DOMESTIC VIOLENCE ya RAPE Akash Saxena "Ansh" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

DOMESTIC VIOLENCE ya RAPE


कोशिश कर रहा था कहानी लिखने की पर लिख न सका तो कविता का रूप दे दिया,पहले पढ़िए फिर आगे बढ़ते हैं।पढ़ने से पहले कहना चाहूंगा कि इस कविता का माध्यम सिर्फ आपके सामने अपने विचार प्रस्तुत करना है,मैं ना ही किसी अपराध का समर्थन करता हूँ और ना ही मेरा मकसद किसी की भावनाओं को किसी भी प्रकार से ठेस पहुँचाना है।अगर कोई शब्द अच्छा न लगे तो पहले ही माफी मांगता हूं,शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ उस कविता की ज़रूरत के लिए किया गया है।


तो कविता का शीर्षक है-

DOMESTIC VIOLENCE या RAPE



घर की इज़्ज़त का बखान कर...अपने घर की इज़्ज़त को नीलाम वो सरे आम करता रहा...
उस बंद कमरे में एक बाप अपनी बेटी की इज़्ज़त को तार तार करता रहा।

ना चीखी,ना चिल्लाई,ना पुकारा अपनी माँ को भी उसने...क्योंकि उसके साथ वो दरिंदा उसकी माँ के सीने पर भी हाथ मलता रहा।

जिस पर कभी खरोंच तक आने न दी उस बाप ने ...
वो बाप ही अपनी लाड़ो के उस जिस्म को बार बार ज़ख्मों से सींचता रहा...


पता नही किस बात की सज़ा वो पा रहीं थीं... किसे पता बंद कमरे में एक माँ अपनी बेटी की आबरू को उसके ही बाप से बार बार बचा रही थी।


इस जुर्म का किसी को पता भी न चला...कि कैसे उस छत के साये में दिन रात एक भेड़िया दो जिस्मों को नोचता रहा।


उनके जिस्म ही नहीं...उनकी रूह भी ये सब सहती आ रही थी...
शायद उनकी भयानक चीखों को वो बंद दरवाज़े की कुंदी ही दबा रही थी।


सिर्फ उस दरवाज़े की नहीं शायद उस घर की छत,दीवार और ज़मीन की भी कुछ मजबूरी थी...
जो अपनो के खून से सने होने के बावजूद...अपनो की इज़्ज़त नही बचा पा रहीं थी...
और ना जाने कैसे उनके दर्दों को एक घर बना कर वो दीवारें इतना सब कुछ छुपा रहीं थी।


पता नहीं कितना भूखा था वो जानवर,जो इतने जिस्म के टुकड़े उसकी भूख...
और अपनों के खून का कतरा कतरा पीने के बाद भी उस इंसान की प्यास हर दिन बढ़ती जा रही थी।

आखिर किसकी मजबूरी थी...आखिर कैसी मजबूरी थी...
जो कई घरों की इज़्ज़त उनके घर मे ही रोज़ लूटी जा रही थी...
आखिर किसकी मजबूरी थी...आखिर कैसी मजबूरी थी।




तो ये मेरी सिर्फ एक छोटी सी कोशिश थी,एक भयानक अपराध की भयावता को चंद शब्दों में दर्शाने की।

सिर्फ अपना गुस्सा निकालने के लिए और कई केसेस में सिर्फ मज़े के लिए कुछ नामर्द अपने घर की औरतों पर अत्याचार करते हैं,उनका शारीरिक शोषण करते हैं।

पता नहीं केसी विडंबना है,जो कभी घर की लक्ष्मी कही जाने वाली औरतें-बच्चियां आज अपने ही घर में हैवानियत का शिकार हो रही हैं।


ऐसे ही ना जाने कितने अपराध बंद किवाड़ की आड़ में होते रहे हैं और शायद हो भी रहे हैं।
आप से विनती है,की अपने आस पड़ोस के लोगों को लेकर सतर्क रहें,आपकी छोटी सी कोशिश ऐसे घिनोने अपराधों को रोक सकती है और अनेकों बहन-बेटियों की ज़िंदगी बचा सकती है।

अगर आप के आस पास ऐसे या कोई भी अपराध हो रहे हों तो तुरंत कानून की मदद लीजिय।

धन्यवाद।