जीवन को सफल नही सार्थक बनाये भाग -५ Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

जीवन को सफल नही सार्थक बनाये भाग -५

41. कालिख

श्री पुरूषोत्तम भट्ट एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश हैं। उनके जीवन में आये अविस्मरणीय प्रकरणों में से एक आनर किलिंग का ऐसा प्रकरण है जिसमें एक अबोध की हत्या न केवल हमारे झूठे अहंकार का उदाहरण है वरन् वह अव्यवहारिक और मूखर्तापूर्ण आचरण को भी दर्शाता है।

एक गांव की एक लड़की का विवाह उसके गांव के नजदीक के ही दूसरे गांव में हुआ। लड़की विदा होकर जब ससुराल पहुँची तभी उसके पेट में दर्द होने लगा। गांव के वैद्य को जब उसके उपचार के लिये बुलाया गया तो पता चला कि वह गर्भवती है। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। इस घटना से उसके ससुराल वाले हत्प्रभ थे। उन्होंने लड़की के पिता को बुलवाया और सारी स्थिति से अवगत करवाने के बाद उन्हें लड़की और उसके पुत्र को ले जाने को कहा। पिता के पास भी कोई चारा नहीं था। वह दोनों को लेकर अपने घर आ गया।

अपने गांव में आकर उसने गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को इस घटना की जानकारी दी और पंचायत में जोड़े जाने की प्रार्थना की। पंचायत बुलवाई गई। सारा गांव एकत्र हुआ था। पंचायत में उस लड़की से उस बच्चे के पिता का नाम पूछा गया।

लड़की ने बतलाया कि उस बच्चे का पिता गांव का ही एक व्यक्ति था जो सेना में सिपाही था। नौ माह पहले जब वह अवकाश में गांव आया था तभी उससे उसका प्रेम संबंध बना था। उसी के परिणाम स्वरूप वह कुवांरेपन में ही गर्भवती हो गई थी। उसने यह भी बताया कि उसके माता-पिता ने लोकलाज के भय से उसकी ससुराल वालों को अंधकार में रखकर उसका विवाह करवा दिया था।

पंचायत में उस सैनिक के पिता और उसके तीनों भाई भी थे। उन्होंने जब यह सुना तो पंचायत को वचन दिया कि वे अपने सैनिक पुत्र से बात करके वास्तविकता का पता लगाएंगे और यदि यह बात सच हुई तो वे अपने पुत्र का विवाह उस लड़की से करके उसे उसके बच्चे सहित अपना लेंगे।

सैनिक के पिता और उसके भाइयों ने ट्रककाल करके उस सैनिक से इस संबंध में पूछताछ की। उस सैनिक ने स्वीकार किया कि उसका उस लड़की से संबंध था और वह ही उसकी संतान का पिता है।

सैनिक के परिवार वालों ने उस लड़की से सैनिक का विवाह करना स्वीकार कर लिया और उनके बीच यह सहमति बनी कि लड़की के परिवार वाले सैनिक के आने तक प्रतीक्षा करें और तब तक वह लड़की अपने पिता के ही साथ रहे।

लगभग एक सप्ताह बाद अचानक उस बच्चे का स्वास्थ्य खराब हो गया। सैनिक के तीनों भाई उस बच्चे का उपचार करवाने और उसे टीके आदि लगवाने की बात कहकर उसे ले जाकर नदी में फेंक दिया। यह पता चलने पर हत्या की रिपोर्ट दर्ज हुई और माँ बेटी वहीं रोती रहीं। पुलिस ने सभी आरोपियों को अभिरक्षा में लिया और विवेचना के बाद प्रकरण न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय में प्रकरण चला और अंत में आरोपियों को उनके अपराध का दोषी पाते हुए यथोचित दण्ड दिया गया।

अवैध संबंधों से उत्पन्न संतान को अपनाने से बचने के लिये, उनने एक अबोध और निरपराध बच्चे की हत्या कर दी। उनने यह सोचा ही नहीं कि आखिर उस बच्चे का कसूर क्या था ? उसे किस अपराध की सजा दी गई थी ?

