-उपन्यास
भाग—बारह
अन्गयारी आँधी—१२
--आर. एन. सुनगरया,
..........कार अपनी स्वभाविक गति से चलती जा रही है। मगर अन्दर बैठे स्वरूपा-शक्ति का मौन, मानसिक कष्ट का कारण बनकर असहनीय होता जा रहा है। दोनों बात करने के लिये कोई संदर्भ-विषय इत्यादि का ओर-छोर तलाश कर पकड़ना चाह रहे हैं, मगर कुछ गुन्जाईस नहीं निकल पा रही है, बात शुरू करने की। शक्ति ने सन्नाटा तोड़ा, ‘’घर दूर है, क्यों ना कुछ नास्ता-पानी हेतु रूका जाये।‘’ दोनों एक-दूसरे को ताकने लगते हैं। स्वरूपा चुप ही रहती है, शक्ति बोला, ‘’सफर करके आ रही हो! भूख तो लगी होगी। लेते हैं, चाय-काफी।‘’ हल्की सी मुस्कान।
‘’हॉं हॉं जरूर........।‘’ स्वरूपा जैसे तैयार ही थी, औपचारिकता की प्रतीक्षा में थी।
‘’ड्राइवर जी।‘’ शक्ति ने ड्राइवर की ओर देखा, ‘’आगे कॉफी हाऊस के पास कार लगा लें।‘’
‘’जी!’’ ड्राइवर का स्वर!
स्वरूपा-शक्ति एकांत में लगी टेबल-कुर्सी को पसन्द करके बैठ गये। पूरे हॉल का उड़ती नजर से जायजा ले ही रहे थे कि बैरा आर्डर लेने आ खड़ा हुआ, पैड लेकर, ‘’येस सर.....।‘’
‘’हॉं स्वरूपा.....दो आर्डर।‘’
‘’कुछ स्नेक्स व कॉफी।‘’ स्वरूपा लहजे में बोली।
‘’यही मेरे लिये।‘’ शक्ति ने ईशारे से ‘’वो उधर नुक्कड़,……बैठे सज्जन को भी, जो वह चाहें........।‘’
बड़ी झुंझलाहट भरी स्थिति है, यहॉं भी चुप-चाप.......कोई बात-चीत कहीं.........नास्ते में भिड़े हैं। शक्ति साहस नहीं कर पा रहा था, क्या किस्सा छेडूँ कहॉं से शुरू किया जाये। कार के पास सौंफ चबाते हुये स्वरूपा ने ही औपचारिकतावश पूछ लिया, ‘’कैसी है सपना और बच्चे।‘’
शक्ति ने तपाक्क बताया, ‘’बच्चे।‘’ तो स्कूल में हैं, सपना अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त रहती है।‘’
‘’और तुम....?’’ स्वरूपा अपने बन्द औंठों को परस्पर एक दूसरे पर मसलते-रगड़ते हुये हल्की गुप्त, मगर गहरी मुस्कान का रसास्वादन का मजा लेते हुये, ‘’बेईमान भंवरे की भॉंति......कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर.....क्यों।‘’ स्वरूपा मुस्कुराते-मुस्कुराते खुलकर हंसने लगी.....।‘’
शक्ति शर्म से गड़ा जा रहा था, अवाक्य ही, उसे देखता रहा,……गाल पर बन रहे डिम्पल।
शक्ति सोचने लगा,……..स्वरूपा अपने मुख्य मकसद की राह पर आने की ओर संकेत कर रही है। बहुत ही घुटी हुई, पारंगत खिलाड़ी की तरह विरोधी को समर्पित कराकर स्वयं समर्पित होकर परम आनन्द का स्वाद चखती है, बेखटके। भरपूर चूसकर छोड़ती है, खाली बोतल की भॉंति लुड़कती-पुड़कती हुई।
‘’कहॉं खो जाते हो, बार-बार.......।‘’ स्वरूपा के चेहरे पर चाहत भरी फटकार झलक रही है। ओर! दमकता लावण्य, बैसुध करता जा रहा है। नजरों हटानी होंगी.......।
