जीवन को सफल नही सार्थक बनाये भाग - ९ Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

जीवन को सफल नही सार्थक बनाये भाग - ९

81. जीवन का सच

वरिष्ठ कवियत्री तथा लेखिका, म.प्र.लेखिका संघ की अध्यक्ष श्रीमती अर्चना मलैया ने भावनात्मक होते हुये एक घटना के विषय में बताया। यह बात उस समय की है जब वे बी.ए. अंतिम वर्ष की छात्रा थी, उन्होंने अपनी कक्षा में प्रवेश ही किया था कि पता चला कि हिंदी साहित्य की व्याख्याता के एकमात्र भतीजे की दो दिन पूर्व नदी में डूब जाने से अकाल मृत्यु हो गयी। हम सभी मन से दुखी हो गये थे। हमने देखा की वे व्याख्याता मेडम प्रतिदिन की तरह कक्षा में पढ़ाने हेतु आ रही थी। हम आश्चर्य में डूबे हुए अपनी अपनी सीटों पर बैठ गये। उन दिनो कक्षा में श्री सुमित्रानंदन पंत जी की परिवर्तन कविता पर व्याख्यान चल रहा था मेडम ने गंभीर आवाज में कविता पाठ प्रारंभ किया:-

खोलता इधर जन्म लोचन

मूँदती उधर मृत्यु क्षण क्षण.......

इसकी दो पंक्तियाँ भी पूरी ना हो पायी थी कि उनका कंठ अवरूद्ध हो गया हम लोगों ने सांत्वना भरे स्वर में उनसे निवेदन किया कि मेडम कृपया आज मत पढ़ाइये हम सभी आप के इस दुख में सहभागी है। वे स्वयं को संभालने एवं संयत करने का प्रयास कर रही थी परंतु अचानक उनकी आँखों से वेदना के आँसू टपकने लगे। कक्षा लगभग समाप्ति की ओर थी और अर्चना मलैया ने किताबों को एक ओर खिसकाकर दोनो हाथों से अपना सिर थाम लिया और संवेदनाओं के उस प्रचंड ज्वार में स्थिर नही रह पायी तभी घंटी बजी कक्षा समाप्त हुयी और सभी मेडम को वहाँ अकेला छोड एक साथ बाहर निकल आये।

वे जब भी इस घटना को याद करती हैं तो उनके मन यह विचार आता है कि वे इस घटना में मर्माहत मेडम को अकेले छोडकर सब के साथ कक्षा से बाहर क्यों आ गयी। उन्हें उनके दुख में सहभागी बनना था और सांत्वना देकर उनके दुख को कम करने का प्रयास करना चाहिए था। वे यह भी सोचती हैं कि जीवन में हमें सद्कार्य निरंतर करते रहने चाहिए जिससे जीवन सफल हो सके क्योंकि मृत्यु सुनिश्चित हैं परंतु कब यह कोई नही जानता ?

82. बिटिया से बनी पहचान

एलायंस क्लब इंटरनेशनल की जबलपुर मिड टाऊन शाखा के पूर्व अध्यक्ष नवनीत राठौर एवं सचिव श्रीमती वर्षा राठौर का कथन है कि उनके जीवन में वह सर्वाधिक प्रसन्नता का दिन था जब उन्हें कन्यारत्न के रूप में वंशिका की प्राप्ति हुयी। उनके मन में मनोकामना थी कि एक दिन बड़ी होकर यह इतना नाम कमाये कि उसके नाम से उनका नाम जाना जाए।

वे कहते हैं कि जब वह तीसरी कक्षा में ही थी तो उसका रूझान चित्रकला की तरफ हो गया था। वह अपनी पेंसिल से कागज पर चित्रकारी करती रहती थी हम दोनो ने उसे प्रेरणा देने एवं इस कला में आगे बढ़ने में कोई कमी नही रहने दी। वह धीरे धीरे बड़ी होती गयी और पेंसिल का स्थान ब्रश ने ले लिया और रंगों का उपयोग वह अपने मन से स्वमेव करने लगी। अब धीरे धीरे उसका हाथ सध गया और विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफलता अर्जित करना प्रारंभ हो गया। इतनी कम उम्र में ही उसकी चित्रकारी में परिपक्वता नजर आने लगी। वंशिका के कक्षा दसवीं मे आने तक उसकी एकल चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन होने लगा और साथ ही साथ साहित्यिक कृतियों के मुखपृष्ठ भी उसके द्वारा बनाए जाने लगे आज राठौर दंपत्ति को लोग उनकी बेटी वंशिका के नाम से जानते हैं।

