कोरोना प्यार है - 4 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

कोरोना प्यार है - 4

(4)

बालिग होते ही दोस्तों में सबसे पहले बंदे का विवाह हुआ। क्योंकि प्रेम में असफल हुआ था। किन्तु ग़म में नहीं डूबा। अच्छा बेटा तो था ही, अच्छा ड्राइवर भी बना और अच्छा पति बनने का प्रयास भी पुरी लगन से करने लगा। संतान सुख हेतू दूसरा विवाह भी किया। मगर घर में किलकारियां सुनने की प्रतिक्षा, प्रतिक्षा ही बनी रही। कुछ चेतना जागी तो मन को काम में व्यस्त करने का निश्चय किया। फिर क्या! स्वयं की ट्रक लेकर संपूर्ण लाभ अकेले भोगने का मन बनाया। बड़े वाहन पर फाइनेंस सरल नहीं था। एक मित्र से वित्तीय सहयोग मांगा तो उसने ट्रक वाहन में मालिकाना हक मांग लिया। ये भाई राजी हो गया। बीच वाला भाई भी साथ हो लिया। तीनों पार्टनर शीप में ट्रक व्यवसाय में बहुत सारा लाभ कमाने के दिवा स्वप्न देखने लगे। मगर ज़मीनी हक़ीकत कुछ अलग थी। तीनों के मत-मतान्तर में भिन्नता आने लगी। कमाई कम और व्यय अधिक, आये दिन की दुर्घटना बन गयी। उस पर एक दिन भाई के भाई से एक सड़क दुर्घटना में एक आदमी स्वर्ग सिधार गया। रहमदिल भाई ने भाई के हाथों हुये हादसे का जिम्मेदार स्वयं को घोषित कर दिया। फलतः कोर्ट कचहरी के चक्कर इनाम स्वरुप मिले। जो सालों साल किश्तों में मिलते रहे। परिणाम यह हुआ की ट्रक को अधबीच में ही बेचना पड़ा। क्योंकि किश्तें समय पर जमा नहीं हो रही थी। सीविल रिकार्ड भी भाई का ही खराब हुआ। इतना कि एक मोबाइल भी फाइनेंस करने से फाइनेंस कम्पनी ने साफ मना कर दिया। जिस मित्र से ट्रक डाउन पेयमेन्ट हेतु नकद राशी ली, उसकी राशी भुगतान का दायित्व भी अपने भाई पर ही आया। कर्ज में डुबकर उधारी चूकाई। इसने निश्चय किया कि अब बड़ी गाड़ी नही चलानी। पिता ने सहयोग कर छोटी लोंडिंग गाड़ी टाटाएस दिलवा दी। कुछ राहत की सांसे हिस्से में आई ही थी कि पिता की एक के बाद एक कुल दो बड़ी गाड़ीयां (ट्रक) चोरी चली गई। अब ये आधुनिक युगीन श्रवण पुनः अपने परिवार के भरण-पोषण में सबकुछ भुल गया। फिर एक बार बड़ी गाड़ी को चलाने पर विवश था। टाटाएस कब बिकी उसे पता नहीं चला। हांड तोड़ मेहनत ने परिवार को पटरी पर तो ला दिया किन्तु इसकी लाइफ बेपटरी हो गयी। भाई के भाईयों के निजी रिश्तें भी तनावग्रस्त और उलझे हुये थे। बड़ा भाई होने के कारण चिंता लेने से खुद को रोक नहीं सका। भाई ने अपने भाई की जमानत के लिये ब्याज पर रूपये उठाये। फण्ड, बीसी के रूपये भी उठाकर परिवार हितार्थ सौंपे। किश्तें भरते-भरते आधा बुढ़ा हो चला। पारिवारिक बेमेल विचारों को आधार मानकर ये भाई एक बार फिर खिन्न हो उठा। पुनः टाटाएस लेने का मन बनाया। पास में फुटी कोड़ी नही थी। कुछ पुराने मित्रों के द्वार पर दस्तक थी। मगर बात नहीं बनी। पिता के एक पुराने ट्रांसपोर्ट व्यवसायी मित्र के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। दो-चार माह तक बार-बार सुनाई। तब