खौलते पानी का भंवर - 5 - मसीहा Harish Kumar Amit द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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खौलते पानी का भंवर - 5 - मसीहा

मसीहा

आखिर मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ देने का फैसला उसने कर ही लिया है. इसके साथ ही संतुष्टि का एक भाव उसके चेहरे पर तैरने लगा है. पिछले आठ-दस दिनों से वह बड़े असमंजस की स्थिति में झूल रहा था कि मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ा जाए या नहीं? मकान छोड़ने की बात अचानक ही सामने आई थी, वरना उसका इरादा फिलहाल तो यहाँ से जाने का था नहीं. वह तो आठ-दस दिन पहले उसका दोस्त, अनिल, एक इम्तिहान देने दिल्ली आया और एक रात उसके पास ठहरा, तभी यह चक्कर शुरू हुआ. अनिल ने तो पहली बार उस घर में आने के दो-तीन घंटे बाद ही उससे कह दिया था कि जितनी जल्दी हो सके उसे इस मकान से अपना बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए. सुनकर पहले तो बात उसके गले से उतरी ही नहीं थी. यह तो वह ख़ुद भी महसूस करता था कि मिसेज़ पुरी अच्छे चाल-चलन की औरत नहीं, मगर इसके बावजूद इतनी जल्दी उनके घर को छोड़ देने की बात उसने सोची नहीं हुई थी.

सिर्फ़ अढ़ाई महीने पहले ही तो वह इस घर में आया था - बतौर पेइंग गैस्ट. इससे पहले वह अपनी शादीशुदा दीदी के यहाँ रहा करता था. करीब दो साल पहले जब से दिल्ली में उसकी नौकरी लगी थी, वह वहीं रह रहा था. लेकिन दीदी के घर में रहना उसे बड़ा अटपटा-सा लगता था. हर वक़्त एक परायेपन का-सा एहसास उसे सालता रहता. इस बात के बावजूद कि खाने-पीने के खर्च के एवज़ में कुछ रकम वह हर महीने दीदी के ससुराल वालों को दिया करता था, उसे हरदम यही महसूस होता रहता जैसे वह उन लोगों पर बोझ है और वे उसे अपने यहाँ रखकर उस पर कोई एहसान कर रहे हैं. इसलिए उसने किराए पर कमरा लेकर अलग रहने का फैसला कर लिया था.

उन दिनों उसके लिए किसी सही कमरे की तलाश ज़ोरों से जारी थी, लेकिन मनपसंद कमरा मिल नहीं पा रहा था. एक तो ख़ुद उसकी अपनी कुछ शर्तें थीं, जैसे कि उस घर का माहौल ऐसा होना चाहिए जिसमें वह आराम से पढ़ाई कर सके, कमरा बिल्कुल अलग-थलग होना चाहिए - यह नहीं कि मकान मालिक के घर का कोई जना जब चाहें मुँह घुमाकर देख ले कि वह क्या कर रहा है, क्या नहीं, वगैरह-वगैरह. इसके अलावा उसकी दीदी के ससुरालवाले भी उसे एकदम से किसी जगह पर पटक नहीं देना चाहते थे.

उन्हीं दिनों एक बार उसकी दीदी की ननद ने मिसेज़ पुरी से इस बारे में बात की, तो उन्होंने बताया कि उनके घर का बारजा (घर के शुरू का बरामदेनुमा कमरा) ख़ाली है और वे उस लड़के को अपने यहाँ पेइंग गैस्ट के तौर पर रखने को तैयार हैं. बाद में वह बारजा देखने गया था, लेकिन ऐसी जगह रहना उसे कतई पसंद नहीं, यह बात घर आकर अपने जीजा जी को उसने बता दी थी. उसके बाद मिसेज़ पुरी ने सुझाव दिया था कि वह उनके स्टोर में रह ले, मगर स्टोर को वे भी साथ में इस्तेमाल करती रहेंगी. वैसे तो स्टोर में रहने की बात वह न ही मानता, पर चूंकि किसी सही कमरे का इन्तज़ाम हो नहीं पा रहा था, इसलिए उसने वहाँ रहने की बात मान ली थी. मिसेज़ पुरी के यहाँ रहने का एक फायदा यह भी था कि उसे खाना बना-बनाया मिल जाना था. वरना वह आदमी जिसने कभी चाय का कप तक न बनाया हो, एकदम से खाना बनाना कैसे शुरू कर सकता है. बाज़ार का खाना तो उसके गले के नीचे उतरता ही नहीं था. इस तरह मिसेज़ पुरी वाला इन्तज़ाम हो गया था.

मिसेज़ पुरी और उसकी दीदी की ननद एक ही दफ़्तर में काम करती थीं. मिसेज़ पुरी करीब पैंतालीस साल की अधेड़ उम्र की औरत थीं, पर ख़ूबसूरत वे इस उम्र में भी काफ़ी लगती थीं. हाँ, मोटी भी वे बहुत थीं.