उनका मानना है कि बेटे और बेटी दोनो ही अपने परिवार का नाम रोशन कर सकते हैं आज के युग में संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर पुत्री के विकास पर भी उतना ही ध्यान व योगदान देना चाहिए जितना पुत्र के लिए देते है। लड़कियों में भी विलक्षण प्रतिभा होती हैं आवश्यकता है कि उनकी प्रतिभाओं को बिना किसी भेदभाव के उभारने का अवसर प्रदान किया जाए।

83. आत्मीयता

सुप्रसिद्ध साहित्यिक रचनाकार डा. श्रीमती तनुजा चैधरी जो कि शासकीय विज्ञान महाविद्यालय में हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष के साथ साथ व्याख्याता भी है, वे मानवीय अनुभूति के संबंध में कई साल पहले हुई एक घटना का स्मरण करके भाव विभोर हो गई। वे बताती हैं कि किसी साहित्यिक संबंध में सुप्रसिद्ध कथा लेखिका मन्नू भंडारी जी से दिल्ली में मुलाकात हुई, वे उनके द्वारा निर्धारित समय पर उनके निवास स्थान पर पहुँच गई परंतु रास्ते में दिल्ली की ठंड से वे एवं उनकी पुत्री ठिठुर रहे थे।

उस दिन ठंड इतनी ज्यादा थी कि दिन में भी गहरा कोहरा छाया हुआ था और तापमान भी बहुत कम था। उन्हें उनकी गलती का अहसास हो रहा था कि ऐसे मौसम में मोजे और दस्तानों का उपयोग करना चाहिए था। मन्नू जी के घर पहुँचने पर उनकी सेविका ने उनके व्यवस्थित एवं अभिजात्य दिखने वाले बैठक खाने में बिठाया। थोड़ी देर बाद मन्नू जी आयी और अत्यंत आत्मीयता से मिली। तनुजा जी की बेटी ठंड के कारण हाथ पे हाथ रखकर शाल के अंदर बैठी हुयी थी।

यह देखकर उन्होंने उसका हाथ अपने हाथ से बाहर निकालकर वे बोली कि तुम्हारा हाथ तो बहुत ठंडा है और तुम काँप भी रही हो ऐसे में बीमार पड़ जाओगी। वे उन दोनो को लेकर अपने बेडरूम में चली गयी और सेविका से कहकर एक हीटर मंगवाया और बच्ची का हाथ अपने हाथ में रखकर हीटर के पास बैठ गयी और बहुत स्नेहपूर्वक आत्मीयता से उसके हाथ को रगड़कर उष्मा प्रदान करने लगी। तनुजा जी बताती हैं कि दोनो के बीच पारिवारिक एवं साहित्यिक चर्चाएँ समाप्त होने के बाद वे वहाँ से अपने घर रवाना हो गयी।

वे रास्ते भर मन्नू भंडारी जी के आत्मीयता से परिपूर्ण व्यवहार के प्रति बहुत आभार महसूस कर रही थी और मन मे सोच रही थी कि देश की विख्यात लेखिका कितनी सरल, मिलनसार एवं करूणामयी है जिन्होने स्वयं पूरे समय तक बेटी का हाथ अपने हाथो में थाम कर रखा। ऐसी आत्मीयता और सद्भाव बिरले ही लोगों में देखने को मिलता है।

84. आत्मविश्वास से सफलता

श्रीमती शिवाली अग्रवाल जो कि एक महिला उद्यमी है। वे 4 सीजन्स नामक बेकरी की मालिक है। उन्हें बचपन से ही जब वे स्कूल में पढ़ती थी, तरह तरह के व्यंजन बनाने, पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से नई नई चीजें सीखने एवं रसोई घर में नये नये प्रयोग करने में बहुत आनंद आता था। उनके विवाह के पश्चात भी उनकी रूचि व्यंजन के क्षेत्र में बनी रही इसी तारतम्य में वे अपने परिचित लोगों के बीच नये नये व्यंजन बनाकर उनकी राय जानने का प्रयास करने लगी।

उनके व्यंजन सभी के द्वारा बहुत पसंद किये गये और यही से पे्ररित होकर उनके मन में इसे व्यवसायिक रूप देने का विचार आया। ससुराल वालों के प्रोत्साहन से उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया और उन्होने इसे व्यवसायिक रूप देने का निर्णय ले लिया। सन् 2000 में अपनी स्वयं की मेहनत, लगन, परिश्रम एवं परिवारजनो के सहयोग से 4 सीजन्स नाम की बेकरी की शुरूआत की। वे कहती हैं कि उनके यहाँ कार्यरत कर्मचारियों का कार्य के प्रति समर्पित सेवाभाव, दक्षता व अनुषासित वातावरण ने उनकी बेकरी के उत्पादन को शहर की अग्रणी पंक्ति में ला दिया है।

