रॉयल फ्लैट रहस्य - 2 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रॉयल फ्लैट रहस्य - 2

यहाँ पर एक विशेष पुराना व प्रसिद्ध मंदिर है वह मैं जानता था इसीलिए उसे देखने के लिए भी एक प्लान बनाया था । दोपहर होने वाला था इसलिए एक होटल में जाकर दोपहर के खाने को समाप्त किया ।
खाना खत्म कर उस मंदिर को देखने चला गया । खाना , घूमना सब कुछ खत्म कर घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो देखा साढ़े चार बज रहें हैं । एक दुकान से तीन मोमबत्ती खरीदकर रॉयल फ्लैट पहुँचतें - पहुँचतें लगभग शाम हो गया ।
ठंडी में शाम कुछ जल्दी ही हो जाता है । मैं धीरे - धीरे सीढ़ी से ऊपर चढ़ने लगा । इस बार स्पष्ट अनुभव कर सकता हूँ कि मैं अकेला सीढ़ी से नही चढ़ रहा । मेरे पीछे एकदम ठीक पीछे कोई मुझे अनुशरण कर सीढ़ी पर चढ़ रहा है । मैंने सोचा कि एक बार देख लेता हूँ लेकिन किसी अलौकिक कारण से मैं पीछे मुड़ कर देख नही पा रहा था । इन दो साल के कैरियर में ऐसी घटना को बहुत सुना था लेकिन उसे महसूस करने का सौभाग्य या कहें दुर्भाग्य अभी तक नही हुआ । सीढ़ी खत्म होते ही मैं पहुंच गया उस बड़े से झूलते बालकनी में , गहरे अंधेरे से भरा वह जगह एकदम अदृश्य सा हो गया है । मुझे न जाने क्यों ऐसा लगा उस अंधेरे के एक कोने में कोई मूरत बनकर खड़ा है । मुझे जितना याद है सुबह से यहां आने के बाद ऐसा शक्ल नही देखा तो क्या मदन जी मेरे इंतजार में खड़े हैं ?
मैं धीरे - धीरे उस तरफ बढ़ा । मैं जितना पास पहुंच रहा हूँ वह जगह और भी घुंधला होता जा रहा है । वहां पर पहुँच जब देखा कि कोई नही है तो मुझे खुद पर ही गुस्सा आया क्योंकि इतने अंधेरे को जानते हुए भी मैंने मोमबत्ती को क्यों नही जलाया । पॉकेट से एक मोमबत्ती को निकाल कर जलाया और उस जगह के लास्ट में खड़ा होकर सोचने लगा कि ऐसे शोर - शराबा वाले शहर के बीच एक ऐसी रात , जहां पर गहरा अंधेरा और कुछ भयावह अनुभूति ही साथी हैं । महेश जी के पास से जितना कुछ सुना है इस फ्लैट के बारे में वह बहुत ही रहस्यमय है ।
चार - पांच महीने पहले जयप्रकाश व उनकी स्त्री और उनका छोटा लड़का इस फ्लैट का सबसे ऊपरी हिस्सा यानी पांचवे तल्ले को बुक कराया । जयप्रकाश पेशे से दाल के व्यापारी थे । मैने सुना उनकी पत्नी बहुत ही सुंदरी थी एक लड़के की मां है यह सुनकर किसी को विश्वास नही होता था । रूप और मन दोनों ही तरह से वह खूबसूरत थी लेकिन उनके रूप और गुण के कारण जयप्रकाश के जीवन में झंझट का अंत नही था । पहले जहां रहते थे वहां किसी एक घटना के कारण घर को छोड़कर इस फ्लैट में चले आए थे । एक गुंडे की नजर मालादेवी यानी जयप्रकाश के पत्नी पर पड़ा जिसको जयप्रकाश ने जानते ही विरोध किया । लेकिन उनके साथ जीत नही पाएंगे यह सोचकर वह ज्यादा कुछ कर नही सके । घर को छोड़कर चले आए इस पांच तल्ले के रूम पर , जहां पर चार महीने अच्छे से ही कट रहे थे लेकिन इस महीने के अंत में जयप्रकाश के व्यवसाय में घाटा हो रहा था । जिसके कारण अक्सर उनका अपने पत्नी के साथ झगड़ा सुना जाता पर उस रात ऐसा कुछ यहां हुआ था जिसके कारण आज यह फ्लैट अंधेरे में खो गया है ।