यदि बुद्धिमत्ता से काम लिया गया होता तो उस सैनिक का विवाह उस लड़की के साथ करके सभी को सम्मान पूर्वक जीने का अवसर दिया जा सकता था। यदि उस बच्चे को नहीं भी अपनाना था तो उसे गोद लिया या दिया जा सकता था। लेकिन थोथे सामाजिक सम्मान के नाम पर एक निर्मम और जघन्य अपराध किया गया जिसने मानवीयता के मुख पर कालिख पोत दी।

42. जीवन दर्शन

मैं और मेरा मित्र सतीश अवस्थी आपस में चर्चा कर रहे थे। हमारी चर्चा का विषय था हमारा जीवन क्रम कैसा हो? हम दोंनों इस बात पर एकमत थे कि मानव प्रभु की सर्वश्रेष्ठ कृति है और हमें अपने तन और मन को तपोवन का रुप देकर जनहित में समर्पित करने हेतु तत्पर रहना चाहिए। हमें औरों की पीड़ा को कम करने का भरसक प्रयास करना चाहिए। हमें माता-पिता और गुरूओं का आशीर्वाद लेकर जीवन की राहों में आगे बढ़ना चाहिए। मनसा वाचा कर्मणा, सत्यमेव जयते, सत्यम् शिवम् सुन्दरम आदि का जीवन में समन्वय हो तभी हमारा जीवन सार्थक होगा और हम समृद्धि सुख व वैभव प्राप्त करके धर्म पूर्वक कर्म कर सकेंगे।

एक दिन सतीश सुबह-सुबह ही सूर्योदय के पूर्व मेरे निवास पर आ गया और बोला- चलो नर्मदा मैया के दर्शन करके आते हैं। मैं सहमति देते हुए उसके साथ चल दिया लगभग आधे घण्टे में हमलोग नर्मदा तट पर पहुँच गये। हमने रवाना होने के पहले ही अपने पण्डा जी को सूचना दे दी थी हम कुछ ही देर में उनके पास पहुँच रहे हैं। वे वहां पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।

चरण स्पर्श पण्डित जी!

सदा सुखी रहें जजमान। आज अचानक यहां कैसे आना हो गया।

कुछ नहीं। ऐसे ही नर्मदा जी के दर्शन करने आ गये। सोचा आपसे भी मुलाकात हो जाएगी। पण्डित जी आज आप हमें किसी ऐसे स्थान पर ले चलिये जहां बिल्कुल हल्लागुल्ला न हो। केवल शान्ति और एकान्त हो। सिर्फ हम हों और नर्मदा मैया हों।

पूजा-पाठ और स्नानध्यान का सामान साथ में रख लें?

नहीं! हमलोग सिर्फ नर्मदा मैया के दर्शन करने का संकल्प लेकर आए हैं।

उत्तर सुनकर पण्डित जी हमें लेकर आगे-आगे चल दिये। वे हमें एक ऐसे घाट पर ले गये जहां पूर्ण एकान्त था और हम तीनों के अलावा वहां कोई नहीं था।

नर्मदा का विहंगम दृष्य हमारे सामने था। सूर्योदय होने ही वाला था। आकाश में ललामी छायी हुई थी। पक्षी अपने घोंसलों को छोड़कर आकाश में उड़ाने भर रहे थे। क्षितिज से भगवान भुवन भास्कर झांकने लगे थे। उनका दिव्य आलोक दसों दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था। हम अपने अंदर एक अलौकिक आनन्द एवं ऊर्जा का संचार अनुभव कर रहे थे। हमें जीवन में एक नये दिन के प्रारम्भ की अनुभूति हो रही थी।

हमारी दृष्टि दाहिनी ओर गई वहां के दृष्य को देखकर हम रोमांचित हो गए। हम जहां खड़े थे वह एक शमशान था। पिछले दिनों वहां कोई शवदाह हुआ था। चिता की आग ठण्डी पड़ चुकी थी। राख के साथ ही मरने वाले की जली हुई अस्थियां अपनी सद्गति की प्रतीक्षा कर रही थीं।

सतीश भी इस दृश्य को देख चुका था। वह आकाश की ओर देखकर कह रहा था-प्रभु! मृतात्मा को शान्ति प्रदान करना।

मेरे मन में कल्पनाओं की लहरें उठ रहीं थीं। मन कह रहा था- अथक प्रयास के बावजूद भी उसके घरवाले व रिश्तेदार विवश और लाचार हो गए होंगे और उस व्यक्ति की सांसें समाप्त हो गई होगीं। सांसों के चुकने के बाद तो औपचारिकताएं ही रह जाती हैं। जो यहां आकर पूरी होती हैं।

हम अपने विचारों में खोये हुए थे कि वहां कुछ दूर पर हमें एक संत शान्त मुद्रा में बैठे दिखलाई दिये। हम न जाने किस आकर्षण में उनकी ओर खिचे चले गये। उनके पास पहुँचकर हमने उनका अभिवादन किया और उनके सम्मुख बैठ गये। उन्हें हमारे आने का आभास हो गया था। वे आंखें खोलकर हमारी ही ओर निर्विकार भाव से देख रहे थे। उनकी आंखें जैसे हमसे पूछ रही थीं- कहिये कैसे आना हुआ?

