फाँसी के बाद - 6 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 6

(6)

“उसका वकील जिसने उसके मुक़दमे की पैरवी की थी और दो आदमी जिन्होंने अपने को रनधा का संबंधी बताया था ।”

“वह दोनो...”

“सीधे सादे देहाती थे ।” हमीद ने कहा ।

“हो सकता है वह दोनों वीना के बारे में जानते रहे हों ।

“उनसे पूछ गच्छ की गई थी मगर उन्होंने कसमें खा खा कर अनभिज्ञता प्रकट की थी फिर उन्हें छोड़ दिया गया था ।”

“रनधा का वकील कौन है ?” – सीमा ने पूछा ।

“मिस्टर राय – फौजदारी के मशहूर वकील जिन्हें नगर का हर आदमी जानता है ।”

“एक बात समझ में नहीं आती कैप्टन कि रनधा ने जहां जहां डाका डाला वह लोग कोई साधारण आदमी नहीं थे । मगर पुलिस में जो रिपोर्टें दर्ज कराई गई हैं उनमें इतनी अल्प रक़म प्रकट की गई है कि मन मानने को तैयार नहीं होता जबकि उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति डाका के बाद अत्यंत ख़राब हो गई है ।”

“यह तो सामने की बात है ।” – हमीद ने हंसकर कहा – “काले धन के बारे में रिपोर्ट दर्ज करा के कौन अपनी गर्दन फंसवता ?”

“ठीक कहा आपने । ” – सीमा ने कहा । फिर बोली – “मैं जिस कारणवश आपसे मिलना चाहती थी वह अभी तक आपको नहीं बताया ।”

“बताने की आवश्यकता भी क्या है । लिख कर दे दीजिये । मैं उसे अपने साथ कब्र में लेता जाऊँगा ।” – हमीद कहकर हंस पड़ा ।

“मेरे पास लिखा हुआ मौजूद है ।” – इस बार सीमा का स्वर अत्यंत अर्थपूर्ण था । उसने अपने पर्स में से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और उसे हमीद की ओर बढ़ाती हुई कहने लगी – “यह मुझे कल संध्या की डाक से मिला है ।”

हमीद ने लिफ़ाफ़ा उलट पलटकर देखा । पता अंग्रेजी में टाइप किया हुआ था । आर.एम.एस. की मुहर लगी हुई थी । डाक में परसों लिफ़ाफ़ा डाला गया था और कल मिल गया था । उसने लिफ़ाफ़ा फाड़कर अंदर से कागज़ निकाला । दबीज़ कागज़ था । उसने कागज़ की तह खोली । ऊपर मोनोग्राम बना हुआ था – ‘फांसी का फंदा’ और उसके नीचे बहुत ही छोटे छोटे अक्षरों में ‘रनधा’ लिखा हुआ था । इबारत हाथ से लिखी हुई थी । ज़नानी लिखावट थी और नीचे ‘वीना’ का नाम लिखा हुआ था ।

“आप पहचानतीं हैं – यह तहरीर वीना ही की है ?” – हमीद ने पूछा ।

“जी हां !”

“तो अब आप क्या कहना चाहतीं हैं ?”

“पहले आप पत्र पढ़ लीजिये । फिर में कहूंगी ।”

“सहेलियां एक दूसरे से खुलकर बातें करती हैं । हो सकता हो वीना ने इसमें आपके किसी रोमांस का उल्लेख किया हो ।” – हमीद ने कहा ।

“संसार की कोई भी नारी या कोई भी पुरुष रोमांस की भावना से खाली नहीं मिलेगा ।”

“मैं आपकी यह बात इसलिये सच नहीं मान सकता कि मेरी नज़रों में एक ऐसा आदमी है ।”

“कौन है वह ?” – सीमा ने पूछा ।

“मेरा चीफ – कर्नल विनोद !”

“मैं इसे नहीं मान सकती । कोई न कोई उनकी प्रिया अवश्य होगी !”

“प्रिया तो नहीं है, प्रिय कहा जा सकता है – मगर वह कौन है इसे भी सुन लीजिये – सांप, पहाड़, नदी, सागर इत्यादि ।”

“कभी कभी सार्विक सिद्धांत को सिद्ध करने के लिये अपवादित का होना आवश्यक होता है ।”

“अरे बाप रे ! इतने गाढ़े गाढ़े शब्द !” – हमीद ने हंसकर कहा । फिर पूछा – “आपने तर्क शास्त्र पढ़ा है या दर्शन शास्त्र ?”

“दर्शन शास्त्र तथा तर्क शास्त्र के साथ साथ मानस शास्त्र भी पढ़ा है ।” – सीमा ने गंभीरता के साथ कहा ।

“या अल्लाह ! रहम करना ।” – हमीद ने छत की ओर देखते हुए ठंडी सांस खींच कर कहा ।

“आपने अभी तक पत्र नहीं पढ़ा ।” – सीमा ने कहा ।

“अब तो पढ़ना ही पड़ेगा ।” – हमीद ने कहा और पढ़ने लगा । लिखा था ।

‘सीमा रानी !

