कोरोना प्यार है - 3 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 3

(3)

"धीरज! मैंने देखा की तुम गरीबों को खाना बांट रहे हो।" चंचला फोन पर धीरज से बात कर रही थी।

"हां! चंचला। हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग है जो इस लाॅकडाउन में भुखे है। हम कुछ दोस्त मिलकर ये काम कर रहे है।" धीरज ने बताया।

"मगर धीरज ये खतरनाक है। प्लीज घर में रहो। ये काम बाकियों को करने दो।" चंचला ने प्रार्थना की।

"चंचला। मैं तुम्हारी चिंता समझता हूं। मगर ऐसे समय में समर्थ लोगों को आगे आकर देश की सेवा करनी चाहिए। जो समर्थ नहीं है वे अपनी क्षमता अनुसार दान देकर भुखे गरीब लोगों की मदद कर सकते है।" धीरज ने कहा।

"अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जिन्दा रहूंगी।" चंचला ने कहा।

"तुम मेरी चिंता मत करो। मुझे कुछ नहीं होगा

मैं अपना पुरा ध्यान रख रहा हूं। मुंह पर मा मस्क, हाथों में ग्लबस और सैनेटाइजर हमेशा साथ ही रखता हूं। ताकी अपने साथ अपनों की भी सुरक्षा कर सकूं।" धीरज ने कहा।

"ठीक है धीरज। तुम अगर ऐसा सोचते हो तो ठीक ही होगा। मैं कुछ रुपये तुम्हें ट्रांसफर कर रही हूं। ये उन लोगों के लिए खाना के इस्तेमाल में खर्च कर लेना। ठीक है।" चंचला बोली।

"ओके। कोरोना प्यार है।" धीरज ने कहा।

"कोरोना प्यार है टू।" चंचला ने कहा।

धीरज मुस्कुरा रहा था। तब ही उसने मोबाइल पर देखा!उसके दिल्ली वाले दोस्त उमेश का फोन आ रहा था।

"हॅलो उमेश। बहुत दिनों के बाद फोन किया। वहां सब ठीक है न?" धीरज ने पुछा।

"हां! यार सब ठीक है।" उमेश बोला।

"क्यों झूठ बोल रहा है। हमे क्या पता नहीं है कि वहाँ दिल्ली में क्या हालात है? तु अपने घर नहीं आ पा रहा है ऐसे में भी सब ठीक बता रहा है, मानना पड़ेगा तेरी विनम्रता को।" धीरज ने कहा।

"ये मेरी विनम्रता नहीं मेरी देश भक्ति है धीरज! जो इस कठीन समय में भी स्वंय से अधिक देश के लिए सोच रही है।" उमेश ने कहा।

"सही है दोस्त। इस समय हमारे अपने लोग परेशानी में है। हमे अपने निजी स्वार्थ को छोड़कर अपने लोगों की सेवा करनी चाहिए।" धीरज ने कहा।

"तब ही तो मैं यहाँ रूक गया। मैंने निश्चय किया कि जब यहां काम करने वाला मजदूर अपने-अपने घर नहीं पहूंच जाता मैं अपने घर नहीं जाऊंगा। और यहां रहकर उन लोगों की हर संभव सहायता करूंगा।" उमेश ने बताया।

"हां! मैंने तेरे फोटो व्हाहटसप पर देखे है। तुम लोगों से ही तो प्रेरणा लेकर मैं यहां अपने दोस्तों के साथ लोगों की सेवा कर रहा हूं।" धीरज ने कहा।

"ये तो बहुत अच्छी बात है। एक बात तो बता मेरी मां और तेरी भाभी कैसी है? और वो मेरी प्यारी गुड़ियां परी कैसी है?" उमेश ने पुछा।

"तु क्या समझता है हम उनका ख़याल नहीं रख रहे? वो लोग अच्छे है। तुझे बहुत याद कर रहे है। तु उनसे बात क्यों नहीं कर लेता यार? मुझसे ही उनके हाल-चाल पूछ लेता है?" धीरज ने कहा।

"धीरज। तु जानता है कि मैं अपने परिवार से बात क्यों नही करना चाहता। यार कहीं उनसे बात कर मैं कमजोर न पड़ जाऊँ? अभी-भी यहाँ सैकडों परिवार फंसे है। वो सब अपने परिवार से दूर है। जब तक एक-एक मजदूर को अपने परिवार तक पहूंचा न दूं मैं कैसे अपने घर आ सकता हूं। आखिर ये लोग मेरे ही भरोसे ही तो अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर यहां काम करने आये थे। इन्हें सही सलामत उनके घर तक पहूंचाना मेरी नैतिक जिम्मेदारी है।" उमेश ने कहा।