महाराज यह दुनियां इतने रंगों से भरी हुई है। जीवन में इतना सुख, इतना आनन्द है। आप यह सब छोड़कर इस वीराने में क्या खोज रहे हैं।

वे बोले- यह एक जटिल विषय है। संसार एक नदी है, जीवन है नाव, भाग्य है नाविक, हमारे कर्म हैं पतवार, तरंग व लहर हैं सुख व तूफान, भंवर है दुख, पाल है भक्ति जो नदी के बहाव व हवा की दिशा में जीवन को आगे ले जाती है। नाव की गति को नियन्त्रित करके बहाव और गन्तव्य की दिशा में समन्वय स्थापित करके जीवन की सद्गति व दुगर्ति भाग्य, भक्ति, धर्म एवं कर्म के द्वारा निर्धारित होती है। यही हमारे जीवन की नियति है। इतना कहकर वे नर्मदा से जल लाने के लिये घाट से नीचे की ओर उतर गये।

हम समझ गये कि वे सन्यासी हमसे आगे बात नहीं करना चाहते थे। हम भी उठकर वापिस जाने के लिये आगे बढ़ गये। शमशान से बाहर भी नहीं आ पाये थे कि शमशान से लगकर पड़ी जमीन पर कुछ परिवार झोपड़े बनाकर रहते दिखलाई दिये।

वे साधन विहीन लोग अपने सिर को छुपाने के लिये कच्ची झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। उनका जीवन स्तर हमारी कल्पना के विपरीत था। उन्हें न ही शुद्ध पानी उपलब्ध था और न ही शौच आदि नित्यकर्म के लिये कोई व्यवस्था थी। उनके जीवन की वास्तविकता हमारी नजरों के सामने थी।

उसे देखकर सतीश बोला- अत्यधिक गरीबी व अमीरी दोनों ही दुख का कारण होते हैं। जीवन में गरीबी अभावों को जन्म देती है और अपराधीकरण एवं असामाजिक गतिविधियों की जन्मदाता बनती है। इसी प्रकार अत्यधिक धन भी अमीरी का अहंकार पैदा करता है और दुर्व्यसनो एवं कुरीतियों में लिप्त कर देता है। यह मदिरा, व्यभिचार, जुआ-सट्टा आदि दुर्व्यसनो में लिप्त कराकर हमारा नैतिक पतन करता है।

हमारे यहां इसीलिये कहा जाता है कि- साईं इतना दीजिये जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय। हमें पर उपकार एवं जनसेवा में ही जीवन जीना चाहिए ताकि इस संसार से निर्गमन होने पर लोगों के दिलों में हमारी छाप बनी रहे।

धन से हमारी आवश्यकताएं पूरी हो तथा उसका सदुपयोग हो। यह देखना हमारा नैतिक दायित्व है धन न तो व्यर्थ नष्ट हो और न ही उसका दुरूपयोग हो । मैंने सतीश से कहा कि आज हमें जीवन दर्शन हो गए हैं। हमारे सामने सूर्योदय का दृष्य है जो सुख का प्रतीक है। एक दिशा में गरीबी दिख रही है दूसरी दिशा में जीवन का अन्त हम देख रहे हैं। हमारे पीछे खड़ी हुई हमारी यह मर्सडीज कार हमारे वैभव का आभास दे रही है। यही जीवन की वास्तविकता एवं यथार्थ है। आओ अब हम वापिस चलें।

43. जीवटता

राजीव को बचपन से ही हाकी खेलने का बहुत शौक था। वह बड़ा होने पर इसका इतना अच्छा खिलाड़ी हो गया था कि उसका प्रादेशिक स्तर पर चयन हो गया। वह जब मैदान में हाकी खेलता था तो ऐसा प्रतीत होता था जैसे गेंद उसके कहने पर चल रही हो। उसके टीम में रहने से ही उस टीम के विजेता होने के आसार बढ़ जाते थे। एक बार मैदान में मैच खेलने के दौरान दूसरे खिलाड़ी की गलती से पैर फँस जाने से राजीव गिर गया और उसकी पैर की हड्डी टूट गयी जिस कारण उसे तीन माह प्लास्टर बंधा होने के कारण वह हाकी खेलने से वंचित रहा। चिकित्सकों ने उसके वापस हाकी खेलने पर संशय जाहिर किया था। उसने ठीक होने के उपरांत छः माह तक व्यायाम एवं मालिश के द्वारा अपने पैरों को मजबूत कर लिया और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण वापिस धीरे धीरे हाकी खेल कर एक दिन पुनः पुराने मुकाम पर पहुंच गया।

