ANGYARI ANDHI - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्‍गयारी आँधी - 9

-उपन्‍यास

भाग—नौ

अन्‍गयारी आँधी—9

--आर. एन. सुनगरया,

सपना शादी में बने व्‍यन्‍जन की प्‍लेट शक्ति के सामने रखती हुई, ‘’लो नास्‍ता टाइप.......’’ सोफे पर निढाल धंसते हुये पसर गई, ‘’चाय चूल्‍हे पर चढ़ा कर आई हूँ।‘’ कुरकुरे मुरकू कुतरते-कुतरते, ‘’ रूकना था। विदाई के अगले दिन रिश्‍तेदारों का समूह व घर के लोग पिकनिक चल दिये, लक्‍जरी बस में......जंगल सफारी, मन्दिर, डेम, जल-प्रपात, अनेकों दर्शनीय स्‍थलों का भ्रमण करते हुये, मौज-मस्‍ती में, धमा-चौकड़ी, हंसी-ठिठौली, अविशमर्णिय, आनन्‍द उठाकर, घूमते-घूमते, खाते-पीते, अनेक प्राकृतिक सुन्‍दर-सुन्‍दर सजीव नजारे ऑंखों में सहेजकर, देर रात लौटे।‘’ चाय लाने उठी, सपना, ‘’रूकते तो अच्‍छा रहता, सब पूछते रहे, खासकर स्‍वरूपा, क्‍यों लौट गये.........।‘’

शक्ति ने अभूतपूर्व, सुनहरा अवसर खो दिया। बहुत पश्‍च्‍चाताप हो रहा है; हाथ मलने के सिवा बचा ही क्‍या है।

सपना ने स्‍वयं चाय पीते-पीते टोका, ‘’क्‍या सोच में.........।‘’ आगे संकेत से कहा, ‘’लो चाय...........ठण्‍डी हो रही है।‘’

सम्‍भवत: सपना, मेरे साथ पिछला कसैला समय, कॉंटों की चुभन से भरा-पूरा रवैया भूल चुकी है। सहमी-सहमी, डरी-डरी सी रहा करती थी। अब कितनी खिली-खिली, खुली-खुली, प्‍यारी-प्‍यारी मासूम बातें, मीठी-मीठी, लुभाते लहजे में, पूर्णत: पारदर्शी दृष्टिकोण, अपना-पन, भय रहित, तनाव मुक्‍त नृत्‍य करती मयूरी की भॉंति अपार खुशी से भरपूर, लबालब लग रही है। लचके, लुभाते, थकावट का बहाना करके अंग्‍ड़ाना, बलखाना, जम्‍हॉंईयॉं लेना एवं बच्‍चे के रूठने जैसे अन्‍दाज में बड़बड़ाना, ‘’सारा शरीर टूट रहा है। आराम कहॉं मिला !’’ मादक लहजे में मादक स्‍वर, ‘’मन इतना रम गया, कि नींद तक भाग गई, छूमंतर.........।‘’ बालक सा भोलापन, ‘’मगर हॉं, सभी कार्यक्रमों में मजा आ गया। एक से बड़कर एक इकठ्ठे हो गये थे।‘’

सपना निरन्‍तर बोले ही जा रही है। शक्ति की निगाहों का नशा बढ़ता जा रहा है। दिमाग पूरी तरह आतुर-व्‍याकुल हो उठा, सारे शरीर में बिजलियॉं दौड़ रही है। क्‍यों ना आगोश में भरकर, सपना की खुमारी के साथ अपनी कशमशाहट ही भुना लूँ। उसके अंग-अंग से उठ रही हल्‍दी-चन्‍दन की महक मस्‍ती के लिये विवश कर रही है। शक्ति ने जैसे ही बाँहें फैलाई, वैसे ही सपना मानो गश्‍त खाकर गोद में टपक पड़ी, पके आम की भॉंति, चूसो, जितना चूसना है।

हेमराज की खोज-खबर लेने हेतु, शक्ति ने मोबाइल उठाया ही था कि वह सामने आता दिखाई दिया। गजराज की चाल में, झूमते-झूमते।

सामान्‍य शिष्‍टाचारिक अभिवादन उपरान्‍त, पूछा, ‘’कैसा रहा विजिट!’’ हेमराज बोलता रहा, ‘’स्‍वभाविक सम्‍पन्‍न हुई शादी, साले की।‘’ मुस्‍कुराते हुये, जैसे व्‍यंग्‍य मार रहा हो।

‘’येस।‘’ शक्ति के चेहरे पर आत्‍मविश्‍वास एवं दृढ़ता है, ‘’बिलकुल यूनिक!’’