‘’मैं कुछ बोल रही हॅूं.....।‘’ स्वरूपा सामान्य लहजे में।
‘’नहीं, कोई खास नहीं.......।‘’ शक्ति कुछ सकपकाया, हड़बड़ाया, सिटपिटाया जैसा लगा। आगे कुछ बोलते नहीं बना।
‘’इधर किनारे में, बायें ओर ले लो ड्राइवर जी।‘’ शक्ति ने कहा, ‘’घर आ गया।‘’
स्वरूपा का सामान तो कुछ ज्यादा था नहीं, शक्ति हाथ में लटकाये-लटकाये दहलीज तक पहुँचकर रूक गया।
स्वरूपा-सपना, उत्साह, उमंग एवं हर्सोल्लास में ओत-प्रोत होकर......एक-दूसरे को गले लगाकर एैसे कस कर लिपटी हुई थीं, जैसे सालों बाद मिलन हुआ हो। दोनों भावुक हो गईं। दोनों बिलकुल समरूप, लम्बी–लछारी, भरीपूरी देह खूबसूरत डील-डौल दमकती सुन्दर सूरत पर थरथराती चॉंदनी की झिलमिलाती चमक के बीच खिलखिलाती निश्च्चल, निर्मल, हंसी, जैसे झरने की सुरमयी सरगम ......दोनों लगभग रंग-रूप, चेहरा-मोरा, सबकुछ समान दर्शी......तो फिर स्वरूपा में खिचाव एवं अधिक आकर्षण क्यों महसूस होता है। इसमें भी कुदरत का कोई रहस्य होगा, जरूर!
‘’गेस्ट रूम की सफाई करवा दी हूँ।‘’ शक्ति के मुखातिब होकर सपना, ‘’स्वरूपा का सामान रूम में रख दो।‘’ स्वरूपा के कन्घे पर हाथ रखकर, ‘’तैयार हो लो......तब तक मैं भोजन बना लेती हूँ।‘’
‘’ठीक है।‘’ स्वरूपा ने मुण्डी हिलाई। शक्ति, सपना का सारा एक्शन देख रहा है। आर्डर पर आर्डर.......।
सपना विचारों में तल्लीन हो गई............
.......बचपन से अभी तक कभी छोटी-बड़ी बहन का व्यवहारिक रिश्ता, हर हमेशा एक दूसरे की अभिन्न सहेली-सखी के समान रहा। साथ-साथ पढ़ी-लिखी, खेली-कूदीं, लगभग प्रत्येक शरारत से लेकर अन्य सभी कार्यकलाप एक साथ रहकर किया करते थे। माता-पिताजी या अन्य पारिवारिक आदर्णियों की डॉंट-फटकार, प्यार-स्नेह, नसीहत, समझाईश तक, एक-दूसरे से सांझा करते थे। संयुक्त योजनाबद्ध कार्य करने का संकल्प लेते ही भूल जाते थे। फिर वही उदण्डता, छेड़-छाड़, उधम-मस्ति, धमा-चौकड़ी, हंसी-ठिठोली, परस्पर खुशी-गम, रूठना-मनाना, मिल-जुलकर खाना-पीना-खेलना, स्वभाविक बचपन की अठखेलियॉं, वाद-विवाद, झगड़े-झंझट, शिकायत-शिकवे। किशोरावस्था अथवा युवावस्था की अंगड़ाईयॉं, अक्ख्ाड़पन, इठलाना, लचकना-बलखाना, प्यार-मोहब्बत, हंसी-मजाक-दिल्लगी, स्वछन्दता, भविष्य के सुनहरे, सुहाने सपने बुनना सब कुछ अनुभूतियों को संग-संग महसूस की हैं। दोनों की भावनायें एक, कामनाऐं एक, अभिलाशाऍं एक, इच्छाऐं एक, समग्र आधा-आधा.......अपार खुशियॉं भरा पड़ाव शादी ने किया जुदा-जुदा, दो आत्माओं को।