मैं अत्यंत हर्षित हूं । मैं कैद नहीं हूं बल्कि तुम सबसे अधिक स्वतंत्र हूं । तुम तो नगर में ही कार दौड़ाती फिरती हो, मगर मेरा मन जब चाहता है मैं वायु मंडल की ऊँचाइयों पर भी तैरती हूं और जब मन चाहता है सागर की लहरों से भी गुज़रती हूं । वह मुझे बहुत चाहते हैं । यह तो मैं नहीं कह सकती कि वह केवल मेरे ही है किन्तु मुझे इसकी चिंता भी नहीं है । तुम यह अवश्य सोच रही होगी कि आखिर मेरे ‘वह’ कौन है – तो सुन लो – वह जो भी हों मेरे प्रियतम है । बिलकुल उसी प्रकार जैसे एक ‘वह’ तुम्हारे प्रियतम है ।

तुमसे मिलने को बहुत दिल चाहता है । तुम्हारे बिना जीवन सूना सूना सा लगता है । मैं तुमसे मिलने की सोच रही थी मगर अब यह कह रही हूं कि पहले तुम मुझसे मिलो ताकि आगे का प्रोग्राम तय किया जा सके । उसके बाद हम बराबर एक दूसरे से मिलते रहेंगे । तो सुनो – परसों रात में अर्थात शुक्रवार के दिन २६ तारीख को पार्क अविन्यु में बारहवें फ़्लैट में मुझसे मिलो । उस फ़्लैट में मैं अकेली रहूंगी – मिल रही हो न ?

- बहुत सारे प्यार के साथ,

तुम्हारी वीना ।’

‘एक बात याद आ गई ! तुम मेरी मुक्ति के लिये बड़ी कोशिशें कर रही हो इसलिये कह रही हूं कि तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं कैद में नहीं हूं । बस यह समझ लो कि मैं अपनी इच्छा से गई थी । पिताजी के मरने कका मुझे भी दुख है मगर अब हो ही क्या सकता है ।’

हमीद ने ठंडी सांस खींचकर कागज़ और लिफ़ाफ़ा दोनों ही सीमा की ओर बढ़ा दिया फिर बोला ।

“अब अगर आप कहें तो मैं आपको आवांगार इज्म पर बोर करूँ । अर्थात जो कुछ आज है वही जीवन का अर्जित है – भूत और भविष्य बकवास है ।”

“क्या मैं वीना से मिलूं ?” – सीमा ने पूछा ।

“मगर यह भी तो संभव है कि यह किसी प्रकार का जाल हो ।”

“हां – हो सकता है ।”

“तो क्या आप इसमें मेरी सहायता नहीं करेंगे ?”

“अगर आप मेरी सहायता चाहेंगी तो मैं हाज़िर हूं ।”

“वीना ने अपने इस पत्र में रनधा की फांसी का कोई उल्लेख नहीं किया है । इसमें आप किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं ?”

“इससे तो यही नतीजा निकलता है कि वीना को इसका विश्वास है कि रनधा को फांसी नहीं होगी । आपका क्या विचार है ?”

“मैं भी इसी नतीजे पर पहुँची हूं ।” – सीमा ने कहा ।

“क्या आप मुझे यह बताना पसंद करेंगी कि आपका प्रियतम कौन है ?” – हमीद ने कहा । फिर फौरन हो बोला – “क्षमा कीजियेगा, यह आपका निजी मामला है इसलिये मुझे यह प्रश्न नहीं करना चाहिये था मगर घटनाओं की गुत्थी सुलझाने के लिये यह प्रश्न करना पड़ा है ।”

सीमा के सलोने चेहरे पर क्षण भर के लिये लालिमा छ गई । फिर उसने कहा ।

“कैप्टन – संसार का हर पुरुष प्रेयसी की भावनाओं से अपनी कल्पनाओं के रंगमहल को सजाता है और संसार की हर नारी का प्रियतम उसे जीवन का सौंदर्य प्रदान करता है । इसलिये मैं यह कह सकती हूं कि आपकी भी कोई प्रेयसी होगी । मेरा भी कोई प्रियतम है और कभी अवसर आया तो मैं उसका नाम भी बता दूँगी मगर अभी नहीं – आइये अब डान्सिंग हाल में चला जाये ।”

हमीद उठ ही रहा था कि अचानक पूरा डाइनिंग हाल अंधकार में डूब गया । मेजें उलटने लगीं । बर्तन टूटने लगे । चीखें उभरने लगीं और उन्हीं चीखों में उसे सीमा की भी चीख सुनाई दी । उसने बौखलाकर आवाज़ दी ।

“सीमा !”

