शापित कब्रिस्तान Akash Saxena "Ansh" द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शापित कब्रिस्तान

ये बात तब की है जब पियूष लगभग 12 साल का रहा होगा, वो अक्सर अपनी नानी के घर जाना पसंद करता था... उसकी नानी का घर उसके घर से यही कुछ
बीस मिनट की दूरी पर था.....उस दिन पाता नहीं पियूष को क्या सनक चढ़ी वो सुबह उठते ही मेरे पीछे पड़ गया....""माँ मुझे नानी के घर जाना है, नानी के घर जाना है कहकर"" मेरा सर खा लिया फ़िर मैंने भी हारकर इसे जाने के लिए कह ही दिया।
फ़िर क्या जनाब तुरंत जाने के लिए तैयार हो गए....फटाफट अपना बैग लिया और मुझ से कह कर निकला कि- "मा में नानी के घर जा रहा हूं, शाम तक वापस लौट आऊंगा"...
-' अरे सुन तो' मै भी उसके पीछे भागती हुयी गयी...तो वो अपनी साइकिल निकाल रहा था जो कई दिन से पंचर पड़ी थी। मुझे लगा की अब वो नहीं जायेगा लेकिन उसने मुझे देखा और बोला माँ आज मै पैदल ही चला जाता हूँ शार्टकट से......शॉर्टकट सुनते ही मै डर गयी...मैंने पियूष को सीधे रास्ते से जाने के लिए कहा और जल्दी वापस आने को भी....मेरी बातें खत्म होने से पहले ही वो जाने लगा...मुझसे भी रहा नहीं गया तो जाते जाते भी मैंने उसे टोक ही दिया की "पियूष उस रास्ते से मत जाना समझे की नहीं"
'हाँ माँ समझ गया...बाय' कहकर वो घर से निकल गया।
कुछ ही देर में वह अपनी नानी के घर पहुंच गया और उसकी नानी ने मुझे कॉल कर दिया की पियूष यहाँ आ गया है।
जाते ही वो अपनी नानी के गले लग जाता है, जो रसोई में
खड़ी कुछ बना रही होती है, उसकी नानी भी उसे कसकर गले लगाती है और उसका माथा चूमती है
-- देख मैं तेरे पसंद की खीर बना रही थी चल जल्दी से हाथ धो कर आ,मैं गरमा गरम खीर परोसती हूँ। वो नानी से पूँछता है की 'नानी आपको पाता था मै आ रहा हूँ'
--हाँ बेटा तुम्हारी माँ का फ़ोन आया था मेरे पास.....ये सुनकर पियूष अपने माथे पर हाथ रखता है और बड़ी ही प्यारी सी आवाज़ मे कहता है...'ओ हो, ये माँ भी ना पता नहीं कब बड़ी होगी'....पियूष की बात सुनकर उसकी नानी बड़ी ज़ोर से हँस पड़ती है।
--"चल अब जा हाथ धो ले...मेरी बेटी से ज़्यादा तो तू बड़ा हो गया है। "

नानी खीर लेकर आती है और दोनों खीर खा ही रहे होते हैं.... तभी नानी पियूष से पूँछती है,--" बेटा पियूष तू वहां से तो नहीं हो कर आया ना"
'अरे नहीं नानी,अब आप भी....मुझे पता है वो कब्रिस्तान में छोटी चुडैल रहती है,कुछ भी हो जाए मुझे वहां नहीं जाना है।
--"अच्छा अच्छा ठीक है,नाम मत ले उस मनहूस का....तू खीर खा... और बातों ही बातों में शाम हो जाती है..... तभी पीयूष की नजर घड़ी पर पढ़ती है,अरे!6:00 बज गए अब मुझे जाना चाहिए नानी....नहीं तो माँ दोबारा आने नहीं देगी 'मैं जा रहा हूं, अंधेरा भी होने वाला है......नानी! नानी'

--" अरे क्यू शोर मचा रहा है?यहीं तो बैठी हूं, अभी आया था और अभी चल दिया....रुकता भी नहीं है जरा देर"

'कल फिर आ जाऊंगा ना नानी,अभी जाना है मां ने कह कर भेजा था कि शाम से पहले लौट आना, नहीं गया तो माँ डॉटेगी
"अच्छा बाबा ठीक है....मै फ़ोन कर दूँगी उसे कुवह नहीं कहेगी वो और ले ये खीर का डब्बा लेता जा, अपनी को दे दियो उसे भी बहुत पसंद है मेरे हाथ की खीर और इसे देखकर उसका गुस्सा भी छूमनतर हों जायेगा..