"सही कहा दोस्त। तेरे जैसे ठेकेदार देश के सच्चे सपूत है जो अपने साथ काम करने वाले हर मजदूर को अपना परिवार ही समझते है।" धीरज ने कहते हुये फोन रख दिया।

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कोरोना संक्रमण समुचे विश्व में फैल चूका था। शहर में इसका प्रकोप सर्वाधिक देखा गया। प्रतिदिन सौ से अधिक कोरोना के मरीजों की रिपोर्ट पाॅजिटीव आ रही थी। हर दिन किसी न किसी गंभीर कोरोना मरीज़ की मृत्यु की खबरें आ रही थी। शहर में स्वाथ्य कर्मियों द्वारा सर्वेक्षण किया जा रहा था। सभी चिन्हित हाॅट स्पाॅट जहां कोरोना के मरीजों की संख्या अधिक थी, प्रशासन ने पुरी तरह सील कर दिये थे। सभी आवश्यकता की वस्तुओं को विक्रय करने हेतु प्रशासन ने कुछ नीजि दुकानदारों को विशेष परमिशन जारी की थी। ये दुकानदार रहवासियों से फोन पर किराना आदि सामानों की सुची प्राप्त कर इन्हें घर पहूंच सेवा देने का कार्य कर रहे थे। प्रशासन ने गरीब लोगों को लिए टोल फ्री नम्बर भी जारी किया था। जहां काॅल कर ये लोग अपने लिए सुखा किराना अथवा पका हुआ भोजन निःशुल्क प्राप्त कर सकते थे। इसी बीच शहर के एक प्रसिद्ध डाॅक्टर की कोरोना संक्रमण के कारण मृत्यु हो गयी। डाॅक्टर मनीष पैंसठ वर्ष के थे। कोरोना मरीजों का उपचार करते समय स्वयं भी कोरोना संक्रमित हो गये। पुरा देश डाॅक्टर मनीष को श्रद्धांजलि दे रहा था। चौदह अप्रैल को लाॅकडाउन के इक्कीस दिन पुरे हो रहे थे। मगर हालात देखकर यही लगता था कि यह लाॅकडाउन अभी ओर बढ़ेगा। क्योंकी राज्यों के मुख्यमंत्रीयों ने लाॅकडाउन बढ़ाने के संबंध में प्रधानमंत्री से प्रार्थना की थी। प्रधानमंत्री ने देश की परिस्थितियों का आकलन कर लाॅकडाउन बढ़ाने का निर्णय दूरदर्शन टीवी के माध्यम से प्रसारित कर दिया। शहर के रामनगर में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिशाल देखने को मिली। बुजुर्ग मीरा बाई का निधन हो चूका था। लोग अपने-अपने घरों में कैद थे। वे चाहकर भी मीरा बाई के यहां नहीं जा सकते थे। मीरा बाई का बेटा-बहू अन्य जिले में मजदूरी करने गये हुये थे। और वहीं लाॅकडाउन में फंसे थे। वे फोन पर अपनी मां की जानकारी लिया करते। मीराबाई के पति अकेले थे। यहां कुछ मुस्लिम भाई आगे आये। उन्होंने मीरा बाई के अंतिम संस्कार की सभी व्यवस्थाएं जुटायी। पुलिस प्रशासन इस बात की अनुमति उनके आग्रह पर दे चूका था। यह एक अलग ही नजारा था। मुस्लिम भाई मीरा बाई के पार्थिव शरीर को कंधा दे रहे थे। समुची मीडिया इस दृश्य ओ अपने टीवी चैनल्स पर प्रसारित कर रही थी।

डाॅक्टर दम्पति अशोक और सीमा पिछले बीस दिनों से घर नहीं गये थे। वे सरकारी क्वाटर में ही रह रहे थे। फिलहाल उनका उपचार चल रहा था। वे स्वयं कोरोना संक्रमण के शिकार हुये थे। कोरोना मरीजों की देखभाल में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। जब अंत समय आया और उन्हें आभास हुआ कि वे लोग अब नहीं बचेंगे तब मास्क हटाकर एक-दुसरे को प्यार भरा चूम्बन किया और अंतिम सांस ली।

"कोरोना प्यार है" कहते हुये उनकी आंखें बंद हो चूकी थी। पुरे राजकीय सम्मान के साथ अशोक और सीमा का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