महेश जी ने मुझे यह घटना मर्डर जरूर बताया है क्योंकि माँ और लड़के की बॉडी कमरे के फर्श पर मृत मिला था । मरने के चार - पांच दिन बाद फ्लैट मालिक के संदेह होने पर पुलिस बुलाने के बाद दिखा यह घटना । दुर्गंध से कमरे में जाना तो दूर बल्कि दोनों बॉडी को अंत में फावड़े से उठाना पड़ा था लेकिन जयप्रकाश की बॉडी बहुत खोजबीन के बाद उसी फ्लैट के छत पर पानी की टंकी के अंदर मिला । इसीलिए पुलिस और महेश बाबू ने अंदाजा लगाया कि जयप्रकाश डिप्रेशन में आकर अपने पत्नी व लड़के को मारकर स्वयं उस पानी की टंकी में आत्महत्या किया है । लेकिन सत्य क्या यही है ? और यही पता लगाने मुझे यहां भेजा गया है ।

यही सोचते - सोचते एक मोमबत्ती की आयु खत्म हुई । पॉकेट से और एक मोमबत्ती निकालने जा रहा था कि ठीक उसी समय ऐसा लगा कोई एक परछाई मेरे सामने से चलते हुए गया । एकाएक पूरा शरीर कांप सा गया , धड़कन डर के कारण जोर से चलने लगा । जल्दी से मोमबत्ती को जलाया
मोम के रोशनी में देखा दूर - दूर तक कोई नही है । धीरे - धीरे उस रूम की तरफ कदम बढ़ाया वहां जाते ही दीवार पर वही सब कटे दाग व खून की छींटे नजर आने लगी । फिर से पूरे शरीर में हलचल हो रहा है ठंडी मानो अचानक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है और मानो पूरा शरीर भारी हो गया है ।
सुबह यह सब खून के धब्बे सूखे व पुराने लग रहे थे लेकिन अब वह सब सचमुच खून ही लग रहे हैं । मैंने एक बार सोचा की बैग को लेकर घर चला जाऊं । तबियत सही नही लग रहा लेकिन कुछ एक अद्भुत मायावी कारण से मैं जा ही नही पाया । कमरे के कुंडी को खोलकर अंदर जाते ही एक मरे व सड़े की दुर्गंध नाक में आने लगी । मृत शरीर बहुत दिन तक सड़ने पर जैसा दुर्गंध निकलता है ठीक उस तरह दुर्गंध से पूरा कमरा भर गया था । जहां हमारे फोरेंसिक लैब में मरे - सड़े शरीर को लेकर परीक्षण किया जाता है ठीक उसी तरह का दुर्गंध । सोचा हो सकता है पुराना कमरा है इसीलिए कोई चूहा मर गया है जिसके कारण दुर्गंध आ रहा है ।
मेरे हाथ वाला मोमबत्ती को भी लगभग बुझने ही वाला है । जिस इंवेस्टिगेशन के काम से आया हूँ उसे मैंने शुरू किया । एक टेबल देखा जिसके ऊपर एक डायरी रखा हुआ है । उसको मैं हाथ में लेकर पन्ने को पलटने ही वाला था कि ठीक उसी समय ऐसा लगा मानो मोमबत्ती को फूंककर किसी ने बुझा दिया । मेरे पास रखा अंतिम मोमबत्ती जो पहले के दोनों से बड़ा है उसको अब जलाया । फिर डायरी के पन्ने
को पढ़ना शुरू किया । यह एक साधारण डायरी है जिसमें जयप्रकाश अपने प्रतिदिन के घटना को लिखकर रखते थे मैंने जल्दी से पन्ने को पलट अन्तिम के पृष्ठ पर गया पर वहां के दो पन्ने को फाड़ा गया है । किसने इसे फाड़ा ? और क्यों ? यह सब बात सोच रहा हूँ कि मेरे कंधे के पास किसी
ने सांस छोड़ा । उस सांस की हवा को मैंने स्पष्ट महसूस किया । किसी को मेरे इस कमरे में आना व चीजों को देखना पसंद नही आ रहा ।
