जितेन्द्र शिवहरे
(1)
*"मैं* तुम जैसे लड़को को बहुत अच्छे से जानती हूं, जो जानबूझकर लड़कीयों की मोपेट को टक्कर मारते है।" चंचला दहाड़ रही थी। सड़क पर भीड़ जमा होने लगी।
"देखीये मैडम! अनजाने में आपकी गाड़ी से मेरी बाइक टकरा गई।" धीरज बोला।
"अनजाने में दो बार गलती नहीं होती।" चंचला ने कहा।
"आप कहे तो इसे यही मजा चखा दे!" लोगों की भीड़ में से एक व्यक्ति ने कहा।
"हां हां! सही कहा।" एक अन्य आदमी ने सपोर्ट किया।
"देखीये भाई लोग! समझने का प्रयास करे। कल आप में से कोई भी मेरे जगह हो सकता है।" धीरज ने कहा।
"ये बातों में हमें उलझा रहा है। कोई पुलिस को बुलाव।" चंचला पुनः चीखी।
"जाने दो बेटी! जरा-सी बात है। तुम्हारी गाड़ी सही सलामत है।" एक बुजुर्ग बोले।
"नहीं अंकल! इन जैसे मनचलों को सबक सिखाना जरूरी है। कल को आपकी बेटी भी मेरी जगह हो सकती है।" चंचला बोली।
दो युवकों ने धीरज को पकड़ लिया। कुछ मोबाइल पर इस घटना का वीडियो बनाने लगे।
"देखीये मैडम! मुझे जरूरी काम है। आपका जो भी नुकसान हुआ है उसकी भरपाई के लिये मैं तैयार हूं।" धीरज ने कहा।
"अब जो भी होगा पुलिस आने के बाद ही संभव होगा।" चंचला बोली।
पुलिस की पीसीआर वेन अवसर पर आ पहूंची।
"सर! मुझे आवश्यक डिलेवरी करनी है। ये मैडम जी नाहक ही तिल का ताड़ बना रही है।" धीरज ने पुलिस ऑफिसर से कहा।
"रूक जा भाई। अब तो पुरी पुछताछ के बाद ही तू जा सकेगा।" पुलिस ऑफिसर बोले।
"क्या हुआ मैडम जी! क्यों बीच सड़क पे बवाल मचा रखा है?" दुसरे पुलिस ऑफिसर ने पुछा।
"सर! ये लड़का मुझसे छेड़खानी कर रहा था।" चंचला बोली। टक्कर का प्रकरण अब छेड़खानी का मामला बन चूका था। लोगों की भीड़ छटने लगी। धीरज आश्चर्य में था। उसने पुलिस के सम्मुख बार-बार मिन्नतें की। मगर वह पुलिस वालों को हृदय द्रवित न कर सका।
चंचला ने फोन कर अपनी सबसे अच्छी सहेली रेखा को वहां बुलवा लिया। रेखा शहर की जानी मानी बाॅक्सिंग खिलाड़ी थी। उसकी राजनीती में अच्छी पुछ परख थी।
"तु कहे तो इस लड़के के सारे के दांत तोड़ दूं।" पुलिस स्टेशन पर रेखा अपनी सहेली चंचला से कह रही थी। रहने दे यार। इसकी मरम्मत पुलिस अच्छे से कर देगी" चंचला ने कहा।
धीरज नहीं चाहता था कि वह अपने धनाढ्य दोस्त अभिनव की मदद ले। मगर परिस्थिति उसके विरूध्द थी। यदि अधिक विलम्ब करता तो इस छोटी सी गल़ती की उसे बहुत बड़ी सज़ा भी मिल सकती थी। अपने स्वाभिमान को दरकिनार कर धीरज ने अभिनव से मदद मांगी।
अभिनव बिना विलम्ब किये पुलिस स्टेशन पहूंच गया।
"इन्स्पेक्टर साहब! मेरे दोस्त को किस जुर्म में पुलिस स्टेशन लाया गया है।" अभिनव ने पुलिस स्टेशन में दाखिल होते ही कहा।
"देखीये सर। उन मैडम ने आपके दोस्त के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी है। इसलिए हमने धीरज को गिरफ्तार किया है।" पुलिस इन्स्पेक्टर अर्जुन कपूर ने कहा। उन्होंने चंचला की ओर संकेत किया।
अभिनव ने सम्मुख खड़ी दो युवतियों को देखा जो अन्यत्र ड्यूटी ऑफिसर को जरूरी जानकारी दे रही थी।
रेखा को देखकर अभिनव को कुछ याद आया। यह रेखा थी। जो अभिनव के पिता जगजीत राणा के बिजनेस दोस्त मदनमोहन की बेटी है। बहुत गुस्से वाली और हमेशा लड़ने-झगड़ने को तैयार।
"इन्स्पेक्टर साहब। धीरज को लाॅकअप से बाहर लाने के मुझे क्या करना होगा?" अभिनव ने पुछा।
