कोरोना प्यार है - 14 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 14

(14)‌‌‌‌‌

"मैंने भी आज अगर तुम्हें अपना दीवाना न बना दिया न तो मेरा नाम अभिनव राणा नहीं।" अभिनव ने कहा।

दोनों की प्यार भरी ये जुगलबन्दी दर्शकों का मनोरंजन कर रही थी। इनकी नोंक-झोंक पर खूब तालियां बजायी जा रही थी। जगजीत राणा अपने बेटे का हौसला बढ़ा रहे थे। मदनमोहन चाहते थे कि आज का यह मैच अभिनव ही जीते ताकी रेखा अभिनव से शादी कर राणा परिवार की बहू बन जाये।

"अभिनव और रेखा। आप दोनों यहां आकर अपना-अपना वज़न कीजिये।" रैफरी ने कहा।

रेखा की मोह निद्रा भंग हुई। अभिनव उसके दिलों दिमाग़ पर हावी हो चुका था। वह अपने हृदय का पुरजोर विरोध कर रही थी जो उसे बार बार अभिनव के प्रति प्रीत के भाव रखने के लिये कह रहा था। जबकी उसका दिमाग़ उसे ऐसा नहीं करने को प्रेरित कर रहा था। गोपीचंद रेखा को बाॅक्सिंग के गुरू मंत्र समझा रहे थे। रेखा को गोपीचंद का मात्र होठ हिलाना दिखाई दे यहा था। वे क्या कह रहे थे उसे तनिक भी ध्यान नहीं था। वह तो अभिनव के प्रेम जाल में बुरी तरह फंस चूकी थी। जो आदमी हजारों दर्शकों के बीच उसे प्यार का इजहार कर सकता है वह कितना बहादुर होगा इसका भलि-भांति अनुमान लगाया जा सकता था।

अचानक क्लब के बाहर अफरा-तफरी का माहौल बन गया। पुलिस वैन का साइरन गूंज उठा। पुलिस माइक पर कर्फ्यू का ऐलान कर रही थी। समूचे शहर में धारा 144 लगा दी गयी थी। कोरोना संक्रमण पुरे विश्व में फैल चूका था। एहतियातन प्रशासन ने शहर को बंद करने का निर्णय लिया था। कोरोना संक्रमण छुने से और एक-दुसरे के संपर्क में आने से फैलता है। यही कारण था कि चंद इटली के विदेशी पर्यटकों से भारत में आया कोराना धीरे-धीरे यहां अपना पांव पसार रहा था। पुलिस के अधिकारी स्टेडियम मे घुस आये। उन्होंने आयोजकों को बाॅक्सिंग मैच की परमिशन रद्द करने की सुचना दी। आयोजक प्रशासन के आला अधिकारीयों से बहस करते हुये नज़र आ रहे थे।

"चलो मैच तो कैसिंल हो गया। लेकिन मैं तुम्हारी हसरथ एक दिन जरूर पुरी करूंगा।" अभिनव रेखा के पास आ कर बोला।

"तुम्हारी किस्मत अच्छी है आज बच गये। वरना बेमौत मारे जाते।" रेखा ने कहा।

"मैं तो वैसे भी मर चूका हूं।" अभिनव ने रेखा के बहुत करीब आकर कहा। वह रेखा की आंखों में अपनी आंखें डालकर बोल रहा था। रेखा स्वयं पर नियंत्रण खो चूकी थी। वह अभिनव की आंखों में स्वयं की छबी देख रही थी। अभिनव ने रेखा के हाथों को अपने हाथों में लिया।

"रेखा। ये लड़ाई-झगड़े करने के लिए पुरी उम्र पड़ी है। कुछ पल प्यार के लिए भी निकाल लो। देखना तुम्हें भी जिन्दगी से प्यार हो जायेगा।" अभिनव ने कहा।

"सभी सज्जन स्टेडियम खाली कर देवे। सभी लोग अपने-अपने घर जाएं। मैच रद्द किया जा चुका है।" माइक पर अनाउंस किया जा रहा था।

"रेखा चलो।" गोपीचंद ने जोर देकर कहा।

रेखा की मोहनिद्रा भंग हुई। वह गोपीचंद के साथ लौटने लगी। मगर मुड़-मुड़कर वह अभिनव को देख रही थी। तीर एक दम सही निशाने पर लगा था। रेखा के दिल में अभिनव जगह बना चूका था। संकेतों में अभिनव ने रेखा से फोन पर बात करने को कहा।

लाॅकडाउन का समय था। अभिनव ने रेखा से फोन पर बातें करना शुरू की। अंततः उसने रेखा से कन्वेंशन करवा ही लिया कि वह भी अभिनव से प्यार करने लगी है।

