ANGYARI ANDHI - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्‍गयारी आँधी - 8

---उपन्‍यास

भाग—आठ

अन्‍गयारी आँधी—८

--आर. एन. सुनगरया,

सामाजिक परिवर्तन, समय के साथ वाजिब है, स्‍वभाविक है। परन्‍तु प्राकृतिक मूल तत्‍वों का बदलाव अथवा हृास किसी भी दृष्टि से मुनासिब नहीं हो सकता। स्‍वार्थपरता के तात्‍कालिक परिणामिक लाभ के लोभ में चारित्रिक नैतिक मूल्‍य जैसे प्रमुख्‍य मूल तत्‍व को नजर अन्‍दाज करना, किसी भी स्‍तर पर उचित व अनुकूल नहीं हो सकता। इसके प्रभावी दुष्‍प्रभाव अवश्‍यभावी हैं। सा‍माजिक दायित्‍वों को सम्‍पूर्ण मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही निभाया जा सकता है। इसी से मानवीय कल्‍याणकारी वातावरण, परयावरण, और जलवायु का विकास एवं संरक्षण निरन्‍तर सम्‍भव होगा। सामूहिक प्रयास से यह कार्य श्रेष्‍ठस्‍तर पर हो सकेगा। आरम्‍भ कर दीजिए।

शक्ति साले की शादी से अभी-अभी लौटा है। तकिये पर सर रखकर, ऑंखें मूँदकर लेटा, दार्शनिक की भॉंति विचारमग्‍न लग रहा है.........

............बहुत आत्‍मग्‍लानि महसूस हो रही है। अपने टुच्‍चेपन एवं छिछौरेपन पर.......नीयत व नैतिकता दूषित थी, इसी कारण व्‍यक्तित्‍व में चारित्रिक स्‍खलन का शिकार हुआ। साफ-सुथरे, उजले, मैलरहित दिल-दिमाग एवं आत्‍मा का नितांत अभाव महसूस हुआ। संस्‍कारों को बॉंधे रखने वाले बन्‍धन ही लुन्‍ज-पुन्‍ज निस्क्रिय हो गये, लगते हैं।

.........मंडप के नीचे ऑंगन में कुछ परम्‍परागत रस्‍में-रिवाज सम्‍पन्‍न हो रहे थे। मुख्यता यह क्रिया-कलाप महिला मंडल द्वारा ही निवटाया जाना था। पुरषों का प्रवेश साधारणत: निषिध था। मगर हम जैसे एक्‍का-दुक्‍का जंवाई/जंमाई ही स्‍वत: अनुमति प्राप्‍त सदस्‍य उपस्थित थे। निगाहों में सौन्‍दर्य सागर हिलौरें ले रहा था। भिन्‍न-भिन्‍य इत्र व अन्‍य सुगन्धित साधनों की मिश्रित सुगन्‍ध ने मस्‍ती का माहौल निर्मित कर दिया था। जीवन्‍त वातावरण ने सर्वथा सारी सम्‍वेदनाओं को अपने मादक गिरफ्त में अदृश्‍य घागों के रेशमी जाल के सानिद्ध में समग्र सौन्‍दर्य साम्रागनियों के चित्रों सी चमचमाई स्‍वर्ण सुन्‍दरियों को स्‍वप्‍न समान संग्रह में सहजने में सफल होते, अभूतपूर्व अनुभूति हो रही है। प्रत्‍येक परी सजी-सम्‍भरी श्रंगार में परिपूर्ण कुछ दस्‍तूर के लिये एकाग्रता पूर्वक कमर तक झुकती है। रस्‍म अदा कर पुन: अपनी जगह पूर्ववत खड़ी होकर ध्‍यानपूर्वक कार्यक्रम को अनवरत देखने लगती है। यह क्रम लम्‍बे समय तक चलता रहा। अन्‍त तक कार्यक्रम का प्रत्‍येक्ष दर्शक बना रहा, शक्ति। सभी अति सुन्‍दर-सुन्‍दरियों का सौन्‍दर्य को संजोते रहा। उसकी चेतना स्‍वत: ही एकाग्र हो गई।