"देखीये सर। अब जो भी होगा कल ही होगा। आप कल कोर्ट से जमानत करवा लाये। तब ही धीरज बाहर आ पायेगा।" इन्स्पेक्टर अर्जुन कपूर ने स्पष्ट कर दिया।
"ठीक है सर। मैं अपने फैमिली वकील से मिलकर धीरज की ज़मानत की व्यवस्था करता हूं।" कहते हुये अभिनव धीरज के पास गया।
"साॅरी अभिनव! आपको अपने जरूरी काम को छोड़ मेरे लिये यहा आना पड़ा।" धीरज बोला।
"कोई बात नहीँ यार। वो दोस्त ही क्या जो अपने दोस्त के काम न आ सके। और ये आप-आप क्या लगा रखा है। तु बोल यार।" अभिनव बोला।
"तेरे आने से मुझे बहुत हिम्मत मिली है अभिनव।" धीरज बोला।
"कोई नहीं यार। मैं कल ही तेरी ज़मानत करवाकर तुझे यहां से ले जाऊंगा। हां तुझे आज की रात यहां काटनी पड़ेगी। लेकिन तु फिक्र मत कर। जिसने तुझे यहां तक पहूंचाया है उससे हम बदला जरूर लेंगे।" अभिनव ने कहा।
इतना कहते हुये अभिनव वहां से चला गया। रेखा और अभिनव की आंखें आपस में टकराई। रेखा अभिनव को भलि-भांति जानती थी। उसे अभिनव का धीरज की मदद करना अच्छा नहीं लगा। चंचला को लेकर वह भी वहां से वो लौट गयी।
अभिनव ने धीरज की जम़ानत करवाई। वह लाॅकअप से बाहर आ चूका था।
"धन्यवाद यार अभिनव! सुना है एक भंयकर महामारी ने चारों तरफ हा हा कार बचा रखा है। सभी जगह लाॅकडाउन की स्थिति निर्मित हो रही है। हमारा शहर भी इसकी चपेट में है। यदि तुम जल्दी ही मेरी जम़ानत न करवाते तो न जाने कब तक मुझे लाॅकअप में रहना पड़ता।" धीरज ने कहा।
"मेरे होते हुये तुझे चिंता करने की कोई जरूरथ नहीं। चल मैं तुझे घर छोड़ देता हूं। अंकल-आंटी से मैंने कहा था कि धीरज कल पुरे दिन मेरे ऑफिस में था। क्योंकि हमारे यहां एक पार्टी है जिसमें खाने-पीने का अंरेज मेन्ट धीरज कर रहा है इसलिए वह घर नही आ सकेगा।" अभिनव ने कहा
"अच्छा किया यार तुने। मेरे अरेस्ट की बात तुने घरवालों को नहीं बताई। वरना उन्हें बहुत दुख होता।" धीरज बोला।
"अब चल। उस चंचला को सबक सिखाने का कोई उपाय सोच।" अभिनव ने कार का दरवाजा खोलते हुये कहा।
धीरज और अभिनव कार में बैठ गये। कार चल पड़ी।
"हां तार। उसको ऐसा सबक सिखाना है जिससे की वो आगे से किसी बेकसुर आदमी को परेशान न कर सके।" धीरज ने कहा।
"ये हुई न मर्दों वाली बात।" अभिनव ने धीरज के हाथ पर ताली मारते हुये कहा।
धीरज को घर छोड़ अभिनव अपने ऑफिस के लिये निकल गया। अगले दिन धीरज अपने काम पर समर पर उपस्थित हुआ।
"सर! इसमें मेरी कोई गलती नही है। आप मुझे नौकरी से नहीं निकाल सकते।" डिलेवरी ब्वाॅय धीरज अपने सिनीयर बाॅस से कह रहा था।
"मुझे पता है धीरज! तुम निर्दोष हो। लेकिन अभी तक तुम काननु की नज़र में मुजरीम हो। और हमारी कंपनी में अपराधियों के लिये कोई जगह नहीं। यू में गो नाव?" मैनेजर पुलकित ने कहा।
धीरज निराशा के भाव लिये वहां से लौट आया।
"कोई बात नहीं यार। नौकरी आती-जाती रहती है।" धीरज के मित्र राकेश ने उसे हिम्मत बंधाई।
"मुझे नौकरी जाने का दुःख नहीं है राकेश! अपितु जिस कारण से नौकरी छूटी है मुझे उससे निराशा है।" धीरज बोला।
"मुझे फुड डिलेवरी ब्वाॅय का ऑफर आया है। कल तु भी चल। कुछ न कुछ बात तो जरूर बनेगी।" राकेश ने आशा की किरण दिखाई।