मैंने डायरी को टेबल पर रख पास के सोफे पर बैठकर सोचने लगा कि जयप्रकाश ने अपने डायरी के अंतिम दो पन्ने से पहले लिखा है कि व्यवसाय की अवस्था बहुत ही खराब है मदन जी के किराए को नही दे पा रहा । मदन जी ने प्रस्ताव दिया है कि पत्नी को उनके पास दे देने पर वो पूरे जीवन का किराया माफ , ठीक उसके बाद के पन्ने को फाड़ा गया है । तो क्या मदन जी ही ? यही सब सोचते - सोचते अचानक ऐसा लगा कोई मेरे सोफे के पीछे खड़ा होकर गुस्से से मुझे घूर रहा है । मैंने अनुभव किया कि साथ ही एक छोटा लड़का भी है लेकिन पीछे मुड़कर देखने का साहस नही हो रहा । अब मुझे बहुत जोर के डर ने जकड़ लिया है । सोफा से धीरे - धीरे करके पीछे देखते ही मैंने देखा जहां मैं बैठा हूँ उसके ठीक पीछे एक बड़ा सा ऑयल पेंटिंग । जयप्रकाश , मालादेवी व उनके लड़के का एक फैमिली फोटो , जिसको किसी चित्रकार से बनाया गया है मुझे ऐसा लगा ।
ठीक से मोमबत्ती के रोशनी में देखने लगा उस चित्रकार का काम । देखते - देखते ऐसा लगा मानो चित्र जीवंत हो गए हैं उनके आंख भी जीवंत मनुष्य की तरह चमक रहे हैं । अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज आई लेकिन दरवाजे की तरफ देखा मैंने तो दरवाजे को खोल कर ही रखा है फिर आवाज कहाँ से आई । इस ठंडी के सुनसान रात में मैंने कहीं कुछ गलत तो नही सुना । आसपास कोई नही है चौथा व तीसरा तल्ला भी खाली है क्योंकि सुना है नए तरीके से बन रहा है । यही सोचते - सोचते पॉकेट में हाथ डालने पर महेश जी का कार्ड और पिस्तौल पाया । फिर सोचा कि पूरे घटना को उन्हें फोन करके बताऊं लेकिन फोन खोजते ही याद आया सुबह आशीष के मैसेज को देखकर फोन वहीं बिस्तर पर छोड़ आया । आज ही यह सब होना था । इतने दिन कभी भी फोन को अपने पास रखना मैंने नही भूला ।
यही सोचते - सोचते सोफे के पास बिस्तर से एक आवाज आई । घूम कर देखते ही मेरा पूरा शरीर जम सा गया , मोमबत्ती के पीले रोशनी में मैंने देखा बिस्तर पर हल्का लाल रंग के साड़ी को पहनकर एक महिला सिर झुकाए बैठी है और उसके पास एक नौ - दस साल का लड़का सोया है ।
सोचा कुछ गलत तो नही देख रहा लेकिन नही वह महिला अभी भी बिस्तर पर बैठकर लड़के को सुला रही है । उसके पैर की पायल मोमबत्ती के रोशनी में चमक रहे हैं ।
यह देख मैं एक ही प्रार्थना कर रहा था कि वह बस मेरे तरफ न देखे । मैं आराम से उठा और धीरे - धीरे अपने कदम खुले दरवाजे की तरफ बढ़ाने लगा । तुरंत ही वह सड़ा दुर्गंध और तेजी से उस कमरे में बढ़ने लगा । दरवाजे के पास पहुँचने वाला हूँ , उसी वक्त मैंने देखा वह बालों से ढकी चेहरा धीरे - धीरे मेरे तरफ ही घूम रही है । कमरे से दरवाजे पर पहुँच उसे बंद करने की ताकत भी खो बैठा । कमरे से निकल थके
