फाँसी के बाद - 9 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 9

(9)

“सुनिये कप्तान साहब !” – सीमा ज़रूरत से ज्यादा गंभीर होकर बोली – “वह ड्राइवर साहब मेरे मित्र हैं इसलिये मैं उनके विरुद्ध एक शब्द भी सुनना नहीं चाहती । उनके बारे में अगर आप पता लगाना चाहेंगे तो मैं आपको मना नहीं करूंगी, मगर आप उनके बारे में मुझ से कुछ भी नहीं मालूम कर सकते ।”

“वह तुम्हारे कैसे मित्र हैं कि उन्होंने तुमसे बात करना भी पसंद नहीं किया...” हमीद ने चुभते हुए स्वर में कहा ।

“मैं इस पर किसी प्रकार की समालोचना नहीं कर सकती ।”

इस मध्य बैरा आर्डर की चीजें लाकर रख गया था और सैंडविचेज़ खाने के बाद अब दोनों कोफ़ी की चुस्कियां ले रहे थे ।

“तुम्हारे ड्राइवर को प्रकाश किस हैसियत से जानता है ?” – हमीद ने पूछा ।

“यह तो मैं भी नहीं बता सकती । और सच्ची बात तो यह है कि मैं जानती ही नहीं । आज प्रथम बार मैंने दोनों को एक साथ देखा था ।”

हमीद ने कुछ नहीं कहा ।

कुछ ही क्षण बाद बैरा ने बिल लाकर सामने रख दिया । हमीद ने बिल पेमेंट किया फिर उठना ही चाह रहा था कि सीमा ने कहा ।

“तो रनधा को फांसी हो जायेगी ?”

“हां ।” – हमीद ने कहा ।

“मगर सुना तो यह जा रहा है कि जिस आदमी को फांसी दी जायेगी वह रनधा नहीं है । रनधा फरार हो चुका है ।”

“यह असंभव है ।”

“रनधा के आदमी अभी जीवित हैं । क्या वह रनधा को बचाने का यत्न नहीं करेंगे ?”

“जो भी हो, मगर मैं इतना जानता हूं कि रनधा को कल सवेरे का सूरज देखना नसीब नहीं होगा ।” – हमीद ने कहा और एक झटके के साथ उठ खड़ा हुआ । फिर सीमा की आंखों में देखता हुआ बोला – “मगर अब मेरे लिये रनधा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण तुम्हारे ड्राइवर साहब, तुम्हारी वीना और तुम ख़ुद हो ।”

“मैं !” – सीमा ने उठते हुए कहा – “भला मैं क्यों ?”

“इसलिये कि तुम बहुत सारी बातें छिपाये हुए हो । जो पूछता हूं उसका गोलमोल उत्तर देती हो – टाल भी जाती और इस प्रकार मुझे सच्चाई तक नहीं पहुंचने दे रही हो ।”

“कैप्टन ! मैं केवल इतना ही कहूंगी कि तुम मेरे प्रति भ्रम में हो ।”

हमीद ने कुछ नहीं कहा । खामोशी से दरवाजे की ओर बढ़ने लगा । सीमा भी उसके पीछे थी ।

कम्पाउंड में पहुंचकर सीमा ने पूछा ।

“कल रात का प्रोग्राम ?”

“कल दोपहर मैं तय होगा ।” – हमीद ने कहा और उस ओर मुड़ गया जिधर उसने अपनी मोटर साइकल खड़ी की थी ।

सीमा भी हमीद का उत्तर सुनने के बाद अपनी कार की ओर बढ़ गई थी ।

हमीद अब सीधा घर की ओर जा रहा था । विनोद की अनुपस्थिति के कारण वह मानसिक थकावट का शिकार हो गया था । घर पहुंचते पहुंचते उसे ऐसा लगने लगा था जैसे वह सालों से मोटर साइकल पर बैठा सफ़र कर रहा हो ।

मोटर साइकल गैराज में खड़ी करके वह अपने कमरे में पहुंचा और बिना कपड़े उतारे ही बिस्तर पर ढेर हो गया ।

दूसरे ही क्षण वह गहरी नींद सो रहा था ।

आंख खुली तो कमरे में गहरा अंधेरा था । उसने अपनी रेडियम डायल वाली रिस्ट वोच देखी । सात बज रहे थे । उसने उठकर सबसे पहले स्विच आन किया मगर अंधेरा दूर नहीं हुआ । वह चौंककर घूमना ही चाहता था कि गर्दन के पिछले भाग पर कोई ठंडी सी वस्तु आ लगी और फिर उसे किसी की मंद सी फुफकार सुनाई दी ।

“चुपचाप बाहर की ओर चलो ।”

