कोरोना प्यार है - 2 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 2

(2)

"आपको मुझे जो सज़ा देना हो वो बाद में दे देना। अभी अंकल जी को हॉस्पिटल ले जाना ज्यादा जरूरी है।" धीरज ने कहा। अनमने मन से चंचला सहमत हुयी। धीरज ने आलोकनाथ को थामे रखा था। वे लिफ्ट से नीचे आये। धीरज ने आलोकनाथ को वैन में बैठाया। चंचला और अंजना भी बैठ गयीं। वैन हॉस्पिटल की ओर दौड़ पड़ी। ग्रेटर कैलाश हॉस्पिटल में आलोकनाथ का प्रारंभिक चेकअप हुआ। जहां इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें हार्ट अटैक आया था। वहां आईसीयू बैड खाली नहीं था। धीरज ने आलोकनाथ को अन्य हॉस्पिटल में ले जाने के लिए चंचला और अंजना को तैयार कर लिया। वहां से वे शहर के बहुत बड़े हॉस्पिटल अरविन्दो हॉस्पिटल में आये। यहां भी कोरोना के मरीज अधिक थे। सो इस हॉस्पिटल में भी आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं हो सका। धीरज ने पुनः वैन दौड़ा दी। वह रास्ते में आने वाले प्रत्येक हॉस्पिटल के सामने वैन रोककर आईसीयू बेड का पता करने जाता। मगर हर तरफ से उसे निराशा ही हाथ लगती। इधर आसमान से आफत की जोरदार बारीश भी होने लगी। अब चंचला भी धैर्य खोने लगी थी। आलोकनाथ दर्द से तड़प रहे थे। अंजना के आसूं रूकने का नाम नहीं ले रहे थे।

भीगती बारीश में धीरज ने वैन के पास आकर कहा- "आईये चंचला जी। इस हॉस्पिटल में आईसीयू बैड मिल जायेगा।" चंचला ने पिता को हाथों का सहारा दिया। लाइफ लाइन हॉस्पिटल के वार्ड ब्वाॅय स्ट्रेचर लेकर वैन की ओर भागे। धीरज ने हॉस्पिटल में एडमिट होने संबंधी सभी औपचारिकताएं पुरी कर दी। आलोकनाथ का ट्रीटमेंट आरंभ हुआ। रात हो चूकी थी। चंचला और अंजना पल-पल में व्याकुल हो जाती। आईसीयू के बाहर धीरज दोनों को दिलासा दे रहा था। वह दौड़-दौड़कर मेडीसिन की आपूर्ति कर रहा था।

"धीरज! पापा को कुछ होगा तो नहीं न!" व्याकुल चंचला धीरज से लिपट गयी थी।

"हिम्मत रखो चंचला। कुछ नहीं होगा अंकल जी को।" धीरज ने सहानुभूतिपूर्वक चंचला के पीठ थपथपाई।

दो घण्टे के सघन उपचार के उपरांत आलोकनाथ चैन की नींद ले रहे थे।

"चंचला जी! अब आपके पिताजी ठीक है। वे रिकवर कर रहे है। ये लीजिए आप और आपकी मम्मी दोनों खाना! खा लिजिए।" धीरज ने भोजन के पैकेट चंचला को देते हुये कहा। उसने पैकेट धीरज के हाथों से ले लिये। वह कुछ कहना चाह रही थी मगर उसके होठ जैसे कुछ भी बोलने में असमर्थ थे।

"मैं चलता हूं। कल फिर आऊंगा।" कहकर धीरज जाने लगा।

"अरे हां। ये मास्क है। आपके और आंटी के लिये।" धीरज ने अपने बेग में से मास्क निकालकर दिया।

•••और ये रहा आपके लिए।" धीरज ने एक और पैकेट देकर कहा।

"इसमें क्या है?" चंचला ने पुछा।

"आप ही के काम की चीज है। इसे मेरे जाने के बाद खोलीयेगा।" धीरज ने कहा। इतना कहकर वो चला गया।

चंचला ने उस पैकेट को खोला। उसमें सेनेटरी पैड था। उसके चेहरे पर शर्म के भाव उभर आये। वह मुस्कुरा दी।

कुछ दिन बाद राजवीर और चंचला एकांत में पुनः मिल रहे थे।

"मेरे पास कुछ नहीं है चंचू! तुम्हे देने के लिये।" धीरज बोल रहा था।

"जो आपके पास है वो और किसी के पास नहीं है धीरज। इन हालातों में जहां हमारे अपने हमसे दुर है वहां आप हमारे लिए इतना कुछ कर रहे है।" चंचला बोली। उसने धीरज के हृदय पर अपना सिर रख दिया।

धीरज चूप था।

"अच्छा! अब आपका वो जख्म कैसा है?" चंचला ने धीरज का दाहिना हाथ अपने हाथ में लिया। इसी हाथ पर कर्फ्यू के दौरान पुलिस का जोरदार डंडा पड़ा था। इस मार से ऊंगली का नाखून निकल चूका था। जहां से रक्त बहा था। इसके बाद भी धीरज ने हॉस्पिटल आना-जाना नहीं छोड़ा। चंचला ने इसी हाथ की उंगली पर बेंडेट की पट्टी लगयी थी।