रस्‍म रिवाज, दस्‍तूर का मॉंगलिक कार्यक्रम अपनी गरिमामयी ऊँचाईओं पर पहुँच चुका था; तभी शक्ति की टकटकी भंग हो गई, हृदय में हॅूंक सी उठी, कैसा ऊबाल है, जैसे अंगारों पर रखा दूध, उबल रहा हो, छलकने के लिये आकुल, लबालब।

वह फौरन खुली दहलान में आकर, राहत की सॉंस लेने की कोशिश करने लगा, तभी उसने गौर किया, जानी-पहचानी साड़ी पहने सपना, तेज गति से कमरे में घुसते ही बत्ती बन्‍द हो जाती है। शक्ति को लगा, मौन आमन्‍त्रण है। वह लम्‍बे-लम्‍बे डग भरता कमरे की चौखट पर ठिठक गया। अन्‍दर से गदराई-गदराई मस्‍त सॉंसों की तरंगें मन-मस्तिष्‍क में सुरूर घोल रही थीं। दबे पॉंव बढ़ा, मध्‍यम अन्‍धेरे में कोई आकृति पलंग पर, चादर औढ़े कशमशा रही है।

शक्ति की ऑंखों में दृश्‍य उतर आये, ……..सपना को ही तो देखा है घुसते हुये........सच! उसकी साड़ी अच्‍छे से पहचानी थी। उसने जगाने अथवा उठाने की गरज से, अंधेरे में ही अपना हाथ बढ़ाया। ......लपककर उसे पलंग पर पटक लिया, बलपूर्वक एक ही क्षण में, लगा, सपना ने उसे अपने ऊपर कसकर चपेट लिया। दोनों की गुत्‍थम-गुत्‍था में पता ही नहीं चला, कितना समय गुजर गया............

मंडप में मांगलिक कार्यक्रम खत्‍म हुआ। स्‍वभाविक गहमा-गहमी, मध्‍यम शोर-गुल, मिश्रित चर्चा एवं हंसी-ठिठोली की आवाज से शक्ति की तल्‍लीनता टूटी, कमरे की बिजली ऑन की तो अवाक आश्‍चर्य चकित, जड़वत पत्‍थर बना खड़ा के खड़ा रह गया। बमुश्किल मुँह खोला, ‘’स्‍वरूपा तुम!!!’’

स्‍वरूपा के चेहरे पर प्रसन्‍नता, शुकून एवं संतुष्टि साफ झलक रही थी। जैसे भरपूर संतृप्‍त होकर निश्चिन्‍त बैठी आराम की मुद्रा में मन्‍द-मन्‍द मुस्‍कुरा रही थी।

‘’गजब हो गया, धोखे में!’’ शक्ति सम्‍भावित समस्‍याओं की शंका-कुशंकाओं की तीव्रता से मुक्‍त होने की कोशिश करता हुआ बताने लगा, ‘’सपना की साड़ी के संदेह में......लगा सपना ही कमरे में घुसी है; मगर........।‘’

‘’तो क्‍या हुआ!’’ स्‍वरूपा अस्‍त-व्‍यस्‍त अंगवस्‍त्र करीने से सम्‍हालती हुई, खुशी-खुशी शक्ति के समीप आकर खड़ी हो गई।

‘’मुगालते में........ये अनैतिक व अबैद्ध कर्म........।‘’

‘’भूखे की भूख मिटाना........।‘’ स्‍वरूपा ने झट तर्क दिया, ‘’गलत........कैसे होगा।‘’

शक्ति सहमते, सिकुड़ते लावण्‍यमयी निगाहों को एक टक देख रहा था। स्‍वरूपा हंसते हुये अन्‍दाज में, ‘’कहो जीजा जी!’’ स्‍वरूपा के प्‍यार का ठूँसा देकर टोंका, ‘’त्‍वरित टिप्‍पणी?’’