अगले महीने के पहले इतवार को वह मिसेज़ पुरी के घर आ गया था. घर में वे अकेली ही रहती थीं. शादी के दो-अढ़ाई साल बाद ही उनके पति की मौत हो गई थीं. उनकी एक लड़की ही थी, जिसकी शादी हो चुकी थी. वह भी दिल्ली में ही रहती थी. उनकी एक धेवती भी थी - चीना.

यूँ मिसेज़ पुरी के घर के एक कमरे में दो लड़के और भी रहते थे - जगदीश और नरिन्दर. मिसेज़ पुरी ने उसे बताया था कि उन लड़कों का तो वहाँ रहना-न रहना एक बराबर है क्योंकि दोनों तकरीबन टूर पर ही रहते हैं. दस-पन्द्रह दिन बाद कभी एक जना आता है, एक-दो दिन रूकता है और फिर चला जाता है. ऐसा तो कहीं महीनों बाद होता है कि उस कमरे में वे दोनों इकट्ठे हुए हों.

मिसेज़ पुरी का घर छोड़ने का फैसला करने के बाद नई जगह के लिए दौड़-धूप करनी उसने शुरू कर दी है. अपने दो-तीन दोस्तों को भी जल्दी-से-जल्दी किराए के कमरे का इन्तज़ाम करने के लिए उसने कह दिया है. दीदी के घर में उसने इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं बताया. उसे यही समझ नहीं आ रहा कि वह उन्हें मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ने की वजह क्या बताये.

उसे उम्मीद थी कि अगले महीने के आख़िर तक ही किसी कमरे का बन्दोबस्त हो पाएगा, लेकिन दो-तीन दिन बाद ही दफ़्तर में उसके एक दोस्त का फोन आ गया है कि उसके लिए कमरे का इन्तज़ाम हो गया है और वह किसी भी दिन आकर कमरा देख सकता है. फोन पर तो उसने सुशील को हामी भर दी है कि वह उसी शाम आ जाएगा, पर उसके मन में यह उथल-पुथल लगातार मची हुई है कि कमरा देखने वह जाए या नहीं.

यह बात वह अच्छी तरह समझता है कि मिसेज़ पुरी का चाल-चलन अच्छा नहीं, मगर इसके बावजूद इस बात से भी इन्कार नहीं कर सकता कि जो स्नेह, जो अपनापन और जो प्यार उसे उनसे मिला है, वह अपनी दीदी के घर में रहते हुए वह कभी महसूस नहीं कर पाया था. मिसेज़ पुरी उसे कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने देती थीं. सुबह उठता तो ब्रश करने के फौरन बाद बेड-टी तैयार मिलती. दफ़्तर जाने से पहले नाश्ता और साथ ले जाने के लिए दोपहर का खाना बना होता. यही हाल शाम का भी था. मिसेज़ पुरी के मकान में आने से पहले वह उन्हें जानता तक नहीं था, पर यहाँ आने के दो-चार दिन बाद से ही उसे लगने लगा था मानो इस घर में वह बरसों से रह रहा हो.

ऐसी बात नहीं कि मिसेज़ पुरी के बुरे चाल-चलन के बारे में उसे अनिल से ही पता चला था. ख़ुद उसे भी इस बारे में कुछ आभास पहले से ही था. एक दिन स्टोर में कोई चीज़ ढूँढते-ढूँढते अचानक उसे उनके नाम कुछ दिन पहले डाक से आया एक ख़त मिला था. लिफाफे के बाहर भेजनेवाले का नाम-पता कुछ नहीं लिखा हुआ था. इससे उसे उत्सुकता हो आई थी. घर में उस वक़्त और कोई नहीं था. आज तक उसने शायद ही कभी चोरी-छिपे किसी और का ख़त पढ़ा था लेकिन उस दिन उसे न जाने क्या सूझी कि उसने वह चिट्ठी लिफाफे से निकाल ली और उसे पढ़ने लगा था.

चिट्ठी में किसी ने लिखा हुआ था कि वह मिसेज़ पुरी के सारे काले कारनामे जानता है. उसे उनकी दिन-रात की रिपोर्ट मिलती रहती है. वे अपने इन कारनामों को बिल्कुल छोड़ दें और वह जगह भी जहाँ वे रहती हैं. आगे लिखा था कि यह मेरी आखिरी वार्निंग है और अगर उन पर इसका भी कोई असर न हुआ तो वह और तो कुछ नहीं करेगा, बस उनकी लड़की को हमेशा के लिए छोड़ देगा.

ख़त की आख़िरी लाइन से उसने अंदाज़ा लगाया था कि इसे मिसेज़ पुरी के दामाद ने ही लिखा होगा. तभी अचानक यह बात भी उसकी समझ में आ गई थी कि मिसेज़ पुरी के दामाद जब-जब वहाँ आते थे, इतने उखड़े-उखड़े-से क्यों रहते थे.

उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद उसकी उत्सुकता काफ़ी बढ़ गई थी. उस दिन के बाद से उसने मौके देखकर धीरे-धीरे सारे स्टोर की तलाशी लेनी शुरू कर दी थी. तब उसे इसी किस्म के एक-दो ख़त और भी मिले थे. लिखावट गवाह थी कि इन्हें भी मिसेज़ पुरी के दामाद ने ही लिखा था. इसके अलावा किन्हीं पत्रिकाओं से काटी गई कुछ अत्यंत अश्लील फोटोज़ भी उसे शैल्फ पर बिछाए गए अख़बार के नीचे से मिली थीं.

इसके बाद उसने मिसेज़ पुरी की गतिविधियों पर गहरी नज़र रखनी शुरू कर दी थी. उनका चरित्र अच्छा नहीं - यह बात उसकी समझ में आने लगी थी. घर में आए किसी भी मर्द के सामने, चाहे वह धोबी या अख़बारवाला ही क्यों न हो, उनका आँचल अपने-आप ढलकने लगता. ब्लाउज़ वे इतने निचले गले के पहनतीं कि कुछ पूछिये मत. साथ ही आँखों में वासना का ऐसा भाव हमेशा झलकता रहता कि अच्छा-भला आदमी भी फिसलने लगे.

इसके अलावा यह बात उसे और भी ज़्यादा शक में डाल देती थी कि मिसेज़ पुरी किसी-किसी रात को घर से ग़ायब रहा करतीं. सुबह दफ़्तर जाते वक़्त वह उन्हें अच्छा-भला दफ़्तर के लिए तैयार होते छोड़कर जाता, किन्तु शाम को लौटने पर घर के दरवाज़े पर झूलता ताला देखकर समझ जाता कि वे अभी तक लौटी नहीं. वैसे तो उसके लौटने से आधा-पौना घंटा पहले ही वे घर वापिस आ जाया करती थीं. डुप्लीकेट चाबी से ताला खोलकर वह अंदर आ जाता. आधे-पौने घंटे बाद पड़ोस की बूढ़ी औरत उसे चाय-बिस्कुट दे जाती और साथ ही इस तरह का कोई संदेशा भी, जैसे कि शीला (मिसेज़ पुरी) की लड़की के यहाँ से फोन आया था कि चीना की तबीयत अचानक खराब हो गई है, इसलिए वे (मिसेज़ पुरी) दफ़्तर से सीधे ग्रेटर कैलाश चली गई हैं. कल उसके दफ़्तर जाने से पहले सुबह-सुबह वे आ जाएंगी.

कई बार तो पड़ोसवालों को भी मिसेज़ पुरी के बारे में कुछ पता नहीं होता था. ऐसे में कभी-कभी तो रात के नौ-दस बजे तक वे लौट आतीं और कभी पड़ोसियों के घर उनका फोन आ जाता कि आज शाम को ऑफिस में उनकी बहन आ गई थी, जहाँ से वे सीधे ही उसके साथ शॉपिंग करने करौलबाग़ चली गई थीं. अब वे उसके घर से बोल रही हैं और कल सुबह-सुबह घर वापिस आ जाएंगी.

उसे समझ नहीं आता था कि हर पाँच-छह दिनों बाद चीना की तबीयत अचानक कैसे ख़राब हो जाया करती थी और वह भी सिर्फ़ एक दिन के लिए. वही चीना जब अपनी मम्मी के साथ इस घर में हफ़्ता-हफ़्ता लगा जाया करती, तब तो उसकी तबीयत हमेशा ठीक रहा करती थी. और फिर हर सातवें-आठवें दिन मिसेज पुरी अपनी बहन के साथ शॉपिंग करने कैसे चली जाया करती थीं, जबकि वे सिर्फ हैड-क्लर्क ही थीं. और यह भी कि शॉपिंग करने के बाद अपनी बहन को अपने घर में न लाकर वे ख़ुद उसके साथ इतनी दूर, राजौरी गार्डन, कैसे चली जाया करती थीं, जबकि करौल बाग़ उनके घर के बिल्कुल पास ही था. इसके अलावा ऐसी ‘शॉपिंग्स’ के दौरान ख़रीदी हुई कोई चीज़ तो मिसेज़ पुरी के पास कभी नज़र आती नहीं थी.

इन सब बातों से उसका यह शक़ विश्वास में बदलता गया था कि मिसेज़ पुरी वाकई कोई शरीफ़ औरत नहीं हैं. किन्तु फिर भी उसने उनके सामने यह कभी ज़ाहिर नहीं होने दिया था कि उसे उनके चाल-चलन पर कोई संदेह हो गया है.

यह सब अगर उनका निजी मामला रहता तब तो उसे ज़्यादा तकलीफ़ न ही होती. वह तो इस घर में पेइंग गैस्ट के तौर पर आया था. उसे तो बस इसी से मतलब था कि सुबह-शाम उसे सही ढंग से खाना मिल जाया करे और उसकी पढ़ाई ठीक तरह से हो जाया करे. मगर वही मिसेज़ पुरी जो शुरू-शुरू में उसके इस घर में आने पर कहा करती थीं कि भगवान ने उसे उनका बेटा बनाकर भेजा है, अब उसके साथ और तरह का बर्ताव करने लगी थीं.