हेमराज पास पड़ी चैयर खींचकर देहलान में ही बैठ गया, शक्ति के समीप। शक्ति का जवाब ‘यूनिक’ शब्‍द उसके दिमाग को कुरेद रहा है। क्‍या सेन्‍स है, इसकाᣛ? कुछ जुदा अर्थ की ओर संकेत कर रहा है। खैर! आगे बात करने में काफी कुछ खुलासा होने की प्रतीक्षा की जाये, धैर्य पूर्वक ।

‘’तुम बताओ छुट्टी.........।‘’

‘’खेत-खलियान घूम आया।‘’ हेमराज ने तपाक उत्तर दिया, ‘’सबसे मिल-जुल लिया, हाल-चाल जाना, अपनी अच्‍छे-भले की जानकारी देदी बस.........।‘’ सूचना समाप्‍त।

शक्ति ने सन्‍नाटा भंग किया, कहा, ‘’पहली बार शामिल हुआ, शादी संस्‍कार में गम्‍भीरता पूर्वक, शुरू से अन्‍त तक, सम्‍पूर्ण रस्‍म, रिवाज, दस्‍तूरों का चश्‍मदीद गवाह।‘’ शक्ति ने बोलना जारी रखा, बगैर किसी लिखा पढ़ी के, बिना कोर्ट-कचेहरी के, सब कुछ ही मंत्रों के उच्‍चारण को साक्षी मानकर, दो अनजाने या अल्‍पावधि के जाने-पहचाने, कुछ ही क्षणों में परस्‍पर एक-दूसरे के हो जाते हैं, स्‍वात:। सदा-सदा के लिये, बल्कि सात जन्‍मों तक.........। जिसे संसार प्रामाणिक मानता है। अटूट बन्‍धन! ‘’

यह देखकर शक्ति अचम्भित था कि तन-मन-धन से माता-पिता अपने जिगर के टुकड़े को, आत्‍मा के अंश को लाड़, प्‍यार, दुलार, स्‍नेह पूर्वक पालन-पोषण कर खशी-खुशी ऑंसू छलकाते हुये, अपनी इच्‍छानुसार कन्‍यादान कर देते हैं। आदिकाल से निरन्‍तर प्रचलित, रीति, परम्‍परा, पद्धति, परिपाठी, जिसे समग्र समाज स्‍व-इच्‍छा से स्‍वीकार करता है, मानता है, इसे निवाहकर गौरान्वित महसूस करता है। यही अजर-अमर संस्‍कृति का परिचायक है।

‘’समाज के अस्तित्‍व की पहली ईकाई, परिवार!’’ हेमराज ने जोड़ा।

शक्ति को धुन सवार हो गई, अपने विचार व्‍यक्‍त करने की, आगे बोला, ‘’शामिल होना चाहिए सामूहिक समारोहों में, जैसे, जातिगत, पारिवारिक, मांगलिक, विभिन्‍न सार्वजनिक उत्‍सव-महोत्‍सव इत्‍यादि-इत्‍यादि द्वारा अपनी मिट्टी से जुड़े कल्‍चरल की जानकारी से ज्ञान-वर्धन होता है। अपनी प्राचीन सभ्‍यता से रू-ब-रू होने का अवसर मिलता है। इतिहास, कला, धर्म, लोक संस्‍कृति, रहन-सहन, जीवन यापन की पद्धिति आदि-आदि का ज्ञान होने से बौद्धिक विकास में सहायता मिलती है।‘’

‘’वाह-वाह!’’ हेमराज चहक उठा, ‘’आप तो बड़े पंडित बनकर लौटे हैं।‘’ शक्ति के कन्‍धे पर हाथ थपथपाते हुये, ‘’और कोई अनुभव, उपलब्धिᣛ? किसी से तकरार, वाद-विवाद, नाराजगी, क्रोध-गुस्‍सा, कोई भिड़न्‍त।’’

