कोरोना प्यार है - 8 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 8

(8)‌‌‌‌‌

"किसका फोन था अनिल?" अनिल की मां शोभारानी ने पुछा।

"पलक की भाभी सुजाता का फोन था मां।" अनिल ने बताया।

"तुझे कितनी बार कहा है कि हमें उन लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना है।" शोभारानी गुस्से में बोली।

"मगर क्यों मां। पलक एक अच्छी लड़की है। अच्छे लोग है। ऊचां खानदान है और क्या चाहिए आपको?" अनिल बोला।

"मुझे कोरोना का मरीज अपने घर में नहीं चाहिए।" शोभारानी बोली।

"मगर मां अब वो ठीक है। उसकी दोनों रिपोर्ट निगेटिव आई है।" अनिल बोला।

"लेकिन बेटा! उसके परिवार वालों को भी यदि कोरोना हुआ तो?" अनिल के पिता गोकुलसिंह ने पूछा।

"नहीं पापा। वे लोग पलक के साथ-साथ अपना भी पुरा ख़याल रख रहे है। पलक को चौदह दिन तक एक अलग कमरे में आइसोलेट किया गया है जहां उसका रैगूलर चेकअप और इलाज किया जा रहा है। उसके परिवार के सभी सदस्यों की कोरोना जांच निगेटिव आई है।" अनिल बोला।

"अरे वाह! यह तो अच्छी ख़बर है। क्यों भाग्यवान?" गोकुलसिंह ने प्रसन्न होकर कहा।

"तुम चूप रहो जी। देख बेटा। मैंने एक बार कहा न कि हमें उस घर में तुम्हारी शादी नहीं करनी। अब तु उस पलक को भूल जा।" शोभारानी ने कुछ कठोर होकर कहा।

"नहीं मां। मैं पलक को नहीं भुल सकता। मैंने उससे सच्चा प्यार किया है। उसे इस हालात में नहीं छोड़ सकता।" अनिल पहली बार खुलकर बोल रहा था।

"अनिल! तेरी इतनी हिम्मत की तु मुझसे बहस कर रहा है।" शोभारानी क्रोध में आ गयी।

"अब शांत हो जाओ, तुम लोग।" गोकुलसिंह बीच बचाव कर रहे थे।

"नहीं पापा। आज मुझे बोल लेने दीजिए। मां! पलक की जगह अगर मैं कोरोना से संक्रमित हुआ होता तो! और फिर पलक मुझे छोड़ने की बात कहती तब क्या आपको अच्छा लगता?" अनिल बोला।

"मुझे तेरी बकवास नहीं सुननी!" शोभारानी बोली।

"क्यों मां? आज तक सारी जिन्दगी मैं आपकी सुनता आया हुं। आज आपको मेरी बात सुननी होगी।" अनिल बोला।

"ये कैसी बात कर रहा हूं मां से। ऐसे बात करता है कोई अपनी मां से। चल माफी मांग मां से।" राम अभी-अभी पिता गोकुलसिंह की दवाइयां लेकर लौटा था। उसने अपने छोटे भाई अनिल का हाथ पकड़कर उसे डांपते हुये कहा।

"एक मिनिट राम! तुने हाथ अच्छे धोएं?" शोभारानी ने पुछा।

"हां मां। इसमें सेनेटाइजर और पापा की जरूरी दवाये है।" कहते हुये राम ने पास ही दरवाजे किनारे रखी टेबल पर दवाईयों की थैली रख दी। शोभारानी ने उस थैली पर सैनेटाइजर का स्प्रै कर दिया।

"भैया। आखिर कब तक आप चूप रहेंगे। आपकी पत्नी और दो साल का विशू अब भी आप से दुर है। सिर्फ मां की जिद के कारण आप अपना बसा बसाया घर क्यों बिगाड़ रहे है?" अनिल आज कुछ अलग ही रंग में था।

"देख अनिल! तुझे जाना है तो जा उस पलक के पास। मगर खबरदार जो मेरे बेटे राम के मन में बग़ावत के बीज डाले तो।" शोभारानी बोली।

"मां। आखिर क्या कहा था अजंली भाभी ने। यही न की उसे आपके साथ नहीं रहना। तो इसमें गल़त क्या था। जब एक ही घर में रहकर रोज़-रोज़ की कहासुनी से लोग तंग आ जाये तो वो क्या करेगा।" अनिल ने कहा।

"अनिल शांत हो जा। तु अभी गुस्से में है। हम इस संबंध में बाद में बात करेंगे। जा अपने कमरे में जा।" राम ने अनिल को हाथों से हल्का धकेलते देते हुये कहा।

"नहीं राम! मुझे भी सुनना है। मैं जानना चाहती हूं कि उस पलक की भाभी ने कितना जह़र पीलाया है हमारे विरूद्ध इसे।" शोभारानी ने राम को रोकते हुये कहा।

