले।सब मिलकर एक दूसरे को गुलाल लगा कर गले मिले।
फिर सब वहां से बंशी काका के चाट खाने चले गए।
दीपू वहां दुर ही खड़ा था रमेश ने उसे आगे कर दिया और सब मिलकर गोल गप्पे खाएं। दीपू ने कहा मैं कुछ नहीं खाना चाहता था पर।।।।
सबने पंद्रह गोल गप्पे खाएं।
फिर अमल को आइसक्रीम वाला दिखा तो सब आइसक्रीम खाने लगे।

दीपू बोला अरे मेरा पेट जल रहा है।
रमेश बोल पड़ा अरे चलो अब मेरे घर चले।

सभी मिलकर रमेश के घर पहुंच गए और देखा कि बहुत सारे मेहमान थे तो रमेश बोला कि चलो मेरे कमरे में चले। फिर सब कमरे में जाकर बैठ गए।
फिर कुछ देर बाद रमेश कि मां आकर नाश्ता रख दिया जिसमें तरह तरह के मिठाई और गुजिया, चिप्स, मठ्ठा,आलू पापड़ धोखला,रस बड़ा।
फिर सब लोग खाने लगे पर दीपू नहीं खा रहा था तो रमेश ने एक गुजिया दीपू के मुंह में घुसा दिया और फिर मठ्ठा, आलू पापड़,रस बड़ा।
ये सब खा कर वो चलने लायक नहीं बचा।

फिर रमेश ने कहा चलो अब मनीष के घर चलें। दीपू ने कहा नहीं मैं अब नहीं जा रहा हूं।
रमेश ने कहा अगर तुम नहीं जाओगे तो हम सब भी नहीं जाएंगे।

फिर सब मनीष के घर पहुंच गए। मनीष का घर बहुत ही शानदार था और वहां दावत चल रही थी।
मनीष ने कहा होली मुबारक हो।
ये लो कोल्ड ड्रिंक। सबने एक एक गिलास ले
लिया। दीपू को कोल्ड ड्रिंक पीने से थोड़ा आराम मिला पर खाने के लिए पेट में जगह नहीं थी।

फिर मनीष के यहां कुक था उसने सबके लिए प्लेट लगा कर दिया। दीपू ने देखा कि प्लेट में कचौड़ी,नान, छोले, पकौड़ी, मिठाई ये सब था। सभी खाना शुरू कर दिया।
दीपू नहीं खा रहा था तो मनीष ने कहा अरे दोस्त ये सब क्या है।तू तो पहली बार यहां आया है अच्छी तरह से खा ना।
फिर दीपू ने सर हिला दिया और क्या करता बिचारा प्लेट उठा लिया और खाने लगा। खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

किसी तरह दीपू ने खाया और अब‌ दीपू की तबीयत बिगडने लगी ।
फिर सब लोग निकल गए अपने अपने घर के लिए।

किसी तरह दीपू अपने घर पहुंचा तो देखा कि
मेहमान सब बैठ कर खाना खा रहे थे। बहुत भीड़ थी तो वो सीधे अपने कमरे में जाकर कर लेट गया।

सारे महेमान जातें -जाते ग्यारह बज गए और फिर अलका गुजिया लेकर दीपू के कमरे में गई पर देखा गहरी नींद में सो गया था दीपू।

अलका वापस आकर बोली दीदी लगता है दोस्तों के साथ ज्यादा होली की दावत हो गई। गहरी नींद सो रहा है।
आरती ने कहा अच्छा जाने दो हम लोग खा लेते हैं।
अगले दिन सुबह से ही दीपू को उल्टियां होने लगी और साथ दस्त भी। दादू ने दीपू को दवा पिलाई।
घर में सबको पता चला तो सब घबरा गए।

दीपू ने कल के दावत की बात बताया तो सब लोग हंसने लगे।
दीपू बोला कि मुझे इस साल की होली का दिन याद रहेगा ये कहते हुए दीपू बुदबुदाया। और फिर अलका ने कहा बुरा ना मानो होली है।।


देखा दोस्तों होली के दिन दावत तो खाओ पर ऐसी दावत मत खाओ की दवा खानी पड़े जैसे कि दीपू को खाना पड़ा।।








मम्मी के हजार बार मना करने के बाद भी वह अपनी जिद पुरी कर लिया।

मम्मी ने देखते ही कहा इतना खरीद लिए हो कि एक दुकान खोल सकते हो।
दीपू अभी दस साल का था और उसे दुसरे लोगों पर रंग डालना अच्छा लगता था और अगर गलती से किसी ने उस पर रंग लगा दिया तो उसकी खैर नहीं।

मम्मी ने कहा हे राम।हर साल होली क्यों आता है? होली के आते ही उसकी शैतानी शुरू और पढ़ाई बंद।।
तभी दीपू की मौसी आ गई। दीपू बोल पड़ा अरे मासी रंग लाई हो?
अलका बोली हां इस बार तुझे भूत बना कर छोडुगी। दीपू हंसते हुए भाग गया वहां से।