एक दिन वह मैच खेलकर अपने घर जा रहा था तभी दुर्भाग्यवश एक ट्रक ने उसे टक्कर मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया। उसका छः माह तक इलाज चला और डाक्टरों ने उसे अब हाकी खेलने से मना कर दिया। वह कहता था कि हाकी मेरा जीवन है और मैं वापिस एक दिन खेलकर बताऊँगा। वह अस्पताल से छूटने के बाद एक से डेढ़ साल तक धीरे धीरे खेलने का अभ्यास करता रहा और एक दिन वापस मैच में भाग लेने के योग्य हो गया। सभी लोग उसके हाकी के प्रति प्रेम एवं समर्पण की तारीफ करते थे।

उसके सिर से दुर्भाग्य का साया अभी समाप्त नही हुआ था। एक दिन भूकंप आने के कारण उसकी चपेट में एक पाँच वर्षीय बच्ची की जान बचाने के लिये उसका हाथ बिल्डिंग से गिर रहे स्लेब के नीचे आ जाता है। चिकित्सकों को उसकी जान बचाने के लिये उसका हाथ काटना पड़ता है और वह अब हाकी खेलने से वंचित हो जाता है।

वह इससे हतोत्साहित नही होता है और कहता है कि प्रभु हमें जिस हालत में रखे उस हालत में रहकर समझौता करना ही पड़ता है। अस्पताल से आने के बाद वह एक खेल सामग्री की दुकान खोल लेता है एवं खाली समय में बच्चों को सहायकों के माध्यम से हाकी का प्रशिक्षण देना शुरू कर देता है।

४४- काली मदिरा

मीना भट्ट सेशन जज थीं। वर्तमान में सेवा निवृत्ति के बाद साहित्य सेवा में संलग्न हैं। उनके जीवन के उल्लेखनीय प्रकरणों में से एक प्रकरण ऐसा रहा जो समाज के निर्धन और मध्यम वर्ग में शराब के कारण बर्बाद हो रहे परिवारों और बढ़ते अपराधों का मर्म स्पर्शी उदाहरण है।

इस प्रकरण में छोटे भाई ने अपने सगे बड़े भाई की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। उसने यह कृत्य अपने माँ-बाप के सामने किया था। वे इस घटना के चश्मदीद गवाह थे।

प्रकरण पढ़कर जज साहिबा भीतर तक सिहर गईं। वह कैसा क्षण रहा होगा जब एक माता-पिता के सामने उनका छोटा बेटा उनके बड़े बेटे की हत्या कर रहा होगा और वे असहाय से कुछ भी नहीं कर सके होंगे। जज साहिबा भी एक माँ थीं और माँ से भी पहले एक इन्सान थीं। उनकी आँखें सजल हो गईं। उनकी आँखों से आँसू की दो बूंदें कब टपक कर फाइल पर गिरीं उन्हें इसका भी होश नहीं रहा तभी अभियुक्त को सामने लाया गया।

पुलिस वालों ने एक 25-26 वर्ष के नौजवान को लाकर कटघरे में खड़ा कर दिया। गवाही प्रारम्भ हुई। प्रत्यक्ष दर्शी गवाह के रूप में अभियुक्त की माँ एवं पिता को बुलाया गया।

माँ का गला भरा हुआ था। वह जैसे अपनी पूरी ताकत लगाकर बोल रही थी पर उसका स्वर सामान्य ही था। उसने अभियुक्त की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह उसका छोटा बेटा है। वह आवारा, जुआरी, शराबी और दुव्र्यसनी है। वह पैसो के लिये उससे और उसके पति के साथ मारपीट करता था। घटना के दिन भी वह शराब के लिये पैसों की मांग कर रहा था। उनके पास पैसे नहीं थे इसलिये वह उनके साथ दुर्व्यवहार कर रहा था। तभी वहाँ बड़ा बेटा आ गया। उसने इसका विरोध किया तो इसने चाकू मारकर उसकी हत्या कर दी। सब कुछ इतना अप्रत्याशित और अकल्पनीय था कि बड़ा भाई और माता-पिता कुछ भी नहीं कर सके और उनका बेटा भूमि पर गिरा तो फिर उठ नहीं सका। कलयुगी रावण ने राम का वध कर दिया। बोलते-बोलते वह कहती जा रही थी- अब हमारा खयाल कौन करेगा। हमारा खयाल रखने वाला तो चला गया। यह हत्यारा जेल से बाहर आएगा तो हमको भी चैन से नहीं रहने देगा। यह हमें भी मार डालेगा। उसकी आँखों से झर-झर आँसू टपक रहे थे।