शरीर को लेकर उस खुले जगह में चलने लगा और तभी वही दरवाजा खटखटाने की आवाज फिर सुनाई देने लगी । अंधेरे में बहुत परेशानी से देखा कि उस जगह के पास से एक अंधेरे से भरा रहस्यमय सीढ़ी ऊपर की तरफ चला गया है । वही शायद छत की सीढ़ी है और दरवाजा खटखटाने की आवाज भी वहीं से आ रहा है । डर से गला सूख गया है एक भी बात नही निकल रहा गले से , धीरे - धीरे सीढ़ी से ऊपर उठते ही फिर सुना वही दरवाजा खटखटाने की आवाज । पॉकेट में हाथ डालते ही मदन जी का दिया हुआ चाभी मिला । डरते हुए उससे दरवाजा खोलते ही वह खटखटाने की आवाज एकाएक बन्द हो गया । दरवाजा खोलकर देखा छोटा सा एक छत , मोमबत्ती लाना भूल गया पर चांद की रोशनी में वहाँ सबकुछ दिख रहा था । तभी मेरी नजर पड़ी उस पानी की टंकी पर जहां जयप्रकाश का मृत शरीर मिला था । तभी देखा छत के रेलिंग पर एक आदमी किसी के प्रतीक्षा में खड़ा है। कुछ देर बाद ही छत के दूसरे तरफ से एक और आदमी आया । उसे देखकर अच्छा हृष्ट - पुष्ट व लम्बा - चौड़ा लगा और एक मोटा मूंछ भी है ।
उन दोनों ने आपस में बात करना शुरू किया । लेकिन कुछ देर बाद ही उनके बात झगड़ा और मारपीट में तब्दील हो गए पर उनके किसी भी बात को मैं सुन नही पा रहा था । मैंने अपने जगह से हिलने की क्षमता मानो खो दिया है ।
मेरे सामने ही उस लंबे आदमी ने पहले से खड़े उस आदमी को एक लोहे जैसे दिखने वाले रॉड से मारा और तुरंत ही दूसरा आदमी नीचे गिर पड़ा । मैं अपने पिस्तौल को निकलूंगा वह ताकत भी नही है ।
इसके बाद उस आदमी के शरीर को वह लम्बा - चौड़ा आदमी खींचने लगा उस टंकी की तरफ । तभी मैंने सुना कि छत की सीढ़ीबसे एक पायल की आवाज धीरे - धीरे इधर ही बढ़ रही है । मैं और ज्यादा देर खड़ा नही रह पा रहा । तभी पानी छपकने की आवाज आई देखा उस लंबे आदमी ने उस टंकी के पानी में बेहोश आदमी को फेंक ढक्कन बंद कर दिया ।
इधर पायल की आवाज मेरे एकदम पीछे आकर रुक गया । मेरे बेहोश होते शरीर ने पीछे मुड़कर चांद के रोशनी में जो देखा वह मैं अपने पूरे जीवन में नही भूल पाऊंगा ।
एक महिला की चेहरा , वही बिस्तर पर बैठी हुई महिला ।उस समय चेहरे को ठीक से नही देख पाया था पर अब स्पष्ट है । उस रूम के ऑयल पेंटिंग में जयप्रकाश की पत्नी यानी मालादेवी जैसी दिख रही थी । ठीक उसी तरह देखने में लेकिन पूरे चेहरे पर ब्लेड व धारदार अस्त्र से कटने की दाग हैं । पूरे चेहरे से बहते खून से साड़ी लाल हो गई है । दोनों आंख मानों बहुत हिंसक मानो क्रोध और करुण मृत्यु में बदल गए हैं । पूरे चेहरे पर एक दर्द , भयावह कष्ट झलक रहा है । वही मरा - सड़ा दुर्गंध मेरे सामने और बढ़ते ही मैं बेहोश होकर गिर पड़ा ।

जब होश आया तो देखा उसी रूम के दरवाजे के पास मैं लेटा हूँ । मेरे पास ही मेरा बैग रखा हुआ है । दरवाजे को देखा तो वह कल सुबह की तरह कुंडी लगाकर बंद है ।
बाहर सुबह का प्रकाश चारों तरफ बिखरा हुआ है । मैं बैग को लेकर नीचे दौड़ते हुए सीढ़ी से उतरने लगा । नीचे आकर मदन जी के रूम के पास जाते ही देखा वह एक गद्दे पर बैठे हुए हैं ।
उन्होंने कहा – " अरे आइए विजय जी आइए बैठिए । "
मैं उत्तर देने वाला ही था कि मैने देखा एक लंबा - चौड़ा आदमी मदन जी के पास वाले कुर्सी पर बैठा है । वह देखने में ठीक कल रात के मोटे मूंछ वाला आदमी लग रहा है ।