शाम से दीपू की मां आरती और दीपू की मौसी अलका रसोई में तरह-तरह के पकवान बना रही थी।
गुजिया,आलू चिप्स, पापड़, नमकीन,माल पुए सब बन रहा था।
दीपू के पापा सबके लिए नये नये कपड़े, जूते सब ले कर आएं।
रात में सब लोग मिलकर होलिका दहन किया और दीपू छत पर जाकर सब होली का सामान जैसे रंग, गुब्बारे, पिचकारी, बाल्टी ये रख कर आया।

और फिर वो दादाजी के पास जाकर लेट गया और बोला दादू आप होली खेलेंगे?दादू बोले नहीं बेटा, बचपन में बहुत खेलता था।
दीपू बोला हां,पर क्या कोई आप पर रंग डालता था।
दादू बोले हां मेरे सारे दोस्त मिलकर खेलते थे।
दीपू ने कहा पर मुझे दूसरों पर रंग डालना अच्छा लगता था।
दादू हंस कर बोले ये कैसी होली जिसमें तुम्हें कोई नहीं रगे।। इसमें क्या मज़ा। तुम सबको रंग दो पर कोई तुम्हें ना रंगे। दीपू बोल पड़ा हां दादू
फिर दीपू जाकर सो गया।

सुबह उठते ही जल्दी से छत पर चला गया और सामान देखने लगा और तभी आरती ने बुलाया तो दीपू नीचे आ गया और बोला क्या बात है मम्मी।
आरती ने कहा दूध पी लें।
दीपू बिना ब्रस किये ही दूध पीने लगा और फिर अलका बोली अरे वाह बिना ब्रस किये ही।।।।
फिर दीपू जाकर मुंह धोकर आया।
अलका ने एक तौलिया दिया और दीपू हरबरी में मुंह पोंछने लगा और फिर सब हंसने लगे और बोले बुरा ना मानो होली है।

फिर दीपू ने आईना देखा तो डर गया और बोला मासी ने चिटिंग किया है। अलका ने कहा हां बेटा मैंने जो कहा था वैसा ही किया।

फिर दीपू का दोस्त रमेश आ गया और दोनों छत पर गए। जब रमेश ने देखा दीपू का चहेरा तो हंसने लगा और बोला अरे वाह किसने लगाया रंग? दीपू ने कहा मासी ने।
फिर दोनों दोस्त गुब्बारे में रंग भरने लगें और फिर दीपू ने सड़क पर एक गुब्बारा फेंका तो देखा एक पंडित जी जा रहें थे और गुब्बारा उनके सिर पर फट गया और वो बोले सत्यानाश ! सुबह -सुबह रंग फेंक दिया।
इसी तरह दोनों दोस्त आपस में और इधर उधर रंग खेलने लगे दीपू के कुछ दोस्त और आ गए।

चारों तरफ ही रंग बिरंगे रंग देखने को मिल रहा था।
कुछ देर बाद आरती, अलका और कुछ रिश्तेदार सब छत पर आ गए क्योंकि दीपू का छत काफी बड़ा था।
सब लोग मिलकर होली खेलने लगे। फिर दीपू के पापा हरिश भी अपने दोस्तो के साथ होली खेलने लगे।
बहुत देर तक सब खेलने लगे और फिर सब नीचे आ गए।
सब लोग अपने घरों में चलें गए।
दीपू अपने मुंह में लगे रंग को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर रंग काफी गहरा था।

अलका ने कहा दीपू आओ मै रंग छुड़ाती हुं। दीपू रोने लगा और बोला मासी ये रंग कैसा है? निकल नहीं रहा।

अलका ने फिर धीरे धीरे से सब रंग निकल दिया और फिर दीपू नहा कर आया और खाना खा कर सो गया।

फिर शाम को रसोई घर से देसी घी के खुशबू से दीपू उठ गया।
और फिर नये कपड़े पहन कर तैयार हो गया।
आरती ने कहा बेटा पापा के साथ सबके घर जाकर मिठाईयां देकर आओ।

हर बार दीपू अपने पापा के साथ सब रिश्तेदार के यहां जाता था।
फिर मिठाई और गुलाल लेकर सबसे पहले शर्मा अंकल के घर पहुंच गए।
दीपू ने चाचा चाची के पैरों में गुलाल लगा कर होली मुबारक बोला और फिर चाची ने ठंडाई और मिठाई , नमकीन खाने को दिया।

दीपू तो झट से ठंडाई पिया और पुछा कि इसमें भांग तो नहीं है? चाची ने कहा नहीं नहीं।