इसके बाद बारी उसके पिता की थी। उसके पिता की हालत और उसका बयान भी वैसा ही था जैसा उसकी माँ का था।

सब कुछ आइने की तरह साफ था। बुरे काम का बुरा नतीजा होता है। यहाँ भी वही हुआ। भाई के उस हत्यारे को आजीवन कारावास दे दिया गया। नशे और क्रोध के कारण व्यक्ति का मानसिक संतुलन एवं सोचने की क्षमता शून्य हो जाती है उस वक्त वह आवेश में यह नही सोच पाता कि उचित और अनुचित क्या है ? यदि ऐसे क्षणों में हम अपने आवेश को कुछ काबू में रख सकें तो अनेकों आपराधिक घटनाओं से बचा जा सकता है।

प्रकरण समाप्त हो गया किन्तु यह प्रश्न अभी भी शेष है कि यह सामाजिक बर्बादी कब और कहाँ थमेगी और इसे कौन रोकेगा ?

45. माँ

डा. शिवा सिंह सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक हैं। वे करूणामयी एवं संवेदनशील हृदय की स्वामिनी हैं इसलिये अपने मरीजों के बीच भी अत्यन्त लोकप्रिय हैं। उनके जीवन की यह अविस्मरणीय घटना है जिसने उनके चिन्तन को एक नयी दृष्टि दी है।

संध्या होने वाली थी। वे बस से उतरकर बस स्टाप पर खड़ी हुई थी। घर जाने के लिये एक रिक्शेवाले को तय किया। बीस रूपये में तय हुआ। वह रिक्शे पर बैठ गई। अभी आधा रास्ता भी तय नहीं हो पाया था तभी वर्षा होने लगी। पानी तेज था। रिक्शेवाले ने रिक्शा रोका और एक प्लास्टिक की पन्नी से पूरे रिक्शे को ढक दिया ताकि सवारी पानी से सुरक्षित रहे। उस समय डा. शिवा ने ध्यान दिया कि रिक्शेवाला एक कमजोर और बुजुर्ग व्यक्ति है। उसने उसे तो बरसात से बचा लिया था किन्तु उसके पास स्वयं के लिये न तो बरसाती थी और न ही कोई कवर। वह उससे बात करने को बेचैन हो गई किन्तु बारिश की तेज आवाज में उससे बात करना संभव नहीं था।

घर पहुँचने पर शिवा ने उस रिक्षेवाले को घर के भीतर बरामदे में बुला लिया और एक पुराना तौलिया लाकर उसे दिया जिससे वह अपना शरीर सुखा सके। और उससे कहा- दादा ऐसी बारिश में तुम गीले होकर रिक्शा चला रहे हो ऐसे में तो तुम बीमार पड़ जाओगे। अपने लिये एक बरसाती तो रखा करो।

शिवा को उम्मीद नहीं कि थी कि वह ऐसा उत्तर देगा। वह बोला- मेडम मेरा कौन है जो चिन्ता करेगा। बीमार भी हो गया तो क्या?

क्यूं दादा?

वह चुप रहा।

शिवा ने फिर पूछा- दादा तुम्हारे परिवार में और कौन-कौन है?

कोई नहीं है मेडम। जिन्दगी के सताये हुए हैं।

यह कहते हुए उसकी आवाज बहुत धीमी हो गई थी। उसके स्वर में उसके जीवन का अकेलापन बहुत गहराई से झलक रहा था।

उसने फिर कहा- फिर भी कम से कम अपने लिये एक बरसाती तो ले ही लो।

मेडम रिक्शा चलाकर दोनों वक्त का खाना खा लें यही बहुत है। बरसाती कहाँ से आएगी?