वह आदमी बोला – " अबे इधर क्या काम है तेरेको ? "
मदन जी बोले – " क्या हुआ विजय जी कल रात आपको
कोई असुविधा तो नही हुआ ? "
मैं उत्तर न देते हुए चाभी सीधा उनके हाथ में दिया मानो बात करने की ताकत मैं खो चुका हूं ।
उन्होंने कहा – " चाभी क्यों दे रहे हैं , आप रुकेंगे नही और रिव्यू क्या है ? "


उनके बात को सुनते - सुनते किसी एक शक्ति से मंत्रमुग्ध
होकर मेरा हाथ पिस्तौल वाले पॉकेट में गया और मैंने पिस्तौल निकाला ।


" अबे ओए बंदूक क्यों निकाला ? "
फिर मैंने कोई बात कोई बाधा कुछ भी न समझ कर एक अद्भुत रोष में उस आदमी और मदन जी के सिर को गोलियों से छितर - बितर कर दिया ।
गोली के खत्म होते ही पिस्तौल को फेंक दिया । इस हालत में मैं अपने घर तक पहुंच पाऊंगा या नही लेकिन मैंने खुद ही एक हाथ से मदन जी और दूसरे हाथ से उस आदमी के बालों को पकड़कर मदन जी के घर वाले गोदाम में खींचते हुए ले गया । मानो एक अद्भुत शक्ति के वश में मैं यह सब करने
लगा था। वहीं पर मेरा अपराध नही थमा उस गोदाम में एक बेंच के नीचे एक धारदार कटार को देखा और उसे लेकर कई बार दोनों के चेहरे और पेट पर चलाने लगा । खून से मेरा चेहरा व हाथ लाल हो गए हैं । रूमाल से चेहरा पोंछकर अंत में कटार वहीं फेंक ; मदन जी के घर से निकल ; दरवाजे पर कुंडी लगाकर ; रास्ते से घर को रवाना हुआ ।
घर लौटकर डायनिंग टेबल पर बैठा ही था । तभी फोन बज उठा । उठकर फोन को रिसीव करते ही आशीष की आवाज – " क्या हुआ क्या बात है । कहीं पता ही नही है दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा , फोन को फेंक दे न यहां फोन करते करते थक गया । हैलो - हैलो ।"
मैं उसे बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि कल रात मेरे साथ क्या क्या हुआ पर कुछ भी नही बता पा रहा । उस समय समझा मदन जी के घर से निकलते समय जो सोचा था वह सच है । मैने सच में बात करने की ताकत को खो दिया है । फोन को काटकर आशीष को मैसेज कर दिया कि आज शाम को वह मेरे रूम पर आए ।

"" इस समय मैं इस चीट्ठी को लिख रहा हूँ उसे आशीष से ही पोस्ट करवा दूँगा सोचा है । चीट्ठी को आप पढ़कर समाप्त करें उससे पहले ही शायद किसी एक अनंत अंधकार में मैं खो जाऊंगा । वह सभी मानो मुझे अपने पास खींच लेजाएंगे । जितनी बार भी सोने के लिए आंख बंद कर रहा हूँ उतनी बार उस महिला की भयानक वीभत्स चेहरा बार - बार सामने आ रहा है । मानो ऐसा लग रहा है मेरे सामने ही वह खड़ी है । महेश जी को मैं एक ही बात बताना चाहता हूँ शायद किसी और भी शुक्रवार हमारा फिर मिलना नही होगा । पर आप कृपा करके किसी को भी उस रूम के इंवेस्टिगेशन में मत भेजिएगा । कुछ घटना जैसे रहस्य रहता है इसे भी वैसे ही रहने दीजिए और किसी का जीवन ऐसे खत्म हो जाए यह मैं नही चाहता । हाँ और एक बात सही समय मदनलाल और उसके साथी के डेडबॉडी को निकालना मत भूलिएगा क्योंकि कहीं उनके शरीर भी फावड़े से न उठानी पड़े । ""...


क्रमशः ।।


@rahul