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"धीरज। तुम्हारे उस दोस्त का क्या हुआ जो लाॅकडाउन में शहर के बाहर फंस गया था।" चंचला ने धीरज से पुछा। वे लोग फोन पर बात कर रहे थे।

"तुम प्रवीन की बात कर रही हो। उसकी भी एक अलग ही कहानी है। बहुत संघर्ष किया है उसने अपनी लाइफ में! और अब भी कर भी रहा है।" धीरज ने बताया।

"मुझे शुरू से बताओ। यह सब कैसे हुआ?" चंचला ने कहा।

दोनों के पास करने को कुछ न था। समय बहुत था। सो मोबाइल पर ही लम्बी चर्चा कर रहे थे।

धीरज ने अपने दोस्त प्रवीन की रोचक कहानी सुनाना आरंभ की--

परिवार को कुछ कर दिखाने के चक्कर में प्रवीन पांचवी बार लोडिंग गाड़ी खरीदने जा पहूंचा। खरीदी भी क्या? खूब धक्के खाये, जुतियां घीस गई। फाइनेंस वालों के यहां लाख धोक दी, नाक रगड़ी तब जाकर ऊंची ब्याज दर पर पिकअप लोडिंग वाहन घर ला सका। डाउन पेयमेन्ट के रूपये भी यहा-वहां से उधार लिये। सोचा 'अब खूब कमाऊंगा। अपना सारा क़र्ज भी चूका दूंगा।' बीवी की फ़रमाइशों की लिस्ट भी बड़ी हो चली थी। जिन्हें पुरी करना अतिआवश्यक था। क्योंकि घर में अक्सर कलह का विषय यही हुआ करती थी। मां-बाप के तानों से शरीर छलनी हो चूका था। दो भाई भी थे। किन्तु वे उसे केवल परिवारिक उपयोगी मानते थे। उसकी परेशानी घर में किसी को इतनी महत्वपूर्ण नहीं लगी जितनी वे स्वयं की समझते थे। मां जरूर कभी-कभार हाल-चाल पुछ लेती। क्योंकि समय-समय पर एक वही था जो अपनी मां की हर इच्छा को आदेश समझकर पुरा करता था। पन्द्रह वर्षों तक पिता के साथ ट्रक पर कंडक्टरी की। कंडक्टरी में रात-बेरात निंद आ जाती तो ड्राइवर पिता ड्राइविंग के दौरान जो हाथ में आता वह फेंक कर इसे नींद से जगा देते। भय का मारा दोबारा सोने की हिम्मत नहीं करता। कच्चे मकान को पक्के घर में बदलने में अपना सौ प्रतिशत दिया। कभी किसी चीज की फ़रमाइश नहीं की। जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया। स्कूल वाले घर तक आ गये। कहा की - "लड़का होशियार है। कुछ पढ़ लिख लेगा तो अपने कुल का उध्दार समझो।" मगर पिताजी कहा मानने वाले थे। पढ़े लिखो को वे अपने समक्ष बोना ही समझते। क्योंकि स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे। उस पर शिक्षित बेरोजगारों की लाइनें गांवो से लेकर शहर तक देखी थी। नौकरी भी भविष्य का लाभ थी जो वर्तमान से कोसो दुर थी। अतएव वर्तमान में गुड्स ट्रांसपोर्ट की अथाह कमाई ने बेचारे की शिक्षा पुरी नहीं होने दी। मोबाइल हाथ में लिया ही था की मोबाइल चोरी के आरोप में आधी रात को सोते हुये भाई को पुलिस उठा ले गयी। सर्वत्र हाहाकार मच गया। बदनामी भी पर्याप्त हुई। सिम कम्पनी में पता किया तो पता चला जिस मोबाइल नम्बर की सिमकार्ड भाई चला रहा है वह किसी अन्य के नाम रजिस्टर्ड था। उसी मोबाइल सिमकार्ड के मूल रजिस्टर्ड नाम के व्यक्ति ने अपना मोबाइल चोरी हो जाने की एफआईआर लिखवा दी थी। फोन पर पहला काॅल भाई ने उठाया और पकड़ा गया। बहरहाल थाने पर लम्बी-चौब़ी बहस के बाद देर रात मामला ले-देकर सुलझा। परिवार को सिम नेटवर्क कम्पनी पर केस करने का विचार आया। मगर ये अपना भोलाराम साफ मुकर गया। कहने लगा- "अंत भला तो सब भला।"