"रेखा! मुझे खुशी है कि तुमने मुझे अपने दिल में जगह दी।" अभिनव बोला।

दोनों छिपते-छिपाते शहर से दुर आये थे। सभी अपने-अपने घरों में लाॅक थे। मिलना-जुलना प्रतिबंधित था। मगर इन दोनों ने एक-दुसरे मिलने की खातिर दहलीज लांघ ही दी थी।

"अभि! अगर तुम्हें अपना नहीं बनाती तो शायद जी नहीं पाती।" रेखा बोली।

"तुम इतना बदल जाओगी मैंने कभी सोचा नहीं था।" अभिनव बोला।

"मगर तुम मत बदलना अभि। मुझे हमेशा ऐसे ही प्यार करते रहना। वरना मैं तुम्हें मार डालूंगी।" रेखा ने अभिनव की काॅलर पकड़ते हुये कठोर स्वर में कहा।

"इतनी हसीन मौत मिले तो मैं हजार बार मरने को तैयार हूं।" कहते हुये अभिनव ने रेखा को चूम लिया।

"अरे! पब्लिक प्लेस है। शर्म करो।" रेखा बोली।

"मैं तुम्हारे अलावा किसी से नहीं डरता रेखा।" कहते हुये अभिनव ने रेखा के गले में बाहों की माला पहना दी।

"अभी तो इतना प्यार दिखा रह हो, मगर शादी के बाद तुम भी बाकी पतियों की तरह पत्नीयों से दुर भागोगे।" रेखा ने कहा।

"तुम्हारा मतलब है कि शादी के बाद पति अपनी पत्नी से प्यार नहीं करते है?" अभिनव ने पुछा।

"बिलकुल सही। शादी के बाद पतियों को दुसरे की पत्नियों ज्यादा अच्छी लगती है।" रेखा बोली।

"तुमने कमाल का रिसर्च किया है पतियों पर।  कितना कुछ सच भी है इसमें। बट यूं डोन्ट वरी। मेरे लिए तुम ही पहला और आखिरी प्यार रहोगी।" अभिनव बोला।

"शादी से पहले सभी ऐसा ही कहते है।" रेखा ने मुंह बनाते हुये कहा।

"रेखा। पता नहीं मेरी बातें कहां तक सही है, मगर शादी के पहले जो परस्पर प्रेम और समर्पण प्रेमी और प्रेमिका में होता है वह शादी के बाद कम नहीं होता। अपितु उसके मायने बदल जाते है। शादी के बाद का प्यार शारीरिक आकर्षण के बजाए आंतरिक जुड़ाव को महत्व देता है। पति और पत्नी दोनों परिवार की वह धुरी बन जाते है जिसके इर्द-गिर्द बड़े बुजुर्ग और बच्चें सभी परिक्रमा लगाते है। क्योंकि ये दोनों ही परिवार में सर्वाधिक सक्रिय सदस्य होते है। इनके प्रत्येक क्रियाकलापों पर सदस्यों के लाभ-हानी जुड़े रहते है। पत्नी का त्याग और समर्पण सभी को प्रत्यक्ष दिखता है क्योंकि वह आठों पहर सभी के लिए कुछ न कुछ करती रहती है। मगर पति चूंकि दिन भर घर में नहीं होता तब उसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह खड़े नहीं किये जा सकते।" अभिनव ने कहा।

"तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे है। मैं तो इतना सिर्फ इतना जानती हूं कि शादी के बाद पति के पास पत्नी के लिए समय नहीं होता। वह केवल तब ही उसके पास आता है जब उसे शारीरिक थकान दूर करनी होती है। वर्ना तो वह पत्नी से सीधे मुंह बात भी नहीं करता।" रेखा ने कहा।

"जो लोग ऐसा करते है निश्चित ही गल़त करते है। मगर इसके लिए इतना ही कह सकता हूं कि पतियों के कंधे पर घर-परिवार की आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारी होती है। परिवार के सदस्यों की मांग अनुसार उनका समुचित भरण-पोषण उसकी पहली प्राथमिकता होती है। पत्नी के प्रति उसके हृदय में असीम प्रेम होता है मगर उसे दिखाये कैसे? अपने रिश्तें की पवित्रता और मर्यादित आचरण से वह बंध जाता है। परिवार के बुजुर्गों का लिहाज और बच्चों की भावि संक्रियाएं दुषित न हो इसलिए वह स्वयं पर अगाध नियंत्रण करने का भरसक प्रयास करता है।" अभिनव बोल रहा था।