उत्तर में घुटी घुटी सी आवाज़ सुनाई दी जो कुछ दूर से आती हुई मालूम होती थी । हमीद आवाज़ की ओर दौड़ा । लोगों से टकराया भी । उलझकर गिरा भी मगर आवाज़ की ओर बढ़ता रहा और जब दरवाज़े के निकट पहुंचा तो देखा कि एक आदमी किसी को भुजाओं पर उठाये चला जा रहा था । हमीद के अनुमान के अनुसार वह इस प्रकार ले जाई जाने वाली सीमा ही हो सकती थी ।

शोर हो रहा था – लोग गिरते पड़ते भाग रहे थे ।

“क्या हुआ ? क्या हुआ ?” – कई आवाज़ें उभरीं और किसी ने चीखकर कहा ।

“ऑडिटोरियम में कई लाशें पड़ी हुई हैं । मादाम ज़ायरे को गोली मार दी गई ।”

हमीद यह सब सुन रहा था, मगर उसका दिमाग केवल सीमा में उलझा हुआ था इसलिये वह लोगों को धक्के देता हुआ आगे बढ़ता चला जा रहा था – और जब निकट पहुंचा तो उस आदमी की गुद्दी पर भरपूर हाथ मारा ।

वह आदमी मुंह के बल गिरा । सीमा उसके हाथों से छूटकर दूर जा पड़ी थी । हमीद उसकी ओर बढ़ा मगर उसी समय किसी ने पीछे से उसके सिर पर इतना जोरदार प्रहार किया कि वह संभल न सका और लडखडा कर गिरा पड़ा – फिर क्या हुआ इसका उसे पता नहीं – क्योंकि वह बेहोश हो चुका था ।

हमीद की आँखे खुलीं तो उसके कमरे में सूरज की किरने दाखिल हो चुकी थीं । वह चौंक कर उठ बैठा । ध्यान पूर्वक कमरे को देखने के बाद जब उसे विश्वास हो गया कि यह कमरा उसी का है तो हाथ सिर पर पहुँच गया । कई गूमड़ थे यह मगर न तो उन में दर्द था न किसी प्रकार की जलन या टपक थी ।

फिर रात की घटनायें याद आने लगीं और जब याद वहां पहुँच गई जहां उसके सिर पर प्रहार हुआ था और वह लड़खड़ा कर गिरा था तो वह यह सोचने लगा कि कर्नल विनोद भी वहां अवश्य मौजूद था वर्ना उसे वहां कौन लाता । सीधे सीधे किसी अस्पताल भेज दिया गया होता ।

अंगड़ाई लेकर उठा । कन्धे पर तौलिया डाला । टेलीफोन के पास आया और सीमा के नम्बर डायल किये । थोड़ी देर तक घन्टी बजती रही फिर किसी पुरुष की आवाज आई ।

“हलो ।”

“मैं कैप्टन हमीद बोल रहा हूँ और सीमा से बातें करना चाहता हूँ ।”

कुछ क्षणों तक खामोशी छाई रही फिर सीमा की आवाज आई ।

“हलो – मैं सीमा बोल रही हूँ ।”

“और मैं कैप्टन हमीद हूँ । आपके लिये अत्यन्त निचिन्त था । क्या हुआ था ?”

“मैं इस समय किसी प्रकार की बात नहीं कर सकती ।”

“ठीक है – फिर बातें होंगी ।” – हमीद ने कहा और सम्बन्ध काट दिया । वह समझ गया था की शायद फोन रिसीव करने वाला टेलीफोन के पास ही खड़ा था इसलिये सीमा ने कोई बात नहीं की । अवसर मिलते ही फोन करेगी । बहर हाल इतना इत्मीनान तो हो ही गया था कि सीमा सकुशल है ।

स्नान करके वह नाश्ते की मेज़ पर पहुँच गया । सामान लगा हुआ था । वह कुछ देर तक तो चमचा मेज़ पर खटखटाता रहा मगर जब विनोद नहीं दिखाई दिया तो वह नाश्ता करने लगा मगर कुछ ही क्षण बाद उक्ताहट और एकाकी का शिकार हो गया । गर्दन उठा कर नौकर को ओर देखा फिर कराठ फाड़ कर चीखा ।

“क्या मुझे इस नाश्ते की मेज़ पर अकेले मरना है ?”

“कप.....कप्तान साहब ।” – नौकर डर कर हकलाने लगा ।

“मै पूछ रहा हूँ कि कर्नल साहब कहाँ है ?” – हमीद ने आँखे निकल कर पूछा ।

नौकर ने उत्तर देने के बजाय जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकल कर हमीद के सामने रख दिया ।

“यह क्या है बे ?”

“देख लीजिये साहब ।”

हमीद ने लिफ़ाफ़ा खोल कर अन्दर से कागज़ निकाला । राइटिंग विनोद की था । लिखा हुआ था ।

“बेटे हमीद !