स्वरूपा की शादी बहुत ही छान-बीन एवं सोच-विचार करके, अच्छे खाते-पीते परिवार में की गई। उसको हृष्टपुष्ट, तन्दुरूस्त, पढ़ा-लिखा, नौकरी वाला पति सुदामा कॉलेज में प्राध्यापक है। हंसी-खुशी, अमन-चेन अच्छे स्तरीय पारिवारिक जीवन यापन हो रहा था। दो साल बाद, स्वरूपा पर मुशीवतों का कहर टूट पड़ा, पति सुदामा को पैरालेटिक दौरा पड़ गया। ताबड़-तोड़ चिकित्सा के बावजूद भी आंशिक दिव्यांगता बची ही रह गयी स्थाई रूप में। जिससे कुछ अस्वभाविक समस्याऍं आती हैं। रोजमर्रा के कामों में। अन्यथा खुशी-खुशी प्रगति-पथ पर अग्रसर थे। मगर मार्ग में बाधाऐं आ गईं। उनसे निवटते रहना होगा।
स्वरूपा ने बहुत ही आत्म-मंथन, विचार-विमर्श कर सारे पहेलुओं को देख-परख कर, लाभ-हानि पर गौर करके। प्रतिष्ठा और आत्म सम्मान के दायरे में रहकर सामाजिक मापदण्डों एवं नैतिक मूल्यों को सुरक्षित रखते हुये। परम्परागत पैमानों के अन्तर्गत रहकर निर्णय लेने से समग्र शाश्वत तत्वों पर ऑंच आये वगैर तय किया गया कार्य समाज के सभी वर्गों में सराहनीय एवं प्रसन्सनीय होता है।
वर्तमान परिस्थितियों के दवाब में आकर स्वरूपा ने अपने परिवार के सुचारू पालन-पोषण शिक्षा-दिक्षा के लिये कुछ महत्वपूर्ण योजनाबद्ध मार्ग अपनाये। जिन्हें सपना ने सराहा, प्रसन्नसा की एवं हर सम्भव सहायता तथा सहयोग देने का सकारात्मक आश्वासन दिया। जिसको क्रियाम्वित करने का समय आ गया। इसी कड़ी में स्वरूपा, सपना की शरण व संरक्षण में आई है। हर हाल में स्वरूपा के परिवार को सम्भालने, संवारने, सलामति के लिये प्रत्येक, प्रयास का प्रयोग करने में कोई कोताही नहीं होगी! दृढ़तापूर्वक पालन होगा।
भोजनोपरान्त, हल्की-फुल्की तनावरहित, औपचारिक हंसी-ठिठोली भरे लहजे में चर्चा-गप्प-शप्प चल रही थी, कि सपना ने माहुल का रूख्, मोड़ा, ‘’सबसे पहले तो, स्वरूपा तुम्हें, शक्ति और मेरी ओर से शुभकामनाऍं।‘’ शक्ति भी चौकन्ना होकर सपना के साथ स्वरूपा से दोनों एक साथ हाथ मिलाते हुये, उसे बधाई देने लगते हैं, गर्मजोशी एवं प्रसन्नता पूर्वक, ‘’कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुई हो।‘’ शक्ति ने आगे जोड़ा, ‘’यहॉं से तुम्हारा कॉलेज ज्यादा दूर नहीं..।’’
‘’धन्यवाद!’’ स्वरूपा का गला रूंद्ध आया सिर्फ इतना ही बोल पाई। गदगद एवं प्रसन्न मुद्रा में, आगे बताया, ‘’बहुत ही चुनौति पूर्ण निर्णय है।‘’ स्वरूपा ने दृढ़ता से कहा, ‘’सुदामा को, दिव्यांग होते हुये भी, अकेला छोड़ना पढ़ेगा, एक सहायक के भरोसे।‘’ कुछ सोचने के पश्चात बोली, ‘’बेटे को आवासीय विद्यालय में भर्ती करना होगा। उसके उज्जवल भविष्य के लिये।