'ठीक है नानी...अब मै चलता हूँ"

नानी के घर से निकलते-निकलते लगभग अंधेरा हो ही चुका था....माँ की डांट के डर से पियूष के छोटे छोटे कदम बड़ी तेज़ी से घर की तरफ बढ़ रहे थे...की तभी वो उस कब्रिस्तान के सामने पहुँच गया....और रुककर सोचने लगा की अंधेरा हो चुका है और यहाँ से मै जल्दी पहुँच जाऊंगा..लेकिन अगर माँ को पाता चल गया तो फ़िर कभी नहीं आने देगी.....लेकिन माँ को बताएगा कौन....उसने बिना कुछ और सोचे कब्रिस्तान की तरफ कदम बढ़ा दिए।

राहुल अँधेरे में ही उस कब्रिस्तान में अंदर घुस जाता है और आधे चांद की धुंधली रोशनी में डरता हुआ जल्दी जल्दी कच्चे रास्ते पर बढ़ रहा होता है...रास्ते पर पड़े सूखे पत्तों के कुचलने की आवाज़ उस सन्नाटे को और डरावना बना रही होती हैँ। लेकिन पियूष बिना रुके कब्रिस्तान के बीचों बीच पहुंच जाता है कि तभी कुछ गिरने की आवाज आती है....
'क्या! कौन! कौन है।'पियूष तुरंत घूम कर देखता है।
और एक चमकती सी बॉल, राहुल के पैरों के आगे आकर रुक जाती है... राहुल उस चमकती सी बॉल को देखकर ललचा जाता है और जैसे ही उसे उठाने लिए
नीचे झुकता है बोल आगे लुढ़कने लगती है, वो फ़िर बॉल के पास जाता है और बॉल फ़िर लुढ़कते हुए एक गड्ढे में चली जाती है... राहुल धीरे-धीरे उस गड्ढे के पास जाता है लेकिन बॉल को देखकर उस से रहा नहीं जाता वो फटाफट अपना खीर का डब्बा और बैग उतारकर वहीं नीचे रखता है और गड्ढे मे जाने की कोशिश करने लगता है जिसकी वजह से उसका बैग भी उस गड्ढे मे गिर जाता है..... वो थक कर वापस से खड़ा होता है और धड़ाम से उस गड्ढे में कूद जाता है....उसके कूदते ही बड़ी अजीब सी आवाज़ आती है...जैसे किसी की हड्डी टूट गयी हो....आवाज़ सुन कर पियूष सहम जाता है और उसे वो चमकती हुयी बॉल कहीं नज़र नहीं आती.....वो घबरा जाता है लेकिन उसके बैग उठाते ही बॉल फ़िर से चमक उठती है लेकिन एक पिंजरे मे...एक छोटी हड्डियों का पिंजरा....वो सिर्फ कोई गड्ढा नहीं किसी की कब्र थी..और उस पसलियो के पिंजरे को देखकर शायद किसी बच्चे की....लेकिन पियूष को कहाँ इतनी समझ...बॉल दीखते ही
'अरे वाह! ये तो बड़ी सुंदर है'...
और उसी के साथ एक और आवाज़...
" है ना सुंदर,मेने तुम्हारे लिए ही कब से बना कर रखी थी"... कोई लड़की...कोई बच्ची राहुल की ही उम्र की होगी...बड़े प्यार से राहुल के पीछे आकर कहती है....

आवाज़ सुनकर राहल वहीं की वहीं जम जाता है और अपनी आँखें कस कर बंद कर लेता है.....आँखें बंद करके ही थोड़ी देर बाद वो पीछे मुड़ता है और धीरे धीरे अपनी आँखे फ़िर खोलता है लेकिन वहां कोई नहीं होता....पियूष अब बहुत कस कर डर जाता है और बस घर जाने की सोचने लगता है....वो वापस से अपना बैग उठाने के लिए मुड़ता है....उसकी चीख निकल जाती है....एक जोरदार चीख जो उस कब्रिस्तान के सन्नाटे मे गूँज उठती है.....वो बस रोते हुए उसी कब्र मे एक कोने मे सिमट कर बैठ जाता है और अपने सामने ख़डी
एक अधड़ लड़की, जो अपनी खोपड़ी अपने हाथ में पकड़े हुए होती है, जिसकी एक आँख आधी बाहर लटकी हुयी और दूसरी उलझे हुए बालों से ढकी हुयी..... पूरे चेहरे पर खून से भरी दरारें और उसकी गर्दन से रिसता हुआ काला खून उसकी सफेद फ्रॉक को भिगोता हुआ उसके एक आधे पैर से होकर खीर के डब्बे पर टपक रहा होता है जिसकी छीटें पियूष के चेहरे पर पड़ रही होती हैँ।