धीरज ने मन को किसी तरह समझाया। उसने आने वाले कल की नौकरी के लिये स्वयं को तैयार किया। उसे अनुभव और स्पष्टवादिता के बल पर फूड डिलेवरी ब्वाॅय की नौकरी मिल गई। इसी खुशी में धीरज अपने कुछ दोस्तों के साथ रविवार का दिन एन्जॉय करने तिंछा फाॅल स्पाॅट पर पिकनिक मनाने जा पहूंचा। चंचला भी अपने फ्रेंड्स के साथ वहां पहूंची थी। चंचला ने वहां धीरज को हंसते-मुस्कुराते देखा। वह यह सह न सकी। फलस्वरूप उसने धीरज और उसके दोस्तों के वीडियों बना ली। और उन लोगों के कुछ फोटो भी शूट कर लिये। वे लोग वहां शराब और सिगरेट का नशा कर रहे थे। पब्लिक स्पाॅट पर नशा प्रतिबंधित था। सो चंचला स्थानिय पुलिस को सुचना देना चाहती थी। किन्तु उसके दोस्तों ने ऐसा करने से मना कर दिया।
"हम यहां एन्जॉय करने आये है चंचू। कोई कुछ भी करे हमें उससे क्या?" चंचला की फ्रेंड अनिता बोली।
"और वैसे भी, यहां अधिकतर लोग यही सब करने आते है। आसपास देखो।" सुधीर बोला।
धीरज की नजर चंचला पर पढ़ी। उसे देखकर धीरज के चेहरे पर क्रोध के भाव उभर आये।
"तु बोले तो इसे यही सबक सिखा दे धीरू?" राकेश नशे में बोला।
"हां! हां! बोल! तेरा एक इशारा काफी है।" विनोद भी चंचला के विषय में जान चूका था।
"नहीं यार। समय आने पर इसका हिसाब मैं अवश्य करूंगा।" धीरज ने अपने उत्साहित दोस्तों को शांत किया।
शहर में हालात सामान्य नहीं थे। कोरोना वाइरस के चलते संपूर्ण लाॅकडाउन था।
एक दिन धीरज फूड डिलेवरी करने समता अपार्टमेंट में पहूंचा। तीसरे माले पर पहूंचकर उसने डोर बेल बजाई।
"तुझे कहा था न! पापा की दवाई और सेनेटरी पेड एडवांस में ले आना। मगर तु सुनती कहां है!" चंचला की मां चंचला पर चिल्ला रही थी।
"ओह हो माॅम। आप भी न! कोई न कोई बात का इश्यू बना ही देती है। मेडीकल स्टोर्स से मैंने ऑर्डर कर दिया है। दवाईयां आती ही होंगी।" चंचला ने कहते हुये द्वार खोला।
धीरज के पैरो तले जमींन खीसक गई। यह चंचला ही थी। चंचला को पुनः प्रतिशोध लेने का अवसर मिल गया। उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट तैर रही थी।
"मैडम! ये आपका खाना।" धीरज ने भोजन का पैकेट आगे बढ़ाते हुये कहा।
"मेरे पास तुम्हारे वो फोटो है जिसमें ऑफिस टाइम के वक्त तुम शराब पी रहे थे। यदि वो फोटो मैंने तुम्हारे ऑफिस पहूंचा दिये तो जानते हो न, क्या होगा?" चंचला ने अपने मोबाइल में फोटो दिखाये। धीरज उन फोटो को देखकर कुछ डर गया।
"देखीये मैडम। आप चाहे तो इस भोजन पैकेट का पेयमेन्ट न देवे। मैं वहन कर लूंगा। किन्तु मेरे ऑफिस में फोटो आदि न भेजे।" धीरज ने प्रार्थना की।
"मुझे इतना गया-बिता समझ रखा है क्या? जो मैं तुम जैसे लोगों के पैसों से खाना जाऊंगी?" चंचला बोली।
"तब आप ही बताये! मैं क्या करूं, जिससे की आप मेरी शिकायत न करे।" धीरज ने बोला।
"चंचू। देख तो पापा को क्या हो गया? बेड से नीचे गिरे पड़े है।" अंजना दौड़ते हुये हाॅल में आई।
चंचला अपने पापा के बेडरूम की ओर भागी।
"पापा! पापा! क्या हुआ आपको?" चंचला ने नीचे गिरे पड़े आलोकनाथ को हाथों के सहारे से पुनः बेड पर बैठाया।
"बेटा! सीने में बहुत दर्द हो रहा है।" आलोकनाथ अपने सीने के दायें हिस्से पर हाथों से जोर लगाये हुये थे।
"हे भगवान! कहीं ये हार्ट अटैक तो नहीं। राजवीर भी पुणे से अब तक नहीं आया।" अंजना रोने लगी।
"मम्मा! आप टेशंन मत लो। पापा को कुछ नहीं होगा। मैं अभी एंबुलेंस को फोन लगाती हूं।" चंचला बोली।
"आप लोग देर न करे। बाहर हमारी गाड़ी खड़ी है। अंकल जी को तुरंत हॉस्पिटल ले जाना होगा।" धीरज अंदर आ चूका था।
"तम्हारी अंदर आने की हिम्मत कैसे हुई।" चंचला क्रोध में बोली।