हमीद को जीवन में प्रथम बार इस प्रकार की दुर्घटना से दोचार होना पड़ा था । आज तक ऐसा नहीं हुआ था कि विनोद की कोठी में दाखिल होकर किसी ने ऐसा दुस्साहस किया हो । यही वह अनुभूति थी जिसने उसे बौखला दिया था और उसके हाथ पाँव फूल गये थे । वह चुपचाप दरवाजे की ओर बढ़ गया । गर्दन से वह ठंडी वस्तु लगी रही ।

बाहर निकलने के बाद भी वह वस्तु उसी प्रकार गर्दन से लगी रही । पूरी कोठी और पूरा कम्पाउंड अंधकार में डूबा था । इतना गहरा सन्नाटा छाया हुआ था कि हमीद का दम घुटने लगा था । रखवाली करने वाले कुत्ते तो खैर रात में बारह बजे खुलते थे मगर नौकरों की आवाजें भी नहीं आ रही थीं । यद्यपि अभी सात ही बजे थे मगर जाड़े का मौसम होने के कारण अच्छी खासी रात मालूम हो रही थी ।

गेट पर अंदर की ओर एक कार खड़ी थी और उसके पास ही दो आदमी इस प्रकार खड़े थे कि सड़क पर से देखे नहीं जा सकते थे । कार की अगली और पिछली दोनों सीटों के दरवाजे खुले हुए थे ।

हमीद जैसे ही कार के निकट पहुंचा उन दोनों आदमियों ने उसे जकड़ लिया और फिर हमीद को जकड़े हुए ही पिछली सीट पर बैठ गये । और उस आदमी ने द्वार बंद कर दिया जो हमीद को रिवोल्वर के जोर पर यहां तक लाया था । फिर उसने ड्राइविंग सीट पर बैठकर अपनी ओर का दरवाजा बंद किया और कार स्टार्ट कर दी ।

कार जब गेट से बाहर निकली तो हमीद ने रीढ़ की हड्डी तोड़ देने वाली खौफनाक आवाज सुनी ।

“कैप्टन हमीद ! आज तुम को केवल वार्निंग दी गई है । मगर कल तुमको मौत का संदेश मिलेगा ।”

“इसका मतलब यह हुआ कि कल तक मैं ज़िन्दा रहूंगा ।” - हमीद ने निर्भय होने का प्रमाण देने के लिये चहककर कहा ।

“उन तमाम लोगों को जिन्होंने रनधा की गिरफ़्तारी में भाग लिया है जैसे तुम, रमेश, इन्स्पेक्टर आसिफ़ और सीमा इत्यादि और उन समस्त लोगों को जिन्होंने रनधा के विरुद्ध गवाही दी हैं – कल से सजा दी जायेगी ।”

“तो फिर कल क्यों ? आ ही जो सजा देनी हो वो दे दो ।”

“नहीं । आज नहीं । आज तो तुम्हें, आसिफ़ को, रमेश को और सीमा को बस वार्निंग दी जा रही है । सवेरे नौ बजे तुम लोग फिर अपने घरों पर होंगे – और यदि फांसी का ड्रामा खेला गया तो फिर कल के बाद रनधा अपने हाथों से तुम लोगों को मौत के घाट उतार देगा ।”

“तो तुम लोग यह समझ रहे हो कि रनधा को फांसी नहीं होगी ?”

“हां । इसकी संभावना है ।”

“और अगर हो गई तो ?”

“तो फिर रनधा तुम लोगों को दंड देगा ।”

“फांसी पाने के बाद रनधा दंड देगा ! हा...हा...हा...हा...!” – हमीद ने अट्टहास लगाते हुए कहा – “तुम बड़े दिलचस्प आदमी मालूम होते हो दोस्त !”

“अधिक बहादुरी दिखाने की आवश्यकता नहीं है कप्तान साहब ।” – ड्राइविंग सीट से आवाज आई – “इसी में अनुमान लगा लो कि तुम्हें तुम्हारी कोठी से इस प्रकार ले जाया जा रहा है । तुम लोग हमारे सामने चूहों के समान तुच्छ हो । बस मुझे एक बात का दुख है ।”

“वह भी बता दो ।” – हमीद ने कहा ।

“कर्नल विनोद होता तो उसे भी इसी प्रकार बांधकर ले जाता और उसे अजायब खाने में रखता ।”

“तुम कौन हो ?” – हमीद ने पूछा ।

“क्या तुमने रनधा की आवाज़ कभी नहीं सुनी ?”

