बिना मुद्दे की बकवास (व्यंग्य) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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बिना मुद्दे की बकवास (व्यंग्य)


बिना मुद्दे की बकवास ( व्यंग्य)
नमस्ते ....आदाब....सत्तश्रीअकाल....आज फिर शाम के छः बज रहे है और मैं खवीश हाजिर हुँ बिना मुद्दे की बकवास के साथ । आप को बता दें कि यही एक शो है जिसमें मुद्दे को छोड़ कर बाकी सब बातें होती हैं । आज हमेशा की ही तरह हमारा मुद्दा वही है बेरोजगारी,महंगाई,भ्रष्टाचार और विकास । आज हमारे बीच में सरकार की तरफ से बकवास करने के लिए है सम्मानित जी , विपक्ष से सूरपनखा जी और साथ ही साथ कुछ दिखावे के ऐक्सपर्ट होगें जसलोक जी, नोकमेंट जी और बड़बोले जी ।
तो हम प्रारम्भ करते है मुद्दे को भटकाने के लिऐ सम्मानित जी से " तो सम्मानित जी आपका इन मुद्दों पर क्या विचार है ?" सम्मानित जी ने अपनी जवाबदारी को निभाते हुए प्रारम्भ से ही मु्द्दे को भटकाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया वे बोले "देखिए ये समस्याऐं हमेशा से ही रही हैं। इन समस्याओं पर बोलनें से चुनाव के समय अच्छे वोट मिलते हैं लेकिन अगर हम इन समस्याओं को हिन्दूओं में हल कर दें देश प्रगति करेगा और हम ही है जिसने यह करने का साहस किया है ।..." सूरपनखा जी बीच में कूद पड़ी और बोलने लगीं " आप यहाँ भी हिन्दू-मुस्लिम ले आए और मुस्लमानों का क्या ?" सम्मानित जी बात काटते हुए बोले " देखिए ....देखिए .... हिन्दू शब्द सुन कर ही इनके पेट में दर्द होने लगा । देखो हिन्दू भाईयों ये आपका भला नहीं चाहते ।.... " वे बोले जा रहे थे । सूरपनखा जी भी बोलने लगी "ये मुद्दे से भटका रहे हैं ... हम है उनके हितैषी ......" दोनों बोले जा रहे थे । उनके लिए महत्वपूर्ण यह नहीं था कि उन्हें कोई सुने ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह था कि दूसरे को कोई भी न सुन पाए । खबीश पहले तो मजा लेते रहे फिर चिल्ला-चिल्ला कर दोनों को चुप कराया ।
अब खबीश को दोनों को फिर से लड़वाना था । खबीश बोला " देखिए बहस बहुत ही सार्थक हो रही है । अब यह बताईए कि इन मुद्दों का मंदिर -मस्जिद से क्या संबंध है । पहले सम्मानित जी बोलें ।सम्मानित जी बोले " देखिए मंदिर-मस्जिद पूरी तरह से इन मुद्दों से जुड़े है । वे लाखों बेरोजगार ही तो है जो मंदिर - मस्जिद पर लड़ने मरने को तैयार हैं और आप को बता दें कि मंदिर-मस्जिद में फंसे लोग महंगाई और भ्रष्टाचार की तो बात भी नहीं करते । मंदिर मस्जिद ही है जिसके कारण देश में दूसरी समस्याओं पर लोग धरना,प्रदर्शन और आंदोंलन करने से बचे रहते है.....।" सूरपनखा जी " बस....बस... आप लोगों को भटकाते है । आपके लिए मंदिर-मस्जिद मुद्दा है महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है । " सम्मानित जी चिल्लाते हुए बोल पड़े " देखिए....देखिए देश की आस्था से खिलवाड़ करने वालों को , चोरी करके घर भरने वालों को ,इनके लिए मंदिर-मस्जिद मुद्दा नहीं है । अच्छा इतना ही बता दें कि मंदिर बनाना है या मस्जिद ? " सूरपनखा जी फिर फंस गई बोली" देखिए ये हमारे लिए भी आस्था का प्रश्न है लेकिन यहाँ यह मुद्दा नहीं ..... " सम्मानित जी चीख पड़े "देखिये इनके पास जवाब नहीं है । ये तो जलेबी बना रहीं है ......। " फिर दोनों में सरेआम तू तू मैं मैं होने लगी ।
बिचारे एक्सपर्ट खिड़कियों से झांकते विद्वता का परिचय देने के प्रयास में लगे थे । अब खबीश को उन पर तरस आ ही गया । खबीश बड़बोले जी की ओर इशारा कर के बोले " देखिए इस सार्थक बहस में आप भ्रष्टाचार पर बोलिए ।" बड़बोले जी तैयारी के साथ आए थे बोलने लगे " देश में महंगाई की दर.... प्रतिशत है ,बेरोजगारी की दर ....प्रतिशत है और भ्रष्टाचार को नापने का कोई पैमाना नहीं है ....। " खबीश बीच में ही बोल पड़े " बड़बोले जी हमारा दर्शक मनोरंजन के लिए बैठा है और आप है कि उसे आंकड़ों में उलझा रहे है । साफ-साफ बताईए कि इन समस्याओं का हिन्दू- मुस्लमान से क्या संबंध है ? " बड़बोले जी की विद्वता की सीमा के बाहर का प्रश्न होने के कारण वे चुप ही रहे । खबीश जी ने नोकमेंट जी से राय मांगी तो वे बोले " देखिए हिन्दू मुस्लिम से देश का भला ही हो रहा है । देश की सारी योजनाओं को धर्म, जाति और साम्प्रदाय में ही चलाना चाहिए । इससे वोटों का गणित सही रहता है । " अब बड़बोले जी को बुरा लग गया वे बोले " ये क्या बात हुई इससे तो देश धर्म, जाति और सम्प्रदायों में बंट जाएगा । सम्मानित जी और सूरपनखा जी को कोई समझ नहीं है । " अब विद्वान भी आपस में लड़ने लगे ।
सूरपनखा जी और सम्मानित जी भी चिल्लाने लगे बड़बोले ने उनके विषय में जो आपत्तिजनक शब्द कहें हैं वापस लें। खबीश भी चिल्ला-चिल्ला कर सब को शांत करने का प्रयास करता रहा ।
और अंत में खबीश संयत मुद्रा में " तो यह था हमारा शो बिना मुद्दे की बकवास । यह शो दर्शकों के मनोरंजन के लिए था । इसमें कही गई किसी भी बात को दर्शक गंभीरता से न लें । कल फिर मिलेंगे किसी नए मुद्दे में हिन्दू -मुस्लिम तलाशने । नमस्कार ..... आदाब...... सतश्रीअकाल ।
आलोक मिश्रा