"अरे! इसे अब तक पहन रखा है। इसे निकालो।" चंचला बोली।

"रहने दो। मेरे पास तुम्हारी एक यही निशानी ही तो है।" धीरज रोमेंटिक था।

"ओहsss!" चंचला ने धीरज को गले लगा लिया।

राजवीर बमुश्किल इंदौर पहूंचा। उसे इंदौर एयरपोर्ट से धीरज ने रीसीव किया। वह राजवीर को लेकर लाइफ लाइन हॉस्पिटल आया। आलोकनाथ अब ठीक थे। उन्होंने बातचीत करना आरंभ कर दिया था। धीरज और उसके दोस्तों ने इस विषम परिस्थितियों में चंचला और अंजना के लिये भोजन की पर्याप्त व्यवस्था की। सड़क पर कर्फ्यू होने के बावजूद वे लोग चंचला की हर संभव सहायता करते।

आज आलोकनाथ हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने वाले थे।

"चंचला! आपने हॉस्पिटल का बिल दे दिया। अब हमारा बिल भी चूका दे।" धीरज ने कहा।

"अरे हां! आपने बहुत मदद की है। बताईये आपका दोनों वक्त खाने का कितना बिल हुआ?" राजवीर ने जेब से पर्स निकालते हुये कहा।

"नहीं भाई! इन्होने जो किया है उसका पेयमेन्ट हम नहीं  कर सकते।" चंचला बोली। वह धीरज के आगे नतमष्तक थी। वह अपनी पिछली भूल पर शर्मिंदा भी थी। धीरज यह जान चूका था। वह वहां से लौटने लगा।

"यह क्या धीरू! पेयमेन्ट तो ले ले।" राकेश बोला।

"नहीं राकेश! मुझे मेरा पेयमेन्ट मिल चूका है।" धीरज ने कहा।

"क्या! कब और कितना।" राकेश का अगला प्रश्न था।

"वो मैं कंपनी को बता दूंगा।" धीरज ने बात को टालने की कोशश की।

"वाह बेटा! बहुत खुब! लड़की मिल गयी तो हमसे गद्दारी पर उतर आया।" राकेश ने छेडा।

"अरे! नहीं रे। ऐसी को बात नहीं।" धीरज ने चलते-चलते कहा।

"तु मुझे क्या उल्लु समझता है। मुझे पता नहीं क्या? तेरे  और चंचला के बीच कौनसी खिचड़ी पक रह रही है?" राकेश ने कहा।

"चल ठीक है। अगर तुझे सब पता है तो प्लीज अभी किसी को कुछ मत बताना।" धीरज ने कहा।

"मगर क्यों?" राकेश ने पुछा।

"क्योंकि मैं चाहता हूं चंचला स्वयं पहल करे। अगर मैं कहूंगा तो हो सकता इसे मेरा एहसान का बदला समझा जाएं।" धीरज ने समझाया।

"तु तो रीयल हीरो के माफिक बीहेव कर रहा है यार।" राकेश ने धीरज के कंधे पर थपकी देते हुये कहा।

धीरज हंसने लगा।

"लेकिन यार तुझे उस नकचढ़ी चंचला ने इतना परेशान किया, लेकिन फिर भी तुने उसकी इतनी मदद की! क्यों?" राकेश ने पुछा।

"मैं तो यही जानता हूं की नफ़रत को नफ़रत से कभी नहीं जीता जा सकता। नफ़रत को सिर्फ प्यार से ही खत्म किया जा सकता है। देख लो रिजल्ट तुम्हारे सामने है।" धीरज ने चंचला की ओर इशारा किया। जो वहीं कुछ दुर कैमिस्ट से दवाई ले रही थी। उसका ध्यान धीरज पर ही था। होठों पर मुस्कान लिये वह अपने हाथ से हल्का इशार कर रही। धीरज ने भी हाथ हिलाकर चंचला से विदा ली।

