मे और महाराज - ( जासूसी_२) 12 Veena द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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मे और महाराज - ( जासूसी_२) 12

सुबह सुबह उसने आंखे खोली। पर जो इस बार उठी थी वो राजकुमारी शायरा थी। वो आयने के सामने जाकर बैठी। उनके बदन मे दर्द की लहरे उठ रही थी। वो याद करने की कोशिश कर रही थी, की आखरी बार जब वो अपने माता पिता के घर गई थी। उसके बाद क्या हुवा ? उन्होंने उनके सवालों के जवाब दिया, जिस पर गुस्सा हो उनकी बड़ी मां ने सजा सुनाई। पर उसके बाद वो महल कब पोहोचि, आगे क्या हुआ था। कुछ भी याद नहीं। वो जितना याद करने की कोशिश करती उस से ज्यादा सर दर्द महसूस होता रहा। तभी मौली वहा पर पोहोच गई।

" राजकुमारि आप जग गई। मुझे बुला लेती।" मौली ने कंगी उठाई और राजकुमारी के बाल संवारने शुरू किए।

" मौली पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ हो? हमे एक बार याद करवाओगी।" शायरा।

" जरुर।" मौली।

" हमारे आत्महत्या के बाद उठने वाले दिनों से शुरू करना। सब बताओ हमे। जो कुछ भी अजीब हमने किया हो या हमारे साथ हुवा हो।" शायरा।

" जी। आप के उठने के बाद आपने किसी को भी नही पहचाना था। पहले सब को लगा आप की याददाश चली गई। लेकिन आपकी हरकतों की वजह से बड़ी मां ने आपको पागल करार करने की कोशिश की, लेकिन महाराज की आज्ञा ने हमे बचा लिया। आप के ठीक होते ही, आठवें राजकुमार आप को देखने आए।लेकिन पता नही उन्हे शादी की इतनी जल्दी क्यों थी??? पर फिर हम यहां आ गए। लेकिन इस पूरे वक्त मे आप के कहे मुताबिक मैने हर जगह वो बिस्तर ढूंढा..." मौली।

" कौनसा बिस्तर????? हमने कुछ कहा था क्या ????" शायरा।

" हा । आप ही ने हमे हर जगह एक पुराना नक्षिकारी बिस्तर ढूढने कहा था। हमने हर जगह देखा। वजीर जी के महल मे कही नही है। यहां भी में अब तक सब जगह देख चुकी हूं, सिवाय राजकुमार के कमरे के। उनके कमरे के आस पास तक किसी को जाने की इजाज़त नहीं है। वहा की सफाई भी राजकुमार की निगरानी मे होती है। तो...." मौली।

" ठीक है। तुम छानबीन जारी रखना।" शायरा ने अपने आप को आयने मे देखा, " हम नही जानते हमे हुवा क्या है। पर हमारी हालत ज्यादा खराब हो इस से पेहले हमे वो राजमुद्रा ढूंढनी होगी। हम हमारे राजकुमार अमन को महाराज बनाने मे अपनी जी जान लगा देंगे। उनकी कुर्बानी खाली नहीं जाएगी। हमे वो राजमुद्रा धुड़नी होगी।" शायरा फिर मौली की तरफ घूमी, " मौली चाय और कुछ नाश्ता तैयार करवाओ। हम राजकुमार से मिलने जाएंगे।"

" जी राजकुमारी।" मौली।

" राजकुमारी शायरा आपसे मिलना चाहती है राजकुमार।" रिहान ने राजकुमार से पूछा।

" काफी दिनों बाद याद आई उन्हे। अंदर आईए।" सिराज।

" प्रणाम स्वीकार कीजिए राजकुमार। " दोनो ने बड़ी विनम्रता से उन्हे नमस्कार किया।

" आज इनमे कुछ तो अलग है। ये भला कब से हमे नमस्कार करने लगी।" सिराज ने सोचा, " राजकुमारी खुद यहां आई है। कोई खास कारण ?"