खाने की थाली पकड़ाते वक़्त वे बेवजह उसका हाथ छू लेतीं. वह स्टोर में बिस्तर पर बैठकर पढ़ रहा होता, तो टेबल लैम्प बुझाकर ट्यूब जला देतीं और उसके सिर और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहने लगतीं, ‘‘रवि, इतना ज्यादा मत पढ़ा करो. सेहत ख़राब हो जाएगी. फिर तुम्हारे घरवाले कहेंगे कि मिसेज़ पुरी कुछ खिलाती-पिलाती नहीं हैं.’’ ऐसे क्षणों में वह साफ़-साफ़ महसूस किया करता कि मिसेज़ पुरी की इन हरक़तों में वात्सल्य का नहीं, बल्कि वासना का भाव ही होता था. जवाब में वह बस चुप्पी साधे रखता. तब उसकी चारपाई के पायताने पर तहाकर रखी हुई रजाई पर वे अधलेटी-सी हो जातीं ओर उससे इधर-उधर की बातें करना शुरू कर देतीं. कभी उससे कहतीं, ‘‘अपना हाथ दिखाओ, मुझे हाथ देखना आता है.’’ कभी कहतीं, ‘‘रवि, बुखार-बुखार-सा लग रहा है, जरा हाथ लगाकर देखना कि कितना है?’’ कभी कहने लगतीं, ‘‘रवि, आज तो टाँगें बड़ी दर्द कर रही हैं, जरा दबा दो न!’’

मिसेज़ पुरी की इन बातों में छिपे मतलब को वह खूब अच्छी तरह समझ रहा होता था. नैतिकता के मामले में वह बहुत ऊँचे दर्ज़े का आदमी था. इस बात पर उसे हमेशा नाज़ रहा था कि औरतों के सामने वह आम लोगों की तरह पिघलने नहीं लगता था. मगर इसके बावजूद था तो वह जवान ख़ून ही न. मिसेज़ पुरी के इन हथकंडों के आगे कभी-कभी उसका दिल भी घुटने टेक देता. ऐसे ही दो-चार मौकों पर उसने उन्हें इधर-उधर हाथ लगा भी दिए थे. लेकिन इससे आगे बढ़ने की हिम्मत उसकी नहीं हुई थी. अपनेआप पर रखे भारी नियंत्रण ने उसे और कुछ नहीं करने दिया था.

इसके अलावा इस बात का खटका भी हमेशा लगा रहता कि पड़ोस से कोई आ न जाए. मिसेज़ पुरी के पड़ोसियों का तो यह हाल था कि उनके घर का कोई-न-कोई जना आम तौर पर इस घर में ही मौजूद रहता. यहाँ तक कि रात को सोते वक़्त भी बारजे में, जहाँ मिसेज़ पुरी सोया करती थीं, उनके घर की कोई औरत या बच्चा जरूर सोया करता.

जिस-जिस दिन वह मिसेज़ पुरी से कोई उल्टी-सीधी हरक़त कर बैठता, सारा-सारा दिन उसका मन ग्लानि से भरा रहता. अपनेआप से उसे नफ़रत होने लगती. अपनी ज़िन्दगी का मकसद उसने बहुत ऊँचा रखा हुआ था. वह तो और-और पढ़-लिखकर बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता था. लेकिन यह सोचकर कि वह तो इस पैंतालीस साल की अधेड़, मोटी औरत के चक्कर में फँसता जा रहा है, उसे बेहद अफसोस होने लगता. मिसेज़ पुरी जिस तरह उसे ढील दे रही थीं, उससे तो यह साफ़ ज़ाहिर था कि अगर वह चाहे तो उनसे शारीरिक संबंध भी बड़े आराम से बना सकता है. लेकिन यह डर भी उसके दिमाग़ में लगातार चक्कर काटता रहता कि वह औरत जो हर मर्द के सामने लार टपकाने लगती है, न जाने कितने घाटों का पानी पी चुकी होगी और न जाने कौन-कौन-सी गुप्त बीमारियाँ इसे लगी होंगी. उसे अपनी ज़िन्दगी, अपना कैरियर ऐसी औरत के लिए तबाह नहीं कर देना चाहिए. अगर वह ऐसे हालात में रहेगा, तो ज़रूर मिसेज़ पुरी से शीरीरिक संबंध बना बैठेगा. फिर अपना सारा वक़्त और पैसा उसे गुप्त रोगों के इलाज में ही गँवा देना पड़ेगा. ऐसे में बड़ा आदमी बनने का उसका सपना किधर जाएगा? मिसेज़ पुरी का क्या है, वे तो, हो सकता है, पहले से ही कुछ दवाई-ववाई इस्तेमाल करती हों.