उनका मानना हैं कि किसी भी उत्पाद में गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण होती है एवं इसी से ग्राहकों के बीच विश्वसनीयता बनती है। उनका कहना हैं कि स्वतंत्र व्यक्तित्व, कड़ी मेहनत और कार्य करने का जुनून, ये तीनों उनकी सफलता के मूल मंत्र हैं। वे प्रतिदिन अपने अनुभवों के आधार पर बेहतर से बेहतर कार्य करने की कोशिश करती हैं क्योंकि उनका मानना है कि सफलता का कोई अंत नही होता हैं।

85. महिलाएँ आत्मनिर्भर बनें

श्रीमती अर्चना भटनागर एक जीवट, संघर्षशील व सफल महिला उद्यमी हैं। वे हेलाइड केमिकल की मैनेजिंग डायरेक्टर एवं म.प्र. एसोसियेशन आफ वूमन एंटरप्रेनर्स ( मावे ) की अध्यक्ष है। वे कहती है कि जीवन में असफल होना ही सफलता की बुनियाद है। उन्होंने केमेस्ट्री में मुंबई विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की जिससे उन्हें उद्यमिता में बहुत सहायता मिली। पी.एम.टी में उत्तीर्ण होने के बाद भी उन्होंने मेडिकल कालेज की पढाई ना करके उद्योग की दिशा में चिंतन करना प्रारंभ किया।

उनका विवाह 20 वर्ष की आयु में ही संपन्न हो गया था एवं उनके पति ने उनको आश्वस्त किया था कि विवाह जीवन का अंत नही है, यह एक नये जीवन का प्रारंभ है एवं वे पुरूष और महिला में समानता की भावना रखते है। श्रीमती भटनागर ने अपने पति से धीरे धीरे व्यापार करने के गुर सीखे और उनसे प्रोत्साहित होकर अपने स्वयं का उद्योग स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया। जब उन्होंने बैंक से कर्ज हेतु संपर्क किया तो वे आश्चर्यचकित हो गयी कि उन्हें बैंक लोन हेतु एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम, ईमानदारी एवं गुणवत्ता के कारण अपने व्यापार में सफलता पाकर दिन दूनी रात चैगुनी प्रगति की। वे आफसेट प्रिंटिंग प्रेस में लगने वाले केमिकल का उत्पादन करती थी।

एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे अपने अनुभव को महिलाओं के बीच बाँटकर उन्हें उद्यमिता के क्षेत्र में आगे बढ़ायेंगी और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने मावे नामक संस्था का गठन किया। इस संस्था के माध्यम से उद्यमिता में रूचि रखने वाली महिलाओं को उनके उत्पादन हेतु तकनीकि जानकारी एवं उनके उत्पाद की बिक्री हेतु समुचित सहयोग प्रदान किया जाता है। इस संस्था का उद्देश्य हैं कि महिलायें स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनें।

86. नेत्रहीन की दृष्टि

म.प्र. की निवासी श्रीमती निधि नित्या को जनवरी 2016 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम 100 विमेन अचीवर्स अवार्ड से माननीय राष्ट्रपति जी के द्वारा सम्मानित किया गया था। वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की लेखिका के रूप में जानी जाती है। उन्होंने एक हृदय स्पर्शी प्रेरणादायक घटना के विषय में बताया।

वे बताती हैं कि उनकी सोनाली से मुलाकात नई दिल्ली के होटल सम्राट में हुई जहाँ उन सभी 100 वूमन्स अचीवर्स के रूकने की व्यवस्था की गई थी। सोनाली बहुत शांत और खामोश थी। पहले उनकी समझ में नही आया कि उस बेहद खूबसूरत आवाज के पीछे कितना दर्द छिपा हुआ है। सोनाली हर तरह की चर्चा में बराबर भाग ले रही थी। कुर्सी पर बैठे हुए वह बेहद जहीन समझ में आ रही थी। टेबल पर लग चुके भोजन की तरफ जब वे साथ आये व्यक्ति का हाथ पकड़कर बढ़ी तब समझ आया की उन्होंने काला चश्मा दरअसल ज्योतिविहीन आँखों को छुपा लेने के लिए लगाया है। उनके साथ आए सज्जन उनके पति थे। निधि नित्या का मन नही माना और वे जा पहुँची उनके पास ये जानने के लिए की उन्होने अपने चेहरे को दुपट्टे से क्यों ढाँक रखा है। सोनाली ने बिना किसी झिझक के अपनी आप बीती उन्हें सुनाई। उसे सुनकर उनके होश फाख्ता हो गये।