‘’बोल्‍ड हो।‘’ शक्ति भी हल्‍का सा हंसने लगा, ‘’बेशर्मी पर उतर आई हो।‘’

‘’कुछ प्रतिक्रियाᣛ ?’’ स्‍वरूपा जिद करने लगी, मस्‍त लहजे में।

‘’सराहनी समागम........।‘’ शक्ति का मुँह खुल ही गया, ‘’अविश्‍मर्णिय ।‘’ स्‍वरूपा के चेहरे की चमक देखकर शक्ति के ओंठों से एक शब्‍द उछल पड़ा, ‘’मजा आ गया।‘’

संयुक्‍त हंसी की खनखनाहट रूम में गूँजने लगी।........सपना का पदार्पण, ‘’किस बात पर खिल-खिला रहे हो।‘’ सपना ने व्‍यंग्‍यात्‍मक स्‍वर में आगे कहा, ‘’जीजा-साली।‘’ उन्‍होंने सपना की आवाज को ध्‍यान दिये वगैर हंसना जारी रखा।

सपना सोने की तैयारी करने लगी, बड़बड़ाते-बड़बड़ाते, ‘’बहुत नींद आ रही है, थक भी गई।‘’ इसी तारतम्‍य में, सपना ने शक्ति से पूछा, ‘’कैसा लगा?’’ अपना काम करती रही। ‘’बहुत अच्‍छा।‘’ शक्ति ने स्‍वरूपा की ओर मादक नजरों से घूरते-घूरते सपना को संक्षिप्‍त उत्तर दिया, ‘’खूब आनन्‍द आया।‘’

‘’तुम्‍हारी साड़ी, स्‍वरूपा पहनी है।‘’ शक्ति ने आश्‍चर्ययुक्‍त कारण बताया, ‘’तभी तो कमरे में घुसा, बात शुरू करते ही तुम आ गई।‘’ शक्ति ने याचक लहजे में, ‘’कभी साली से गुफ्तगू करने का मौका तो दो।‘’

‘’क्‍यों नहीं’’ सपना ने दौनों के बीच से हटते हुये, ‘’तुम्‍हारा तो हक है, साली पर, पूरा नहीं तो आधा ही सही।‘’ सपना ने आगे बताया, ‘’राखी पर दौनों को एक सी ही साडि़यॉं मिली थी गिफ्ट......।‘’

शक्ति ने शुकुन की सॉंस ली। सम्‍पूर्ण सम्‍भावनाओं, शंकाओं एवं कुशंकाओं से अपने आपको मुक्‍त महसूस कर रहा है। मगर दबा-छुपा अपराध बोध तो शेष है ही। आत्‍मग्लानि भी छाई हुई है, दिल-दिमाग पर !

आन्‍तरिक भय से भयभीत, ग्‍लानि के प्रकोप से राहत पाने की उम्‍मीद में घर वापसी की रट लगा ली। दुल्‍हन की विदाई होने पर कोई जिद भी नहीं कर पाया, रूकने के लिये। हॉं सपना ने जरूर कहा, ‘’शुक्र है, इतने दिन ठहर गये, पहली बार।‘’ शक्ति की ओर देखकर मन्‍द–मुस्‍कान के साथ सपना ने अनुमति दी, ‘’मैं अभी सारे सम्‍बन्धिओं के साथ कुछ दिन रहना चाहती हूँ। तुम चलो, ड्युटी का हरजा भी हो रहा होगा।‘’

सपना के अनुसार सभी ने विधीवत शक्ति की विदाई कर दी, पूर्ण परम्‍परागत दस्‍तूरों के निर्वहन करते हुये। बहुत ही आत्मिय।

पूर्ण रूप से विस्‍तार पूर्वक ज्ञात हुआ कि आदिकालिक पद्धिति द्वारा क्रमबद्ध कार्यक्रमों का पालन करना अत्‍यावश्‍यक, अटल, अमिट, अकाट्य, अविस्‍मर्णिय है। नेग, नियम, रस्‍म, रिवाज और दस्तूर सिर्फ मिथक भर ही नहीं, बल्कि सामाजिक संगठन के वाहक, कितने महत्‍वपूर्ण हैं। एक-दूसरे से सम्‍बन्‍धों को सर्वमान्‍य तथा अटूट बनाते हैं, उम्र भर। जीवन परयन्‍त समग्र अस्तित्‍व एक-दूसरे की छत्र छाया में स्‍वत: ही सुरक्षित हो जाते हैं। दो शरीर एक जान की भॉंति। कितनी विचित्र एवं कठिन परिस्थितियों में ही क्‍यों ना आ जायें। दोनों परस्‍पर आत्मिय स्‍तर पर एक-दूसरे को सहारा व संरक्षण देकर हर हाल में भवसागर से पार लगाते हैं। अदृश्‍य कच्‍चे धागों के बन्‍धनों से बन्‍धे हुये। यही तो विधि का विधान एवं संस्‍कृति है।