और ऐसे में उसने एक फैसला किया था. उसने तय किया था कि मिसेज़ पुरी के साथ शारीरिक संबंध बनाना तो क्या, वह उनके साथ कभी उल्टी-सीधी हरक़त भी नहीं करेगा. यहाँ तक कि वह उनके साथ कभी ऐसी-वैसी बातचीत तक नहीं किया करेगा. वह उन्हें दिखा देता कि दुनिया में शराफ़त अभी मरी नहीं, ज़िन्दा है. अपनी तरफ़ से वह भरसक कोशिश करेगा कि उन्हें समाज के लुटेरों से बचा सके. पहले ही वे बहुत लुट चुकी हैं, कम-से-कम अब और तो न लुटें. इस मक़सद को भी उसने अपनी ज़िंदगी के दूसरे मक़सदों में शामिल कर लिया था.

इस घर में रहते हुए यह बात भी उसे बहुत खटका करती कि जब भी कोई पहली बार वहाँ आता, एक अजनबी नौजवान को वहाँ रहते हुए देखकर यह ज़रूर पूछा करता कि यह लड़का कौन है. जवाब में मिसेज़ पुरी किसी को सच बतातीं, किसी को उसे अपनी ननद का लड़का बतातीं और किसी को कुछ और. ऐसे मौकों पर वह अपनेआप को शर्म के मारे ज़मीन में गड़ता हुआ महसूस करते लगता. उसे लगने लगता जैसे इस घर में रहकर वह कोई ज़ुर्म कर रहा हो. अगर वह यहाँ किसी अलग कमरे में बतौर किराएदार रह रहा होता, तब तो और बात होती. लेकिन एक तो वह पेइंग गैस्ट के तौर पर यहाँ रह रहा था और दूसरे, वह उस कमरे में रह रहा था जिसे मिसेज़ पुरी अब भी पहले की ही तरह इस्तेमाल कर रही थीं.

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मिसेज़ पुरी से यह कहने की उसकी हिम्मत हो नहीं पा रही कि वह अब अलग कमरा लेकर रहेगा और कमरे का इन्तज़ाम उसने कर भी लिया है. दरअसल इस थोड़े से अरसे में ही वह मिसेज़ पुरी से ऐसी आत्मीयता महसूस करने लगा है कि उसका दिल उन्हें अकेला छोड़कर जाने को मान ही नहीं रहा. हालाँकि यह बात वह काफ़ी हद तक समझता है कि मिसेज़ पुरी उसके सामने बहुत से ढोंग किया करती हैं, जैसे कि उसका बहुत ख़याल रखने को ढोंग, अपने बहुत शरीफ़ होने का ढोंग, वगैरह-वगैरह. कई बार तो वह उनके झांसे में आ ही जाता है. कई-कई बार वे बातें करते-करते रोने लगती हैं. दरअसल वे कुछ ज़्यादा ही भावुक हैं. कई बार तो उसे उनका यह रोना असली लगता है, पर कई बार उसे लगने लगता है कि मिसेज़ पुरी के ढोंग को वह समझ रहा है. लेकिन इन सब के बावजूद अपने दिल को उनका मकान छोड़ कर जाने के लिए वह तैयार कर नहीं पा रहा.

उसे कुछ सूझ नहीं रहा कि वह क्या करे? वह इसी पसोपेश में पड़ा है कि अलग कमरा लेनेवाली बात मिसेज़ पुरी को कहे भी या नहीं. और अगर कहे भी तो इसकी वजह क्या बताए. ज़रा गहराई से सोचता है तो उसे लगने लगता है कि यह जगह उसे छोड़ ही देनी चाहिए. उसके कानों में उसके दोस्त, अनिल, के ये वाक्य गूँजने लगते हैं, ‘यार, तूने दुनिया अभी पूरी तरह देखी नहीं. यह औरत पता है, क्या है? पैसा फेंक तमाशा देख! तू क्योंकि इसकी जान-पहचान वालों के थ्रू आया है, इसलिए इसने अभी तक तुझे बख्श रखा है, वरना तुझे भी कभी का रगड़ दिया होता. मेरी सलाह मान तो जितना जल्दी हो सके यहाँ से बोरिया-बिस्तर बाँध के रफूचक्कर हो जा. कल को तेरे जिस भी रिश्तेदार या दोस्त को पता चलेगा कि तू इस तरह की औरत के पास रह रहा है, तो वह क्या सोचेगा? वह तो यही समझेगा न कि तू भी ऐसा ही आदमी है. मैं जानता हूं कि तू शरीफ़ आदमी है. इस तरह की औरत के पास रहकर भी तू कुछ नहीं करेगा. यही बात तुझे करीब से जाननेवाले और दो-चार लोग भी समझ सकते हैं. लेकिन बाकी लोग तो ऐसा नहीं समझते न! वे तो इसका उल्टा मतलब ही निकालेंगे. इसलिए मेरी बात मान और जल्दी ही यहाँ से फूटने की कोई प्लान बना ले.’

अनिल की कही बातें याद आते ही यह जगह छोड़ देने का उसका फैसला और भी पक्का होने लगा है.