“केवल एक बार सुनी थी ।”

“तब भी तुम्हें पहचान लेना चाहिये था ।”

“तुम झूठे हो ।” – हमीद ने तीव्र स्वर में कहा – “रनधा जेल में है । तुम रनधा नहीं हो सकते ।”

“शोटे !” – ड्राइविंग सीट से गर्जना सुनाई दी – “इसके जबड़े पर एक घूंसा जड़ दो । यह असभ्य है । इसने मुझे झूठा कहा है ।”

और फिर प्रथम इसके कि हमीद अपना बचाव कर सकता, जबड़े पर इतना शानदार घूंसा पड़ा कि न केवल तारें बल्कि आंखों के सामने चाँद सूरज तक नाच गये और फिर कुछ याद नहीं रह गया ।

***

रात का समय था । सर्दी इतनी अधिक बढ़ गई थी कि सरला दांत कटकटाने लगी थी । वह अभी तक जाग रही थी । जागने का कारण यह था कि रमेश ने कहा था कि वह ग्यारह बजे तक अवश्य आ जायेगा, मगर इंतजार करते करते अब बारह बज रहे थे ।

घबड़ाकर वह फ़्लैट से बाहर निकल आई । सड़क की ओर देखा जो अब बिलकुल सुनसान पड़ी थी ।

वह कुछ देर तक सड़क की ओर देखती रही । फिर उसे खयाल आया कि रमेश रमेश की मोटर साइकल तो यहीं है । फिर क्यों न वह न्यू स्टार के आफिस ही पहुंच जाये ।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद वह अंदर आई । ओवर कोट पहनकर रिवोल्वर जेब में डाला । दूसरे जेब में सिगरेट का एक पैकेट डाला और गैराज से रमेश की मोटर साइकल निकाली ।

मगर अभी उसे स्टार्ट भी न करने पाई थी कि न जाने किधर से आकर तीन आदमियों ने उसे घेर लिया । उसमें से केवल एक के हाथ में रिवोल्वर था ।

सरला भौंचक्का रह गई ।

“तुम शोर नहीं मचाओगी अच्छी लड़की, वर्ना यह रिवोल्वर भी शोर मचाना नहीं जानता !” – रिवोल्वर वाले ने कहा ।

सरला ने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा । तीनों के चेहरों पर नकाब पड़े हुए थे । जिसके हाथ में रिवोल्वर था वह लम्बे कद का स्वस्थ आदमी था । शेष दोनों भी स्वस्थ ही थे मगर नाटे कद के थे ।

“मैं नहीं समझ सकती कि तुम लोग कौन हो और तुम्हारी इस हरकत का क्या अर्थ होता है ।” – सरला ने अपनी समझ में अकड़कर कहा । मगर सच्ची बात तो यह थी कि उसकी आवाज भीख मांग रही थी ।

“सुनो ! हम तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचायेंगे ।” – रिवोल्वर वाले ने कहा । मगर इस बार उसके स्वर में कोमलता थी – “हम तुम्हें केवल यह सुचना देने आये हैं कि आज की रात अत्यंत महत्वपूर्ण है । हमने हमीद को गिरफ्तार कर लिया है, और अभी थोड़ी ही देर पहले तुम्हारे साथी रमेश को भी गिरफ्तार करके एक जगह भेज दिया गया है । इन्स्पेक्टर आसिफ़ भी रमेश के साथ ही था इसलिये उसे गिरफ्तार करने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा था – और अब हम यहाँ से सीधे सीमा के यहां जायेंगे । इसलिये कि उसे भी गिरफ्तार करना है ।”

“मगर क्यों ?” – सरला ने पूछा ।

“इसलिये कि तुम और उन लोगों ने जिनके नाम अभी मैंने लिये हैं – रनधा की गिरफ्तारी में भाग लिया था । तुम तथा इन लोगों के विचार में आज रनधा की फांसी की रात है । इसलिये तुम सबको आज की रात कैद में रहना है । कल सवेरे तुम सब लोग छोड़ दिये जाओगे । और यदि रनधा को फांसी हो गई तो वह रनधा एक जान के बदले चार जानें लेगा ।”

“तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आई ।”

“क्यों नहीं समझी ?”

“फांसी तो रनधा ही को होने वाली है ना ?” – सरला ने पूछा ।

“हां ।”

“तो फिर फांसी पा जाने के बाद वह किसी की जान कैसे ले सकता है – वह तो मर चुका होगा ।”

रिवोल्वर वाले ने अट्टहास लगाया और बोला ।

“रनधा कभी नहीं मर सकता ।”

“पता नहीं तुम क्या बकवास कर रहे हो । मैं तो कुछ भी नहीं समझी ?” – सरला ने झल्लाकर कहा ।

“और मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं तुमको समझाऊं । इसलिये अब अपनी चोंच बंद ही रखो । कदाचित तुम कहीं जा रही थी ?”

“हां ।”

“तो अपना इरादा बदल दो, सीट से नीचे उतरो और फ़्लैट के अंदर चलो ।”