निधि जी ने बताया कि सोनाली झारखंड की रहने वाली थी। ज्यादातर उनका नाम “ एसिड विक्टम 2003 “ के नाम से जाना जाता है। ये नाम उन्हें उस वक्त मिला जब सोनाली महज 17 साल की थी। बेहद खूबसूरत और प्रतिभाशाली सोनाली स्कूल, कालेज में अपनी रचनात्मक गतिविधियों के लिए जानी जाती थी। वे एन.सी.सी की बटालियन कमांडर थी और रायफल से सटीक निशाने लगाती थी। देश भक्ति का जज्बा और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून उनके अंदर था। सोनाली जब यूनिफार्म पहनकर मोहल्ले में निकलती तो मनचले लड़के बस देखते रह जाते। वो बार बार सोनाली से दोस्ती करने की कोशिशे करते और सोनाली उनको डपटकर भगा देती। जब लड़कों की छेड़छाड़ बहुत अधिक बढ़ने लगी तो सोनाली ने ये बात अपने पिता को बताई। सोनाली के पिता ने तीनों मनचले लड़कों को जमकर डाँट लगाई। एक दिन सोनाली अपने परिवार के साथ छत पर सो रही थी कि अचानक इन लड़कों ने आकर उसके ऊपर तेजाब डाल दिया। सोनाली का सारा शरीर जलने लगा। पिता किसी तरह स्कूटर पर बैठाकर उसे अस्पताल ले गए।

सुबह होने तक सोनाली की सारी दुनिया अंधेरे मे डूब गयी। एसिड से उसकी आँखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गयी। चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया। बिना सहारे के सोनाली चल भी नही पाती थी। इतना सब होने के बाद भी मनचले सोनाली और उनके परिवार को धमकाते रहे। सोनाली ने खुद को संभाला और कोर्ट में पुकार लगायी की या तो अपराधियों को सजा दी जाए या उसे मृत्यु दी जाए। दोषियों को 9 साल की सजा सुनाई गयी।

सोनाली के लिए उसका अंधापन बहुत बड़ी समस्या थी क्योंकि जो जन्म से नेत्रहीन होते हैं उनको एक आभासी शक्ति जन्म से प्राप्त होती है पर सोनाली ने अपनी आँखों से दुनिया देखी थी इसलिए उनके लिए बिना आँखों के चलना पढ़ना अधिक कठिन था। लोग उनसे दूर भागते, उनके चेहरे से घृणा करते, उनका तिरस्कार करते लेकिन उन्होने हिम्मत नही हारी ओर ब्रेल लिपि को सीखकर आगे की पढ़ाई जारी रखी। नेत्रहीनों के लिए बने साफ्टवेयर की मदद से उन्होंने कंप्यूटर पर काम करना सीखा।

कई पीड़ादायक फेस सर्जरी से गुजरने के बाद आज भी उनका इलाज जारी है। इतने पर भी सोनाली कहती हैं कि मुझे समाज और सरकार से कोई शिकायत नही है। सोनाली ने समाज में सोशल विक्टिम्स के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने एसिड अटैक विक्टिम्स को मोटिवेट करना शुरू किया। उन्हें नारी शक्ति व अदम्य साहस के पुरूस्कार प्राप्त हुए। अभी तक सोनाली 1000 से अधिक नेत्रहीनों और समाज द्वारा पीड़ितों को स्थापित कर चुकी हैं। आज सोनाली दो राष्ट्रीय एन.जी.ओ. की ब्रांड एम्बेस्डर हैं, मोटिवेटर हैं और सोसाइटी विक्टिम्स के लिए रोल माडल हैं। उनका मिशन नेत्रहीन लडकियों के लिए रोजगार और साधन उपलब्ध कराना है। आज उनसे प्रेरणा पाकर कुछ नेत्रहीन लडकियाँ बैंक पी.ओ. है, टीचर हैं, और कुछ नेत्रहीन लडकियाँ प्राइवेट कंपनियों में जाब कर रही हैं। सोनाली स्वयं झारखंड में शासकीय संस्थान मे कार्यरत हैं। 2015 में पेशे से साफ्टवेयर इंजीनियर चितरंजन तिवारी ने उनसे शादी की। सोनाली को उनके कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त हुए और 2016 में भारत की प्रथम 100 महिलाओ के साथ राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हुई।