लेकिन जैसे ही वह अपने दिल को ज़रा-सा टटोलता है, उसे लगने लगता है कि अगर वह मिसेज़ पुरी को अकेला छोड़कर चला गया तो यह उनके साथ बहुत बड़ी नाइन्साफ़ी होगी. उसकी कल्पना में वे दृश्य घूमने लगते हैं कि वह यह घर छोड़कर चला गया है और मिसेज़ पुरी शाम को बिल्कुल अकेली, उदास और चुपचाप बैठी हैं, न खाने-पीने की सुध है और न कपड़े बदलने का होश. उसके इस घर में आने की वजह से ही तो उनकी ज़िंदगी कुछ खुशगवार हो गई थी, वरना उससे पहले तो दफ़्तर के बाद का सारा वक़्त वे कभी अपनी बेटी के घर, तो कभी अपने किसी भाई या कभी अपने किसी दूसरे रिश्तेदार के यहाँ गुज़ारा करती थीं. यह सब उसे मिसेज़ पुरी ने ही बताया था. उसे लगता है कि अगर वह यहाँ से चला गया, तो अपनेआप को सारी ज़िन्दगी माफ़ नहीं कर पाएगा. चाहे ज़ुबान से ही सही, अगर वे उसे अपना बेटा कहती हैं, तो उसे भी चाहिए कि बेटा होने के फर्ज़ को निभाए और ऐसी हालत में उन्हें छोड़कर न जाए.

पर अनिल की बातें उसके इस ख़याल को न जाने कहाँ उड़ाकर ले जाती हैं और यहाँ से चले जाने की बात ही उसे ज़्यादा वज़नदार लगने लगती हैं. मगर निश्चय के इस बिंदु पर पहुँचने के बाद उसे यह समझ आना बंद हो जाता है कि अलग से कमरा लेने की बात मिसेज़ पुरी से कहने की हिम्मत जुटाई कैसे जाए. और मान लो, अगर किसी तरह जुटा भी ली जाए तो ऐसा कौन सा बहाना बनाया जाए कि उसका काम भी हो जाए ओर वे नाराज़ भी न हों.

आख़िर उसने सोचा है कि 31 तारीख की शाम को दफ़्तर से वापिस आने के बाद वह मिसेज़ पुरी को यहाँ से चले जाने की बात बता देगा और फिर अपना सामान समेटकर उसी शाम यहाँ से चल देगा. अपना सामान वह पहले से ही इस तरह सैट करके रख लेगा कि उसे समेटने में उसे एकाध घंटे से ज़्यादा का वक़्त न लगे.

यहाँ से चले जाने की यही वजह बताना उसे सही लग रहा है कि अनिल ने उससे कहा था कि उसका किसी औरत के पास रहना ठीक नहीं. और कोई बहाना उसे जंच नहीं रहा. यहाँ उसे न खाने-पीने की कोई तकलीफ़ है, न एकांत न होने की वजह से पढ़ाई में बाधा पड़ने की कोई बात है और न दफ़्तर दूर होने का बहाना बनाया जा सकता है.

उसे डर है कि अगर उसने मिसेज़ पुरी को 31 तारीख से पहले अपने जाने की बात बता दी, तो वे कहीं कोई गड़बड़ न कर दें क्योंकि उसके चले जाने में उन्हें नुकसान-ही-नुकसान थे. सबसे पहली बात तो वे फिर से अकेली हो जाएंगी. इसी वजह से ही तो उन्होंने उसे पेइंग गैस्ट बनाने के लिए हामी भरी थी. दूसरे उन दो हज़ार रुपयों में से, जो वह उन्हें अपने खाने-पीने के खर्च के एवज़ में देता है, उसे लगता है कि वे सिर्फ़ आधे पैसे ही उस पर खर्च किया करती हैं. और स्टोर के किराए के पन्द्रह सौ रुपए तो मिसेज़ पुरी के लिए मुफ़्त की कमाई है, क्योंकि स्टोर को तो वे अब भी पहले की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. इस तरह उसके यहाँ से चले जाने से हर महीने साढ़े तीन हज़ार रुपये की सीधी चपत भी लगेगी.

तीसरे, अगर वह उन्हें अपने जाने की वजह किसी औरत के पास न रहना बताए तो वे फौरन समझ जाएँगी कि उसे उनके चाल-चलन के बारे में पता चल गया है और इसी वजह से वह यहाँ से जा रहा है. उसके इस तरह चले जाने में उनकी ही बदनामी होगी. इसलिए उसे डर लग रहा है कि अपनी बदनामी से बचने के लिए वे कहीं उस पर उनके साथ कोई उल्टी-सीधी हरकत करने का आरोप न लगा दें, ताकि वे कह सकें कि यह लड़का तो लुच्चा-बदमाश है, इसलिए मैं इसे अपने घर में नहीं रखना चाहती. ऐसे में उनकी बात का विश्वास सभी कर लेंगे, मगर उसकी बात किसी ने नहीं सुननी.