"मां। जह़र नही उन्होंने मुझे वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया है। जह़र तो अब तक आप पीला रहीं थी हमें।" अनिल ने कहा।

"तड़ाक"

शोभारानी ने एक जोरदार थप्पड़ अनिल के गाल पर दे मारा।

"एहसान फरामोश। उस चार दिन की लड़की से इतना प्यार कर बैठा की आज अपनी मां को नागिन बोल रहा है। निकल जा मेरे घर से। अभी के अभी निकल जा।" शोभारानी ज्वालामुखी की तरह फूट रही थी।

गोकुलसिंह ने शोभारानी को हाथो से पकड़ लिया।

"अरे! भाग्यवान ज्यादा गुस्सा मत कर। ब्लड प्रेशर बड़ गया तो परेशानी बड़ जायेगी। आसपास के सभी दवाखाने भी बंद पड़े है।" गोकुलसिंह ने कहा।

"ये दिन देखने से अच्छा था कि मैं मर जाती।" शोभारानी पुनः आग उगल रही थी।

"राम! बेटा अनिल को अंदर ले जा।" गोकुलसिंह ने शोभारानी को सोफे पर बिठाते हुये कहा।

"अनिल चल यहां से।" राम ने अनिल को हाथों से खिचते हुये कहा।

"मां तुम्हें नही पता कि क्रोध में आकर तुम क्या कह रही हो। अब अगर तैश में आकर मैं भी घर छोड़ दूं तो यह और भी बेवकूफ़ी वाली बात होगी।" अनिल ने कहा।

"देखा तुम लोगों ने। ये अब मुझे बेवकूफ़ बोल रहा है। राम! ले जा इसे मेरी नज़रों के सामने से। कहीं मैं कुछ गल़त न कर बैठूं।" शोभारानी बोली।

राम अपने भाई को हाथों से पकड़कर उसके कमरे में ले आया।

"भैया। आप अब तो समझो। भाभी और विशू की क्या आपको याद नहीं आती? मां को हम मिलकर समझा लेंगे। आप उन्हें सकुशल घर लेकर आओ।" अनिल ने राम से कहा।

"अनिल! तेरी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है। मैं अंजली को लेने जाऊंगा।" राम ने कहा।

"ये हुई न बात।" अनिल ने कहा।

"मगर अंजली नहीं मानी तो। वह तो बोलकर गयी थी कि जब तक मैं अलग चौका-चूल्हा नहीं कर लेता वो यहां वापिस नहीं आयेगी।" राम ने कहा।

"भैया! वो सब आप मुझ पर छोड़ दो। आप दोनों ऊपर मेहमान कक्ष में शिफ्ट हो जाना। मैं आपका सभी सामान वहां जमा दुंगा।" अनिल ने उत्साह में कहा।

"हां! ये ठीक रहेगा। इससे हम मां-बाबूजी के पास भी रहेंगे और घर में रोज़-रोज़ की लड़ाई भी नहीं होगी।" राम ने कहा।

"लेकिन अनिल, बाहर हालात सामान्य नहीं है। सौ किलोमीटर का सफ़र है। रास्ते में पुलिस परेशान करेगी।" राम ने कहा।

"भैया। आप उसकी चिंता मत करो। आप मेरी कार से चले जाओ। उसमें ट्रेवल परमिशन का ऑर्डर चश्पा है। आपको कोई रोकेगा नही।" अनिल ने कहा।

"मगर तुझे मेडीकल कॉलेज जाना पड़ा तो?" राम ने पुछा।

"वो सब मैं संभाल लुंगा। आप जाओ। और भाभी से फोन पर बात कर लेना। उन्हें यह मत कहना कि आप उन्हें लेने आ रहे है वर्ना वो फोन पर ही आपको वहां आने के लिए मना कर देंगी। आप उनसे कहना की आप उनसे मिलने आ रहा है।" अनिल ने कहा।

"ठीक है भाई। मैं अभी निकलता हूं।" राम ने कहा।

"अभी नहीं। सुबह जल्दी उठकर निकल जाना। रास्ता क्लीयर मिलेगा। वहां एक-दो दिन रूक जाना। भाभी को अच्छा लगेगा। फिर महेश्वर से इंदौर के लिए सुबह जल्दी निकल जाना। ठीक है।" अनिल ने समझाया।

"ठीक है भाई ठीक है। थैंक्स यार।" कहते हुये राम ने अनिल को हृदय से लगा लिया।

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"क्या बात है तु बहुत खुश है।" सुजाता ने पलक के कमरे में दाखिल होते ही कहा।