शिवा ने अपने पर्स से निकाल कर उसे तीन सौ रूपये दिये और कहा- दादा इन पैसों से अपने लिये बरसाती ले लेना। इन पैसों से दारु मत पीना, बरसाती के लिये दिये हैं तो बरसाती ही लेना।

वह अवाक होकर उसकी ओर देखने लगा। कुछ ठहरकर उसने पैसे ले लिये। उसकी आँखों में आँसू थे जो उसके गीले चेहरे पर भी बहते हुए साफ दिख रहे थे। वह स्वयं से कह रहा था- माँ...... तुम मेरी माँ हो... वह बोझिल कदमों से चलता हुआ रिक्षा लेकर आगे बढ़ गया।

उस समय तो शिवा नहीं समझ सकी कि उसने ऐसा क्यों कहा? किन्तु कुछ समय बाद उसे समझ में आया कि वह मुझे माँ कहकर बतला गया कि निस्वार्थ प्रेम सिर्फ माँ ही कर सकती है। बिना किसी उम्मीद के सिर्फ देना और देते रहना वह माँ है ।

46. विनम्रता

एक शिक्षक से विद्यार्थी ने प्रश्न किया कि जब तेज आंधी तूफान एवं नदियों में बाढ़ आती है तो मजबूत से मजबूत वृक्ष गिर जाते हैं परंतु इतनी विपरीत एवं संकटपूर्ण परिस्थितियों में भी तिनके को कोई नुकसान नही पहुँचता, जबकि वह बहुत नाजुक एवं कमजोर होता है। शिक्षक महोदय ने उससे कहा कि जो अड़ियल होते हैं और झुकना नही जानते हैं वे विपरीत परिस्थितियों में टूट कर नष्ट हो जाते हैं। तिनके में विनम्रता पूर्वक झुकने का गुण होता है इसी कारण वह अपने आप को बचा लेता है। हमें भी अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आने पर विनम्रतापूर्वक झुककर उचित समय का इंतजार करना चाहिये

47. संघर्ष

एक मुर्गी के अंडों से चूजें बाहर आने के लिये संघर्ष कर रहे थे। वहाँ पर एक दस वर्षीय बालक मोहन उन अंडों की तरफ देखकर सोच रहा था कि यदि मैं इन अंडों को तोड़ दूँ तो उसमें से चूजों का बाहर आने का रास्ता सुलभ हो जाएगा और वे आसानी से बाहर आ जाएंगे। उसने उन अंडों को तोड़ दिया और चूजे बाहर आ गये परंतु वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि वे सभी चूजे पैरों से कमजोर थे और अन्य चूजों की तुलना में उनकी चलने की गति भी कम थी। मोहन ने अपने दादाजी के पास जाकर उन्हें पूरी जानकारी दी और उनसे पूछा कि मैंने तो चूजों की मदद के लिये यह काम किया था परंतु चूजे इतने कमजोर क्यों हो गये हैं। उसके दादाजी ने उसे समझाया कि चूजे जब अंडे के अंदर रहते हैं और जब वे संघर्ष करके अंडे के खोल को तोडकर बाहर आते हैं इस दौरान उनके पैरों को काफी परिश्रम करना पडता है जिससे वे स्वयं ही मजबूत हो जाते हैं तुम्हारे इस कृत्य के कारण उनके पैर कमजोर रह गये हैं। यही कारण है कि तुम्हे दूसरे चूजों की तुलना में अंतर महसूस हो रहा हैं। यह बताते हुए दादाजी ने कहा कि जीवन एक संघर्ष है और यही विकास की आधारशिला है यह वास्तविकता है कि कोई भी उपलब्धि संघर्ष एवं मेहनत के बिना नही मिल सकती है।

48. दूरदृष्टि

रावण एक बुद्धिमान, ज्ञानवान, वेद पुराण का ज्ञाता तथा कुशल प्रशासक था। वह युद्ध में राम से पराजित होकर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था। उसकी यह दशा देखकर विभीषण उनसे मिलने जाते हैं।

रावण उन्हें देखते ही कहता है कि मेरी मृत्यु का कारण तुम ही हो। राम को मेरी मृत्यु के भेद की जानकारी तुमने दी थी अतः तुमने विश्वाससघात किया है एवं तुम देशद्रोह के अपराधी हो तुम राजगद्दी पाकर लंकाधिपति कहलाओगे परंतु तुम्हें हर ओर लाशो की सडांध नारियों का आर्तनाद, रोती सिसकती महादुर्गती एवं युद्ध की विभीषिका में बर्बाद हो गयी लंका मिलेगी।