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चीन के वुहान प्रांत से निकला कोरोना वाइरस समुचे विश्व में अपने पैर पसार चूका था। भारत में भी दिनों-दिन कोरोना पैसेंट बढ़ते जा रहे थे। इंदौर शहर के हालात अन्य शहरों के मुकाबले अधिक बुरे थे। एक दिन में दो सौ से अधिक कोरोना संक्रमण के मरीज सामने आये थे। प्रशासन के हाथ पांव फुल लगे थे। प्रतिदिन कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहे थे। अब तक एक माह में पचास से अधिक लोगों ने कोरोना के चलते अपनी जान गंवा दी थी। इन सबके बाद भी यहां के लोग में लाॅकडाउन का ईमानदारी से पालन नहीं कर रहे थे। दुध और सब्जी उनके लिए अपनी जान से भी अधिक मूल्यवान थी। जबकी हालिया उदाहरण में दुध वाले और सब्जी वालों को भी कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी। थोक बंद सब्जी बेचने वालों लोगों को आइसोलेट किया जा रहा था। गलि-मोहल्लों में लुपे-छिपे सब्जियां बेचने वाले व्यापारीयों पर पुलिस सख़्त थी। पुलिस लाठियां भांजती और अवैध व्यापार कर रहे व्यापारियों को अस्थाई बनाये गये हवालातों में तीन माह के लिए बंद कर देती। सड़क पर लाठियां खा रहे युवकों के वीडियो वाइरल होने लगे। पुलिस लाॅकडाउन तोड़ने वालों को कभी मुर्गा बनाती तो कभी सड़क पर लौट लगवाती। इन वीडियो को व्हाहटसप, फेसबुक आदि पर शेयर करती। जिसके की घर पर बेठे लोग इसे देखकर घर से अनावश्यक बाहर न निकले। गरीब नागरीकों के लिए सरकार ने सुखा राशन और भोजन के पैकेट वितरण की व्यवस्था की थी। शहर के धनाढ्य लोग भी आगे आये। उन्होंने निर्धन बस्तीयों भोजन वितरण का कार्य आरंभ किया।

नारायण ठाकुर अपने सहयोगियों के साथ इस काम को कर रहे थे। उन्होंने गरीब बस्तियों में भोजन के पैकेट वितरण की व्यवस्था नियमित जारी रखी। इसी बीच तब्दीली जमात के सदस्यों में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई। ये लोग दिल्ली से समुचे भारत में लौट चूके थे। इन्होंने जहां भी ठहराव किया वहां कोरोना संक्रमण फैलता गया। पुलिस प्रशासन सरगर्मी से तब्दीली जमात के लोगों को ढुंढने में लगी थी। टीवी मीडीया पर तब्दीली जमात के सदस्यों को स्वतः आत्मसमर्पण करने की हिदायत दी जाने लगी। इंदौर में स्वास्थ्य कर्मियों पर पत्थर बाजी की घटना ने समुचे विश्व के सामने तीन-तीन बार स्वच्छता में नम्बर एक आने वाले इंदौर को शर्मशार कर दिया। प्रशासन ने सख़्ती से काम लिया और डाॅक्टर तथा पुलिस पर पथराव करने वाले अपराधीयों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। गिरफ्तार किये गये लोगों में भी कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई।

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"तुमने एक बार कहा था कि तुम्हारे दोस्त अभिनव और रेखा के बीच बाॅक्सिंग का मुकाबला हुआ था?" चंचला फोन पर धीरज से बात कर रही थी।

"हां। मगर वो मुकाबला नहीं हो सका।" धीरज ने बताया।

"क्यों?" चंचला ने पुछा।

"उनके बीच मुकाबला होने ही वाला था की लाॅकडाउन की घोषणा हो गयी। मैच शुरू होने से पुर्व ही खत्म हो गया।" धीरज ने बताया।

"तो क्या उन दोनों की दुश्मनी प्यार में बदलते-बदलते रह गयी?" चंचला ने पुछा।

"नहीं। दोनों की दुश्मनी तो वहीं खत्म गयी। और अब उनके बीच प्यार ही प्यार है। पता है चंचला। इस लाॅकडाउन में भी वो दोनों घर से बाहर एक-दुसरे से मिलने पहंचे।" धीरज ने बताया।

"इस कर्फ्यू में?" चंचला ने हैरानी से पुछा।

"हां! मगर पकड़े गये। पुलिस ने दोनों को बिलावली तलाब के पास प्रेमालाप करते हुये रंगे हाथ पकड़ा।" धीरज ने आगे बताया।

"फिर क्या?" चंचला ने पुछा।

"वो तो अच्छा हुआ कि पुलिस वाले रेखा की जान पहचान का निकल गये वर्ना दोनों को हवालात जाना पड़ता।" धीरज ने बताया।

"हाय! दोनों में कितना प्यार है। चलो न हम भी कहीं  मिलते है।" चंचला ने अधीर होकर से कहा।

"ओहहह! झांसी की रानी। तेरे लिए मैं पहले ही अपने दोनों उल्की पिण्ड सुजा चूका हूं। इतना मारा है उन पुलिस वालों ने कि अब दो-तीन महिने तक बाइक नहीं चला पाऊंगा।" धीरज ने कहा।

"ओहहह माय डीयर धीरज। कोरोना प्यार है?" चंचला ने कहा।

"क्या कहा? कोरोना प्यार है?" धीरज ने पुछा।

"हां। इस लाॅकडाउन में यही तो सच है। चलो तुम भी कहो- कोरोना प्यार है?" चंचला ने पुछा।

"हां भई। कोरोना प्यार है ठीक है बस?" धीरज ने कहा।

"कोरोना प्यार है टू।" चंचला ने कहते हुये फोन रख दिया।

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