हेमराज का अन्तिम शब्‍द, दिल में धन्‍स गया। स्‍वरूपा से एक दृष्टि से भिड़न्‍त ही तो हुयी है। विपरीत बहती हुई दो धाराओं की। यादगार, प्‍यारी सी, सुखद, इसकी गोपनीयता व सुरक्षा अपनी निजि स्‍वायंत: -सुखाय के सिद्धान्‍त पर करनी होगी। हेमराज भी इसी प्रक्रिया को अपनाता है। इसलिये इस प्रेमप्रकरण को भूलकर भी जाहिर नहीं कर सकता। चाहे कोई कितना भी दबाव क्‍यों ना डाले उगलवाने हेतु। हृदयांगन में सुरक्षित रहेगा।

हेमराज तो चला गया, मगर स्‍वरूपा की याद ने, भोग-विलासी उमन्‍गों को पंख लग गये। स्‍वछन्‍द, खुले आसमान की भॉंति कल्‍पना लोकी वायुमंडल में विचरण करने हेतु विवश हो गया..............

.........सपनों की उड़ान तो व्‍यापक, विशाल एवं आत्‍मा की अनन्‍त चाहत की प्रतिपूर्ती की आवश्‍यकता अर्जित करने का उद्धेश्‍यपूर्ण प्रयास है। अन्‍तर्मन और आत्‍म संतुष्टि प्रकृति की विशेषता है। परम गुण-धर्म, इसी खूबी के बल पर कुदरत मानव के सबसे करीब है। कुदरत के करिश्‍में को कोई अनदेखा नहीं कर सकता। उसका अपना स्‍थाई अस्तित्‍व है। साम्राज्‍य है। प्रभावशाली प्रभाव है। उसके जादू से कोई बच नहीं सकता। संसार पर प्राकृतिक सौन्दर्य की अमृतवर्षा समान रूप से सुलभ है। कोई अछूता नहीं रह सकता। समानता कुदरत का मूल तत्‍व है। बिखरा पड़ा है, यहॉं-वहॉं, समेट लो, दामन भर लो, जितना जी चाहे, भंडार कभी रिक्‍त नहीं होगा, जैसे अक्षय-पात्र भोज्‍य सामग्री व व्‍यन्‍जनों से सदैव भरा रहता है।

‘’शक्ति!’’ सपना ने पुकारा, ‘’कहॉं खोये हो।‘’ध्‍वनी में हल्‍की कर्कशता ने शक्ति को जमीन पर पटक दिया........धड़ाम, ‘’हॉं।‘’ वह चीख उठा। मस्तिष्‍क पूर्ण रूप से जागृत हो गया। उसे याद आया, सपना बबली-बन्‍टी के आवासीय विद्यालय गई थी। सपना को समीप देख, ‘’ठीक हैं, बच्‍चों को कोई कष्‍ट, आवश्‍यकता......या फिर कोई अन्‍य समस्‍याᣛ?’’ एक ही साँस में सब बोल दिया।

‘’ठीक हैं।‘’ सपना ने सामान्‍य मुद्रा में बताया।

‘’तुम्‍हारा पूछ रहे थे।‘’

‘’क्‍या जबाब दिया तुमने।‘’

‘’बोली कुछ जरूरी काम......।‘’ सपना शिकायती लहजे में शक्ति को देखती हुई, कहने लगी, ‘’मगर तुम तो सो रहे हो, फुरसत में बैठे-बैठे।‘’

दोनों मुस्‍कुराते-मुस्‍कुराते हंसने लगे।

स्‍वरूपा का अक्‍स दिल-दिमाग पर इस क़दर छा गया कि शक्ति बैचेन व व्‍याकुल महसूस कर रहा है। भूलने की कोशिश में ऑंखें मूँदकर अन्‍य विचार पर ध्‍यान केन्द्रित करता है, तो एक-एक तस्‍वीर ऑंखों में उतरना प्रारम्‍भ हो जाती है। एक लम्‍बा सिलसिला..........।