जाकर सरदार जी पिघले और एक मरी-मराई टाटाएस इसके गले बांध दी। अपना भाई था तो मेहनती और धैर्यवान भी। गैराज के चक्कर लगा-लगाकर मैकेनिक को धनवान बनाने में भाई ने पुरा सहयोग दिया। जितना कमाता ,अधिकांश गाड़ी के रिपेयर-सिपेयर में व्यय कर आता। परिवार सदस्य अपने-अपने लिए निजी मकान की व्यवस्था में लगे हुये थे। भाई की पत्नी ने भी भाई पर दबाव बनाया। कुटुंबीयों की इच्छा के आगे अपना भाई फिर एक बार हार गया। पिता ने अपनी एक बड़ी गाड़ी चलाने के बहाने उसका संपूर्ण लाभांश भाई को ही रखने का लोभ देकर मना लिया। भाई की टाटाएस एक बार फिर मरे के भाव बिकी। जिसका धन एक जम़ीन के टुकडे को खरीदने में चला गया। भाई पुनः मुम्बई और हैदराबाद के चक्कर लगाने के चक्कर में खुद घनचक्कर बन गया। भुत प्रेत भी अपने भाई से अच्छे ही दिखाई देते होगें! इंदौर लौटने पर इसे पहचान पाना मुशिकल हो जाता। बड़े वाहन से मोह पहले ही कम था, शनै: शनै: मुम्बई, हैदराबाद से भी मोह भंग हो गया। फलतः ट्रक चलाने से फिर एक बार तौबा कर ली। गांव के पशु मेले में बैल ढुलाई के प्रतिफल मिलने वाली भाड़े की बडी राशी का सुनकर भाई की लार टपकने लगी। पिकअप वाहन की आवश्यकता अनुभव की। जुगाड़ भी ली। वाहन पर दो लाख रूपये फाइनेंस करने की जरूरत थी। भाई लगा फिर जुगत भिड़ाने। हमेशा की तरह गाड़ी सेकैण्ड हेण्ड थी। कमाई के पुर्व उसे गैराज दिखाना था। मैकेनिक इतने वर्ष की दोस्ती का वास्ता खाकर गाड़ी का रिपेयर कम मेहनताने में करने पर राजी हो गया। गाड़ी के जरूरी कागजात एक्पायर होने लगे थे। भाई ने अपनी झोली सर्वत्र फैला दी। मगर स्वाभिमानी ने परिवार की मदद नही ली। खैर, गाड़ी ओके कंडीशन में तैयार कर उसे पशु मेले की ओर दौड़ा दी। एक-दो खेप लगाई ही थी कि बीच हाइवे पर ओवरटेक करता एक वाहन स्वामी भाई पर आकर चिल्लाया- "गाड़ी से बैल भाग गया है।" भाई भोला भण्डारी उस ड्राइवर की सुचना की उपेक्षा करने लगा। 'बैल ऐसे कैसे भाग सकता था?' न्यू ब्रांड रस्सी से कसकर बंधे थे तीनो बैल। गाड़ी के पीछे रस्सीयों का मकड़जाल भी मजबुत और ऊंचा बनाया था। मजाल था कि बैल उसे लांघ पाये! किन्तु भाई ये भूल गया कि जब आदमी का व़क्त खराब होता है तब ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। वही हुआ भी। भाई के कंडक्टर भतीजे ने गाड़ी से उतरकर पीछे देखा। वह दौड़ते हुये भाई के पास आया-"काका एक बैल नहीं है गाड़ी में। लगता है वह बैल भाग गया। "भाई चौंका। गाड़ी से उतरकर उसने भी पीछे देखा। 'यह क्या? वह ड्राईवर सच कह रहा था।' तीन में से एक बैल भाग चूका था। वह बैल अकेला नहीं भागा, बैल के साथ भाई का अच्छा समय भी भाग गया था। जिसे पकड़ना आवश्यक था। उपर की सांस उपर और नीचे की सांस नीचे नीचे लेकर भाई ने गाड़ी पलटा ली। वह आसपास नजर दौड़ा-दौड़ाकर बैल को खोज रहा था। तीन-चार किलोमीटर पीछे भी आ पहुंचा। मगर बैल नहीं मिला। विवश होकर स्थानीय रिश्तेदारों को सुचना दी।