राम सुख, समृद्धि और वैभव से परिपूर्ण अयोध्या की राजगद्दी पर बैठेंगे। तुम अपने आप को नीतिवान, ईमानदार और धर्म के प्रति समर्पित व्यक्तित्व के धनी मान सकते हो परंतु इतिहास में तुम घर का भेदी लंका ढाए के रूप में ही जाने जाओगे।

राम अमर होकर घर घर में पूजे जायेंगे और उनके मंदिर बनेंगे। तुम्हारा ना ही कोई मंदिर बनेगा और ना ही तुम्हें यथोचित मान सम्मान प्राप्त होगा। यह जीवन का यर्थाथ और मेरी भविष्य दृष्टि है कि भ्रातद्रोह का परिणाम एवं देशद्रोह की परिणिति ऐसी ही होती है।

इसके बाद राम के कहने पर लक्ष्मण जी रावण से ज्ञान प्राप्त करने हेतु उनके पास पहुँचते हैं उन्हें देखकर वह उनसे कहता है कि लक्ष्मण जीवन में जो अपने आप को सर्वशक्तिमान समझकर अपने बल पर घमंड करने लगता है एवं मदांध होकर धर्मपथ को भूल जाता है उसका अंत मेरे समान ही होता है

49. शौर्य दिवस

शहर की एक शासकीय षाला में कारगिल युद्ध में हुई हमारी जीत के उपलक्ष्य में विद्यार्थियों के बीच शौर्य दिवस मनाया जा रहा था जिसमें उन्हें हमारी सेना की गतिविधियों, देश के प्रति उनका समर्पण व त्याग एवं कुर्बानी से अवगत कराया जा रहा था। शाला की कक्षा सातवीं में अध्ययनरत् एक विद्यार्थी राम ने अपने शिक्षक से पूछा कि सर मैंने चीन में क्रांति के विषय में मेरे पिताजी से माआत्से तुंग के बारे में सुना है कि उनकी नीति थी कि दुश्मन को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिये। यदि उसे छोड़ दिया जाता है तो वह वापस शक्ति संचय करके आपको हराने के लिये तत्पर रहेगा। उन्होने इसका उदाहरण देते हुये लिखा है कि तत्कालीन प्रशासक चांग काई शेक जो कि उस समय बहुत मजबूत एवं साम्यवाद का घोर विरोधी था, उसने माओ को घेरकर उसके एक लाख सैनिकों में से नब्बे हजार को खत्म कर दिया था। माओ को अपने बचे हुये सैनिकों के साथ भागकर एक पहाडी की तलहटी में छिपकर किसी प्रकार अपनी जान बचानी पड़ी। चांग काई शेक यह सोचकर की उसने क्रांति को दबा दिया है, उसने अपना ध्यान माओ से हटाकर दूसरे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों की ओर लगा दिया। माओ चुपचाप अपनी शक्ति में इजाफा करता गया और एक दिन उसने अपने सीमित संसाधनों, दृढ़ निश्चय एवं पराक्रम से चीन में तख्ता पलट करके सत्ता हथिया ली।

हमारी सेना ने कई बार पाकिस्तान को युद्ध में मुँहतोड़ जवाब दिया है और कारगिल भी उसी का एक उदाहरण है। हम इस समस्या का पूर्णतया निदान क्यों नही कर पा रहे हैं। यह सुनकर शिक्षक महोदय ने गंभीरता पूर्वक उसे समझाया कि हमारे देश में लोकतांत्रिक सरकार है जिसमें जनता ने अपने प्रतिनिधियों को चुनकर निर्णय लेने का अधिकार प्रदान किया है। चीन में तानाशाही है और निर्णय लेने में सेनापति का भी हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहता है इसलिये वे कठोर निर्णय भी लेने में सक्षम है। हमारे देश में इस प्रकार के महत्वपूर्ण सामरिक निर्णय प्रधानमंत्री एवं उनका मंत्रिमंडल लेता है जिसमें सेना का सीधा कोई हस्तक्षेप नही रहता है परंतु इसमें तीनों सेनाओं के अध्यक्ष राष्ट्रपति की सहमति अनिवार्य रहती है। हमें अपनी सरकार पर भरोसा रखना चाहिये कि वे जो भी निर्णय लेते हैं वे देशहित को सर्वोपरि रखते हुये ही लिये जाते हैं।