सभी सम्‍बन्धियों के सानिद्ध में शादी के सभी संस्‍कार सम्‍पन्‍न करते हुये, शक्ति के प्रति उनके बात व्‍योवहार में जो आदर, सम्‍मान, बोल-चाल में शब्‍दों की मिठास, हृदयस्‍पर्शिय स्‍वागत सत्‍कार एवं रोजमर्रा के उपयोग की सामग्री समय व सही स्‍थान पर उपलब्‍द्ध अथवा प्रदाय। यह आत्मिय मेहमान नवाजी सदा-सदा के लिये अभिभूत करने वाली दृश्‍यावली में शामिल हो गये है। यादगार के रूप में।

मायके में प्रवेश पर, सपना का आंतरिक-बाहरी, रंग-ढंग वायुवेग से परिवर्तित होता महसूस हुआ। जैसे अतीत कल की ही बात हो, जो मिलता है, गर्मजोशी, प्रफुल्‍लता पूर्वक ही प्रतीत होता है। सपना भी चहक उठती है। चेहरे पर गजब की रौनक दमक रही है। ऑंखों में खुशी की खुमारी झिलमिला रही है। एैसे थिरक रही है; जैसे स्‍वचलित गुडि़या नृत्‍य में लीन हो। वाणी में घुघरूओं की घुनघुनाहट खनक रही है। सभी परस्‍पर बहुत ही हृदयस्‍पर्शिय अंदाज में आलिंगनबद्ध होकर तृप्‍त हो रहे हैं। पूरा परिवेश संतोषप्रद, हर्षोल्‍लाहास में ओत-प्रोत होकर झूम रहा है। सुन्‍दर सजावट से चमक-दमक व अलग ही अपने जगमग का जादू बिखरे रहा है, सो अलग, चार चॉंद लगा रहा है।

सपना को अति उत्‍साहित, मेल-मिलाप में मन-मुताबिक, मंशा अनुसार मगन देखकर शक्ति भी अभिभूत है। अन्‍यथा सपना की तनी हुई भृकुटि, चेहरे पर तनाव का तमतमाता तेज, आवाज में कठोर कर्कशता वाक्‍यों में समाहित प्रताड़ना, उल्‍लहाना, व्‍यंग्‍य उपेक्षा एवं अनचाहे साथ का पश्‍च्‍चाताप, दाम्‍पत्त जीवन ढोने की विवशता। सब कुछ विपरीत क्रिया-कलाप इत्‍यादि, अतीत में विलुप्‍त अथवा विलीन प्राया प्रतीत हो रहे हैं। या फिर गुजरे जमाने की बात जान पड़ते हैं। ये दिखावटी परिवर्तन होगा, या परिवर्तन की प्रक्रिया अथवा स्‍थाई बदलाब हो चुका है। यह तो भविष्‍य ही बतायेगा।

शक्ति की भी तबज्‍जो पल-पल आदर,सत्‍कार,स्‍वागत,अत्‍यन्‍त सम्‍मानजनक लहजे में देख-रेख, सेवा सुविधा सब समय पर पाकर आत्‍म विभोर महसूस कर रहा है।

सामाजिक उत्‍सव, पारिवारिक मांगलिक कार्यक्रम की परम्‍परा, संस्‍कृति संस्‍कार, सामूहिक मेल-मिलाप, पारम्‍परिक मर्यादाओं का कठोरता पूर्वक स्‍वत: पालन, परिवहन, मानव समाज के लिये अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है। सौहृादपूर्वक भाई-चारे का वातावरण बनाये रखने हेतु। सभी दस्‍तूरों, रस्‍मों, रिवाजों की परिपाठी, ढोंग-ढकोसला, दकियानूसी, अन्‍धविश्‍वास इत्‍यादि का अन्‍धानुकरण भी उचित नहीं है। मगर सामाजिक संगठन बनाये रखने के लिये इन्‍हें मिथक रूप में विवेकपूर्ण, तर्क दृष्टि से मानते रहने में कोई हर्ज नहीं है। बल्कि आवश्‍यक ही है। मानवीय जीवन-दर्शन एवं जीवन निर्देशन में सहायक ही होंगे। आशानुकूल.............।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---९

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

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