इत्तेफाकन, संदेहात्‍मक परिस्थितियों अथवा अनजाने में एक पल की गफलत व गलतफैमि का नतीजा था कि वह समागम कर गुजरे, जो हरगिज नहीं करना था। दोनों ओर जवां ज्‍वाला भड़की लहराती लपटें लपकी लपटने को परस्‍पर विलीन होकर शॉंत एवं विलुप्‍त हो गयीं। परन्‍तु छोड़ गयीं स्‍थाई तपिस तथा तड़प, जो सदैव तरो-ताजा रहते हुये कामेच्‍छाओं को उत्‍सर्जित करती रहेंगीं, शहद सी शराब समान शुरूर की भॉंति। फिलहाल तो चाहे-अनचाहे, सपना के नाज-नखरे, हाथों-हाथ लो। सपना को तनिक भी आभास नहीं होना चाहिए कि उसे नजर-अन्‍दाज किया जा रहा है। लेसमात्र भी भनक नहीं लगना चाहिए कि अनमने-मन अथवा अनइच्‍छा से कार्यकलाप हो रहे हैं। पूरे जोशोखरोश का दिखावा करना होगा। स्‍वरूपा-स्‍वरूपा का ख्‍याली जाप सात सतहों के नीचे दबाना-छुपाना पड़ेगा। संकल्‍प कर लो, शक्ति!

सपना कम होशियार नहीं है। उड़ती चिडि़या के पंख गिन लेती है। कड़ी दृष्टि रखती है, इस मामले में। क्षण भर भी शंका-शक हुआ नहीं कि नोंच डालेगी, बवाल-बखेड़ा बवन्‍डर खड़ा कर देगी। इसलिये पति-पत्नि की रोजमर्रा की क्रिया-कलाप एवं सम्‍पूर्ण औपचारिकताओं को समय पर निवाहते रहना होगा, वास्‍तविक स्‍वरूप में पूर्ववत, तभी खैर है।

सपना अभी रसोई घर में अपने बचे काम निवटा ही रही थी, मगर शक्ति पहले ही रात्रिकालीन पोषाक में, खुशबू, मुखवाश, वगैरा-वगैरा से फारिग होकर पलंग पर इन्‍तजार मुद्रा में सरसरी तौर पर पुस्‍तक के पृष्‍ठ पलट या पढ़ रहा था।

शयन-कक्ष का द्वार खुला ही था। सपना झटके से अन्‍दर आ धमकी, ‘’दूध गर्म करूँᣛ?’’ शक्ति ने त्‍वरित नजर निरीक्षण किया, काफी कुछ हैरान-परेशान, काम-काज से बिफरी हुई।

‘’क्‍या देखते हो।‘’ सपना को जल्‍द जवाब चाहिए था, ‘’और भी काम छूट गये हैं, अभी।‘’

‘’हॉं तो निबटा कर दूध गरम करते लाना।‘’ शक्ति निश्चिंत दिखा।

दिनभर घरेलू कामों में खटती रहती है। थकावट, उसके चेहरे पर साफ नज़र आती है, बुझी-बुझी सी। कोई बनाव श्रृंगार नहीं।

सपना ने झटपट लाकर दूध साइड टेबल पर रखा और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपने रात्री कालिन नाइटी वगैहरा पहनने लगी आधे षठकोण की तरह ड्रेसिंग टेबल में आयना जड़े हुये हैं, फुलसाइज के, इसी कारण सपना का डील-डौल थ्रीडी चित्रकला के मुताबिक दिख रहा था। सामने के गिरर में फ्रन्‍ट पोज, दायें दर्पण में दायें पोज एवं बायें दर्पण में बायें पोज तथा पीठ का पोज तो पलंग की तरफ था। यह कह सकते हैं कि सपना का शक्ति को चौतरफा से एक साथ एक ही पल में देख पा रहा था। वह हाथ –पैर पर लोशन मल रही है। चेहरे पर क्रीम चिपड़कर खुली जुल्‍फों को कंघी से सम्‍भार रही है। अच्‍छे बड़े केश हैं, कमर के नीचे तक, रेशम से मचलते हुये। सीलिंग फेन की गोल-गोल घूमती हवा से थिरकते और थर थराते हुये चमक रहे हैं। काली घटाओं को भी मात दे रहे हैं। शक्ति को लगा इतनी सुन्‍दर पहली बार लग रही है। सपना शर्मीले अन्‍दाज में पलंग पर किनारे बैठ गई। सिमटी-सिमटाई सी।

‘’संकोच क्‍यों.........’’ शक्ति ने मादक मुस्‍कान धारण कर कहा, ‘’आओ गोद में लेटकर गुफ्तगू करें। प्‍यार, प्रेम, मौहब्‍बत और चाहत की.........।‘’

सपना उचकते-फुदकते, लचकते, अन्‍दाज में शक्ति के आगोश में मचलते हुये हंसीन ख्‍याबों में खो गई..............

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश: --१०

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

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