फिर वहां से बड़े ताऊजी के घर पहुंच गए और वहां भी काफी लोग आएं थे।
दीपू ने ताऊजी और ताईं जी के पैरों में गुलाल लगा कर होली मुबारक बोला। और फिर मीता दीदी और सोहन भाईया ने भी रंग लगाया और फिर ताई ने मुझे एक पैकेट दिया और कहा ये लो तेरा होली का गिफ्ट।
दीपू बहुत खुश हुआ। दीपू के पापा बोले कि क्या भाभी हर साल देती है आप।।
फिर मीता दीदी हमारे लिए खीर, रसगुल्ले और वेजिटेबल सूप लेकर आ गई।

दीपू बोला अरे इतना नहीं खा सकता हूं।
मीता ने कहा चल बदमाश तू तो छोटा-सा है खा लेगा।
दीपू भी क्या करता खाना ही पड़ा।

फिर दीपू वहां से अपने दोस्त रमेश के घर चला गया जहां पर उसे अमल,करीम,हरीश, दिनेश सब मिले।सब मिलकर एक दूसरे को गुलाल लगा कर गले मिले।
फिर सब वहां से बंशी काका के चाट खाने चले गए।
दीपू वहां दुर ही खड़ा था रमेश ने उसे आगे कर दिया और सब मिलकर गोल गप्पे खाएं। दीपू ने कहा मैं कुछ नहीं खाना चाहता था पर।।।।
सबने पंद्रह गोल गप्पे खाएं।
फिर अमल को आइसक्रीम वाला दिखा तो सब आइसक्रीम खाने लगे।

दीपू बोला अरे मेरा पेट जल रहा है।
रमेश बोल पड़ा अरे चलो अब मेरे घर चले।

सभी मिलकर रमेश के घर पहुंच गए और देखा कि बहुत सारे मेहमान थे तो रमेश बोला कि चलो मेरे कमरे में चले। फिर सब कमरे में जाकर बैठ गए।
फिर कुछ देर बाद रमेश कि मां आकर नाश्ता रख दिया जिसमें तरह तरह के मिठाई और गुजिया, चिप्स, मठ्ठा,आलू पापड़ धोखला,रस बड़ा।
फिर सब लोग खाने लगे पर दीपू नहीं खा रहा था तो रमेश ने एक गुजिया दीपू के मुंह में घुसा दिया और फिर मठ्ठा, आलू पापड़,रस बड़ा।
ये सब खा कर वो चलने लायक नहीं बचा।

फिर रमेश ने कहा चलो अब मनीष के घर चलें। दीपू ने कहा नहीं मैं अब नहीं जा रहा हूं।
रमेश ने कहा अगर तुम नहीं जाओगे तो हम सब भी नहीं जाएंगे।

फिर सब मनीष के घर पहुंच गए। मनीष का घर बहुत ही शानदार था और वहां दावत चल रही थी।
मनीष ने कहा होली मुबारक हो।
ये लो कोल्ड ड्रिंक। सबने एक एक गिलास ले
लिया। दीपू को कोल्ड ड्रिंक पीने से थोड़ा आराम मिला पर खाने के लिए पेट में जगह नहीं थी।

फिर मनीष के यहां कुक था उसने सबके लिए प्लेट लगा कर दिया। दीपू ने देखा कि प्लेट में कचौड़ी,नान, छोले, पकौड़ी, मिठाई ये सब था। सभी खाना शुरू कर दिया।
दीपू नहीं खा रहा था तो मनीष ने कहा अरे दोस्त ये सब क्या है।तू तो पहली बार यहां आया है अच्छी तरह से खा ना।
फिर दीपू ने सर हिला दिया और क्या करता बिचारा प्लेट उठा लिया और खाने लगा। खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

किसी तरह दीपू ने खाया और सब‌ दीपू की तबीयत बिगडने लगी ।
फिर सब लोग निकल गए अपने अपने घर के लिए।

किसी तरह दीपू अपने घर पहुंचा तो देखा कि
मेहमान सब बैठ कर खाना खा रहे थे। बहुत भीड़ थी तो वो सीधे अपने कमरे में जाकर कर लेट गया।

सारे महेमान जातें -जाते ग्यारह बज गए और फिर अलका गुजिया लेकर दीपू के कमरे में गई पर देखा गहरी नींद में सो गया था दीपू।

अलका वापस आकर बोली दीदी लगता है दोस्तों के साथ ज्यादा होली की दावत हो गई। गहरी नींद सो रहा है।
आरती ने कहा अच्छा जाने दो हम लोग खा लेते हैं।
अगले दिन सुबह से ही दीपू को उल्टियां होने लगी और साथ दस्त भी। दादू ने दीपू को दवा पिलाई।
घर में सबको पता चला तो सब घबरा गए।

दीपू ने कल के दावत की बात बताया तो सब लोग हंसने लगे।
दीपू बोला कि मुझे इस साल की होली का दिन याद रहेगा ये कहते हुए दीपू बुदबुदाया। और फिर अलका ने कहा बुरा ना मानो होली है।।


देखा दोस्तों होली के दिन दावत तो खाओ पर ऐसी दावत मत खाओ की दवा खानी पड़े जैसे कि दीपू को खाना पड़ा।।