रेखा मौन रहकर उसकी बातें सुन रही थी।

"पति यहां अपने प्यार को विभिन्न तरीके से प्रदर्शित करता है। किसी बात पर जब पत्नी रूठ जाये तब पति दिन भर ऑफिस में बैठकर उसी के विषय में सोचता रहता है। काम काज में उसका जरा भी मन नहीं लगता। दिन में दस बार बार फोन पर पत्नी से बात करने की कोशिश करता। लेकिन पत्नी तब भी अगर फोन पर बात न करे तो अपने सारे काम छोड़कर वह घर आ जाता है। वह अपने किये पर माफी मांगता है, मिन्नतें करता है। किमती से किमती से तोहफा खरीद कर उसे देता है। भले ही उसके बैंक अकाउंट में रूपये हो या नहीं।"

"बैंक से लोन लेकर घर के लिए जरूरी सामान खरिदता है ताकी उसकी पत्नी को ज्यादा मेहनत न करनी पड़े। वह उसकी इच्छा विरूद्ध ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे की गृहलक्ष्मी नाराज हो और घर की शांति भंग हो। उसे पता है अगर घर में उसकी पत्नी प्रसन्न है तब ही वह शांति से ऑफिस में काम कर सकता है। वह अपने दोस्तों के साथ देर रात समय बिताना भी छोड़ देता है, उनके साथ घुमना फिरना छोड़ देता है ताकी उसकी पत्नी नाराज़ न हो। लोग उसके डर पोक और कुछ तो जोरू का गुलाम तक कह देते है मगर वह सबकुछ सुनकर भी अनसुना कर देता है।" अभिनव ने कहा।

"मगर अभि! शादी के बाद बच्चें होने पर पति अपनी पत्नी पर कम ध्यान देने लगता है। उसका सारा प्यार बच्चों के लिए होता है जबकी पत्नी अब भी उसकी ओर आशा भरी निकाहों से देखती है कि थोड़ा महत्व उसे भी दो आखिर इन बच्चों को पैदा तो उसने ही किया है न?" रेखा ने पैंतरा बदल कर कहा।

"सही कहा तुमने! मगर जब तक संतान पत्नी के पेट में रहती है जरा उस समय का भी स्मरण करो। पति न-न प्रकार से अपनी पत्नी को प्रसन्न करने का प्रयास करता रहता है। पत्नी की हर ख़वाहिश उसके लिए किसी आदेश से कम नहीं होती। इस समय वह दुनिया भर के पकवान अपनी पत्नी को खिलाना चाहता है ताकी उसकी कोई इच्छा अधुरी न रह जाये। इसके पीछे उसकी सोच यह होती है कि आने वाली संतान वह सब खाये जिसे उसके पिता घर में सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध करवा सके।"

"ऑफिस से आते ही उसका पहला प्रश्न होता है कि क्या उसकी पत्नी ने आज की सभी दवाएं नियम से खाली थी। जबकि यही बात वो फोन पर सुबह से पचासों बार पहले ही पुछ चूका होता है। इस दौरान डाॅक्टर को दिखाना हो या कोई मेडीकल जांच आदि करवाना हो तो वह अपने काम से छुटूटी लेकर दिन भर पत्नी को लेकर हॉस्पिटल के चक्कर काटता रहता है।"

"प्रसव कक्ष में पत्नी का चिखना-चिल्लाना सबको दिखता है। मगर उस पति का किसी को ध्यान नहीं रहता है जो लेबर रूम के बाहर हाथों को बांधे चूपचाप खड़ा रहता है। उसकी मनोदशा को विचार कर पाना किसी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं। इससे अधिक यह कि जब डाॅक्टर लेबर रूम से बाहर आकर कहता है कि स्थिति क्रीटीकल है। सीजर ऑपरेशन करना होगा। वह कंपकपाते हाथों से ऑपरेशन फार्म पर हस्ताक्षर करता है। उसके हृदय में देवी-देवाओं के जाप निरंतर जारी रहते है। और अगर पत्नी और बच्चें में से किसी एक का जीवन बचाने का खतरा होता है तब वह अपनी प्रिय पत्नी की ही जान बचाने की वकालत करता है। उसे इस बात का भरोसा होता है कि पेड़ हरा रहेगा तब फल पुनः आ जायेंगे।" अभिनव ने रेखा को मौन कर दिया। वह चाहकर भी आगे कुछ बोल न सकी।

दिन ढलने को था। तब ही वहां पुलिस की वैन आ पहूंची।

"सारा ज़माना घर में कैद है और आपको इश़्क सुझ रहा है। हवलदार बिठाव इन दोनों को जीप में। थाने चलकर निकालते है इनका इश़्क का भुत।" पुलिस वैन से उतरते ही इन्स्पेक्टर साबह बोले।

"सर माफ कर दीजिये। आगे से ऐसा नहीं होगा।" अभिनव ने प्रार्थना की।

बात बढ़ते हुये देख रेखा ने अपने चेहरे से नक़ाब निकाल लिया। जो उसने पुलिस वैन को अपनी ओर आता देखकर पहले ही बांध लिया था।

रेखा को देखकर पुलिस ऑफिसर उसे पहचान गया।