उसके रिश्तेदारों ने ही प्रवीन को बताया की शहर में लाॅकडाउन आरंभ हो गया है। यह कोरोना संक्रमण को देखते हुये किया गया है। इसका उल्लंघन करने वालों को पुलिस डण्डे से पीट रही है। गाड़ीया जब्त कर रही है। पहियों की हवा निकाल रही है।

प्रवीन के लिए ये सुचना और भी कष्टदायकथी। खैर उसने बैल के स्वामी (व्यापारी) को बुलवा लिया। वह भी डरा सहमा प्रवीन के पास पहूंचा। बारह-पन्द्रह लोग लगे बैल खोजने। बैल हट्टा-कट्टा और तंदुरुस्त था। किसी के भी हाथ न लगा। ऐसा बैल को देखने वालो ने बताया। प्रवीन मन्नत भी नहीं मांग सकता था क्योंकि भाई हाल ही में नास्तिक हुआ था। गला सूख गया था। शब्द जीभ पर नहीं आ पाये। क्या करे? कहां जाये? चूल्लू भर पानी भी कोई देने वाला नहीं था। चार-पांच घण्टों के सघन चेकिंग अभियान के बाद कहीं जाकर बैल मिला। बैल को पकड़ा ही था कि पुलिस ने प्रवीन को पकड़ लिया। बहुत लठ्ठ बरसाये। इसने बहुत मिन्नते की और सकुशल छोड़ देने की प्रार्थना की।

"तो क्या व्यापारी पे प्रवीन की मदद नहीं की?" चंचला ने पुछा।

"मदद क्या करता। पुलिस ने उसको भी मार मार के अधमरा कर दिया था। जैसे-तैसे बैल को नियत स्थान पर छोड़ा गया।" धीरज ने कहा।

"बैल तो अवशय मिल गया। किन्तु आगे फिर कोई बैल नहीं भागेगा, इसकी कोई ग्यारंटी नहीं थी। बैल को जब-जब अवसर मिलेगा, वह भागेगा। और अपने साथ-साथ वह भाई का सुख-चेन भी ले भागेगा। तब इसका हल क्या है? निश्चित ही इसका उत्तर देना भाई के पास नहीं था। उसके नजरिये से कहा जाये तो-"बैल आयेंगे, जायेंगे और भागेंगे भी। भागने वाले को पकड़ने का प्रयास करता रहूंगा। जब तक शरीर में प्राण है लड़ता रहूंगा। जीत हो या हार मायने नहीं रखता। जिस दिन लड़ना बंद! उस दिन सबकुछ समाप्त। दी एण्ड। हाहाहाहा।"

धीरज ने कहा।

"ये हंसी किसलिए?" चंचला ने पुछा।

"प्रवीन बहुत मजाकिया है, बिना हंसे तो उससे बात ही नहीं होती। इसलिए मैंने हंसते हुये उसकी कहानी खत्म की।" धोरज ने कहा।

"वाकई तुम्हारा दोस्त प्रवीन बहुत हिम्मतवाला है।" चंचला ने कहा।

"आखिर दोस्त किसका है।" धीरज ने कहा।

"हां जी। आपका दोस्त है आपका मेरे प्यारे धीरज बाबू।" चंचला ने मसखरी की।

"कोरोना प्यार है।" धोरज ने कहा।

"कोरोना प्यार है टू।" चंचला बोली।

-------------------------

आदरणीय ससुर जी!

सादर प्रणाम।

आपका संदेश मिला। इस लाॅकडाउन में आप भी अपने घर में सुरक्षित होंगे ऐसी आशा करता हूं। आपका स्वास्थ  हृदयघात आने के बाद तेजी से सुधर रहा है यह जानकर प्रसन्नता हुई। कर्फ्यू के कारण हम हॉस्पिटल में आपको देखने न आ सके इसके लिए मैं शर्मिंदा हूं। यहां आपकी नातिन प्रिया और बेटी सुपर्णा सकुशल है।