" इस नादान राजकुमारी को माफ कर दीजिए मेरे महाराज। हम बीमारी की वजह से इतने दिनो तक हमारा पत्नी धर्म नही निभा पाए।" शायरा।

" क्या आप थकती नही है ? पूरा दिन ये नाटक कर के।" सिराज।

" क्या हमसे कोई भूल हो गई? हम आपकी बाते समझ नही पा रहे।" शायरा।

" ठीक है। आप नही समझी पर तुम तो समझ गई होगी ना मौली, हम किस बारे मे बात कर रहे हैं।" सिराज अपनी जगह पर से उठा।

सिराज की बाते सुन मौली ने चाय की थाल नीचे रख दी और अपने घुटनो पर बैठ गई सर झुकाए हुए। " मुझे माफ कर दीजिए राजकुमार। मुझे अपनी गलती ज्ञात नही है।"

" क्या मौली से कोई गलती हो गई ?" शायरा।

" अगर आप दोनो ही नही जानती की असलियत मे हुवा क्या है ? फिर तो हमारा बात समझाने का कोई मतलब ही नहीं। क्यो न हम मौली को उनकी गलती की सजा के तौर पर महल से बाहर निकाल दे।" सिराज।

" राजकुमार। दया कीजिए राजकुमार। मेरे पास घर कहने के लिए कोई जगह नही है। में हमेशा से मेरी राजकुमारि जी के साथ रही हु।। मुझे यहां से मत निकालए।" मौली ने रोते हुए कहा।

" अगर मौली से कोई गलती हो गई हो तो हम भी उनकी तरफ से दया की आरजू करते है। माफ कीजिए राजकुमार दया दिखाएं।" शायरा ने अपने घुटनो के बल बैठते हुए कहा।

" हम्म। दया । अब जब हमारी पत्नी ने ये कहा है। तब तो हमे सोचना ही चाहिए।" राजकुमार सिराज मौली की तरफ बढ़े, उन्होंने अपने हाथ से उसका झुका हुवा सर उठाया। " दिखने मे खुबसूरत। ठीक है अगर आप चाहती है की मौली यहां रहे तो इन्हे तोहफे की तरह हमे सौप दीजिए।"
राजकुमार की कही ये बात सुनते ही मौली रोते रोते वही बेहोश हो गई। रिहान ने उसकी नब्ज जाची। " सिर्फ बेहोश हुई है राजकुमार।"

" ठीक है। उसे उसके कमरे मे छोड़ आवो।" सिराज वहा से वापस राजकुमारी की तरफ बढ़ा।

" मौली पर दया दिखाएं राजकुमार। हमने कभी भी उसे दासी नही समझा, हमेशा छोटी बहन माना है। उसके साथ हम ऐसा नहीं कर सकते। " शायरा ने कहा।

" ठीक है। आप की ये बात भी मानी। चलिए देखते है आप अपने आप को बचाती है या अपनी छोटी बहन को। तो बताएं आप का हमसे शादी करने का क्या मकसद है?" सिराज अपनी चाल चल चुका था। मौली के जरिए वो शायरा से सब पता कर सकता था।

" हमे महाराज की आज्ञा का पालन तो करना ही था।" शायरा ने भरी पलको से जवाब दिया।
" मुझे माफ कर देना मौली। पर अपने फर्ज के आगे में मजबूर हू।" शायरा ने सोचा।

" मुझे लगता है, आपने काफी आसानी से अपना निर्णय ले लिया। हम जल्द ही तारीख निकलवाते है।" सिराज जैसे ही मुड़ा शायरा ने अपने हाथ मे पकड़ी हुई चाय की प्याली उस पर गिरा दी। " ये क्या बदतमीजी है।"

" हम तो बस आप को चाय देने की कोशिश कर रहे थे। हमे माफ कर दीजिए।" शायरा।

" आप को हमारे लिए कुछ भी करने की जरूरत नही है। समझी आप।" इतना कह सिराज अध्यन कक्ष से बाहर निकल अपने कमरे की तरफ आगे बढ़ा। राजकुमारी शायरा भी उनके पीछे पीछे जाने लगी। सिराज ने दरवाजा खोला और अपने कमरे मे अंदर गया। जैसे ही शायरा ने अंदर जाने की कोशिश की सिराज ने उसे रोका। " वही रुक जाइए। वो आपकी सीमा है, आपको इस कमरे मे आने की इजाज़त नहीं है।"

" हम तो बस एक पत्नी होने के रिश्ते से आपकी कपड़े बदलने मे मदद करना चाहते थे।" शायरा।

" हमे आपकी कोई जरूरत नही है।" इतना कह सिराज ने दरवाजा बंद कर दिया।

शायरा एक अजीब सी मुस्कान के साथ अपने कक्ष मे वापस लौट गई। ये वही शाम थी, जब शायरा के कमरे से एक औरत लबादा ओढ़ महल की दीवार तक गई। वहा से उसने एक ईट निकाली एक छिपी चिट्ठी वहा रखी और बिना किसी की नजर मे आए वापस कमरे मे चली गई।