सोनाली के साथ राष्ट्रपति भवन में माननीय राष्ट्रपति के साथ भोजन करते हुए निधि नित्या ईश्वर को धन्यवाद कर रही थी कि भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना जाना उस दिन उन्हे सार्थक लगा जब सोनाली जैसी जीवट महिला से उन्होंने जीवन का सबक सीखा। समाज सुंदरता के पीछे भागता है पंरतु सोनाली सुंदरता के सारे मापदंडों को तोडते हुए इंसानियत का चेहरा समाज को दिखाती है।

87. आत्मनिर्भरता

विकास ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर सुबोध कुमार जैन कहते है कि प्रेरणा के स्त्रोत अनंत हैं और ये चारों ओर उपलब्ध हैं। कभी कभी छोटी छोटी घटनायें भी हमारे जीवन की प्रेरणा स्त्रोत बनती हैं। वे एक बार अमेरिका की यात्रा के दौरान तीन दिन तक अपने एक मित्र के निवास स्थान न्यूजर्सी मे उनके साथ रहे।

वे यह देखकर बहुत प्रसन्न हुये कि उनके मित्र, उनकी धर्मपत्नी, पुत्र 16 एवं पुत्री 21 वर्ष एक साथ भारतीय संस्कृति के अनुरूप रहते थे। उनके यहाँ तीन दिन रहने के पश्चात, जब उनके विदा होने का समय आ गया तो वे विशेष रूप से उनकी पुत्री से बोले कि आपके यहाँ ऐसा महसूस ही नही हुआ कि हम भारत के बाहर विदेश में है। उसने जवाब दिया कि अंकल क्षमा करें आप मेरे घर पर नही मेरे मम्मी पापा के घर पर आये हैं। अगली बार आप मेरे पास न्यूयार्क आकर रहेंगे तो आपको और भी अच्छा लगेगा।

यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उस लड़की ने केवल 21 वर्ष की उम्र में ही काम करना षुरू कर अपने स्वतंत्र विचारों को अपनाकर अपनी कार्यक्षमता पर आत्मविश्वास दिखाया। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती हैं कि हमें अपनी कार्यक्षमता पर विश्वास रखकर जीवन में आगे बढ़कर स्वावलंबी बनना चाहिए इसी में जीवन का पूर्ण आनंद हैं। वे अंत में यही कहते हैं कि आत्मनिर्भरता को अपनायें और अपने जीवन को सफल बनाए।

88. वर्तमान में जिए

श्रीमती श्वेता सिंह, चेयरमेन उद्योग एवं सहकारिता समिति, जिला पंचायत जबलपुर का कथन है कि उनका बचपन, उनके पिताजी के भारतीय सेना में कार्यरत होने के कारण बहुत ही अनुशासित एवं सीमित दायरे में था। उनकी स्कूली शिक्षा आर्मी कैंपस में ही हुई। स्कूली शिक्षा पूरी होने के उपरांत उन्होंने कालेज जाना प्रारंभ कर दिया। वहाँ के वातावरण से उन्होंने महसूस किया कि सिविल और सेना की सोच में बहुत अंतर हैं। सेना में जहाँ देश के लिए समर्पण और देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई हैं वहीं सिविल आबादी सेना की विचारधारा से अनभिज्ञ है एवं वे इसे तानाशाही के रूप मानते हैं।

ये घटना बेंगडूबी की है जो कि सिलीगुड़ी के नजदीक आर्मी का बेस कैंप हैं। उनके पिताजी कर्नल एस. के जैन कमांडेंट आफीसर के पद पर कार्यरत थे। उसी समय पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ आरंभ कर दी और भारतीय सेना द्वारा उसके प्रतिरोध करने पर युद्ध की स्थिति निर्मित हो गयी। उनके पिताजी को कारगिल के लिए सैनिकों को भेजने का प्रबंध तुरंत करने का निर्देश प्राप्त हुआ। श्रीमती श्वेता सिंह को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ कि एक नौजवान सैनिक जिसका विवाह एक साल पूर्व ही हुआ था और वह पिता बनने वाला था, उसने छुट्टी के लिए निवेदन भी किया हुआ था, लगातार उनके पिताजी से जिद कर रहा था कि वह देश की रक्षा के लिए युद्ध में जाना चाहता है। उसकी पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुये कर्नल साहब उसे समझा रहे थे कि वह युद्ध मे ना जाकर अपने गृहनगर चला जाए परंतु वह सैनिक अपनी बात पर अड़िग था और अंततः विवश होकर उन्हें उसको अनुमति देनी पड़ी।

श्वेता सिंह कहती हैं कि इससे उन्हें प्रेरणा मिली की हमें समय की आवश्यकता के अनुसार अपने जीवन को जीना चाहिए यदि युद्ध का समय हैं तो हमें लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए और यदि शांति का समय है तो आनंद से रहना चाहिए।