आपने पुछा है कि विवाह के बाद मैं खुश हूं अथवा नहीं। इस अपनत्व के लिये हार्दिक धन्यवाद। आपको दिये हुये वचन के अनुसार मैं अपनी संपूर्ण कार्य शक्ती अपने परिवार के हित में लगा रहा हूं। मेरे लिए अपना निजी कुछ नहीं है। मैंरे सभी कार्य परिवार हित में ही संपन्न होते है। जिससे कारण मेरे इस छोटे परिवार की सभी आवश्यकताएं पुरी होने में सहायता मिलती है। आपकी प्रिय बेटी हमेशा की तरह प्रसन्न और ह्रिष्ट-पुष्ट है। अब तो वह जाॅब भी करने लगी है। प्रिया के जन्म के बाद उसने निर्णय लिया है कि अब वो अन्य कोई संतान नहीं चाहती। पुत्र की आस मन में अंकुरित होते हुये भी मैंने सुपर्णा की इच्छा को नत मस्तक होकर स्वीकार करने में ही परिवार की भलाई समझी। सुपर्णा महिला सशक्तिकरण की वह मिसाल है जिसने बहुतों को उसका कायल बना दिया है। आम जन से लेकर प्रसिद्ध गणमान्य लोग भी उसके प्रशंसक बन गये है। अपने ऑफिस में उसकी तुती बोलती है। इसका एक कारण था। अपने ऑफिस मेनेजमेन्ट से अप्रसन्न होकर उसने भरे बाजार में अपने केश मुंडवा दिये। वह केश जिसे वह अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करती थी। इन्ही बालों  पर जब मैंने होली का रंग उड़ाया था तब उसने मुझे दुनिया भर की बातें सुनायी थी। पुरे दो माह मुझसे नाराज रही सो अलग। उन दो माह का एक-एक दिन मुझे स्मरण है। मैंने अपनी फैक्ट्री में टीफीन ले जाना लगभग छोड़ ही दिया था। सहकर्मी मुझसे अपना टीफीन शेयर करते थे। मेरी इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें अपने घर की समस्या बता सकूं। वो माह सुपर्णा के कोप भवन में विश्राम का था। इसी समय मैंने भोजन बनाना भी सीखा। क्योंकि अधिक दिनों तक बाहर का खाना और ज्यादा समय तक भुखा रहना मेरे वश में नहीं था। वह कच्ची-पक्की रोटियां और प्याज-मिर्ची का भोजन मुझे भुलाये नहीं भुलता। सोशल मीडिया पर अपनी लोकप्रियता और प्रसिद्धि पाने के लिए सुपर्णा दिन-रात नये-नये प्रयोग करती। उसने मेरे पैर दबाने की अपील सिरे खारिज कर दी। वह चाहती थी कि पहले मैं उसके पैर दबाऊं फिर वह मेरे पैर दबायेगी। मेरा स्वाभिमान कभी इसके लिये राजी नहीं हुआ। फलतः हाड़ तोड़ मेहनत के बाद स्वयं ही जैसे-तैसे मैंने अपने पैरों को मालिश करना सीख लिया। घर में सभी संसाधन थे इसके बाद भी मुझे ही अपने कपड़े धोने पड़ते। ये कपड़े कभी इस्त्री कर लेता तो कभी बिना इस्री के ही पहनकर ऑफिस चले जाता। घर में रिश्तेंदारों अथवा बंधुओं के आगमन पर मैं चिन्तामग्न हो जाता। क्योंकि उनका समुचित सत्कार केवल मेरे मीठे वचनों से कभी पुर्ण नहीं होता। अतिथि मेरी मनोदशा भांपकर अधिक समय हमारे घर नहीं ठहरते भी नहीं। स्वयं मैंने कभी अतिथियो को अधिक जोर देकर घर नहीं बुलाया। कभी कोई भुले भटके आ भी जाता तो मैं उन्हें बाहर होटल पर ही चाय-नाश्ता करवाकर विदा कर देता।

आप यह न समझे की मैं सुपर्णा की आपसे शिकायत कर रहा हूं। वह शुरू से ही ऐसी है ऐसा आपने मुझे विवाह के पहले ही बता दिया था। उसके बाद भी मैंने सुपर्णा से विवाह करने के इच्छा जताई थी। आप भी प्रसन्न थे क्योंकि मेरी तरह आपको भी भरोसा था कि सुपर्णा शादी के बाद स्वयं को बदल लेगी। मेरी आशा अब तक मरी नहीं है। मुझे अब भी भगवान पर भरोसा है कि एक न एक दिन हमारे परिवार में भी खुशियां आयेंगी। आप हमारे विषय में चिन्ता न करे।

शेष सब ठीक है। आप लोग सदैव प्रसन्न रहे और स्वस्थ रहे, ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है।

 

सादर चरणस्पर्श

आपका दामाद

विनोद