इसी वजह से उसने अपनी दीदी के घर में भी अपने मकान बदलने की बात नहीं बताई. उसे डर है कि बात उड़ते-उड़ते कहीं मिसेज़ पुरी के कानों तक न पहुँच जाए.

लेकिन 31 की शाम को मकान छोड़ने की बात कहने पर मिसेज़ पुरी उसी वक़्त उसे जाने देंगीं, इसमें उसे शक है. उसे साफ़-साफ़ लग रहा है कि वे उसे ऐसा हरगिज़ नहीं करने देंगीं. दूसरे चूँकि वे बहुत भावुक हैं, इसलिए उसे यह डर भी लग रहा है कि इस अप्रत्याशित बात को वे बर्दाश्त कर भी पाएंगीं या नहीं. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

मिसेज़ पुरी हाई ब्लड प्रेशर की मरीज़ हैं, इसलिए कई बार बातों-बातों में ग़ुस्से में आकर कोई-छोटी-मोटी चुभनेवाली बात उसे कह दिया करती हैं. आखिर उसने उनकी इन्हीं बातों का सहारा लेने की सोची है और यूँ ज़ाहिर करना शुरू कर दिया है, जैसे उनकी इन बातों का उसने बहुत बुरा मनाया है और वह उनसे सख़्त नाराज़ हैं. अब उसने घर में हमेशा चुप-चुप-सा रहना शुरू कर दिया है. मिसेज़ पुरी से वह अब नाममात्र की ही बात किया करता है. वह उन्हें यह जता देना चाहता है कि उनके पास रहकर वह ख़ुश नहीं है. इस तरह उसे यह घर छोड़कर जाने का एक ठोस बहाना मिल जाने की उम्मीद है.

तीन-चार दिन तो ऐसे ही चला है. उसकी योजना तो इस नाटक को और भी आगे चलाने की थी, लेकिन एक रात खाने की थाली पकड़ाते वक़्त मिसेज़ पुरी ने उसके सिर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया है और रूआँसी आवाज़ में कहने लगी हैं, ‘‘लड़के की तरह आए हो रवि, तो लड़के की तरह रहो भी न!’’ यह सुनते ही एकदम से उसका रोना छूट गया है. वह हिचकियाँ लेकर रोने लगा है. वे हैरान-सी उसक कंधों पर हाथ रखे उसके रोने की वजह पूछने लगी हैं.

‘‘कुछ नहीं, कोई बात नहीं.’’ बाएं हाथ से आँसू पोंछते हुए उसने खाना खाना शुरू कर दिया है. खाने के दौरान मिसेज़ पुरी के इस बारे में एक-दो बार और पूछने के बावजूद उसने उन्हें कुछ नहीं बताया.

किसी तरह उसने खाना ख़त्म किया है. अब वे उससे उसके रोने की वजह फिर से पूछने लगी हैं. और तब उसने डर और ग़ुस्से से भरी काँपती हुई आवाज़ में उन्हें बता दिया है कि महावीर नगर में उसने अपने लिए एक कमरा देख लिया है, क्योंकि ऐसा करने के लिए उसे कहा गया था. मिसेज़ पुरी के और कुरेदने पर उसने उन्हें बताया है कि कुछ दिन पहले जब अनिल यहाँ आया था तो उसने सलाह दी थी कि उसका इस तरह एक औरत के पास रहना ठीक नहीं. उसने वापिस हिसार जाकर उसके घरवालों को भी यह बात कह दी थी. पिछले दिनों जब वह हिसार गया था तो उसके घरवालों ने उससे कहा था कि वह मिसेज़ पुरी वाली जगह छोड़ दे और कहीं और कमरा ढूँढ ले. इसलिए उसने अपने लिए अलग से कमरा तलाश कर लिया है और एडवांस के तौर पर एक महीने का किराया भी दे दिया है.

यह सुनते ही मिसेज़ पुरी एकदम से उबल पड़ी हैं कि यहाँ पर उसे क्या मुश्किल है जो वह यह घर छोड़कर जाना चाहता है. औरत के साथ न रह सकनेवाली बात तो सिर्फ़ एक बहाना है. असली बात तो कुछ और है जो वह उनसे छुपा रहा है. और मान लो, अगर वह औरत-वाली वजह से ही यहाँ से जा रहा है तो कोई फैसला करने से पहले उसे यह तो सोचना चाहिए था कि क्या वह किसी सोलह साल की लड़की के यहाँ रह रहा है जो उसका किसी औरत के साथ रहना ठीक नहीं.

ख़ुद उसकी हालत भी बड़ी अजीब-अजीब-सी हो रही है. उसका दिल तो यही कहता है कि उसे यहीं रहना चाहिए, यह जगह छोड़कर नहीं जाना चाहिए. लेकिन उसका दिमाग़ उसे लगातार यही सलाह दे रहा है कि यह जगह हर हालत में छोड़ देनी चाहिए.