‘’अच्छा है, उसके साथ हमारे बच्चों को भी कम्पनी मिलेगी। साथ-साथ पढ़ेंगें-बढे़ंगे।‘’ शक्ति ने वातावरण खुश करने की कोशिश की। सफल भी हुआ बोझिल माहोल खुश मिजाज हो गया। सभी लोग मुस्कुराते, हंसने लगे।
शक्ति सुबह-सुबह की शुद्ध शॉंत शीतल प्राणवायु का सेवन करते हुये, अखबार की सुर्खियों पर नज़रें घुमा रहा था। चौंका।
‘’गुड मोर्निंग!’’ हेमराज आ धमका।
‘’गुड......गुड मोर्निंग।‘’ हेमराज को गौर से देखते हुये शक्ति ने पूछा, ‘’कैसे।‘’ आगे स्वागत सत्कार की मुद्रा में, ‘’आओ, बैठो, ‘’चाय-नास्ता.......।‘’ हेमराज पूरा वाक्य सुने वगैर ही, शक्ति के साथ पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। कुछ देर मौन, फिर शक्ति का आदेशात्मक स्वर, ‘’सपना! चाय-नास्ता भिजवाओ, हेमराज आया है।‘’
‘’जी, अभी....अभी....।‘’ सपना की संक्षिप्त स्वीकृति।
‘’छुट्टी तो खत्म.......।‘’ हेमराज ने याद दिलाया, ‘’कब चलना है, ड्यूटी।‘’
‘’तुम पहुँचो, ड्यूटी।‘’ शक्ति ने अपनी व्यस्तता, असमर्थता एवं समस्या बताई, ‘’मैं एक-दो दिन बाद आऊँगा।‘’
‘’क्यों......।‘’ हेमराज ने आश्चर्य व्यक्त किया।
‘’कुछ पारिवारिक कार्य आन पड़ा है, मेरे लाईक......।‘’
हेमराज को लगा शक्ति स्पष्ट बताना नहीं चाहता, क्या काम है। ख़ैर! होगी कुछ निजि समस्या। शक्ति की आदत में ही है अपने-आप को रहस्यमय बनाये रखना। मालूम तो हो ही जायेगा कभी! हेमराज खोजी प्रवृति का प्राणी था। अविलम्ब सूंघना शुरू कर दिया। कुछ खोज परक प्रश्न दागने ही वाला था, कि सुरीले स्वर सुनाई दिये, ‘’लो चाय-स्नेक्स।‘’
हेमराज अचम्भित नजरों से कुछ समझने की कोशिश कर रहा था कि शक्ति ने परिचय दिया, ‘’ये स्वरूपा है, मेरी साली!’’
‘’बताया नहीं पहले!’’ हेमराज ने नजरें हटाये वगैर पूछा।
‘’अभी तो आई है।‘’ शक्ति ने स्वरूपा की ओर देखकर, ‘’ये मेरे सहकर्मी, हेमराज है।
‘’नमस्ते।‘’ हाथ जोड़कर बहुत ही मिठास भरी ध्वनी में मुस्कुराते हुये आकर्षक अन्दाज में अभिवादन किया, स्वरूपा ने, पूर्ण शिष्टाचारिक नियमानुसार।
हेमराज को अवाक्य देखकर शक्ति ने टोका, ‘’नमस्ते कर रही है।‘’
‘’नमस्ते–नमस्ते!’’ हेमराज चौंकते हुये, ना जाने क्या सोचने लगा।
स्वरूपा अन्दर चली गई। शक्ति ने धीमी हंसी के साथ पूछा, ‘’क्या हुआ।‘’
‘’अरे यार मैं तो सन्न रह गया। बहुत खूबसूरत है।‘’ चमकी बिजली...ऑंखें चौंधिया गईं।
‘’हेमराज! शिष्टाचार का ख्याल........।‘’
दोनों निश्च्छल हंसी में मग्न हो गये.............
न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्
--क्रमश: --१३
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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