"भाभी! अनिल का लव लेटर आया है।" पलक ने कहा।

"क्या? लव लेटर इस ज़माने में?" सुजाता ने आश्चर्य प्रकट किया।

"व्हाहटसप पर भेजा है उसने।" पलक ने कहा।

"अच्छा ठीक है पहले अपनी दवाईयां ले ले फिर पढ़कर  सुनाना उसका लव लेटर।" सुजाता ने कहा।

पलक ने अपनी दवाईयां ली। फिर उसने फोन पर अनिल के द्वारा भेजा गया लव लेटर पढ़ना आरंभ किया--

"मेरी अपनी पलक

मुझे लव लेटर लिखना नहीं आता। अपने दिल के जज़्बात श़ेरों में बयां कर देता हूं बस। तुमने पुछा था कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं? इस बारे में मैंने बहुत सोचा। मगर मुझे इस सवाल का जवाब़ नहीं मिला। और हो सकता है आगे मिले भी न! तुम्हारे लिए मेरे दिल मे जो प्यार है यदि उसे किसी पैमाने में नापा जा सके तब निश्चित ही यह एक बहुत छोटी बात होगी। मैंने तुमसे सिर्फ प्यार किया है कम या ज्यादा नहीं। मेरा प्यार बेहिसाब है। इसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता। तुमने अपनी एक परेशानी मुझे बतायी है कि मेरी श़ेरों- श़ायरी पर तो बहुत-सी मरती होंगी! तब क्या मैं तुम्हें भुला तो न दुंगा? तुम्हारी परेशानी वाज़िब है लेकिन मेरे संबंध में बेवज़ह है। चांद को बहुत लोग पसंद करते है लेकिन हर किसी को उसकी चांदनी नसीब नहीं होती। यहाँ चांद मैं तुम्हें कह रहा हूं। जिसने सारे ज़माने की परवाह किये बगैर मुझे अपनाया। इस बात की लाज़ मुझे हर किमत पर रखनी है। जहां तक उन लडकियों की बात है तब इतना ही कहूंगा कि यहां उनका मुझ पर मरना कोई मायने नहीं रखता। मैं किस पर मरता हूं इस बात के मायने है। उन सभी के साथ तुम्हारे लिए भी यही काम की बात है।

तोहफे में तुमने जो मुझे गुलाब के साथ अपने नाम की कलम भेजी थी वह मेरे जिन्दगी के सबसे कीमती तोहफों में से एक है। तुम्हें अगला खत इसी कलम से लिखूंगा। अपने ख़त में तुमने पुछा था कि क्या मैं तुम्हारे लिए अपनी श़ायरी छोड़ सकता हूं। इसका जवाब में दे सकता हूं। हां! मैं तुम्हारे लिए अपनी श़ायरी छोड़ सकता हूं। मगर यह मत भुलना कि इसी श़ायरी की बदौलत मुझे तुम मिली थी। दूसरी बात यह की श़ायरी मेरी पहली मोहब्बत है और उसके साथ बेवफाई करने का मतलब है अपना भरोसा तुम्हारे सामने कमजोर साबित करना। अब तुम्हें फैसला करना है कि क्या तुम एक कमजोर बेवफा आशिक की माशुक़ा बनना पसंद करोगी, जिसने तुम्हारे लिए अपने पहले प्यार को छोड़ दिया हो। जो शख़्स अपने पहली मोहब्बत का न हो सका क्या वो तुम्हारा बनकर रह सकेगा? इस बात पर सोचकर जवाब देना।

एक जरूरी बात बताना चाहता हूं। मैं हमेशा तुम्हारा बनकर रहूंगा। और तुम पर पुरा भरोसा करता हूं। इश़्क किया है तो एक-दुसरे पर भरोसा करना हम दोनों को सीखना होगा।

अभी हमारे बीच दुरीयां भले ही है लेकिन वक्त हमेशा ऐसा नहीं होगा। मैं तुम्हारी आंखों से बहते हुये हर आँसुओं का हिसाब दूंगा। इस बेबसी और कश़मकश़ से भरे दिनों से एक दिन छुटकारा जरूर मिलेगा। अपने दिल में आस जगाए रखना। हम जरूर एक होंगे। यकिनन ज़माना हमारी पाक़ मोहब्बत के ख़िलाफ है और हमें जुदा करने की सभी कोशिशें कर रहा है। लेकिन मैं भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा हूं। यहां मैंने अपनों को सख़्त लहज़े में बता दिया है कि मेरी जिन्दगी में तुम्हारे अलावा कोई नहीं आयेगी। तुम्हें अपने यहां ख़िलाफत करने की कोई जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहता कि तुम अपनों की नजरों में गिरो। अगर मेरे इरादे साफ है और होसलों में दम होगा तो ऊपरवाला भी दो दिलों को मिलाने में जरूर मदद करेगा।