'कौन हो तुम?
राहुल एक कोने में सिमटकर,अपनी आंखें बंद करके उससे पूछता है.... तभी वो गड्ढा एक भारी पत्थर से बंद हों जाता है.... आवाज सुनकर,पियूष की आंखें खुलती है....और वो झप्प अंधेरा देखकर ज़ोर ज़ोर से चीखने लगता है.....

'कोई है? कोई है? मुझे यहां से बाहर निकालो मुझे घर जाना है..कोई है? मां.... नानी... कोई है? नानी....मुझे निकालो मुझे मों के पास जाना है।'

""हा हा हा हा हा....हाहा...कोई नहीं सुनेगा यहाँ,मैने भी कई दिनों तक आवाज़ लगायी थी ज़ब मुझे यहां तेरी माँ और नानी ने जिंदा दफन किया था तब मै सिर्फ छह महीने की थी और मैं भी ऐसे ही चीखती चिल्लाती रही और भूखी प्यासी यहां मर गई....और देख मै उनका बिना भी कितनी बड़ी हो गयी....हा हाहा...मैंने उन सब को इसी कब्र मे ज़िंदा दफना दिया जो मेरी मौत की वजह बने'

'लेकिन मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मुझे जाने दो प्लीज..... मेरी मां रास्ता देखती होगी....मुझे माँ के पास जाना है प्लीज़'पियूष कब्र के अंदर से रोते-चीखते हुए बोला

"" तेरी मां और नानी ने ही मुझे यहां जिंदा दफनाया था और तुझे उन्हीं के पास जाना है,कुछ दिन में उन्हें भी यहीं लाऊंगी अब बस वहीं दोनों बची हैँ....उन्हें भी लाऊंगी...हाहाहाहा....उन्हें भी लेकर आउंगी...हाहाहाहा..हाहाहा'''''


और इसी गूँजती हुयी भयानक आवाज़ के साथ सारी आवाजें बंद हो जाती हैं,बस पूरे कब्रिस्तान मे पियूष की ही आवाज़ गूंजती हुयी रह जाती है...

रात भर उसकी नानीा और माँ के तलाशने के बाद.....सुबह कुछ लोगों के साथ पीयूष की तलाश शुरू होती है और दो दिन बाद उसकी मां और नानी के साथ ही रात मे कुछ लोग टोर्च लिए उस कब्रिस्तान में पहुंचते हैं... जहाँ उन्हें वो
खीर का डब्बा खून से सना हुआ ही मिलता है,जिसे देखते ही उसकी नानी समझ जाती है....डब्बा नानी के हाथ से गिरकर खुल जाता हज और वो चमकती हुयी गेंद फ़िर निकल आती है।
बिना वक़्त गँवाये सब उस कब्र को खोदने लगते हैँ और आख़िरकार पियूष मिल ही जाता है...उसकी साँसे अब भी चल रही होती हैं...एक आदमी जल्दी से अंदर कूदकर पियूष को गोद मे उठाकर उसे एक दुसरे आदमी को थमाता है और तभी कब्र फ़िर बंद हों जाती है और उसी के साथ वो आदमी भी।
ये देखकर सब डर जाते हैँ और चिल्लाते हुए अपनी जान बचाकर भागने लगते हैँ।
पियूष के साथ सब बाहर आ जाते हैँ लेकिन उसकी नानी और माँ उस अँधेरे मे ही कहीं गायब हों जाती है।
पियूष को अस्पताल मे भर्ती कर बचा लिया जाता है।
लेकिन कई दिन उस कब्रिस्तान को तलाशने के बाद भी उसकी माँ और नानी का कोई सुराग नहीं मिलता और उस कब्रिस्तान को कुछ मौलवी की मदद से हमेशा के लिए बंद करवा दिया जाता है।
कुछ लोगों का कहना है कि आज भी वो लड़की रात मे कब्रिस्तान के गेट के पास दिखती है, लेकिन उस घटना के बाद उसने किसी को परेशान नहीं किया और ना ही किसी की उस कब्रिस्तान को दोबारा खोलने की हिम्मत हुयी।



धन्यवाद।