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पथभ्रमित

पथभ्रमित

जबलपुर शहर में हरिप्रसाद नाम का एक व्यापारी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुख एवं शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। वह बहुत भावुक एवं धार्मिक प्रवृत्ति का था और उसके मन में मोक्ष प्राप्त करने की बहुत गहरी अभिलाषा थी। वह प्रतिदिन इसी चिंतन में उलझा रहता था। एक दिन रात में अचानक ही उसके मन में विचार आया कि जब तक वह माया और मोह को नही छोडेगा तब तक मोक्ष नही प्राप्त होगा। इसी सनक में एक दिन प्रातःकाल उठकर वह बिना किसी को बताए अपने पास संचित धन को बाँट देता है और फकीर बनकर दूसरे शहर चला जाता हैं।

हरिप्रसाद को लगता था कि अब उसने माया और मोह का त्याग कर दिया है और अब उसे मोक्ष अवश्य प्राप्त होगा परंतु कुछ समय में ही उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल जाती है कि एक फकीर आये है जिनके आशीर्वाद से लोगों की तकलीफें दूर हो जाती है। अब जनता का तांता उसके दर्शन एवं आशीर्वाद पाने के लिए लगने लगता है और लोग भावावेश में आकर उसके मना करने बावजूद भी धन न्यौछावर करने लगते हैं यह देखकर उसके मन में विचार आता है कि इसी धन से वैराग्य पाने के लिए तो वह फकीर बना था परंतु यहाँ भी धन उसका पीछा नही छोड रहा है। इसी चिंतन के दौरान उसे अपने कुलपुरोहित का ध्यान आता है और वह उनसे मिलने के लिये बद्रीनाथ चला जाता है।

वहाँ पहुँच कर जब वह अपने पुरोहित जी को पूरे घटनाक्रम से अवगत कराता है तो वे आश्चर्यचकित हेाकर हरिप्रसाद को कहते है कि तुमने इतना बडा निर्णय बिना सोचे समझे, अपने कुल पुरोहित अर्थात मुझे बिना बताए कैसे ले लिया तुम अपने परिवार के छेाटे मोटे निर्णय भी मेरे से पूछ कर लेते थे। यह कार्य तुम्हें मोक्ष की ओर नही ले जायेगा बल्कि तुम अकर्मण्य होकर अपना जीवन व्यर्थ ही गवाँ दोगे। यदि इस तरह से मोक्ष की प्राप्ति संभव हेाती तो सभी लोग फकीर बनकर मोक्ष पा जाते।

धन का इस प्रकार त्याग करने से माया नही छूटती। तुमने अपने धर्म और कर्म का पालन नही किया तुम्हारा धर्म यह है कि तुम अपने परिवार का लालन पालन करो, अपने व्यापार को देखो जिस कारण सैंकडों लोगों को रोजगार उपलब्ध होता है उसके बाद प्राप्त लाभ को यथासंभव जरूरतमंद वर्ग के लिए उनकी शिक्षा लालन पालन बीमारियों से रक्षा इत्यादि अच्छे कार्यों मे लगाओ। इससे तुम्हें मानसिक शांति मिलेगी और तुम्हारा जीवन जनहितार्थ सेवा में व्यस्त रहेगा। तुमने अपना धन जहाँ पर लुटाया उसका क्या सदुपयोग हुआ और तुम्हारे फकीर बन जाने से तुम्हें और समाज को कौन सा लाभ प्राप्त हुआ तुम अपनी मनमानी छोडकर वापिस जाओ और अपना व्यापार संभालो जो कि तुम्हारे न रहने से अभी तक बंद होने की स्थिति में आ चुका होगा और तुम्हारा पूरा परिवार इन परिस्थितियों में बहुत चिंताग्रस्त हेाकर जी रहा होगा।

अपने कुलपुरोहित की बात सुनकर और उनके समझाइश से हरिप्रसाद का माथा ठनक गया और उसे इस बात का आभास हो गया कि ऐसे मोक्ष प्राप्त नही होता। वह तुरंत वापिस जाकर अपने व्यापार को वापिस संभाल लेता है एवं पुर्नस्थापित होकर परिवारजनों के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर अपनी आय का अधिकांश हिस्सा प्रतिवर्ष जरूरतमंद लोगों की षिक्षा, दवाईयों एवं आवश्यक खर्चों पर व्यय करने लगता है।

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