इस बारे में मिसेज़ पुरी से वह कुछ कह भी नहीं पा रहा. बस उसकी आँखें लगातार बरस रही हैं. उसका यह हाल देखकर मिसेज़ पुरी उससे कहने लगी हैं, ‘मुझे तो कुछ समझ नहीं आता रवि कि तुम किस वजह से यहाँ से जा रहे हो. इधर ख़ुद ही कहते हो कि यह जगह छोड़के जा रहा हूँ और उधर रो-रोकर आँखें लाल किए दे रहे हो. अगर तुम जाना नहीं चाहते तो क्या अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ नहीं चल सकते?’

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इन दिनों मिसेज पुरी ने उसके साथ कुछ ज्यादा ही ‘स्नेहभाव’ प्रकट करना शुरू कर दिया है. अकेले में वे उसके सिर और पीठ पर हाथ फेरने लगती हैं, उसे थपकियाँ देने लगती हैं, उसके बाल सहलाने लगती हैं, और कभी-कभी छाती से लगाकर भींच-सा भी लेती हैं. उनकी इन हरकतों में उसे उससे बिछड़ने का दुःख कम और वासना का भाव ज्यादा महसूस होता है.

मिसेज़ पुरी के हौंसले बढ़ते ही जा रहे हैं. अब उनकी हरक़तें कुछ ज़्यादा ही आपत्तिजनक होने लगी हैं. लेकिन वह बस चुप्पी ओढ़े रखता है. इसके अलावा कोई और चारा उसके पास है भी तो नहीं. उसे तो बस 31 तारीख की शाम तक इन्तजार करना है और वह शाम आने में अभी तीन दिन और हैं.

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आज मिसेज़ पुरी के घर में उसकी आखिरी रात है. कल शाम को दफ़्तर से आने के बाद उसे यहाँ से चले जाना है. आज दफ़्तर से वह सीधा अपनी दीदी के यहाँ चला गया था, ताकि उन लोगों को अगले दिन अपने मकान बदलने के बारे में बता दे. घर वापिस पहुँचते-पहुँचते करीब साढ़े दस बज गए हैं. आमतौर पर इस वक़्त तक वे लोग सो जाया करते हैं. आज जब वह घर पहुँचा है, तो मिसेज़ पुरी बारजे में अपने बिस्तर में लेटी ऊँघ रही हैं. पास ही रखे ट्रांजिस्टर से गाने आ रहे हैं. खाना वह दीदी के यहाँ से खा आया है. इसलिए उसने मिसेज़ पुरी का जगाने की ज़रूरत नहीं समझी और सीधे स्टोर की तरफ़ चला गया है.

कपड़े-वपड़े बदलकर उसने उन्हें जगाया है. रात गहरी होती जा रही है. जगदीश और नरिन्दर में से भी कोई घर में नहीं है. दोनों टूर पर हैं आजकल. पड़ोसवाली औरत का पोता तबीयत खराब होने के कारण हस्पताल में भर्ती है. शायद इसी वजह से उन लोगों में से भी आज कोई सोने के लिए इधर नहीं आया.

बाथरूम जाने के लिए मिसेज़ पुरी इस तरफ़ आई हैं. उससे दो-एक बातें उन्होंने की हैं और पिछले दरवाजे व रसोई को ताला लगाने को कहा है.

ताले लगाने के बाद जब वह स्टोर में आया है तो मिसेज़ पुरी उसे उनकी अपनी अलमारी में से कुछ ढूँढ रही मिलती हैं. उन्हें चाबियाँ पकड़ाते वक़्त उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया है और फिर उसे अपने से लिपटा लिया है. आज तक जब-जब उन्होंने उसके साथ ऐसा किया है, हर बार वह बस चुपचाप खड़ा रहा करता है. मगर आज उसे न जाने क्या हुआ है कि उसने भी उन्हें अपने बाज़ुओं में कस लिया है और अपने होंठ उनके कंधों पर रगड़ने लगा है.

तभी मिसेज़ पुरी ने हाथ आगे बढ़ाकर बत्ती बुझा दी है और उसे और भी कसकर भींचने लगी हैं. उसका सारा शरीर पसीने से नहा-सा गया है. उसे महसूस होने लगा है जैसे वह समुद्र में गोते खा रहा हो.

थोड़ी देर बाद मिसेज़ पुरी उसके बिस्तर से उतरकर अपने कमरे की ओर जाने लगी हैं. हर रोज़ की तरह उसके कमरे और बारजे के बीच के ड्राइंगरूम के दोनों दरवाज़ों की चिटखनी लगाना वे नहीं भूली हैं. ड्राइंगरूम की बत्ती भी रोज़ की तरह उन्होंने जलती रहने दी है.

बिस्तर से उतरकर स्टोर के दरवाज़े को अंदर से बंद करते वक़्त यह ख़याल बिजली की तरह उसके दिमाग़ में कौंधा है कि वह तो मिसेज़ पुरी को और ज़्यादा लुटने से बचाना चाहता था, मगर आज खुद ही उन्हें लूटनेवालों में शामिल हो गया है.

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