50. नवजीवन

हमारे जीवन में कभी कभी ऐसी घटनायें घटित होती हैं जो दुखदायी होते हुये भी हमारी अंतरात्मा की चेतना को जाग्रत कर हमारे जीवन की धारा को बदल देती हैं। ऐसा ही एक वृतांत मुझे मेरे मित्र रामसिंह ने उसके जवानी के दिनों में घटित सच्ची घटना को बताकर मुझे चिंतन के लिये मजबूर कर दिया था।

उसने बताया कि यह बात आज से बीस वर्ष पुरानी है। मैं एक कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत था और अपनी पत्नी एवं पुत्र के साथ सुखमय जीवन बिता रहा था। एक दिन मेरा एक मित्र कार्यालय से निकलने के बाद मेरे ना करने पर भी मुझे एक बार में ले गया। वहाँ पर सब नृत्य के साथ साथ मदिरापान का भी आनंद ले रहे थे और आर्कषक बार बालाएँ अपने नृत्य एवं भाव भंगिमाओं से आगंतुकों का मन मोह रही थी। इन्ही में कुसुम नाम की एक बाला मेरे समीप आकर बैठ गई। उसके आर्कषक व्यक्तित्व एवं मीठी वाणी ने मुझे सहज ही अपनी ओर प्रभावित कर लिया। अब मैं प्रतिदिन उससे मिलने के लिये बार में जाने लगा और दोनों हाथों से उसके ऊपर रूपये लुटाने लगा। इसका नतीजा घर में धन की कमी से आपसी कलह होना प्रारंभ हो गई। एक दिन पत्नी को सारी बातों के पता चलने पर वह मुझे छोडकर, पुत्र के साथ मायके चली गई।

अब मैं और भी ज्यादा स्वछंद हो गया था और दिन रात शराब के नशे में डूबकर कुसुम के साथ समय बिताने लगा एक दिन धन के अभाव के कारण उसके द्वारा चाहे गये उपहार को नही दे पाया तो उसने अपना असली रूप दिखाते हुये मुझसे कहा अब तुम यहाँ पर आने और मेरे से बात करने के काबिल नही रहे यहाँ पर सम्मान उसी का होता है जो धनवान होता है धन विहीन एवं भिखारियों के लिये यहाँ कोई जगह नही है। तुम क्या थे इससे मुझे कोई मतलब नही है तुम आज क्या हो मैं इसी को महत्व देती हूँ अब तुम मेरे पास से रफा दफा हो जाओ और आगे से यहाँ आने या मेरे से मिलने की जुर्रत कभी मत करना। इन शब्दों को सुनकर मुझे गहरा आघात लगा और अत्यंत आंतरिक वेदना के साथ वहाँ से बाहर चला गया। मुझे नौकरी से हटा दिया गया था पत्नी के अभाव और वक्त के थपेडों ने मुझे आंतरिक रूप से तोडकर निराश कर दिया था।

मुझे अब अपनी पत्नी का मेरे प्रति प्रेम और त्याग की अनुभूति का स्मरण होने लगा था। मैंने परमात्मा से हृदय से अपनी गलतियों के लिये माफी माँगी और प्रार्थना की कि मेरी पत्नी मुझे माफ कर दे और मुझे एक मौका जीवन में सुधरने का दे दें। इसी उहापोह में मैं अपने ससुराल जाकर पत्नी को वापिस लाने के लिये अनुरोध करने लगा। मेरे बहुत समझाने के बाद वह यह सोचकर कि जीवन में गलती किससे नही होती, उसने माफ कर दिया और मेरे साथ वापस अपने घर आ गई। गृहलक्ष्मी के घर आते ही मानो मुझमें नई ऊर्जा का संचार हो गया और प्रभु कृपा से एक बडी कंपनी में पुनः कार्यरत हो गया। मैं अब जीवन में हर कदम संभल संभलकर रखने लगा और धीरे धीरे कठिन परिश्रम, पक्का इरादा एवं सकारात्मक सोच से पुनः सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा हूँ।

वह मेरी ओर देखकर बोला कि यह वृतांत मैंने तुम्हें इसलिये बताया है कि प्रभु कृपा से तुम अपनी कड़ी मेहनत एवं परिश्रम से धन उपार्जन कर रहे हो। मुझे शंका है कि कहीं तुम इस प्रकार के प्रपंचों में उलझ ना जाओ इसलिये मैं तुम्हें इनके परिणामों के प्रति आगाह करा रहा हूँ। मेरी बातों को अन्यथा मत लेना तुम्हारा सच्चा मित्र एवं हितैषी होने के कारण इतनी बातें कहने की हिम्मत जुटा सका।